शुक्रवार, 26 जनवरी 2018

रिमझिम बूँदें बरसने लगी है

आज फिर चिड़िया एक डाल पर फुदक रही है
वह यूँ फुदकती चहकती अच्छी लग रही है

कभी आम की डाली कभी अमरुद की डाली पर
कभी नीम की तो कभी जामुन की उस डाली पर

हवा की ताज़ी सौंधी सी खुशबु मन में भर रही है
प्रकृति की  सुरम्य छटा बसंत में निखर रही है

सरसों के पीले  फूल इस बगिया में खिलने लगे हैं
देखो बगिया संवर रही है ख़ुशी दिल में भर रही है

 भँवरे मंडराने लगे हैं मधुपान कर इतराने लगे हैं
लता पेड़ों का लेके सहारा देखो ज़रा तन के खड़ी है

नई भोर आई लाली है छाई उषा ने भी ली अंगड़ाई
सूरजमुखी ने आँखे खोली कुमुदिनी सुस्ताने लगी है

सितारे शर्माने लगे हैं घूँघट में मुखड़ा छिपाने लगे हैं
चंदा ओझल हुआ सूरज की किरणें जमी पे पड़ रही हैं 

प्रकृति संवरने लगी कुमकुम फूलों से झरने लगी है
संध्या रानी आई उसकी  पायलिया छनकने लगी है

कैसे न मोहित हों छटा पर आँखे ख़ुशी से झरने लगी हैं
 घटा छाई लेके बिजुरिया रिमझिम बूँदें बरसने  लगी है
@मीना गुलियानी


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