सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

कान्हा तेरा मेरा ये प्यार

कान्हा तेरा मेरा ये प्यार कभी न बदले

तेरे दर पे हमेशा मैं आता रहूँ
तेरे चरणों में शीश झुकाता रहूँ
कान्हा मेरा ये व्यवहार कभी न बदले

चाहे अपना हो चाहे कोई बेगाना
रूठे तो रूठे मुझसे सारा ज़माना
कान्हा मेरा ये विचार कभी न  बदले

 सत्संग में सदा तेरे आता रहूँ
 भजन सदा मैं तेरे यूँ गाता रहूँ
जुड़े मन से मन के तार कभी न बदले
@मीना गुलियानी 

रविवार, 26 फ़रवरी 2017

इतना पन्ना लिखवाके लाया

तपती दुपहरी में वो जर्जर काया

लाठी टेकता वो मुझे नज़र आया

झुर्रियों का बोझ भी झेल न पाया

इतनी अधिक  क्षीण थी उसकी काया

विधाता ने जीवन का मोह उपजाया

मोम के पुतले सी पिघलती काया

न थी एक भी तरु की वहाँ छाया

प्राणों का मात्र स्पन्दन ही हो पाया

पल में मिट्टी में  विलीन हुई वो काया

चार व्यक्तियों ने उसे काँधे पे उठाया

निष्प्राण जीव ने चिरविश्राम था पाया

जीवन का इतना पन्ना लिखवाके लाया
@मीना गुलियानी


शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

उसे प्रेम का पाठ पढ़ाया

एक हवा का झोंका चुपके से आया
आते ही उसने फूलों को सहलाया
खुशबु से अपनी गुलशन को महकाया
धीरे से उसने जुल्फों को बिखराया
कंधे पे रखकर हाथ वो था मुस्कुराया
दिल के करीब ही खिंचा चला आया
मौसम ने फिर से जीना है सिखाया
लगता है जैसे कोई त्यौहार आया
लगता है कान्हा ने बाँसुरी को बजाया
गोपीवृन्द भी संग संग चले जैसे छाया
राधा का कान्हा ने मन को हुलसाया
नदिया किनारे कदम्ब की वो छाया
कान्हा ने वहीँ उसके नीचे रास रचाया
कालिन्दी की धारा ने सब याद दिलाया
गोपियों ने विरह जल था उसमें बहाया
अश्रुजल से काली पड़ी कालिन्दी की काया
कान्हा का सा ही रूप उसने था लखाया
जिसने उद्धव का मान भी खण्डित कराया
जो ज्ञान का सन्देश देने को था आया
गोपियों ने ही उल्टा उसे प्रेम का पाठ पढ़ाया
@मीना गुलियानी 

जिस्म मिट्टी बन गया है

अब कौन धैर्य दे मेरे दिल को

जिसका पूरा इतिहास जल गया है

मुझसे मेरा बचपन रूठ गया है

मन का ये आँगन सूना पड़ गया है

ज़माने की इन फ़िक्रों ने खा लिया है

कैसे सब्र करे जिसका दिल टूट गया है

घर का तिनका तिनका बिखर गया है

आस का पत्ता पत्ता पेड़ से झड़ गया है

कल का फूला गुलशन उजड़ गया है

मिट्टी में मिलके जिस्म मिट्टी बन गया है
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

कान्हा राधा पुकारे आज

कान्हा राधा पुकारे आज, प्यारे आ जाओ इक बार
कान्हा आ जाओ न ठुकराओ,मेरी नैया लगादो पार

कान्हा तूने मुझे बिसराया है
ये कैसी तुम्हारी माया है
नित बहती है अँसुअन धार

जब याद तेरी मुझे आती है
तन मन की सुध बिसराती है
तुझपे तन मन दूँ मैं वार

कान्हा बिछुड़े हुए युग बीत गए
क्यों मीत  मेरे तुम रूठ गए
अब सपने करो साकार
@मीना गुलियानी 

बेचैनी दिल में उभरती है

तेरी तस्वीर भी आजकल मुझसे बात नहीँ करती है
वो भी चुपचाप कमरे में एक ओऱ तकती रहती है
जाने क्या बात है क्यों उदासी सी छाई रहती है
एक उलझन सी है जो ख्यालों में तेरे रहती है

हम तो तेरे ही साये में जीते हैं सँवरते हैं
फिर भी इक ठेस सी जहन में उतरती है
हम तेरे  मलाल  का सबब ढूँढते रहते हैं
 क्यों फिर इक मायूसी दिल में भरती है

तुम यकायक क्यों चले जाते हो  बिना बताये हुए
एक हसरत सी दिल में हमेशा मेरे उमड़ती है
यूँ तो लम्हे गुज़रते जाते हैं तेरे बगैर जीते हैं
 फिर भी तन्हाई की बेचैनी दिल में उभरती है
@मीना गुलियानी


मंगलवार, 21 फ़रवरी 2017

जिंदगी तेरे एहसास में डूबी थी

तुम्हारी याद के पल कितने सुहाने थे
हवा भी गीत गुनगुनाती थी
तेरे इंतज़ार में लोरियाँ सुनाती थी
मेरे तड़पते हुए दिल को बहलाती थी
धूप मेरे आँगन में खिल जाती थी
तुम मेरे बाज़ुओ में सिमट जाती थी
चारों दिशाओं में तुम्हारी हँसी गूँजती थी
जिन्दगी तुम्हारे प्यार पर फ़िदा होती थी
तुम्हारी लरज़ती चाल याद आती थी
तब मेरी रूह भी कांप जाती थी
तुम्हारे बालों से पराग केसर झड़ते थे
जो तुम्हारे नाज़ुक कपोलों को चूमते थे
अंगुलियाँ बालों में तुम लपेटे थी
जिसमें सारा जहाँ तुम समेटे थी
जिस्म मोम सा सांचे में ढला था
मेरी जिंदगी तेरे एहसास में डूबी थी
@मीना गुलियानी 

रविवार, 19 फ़रवरी 2017

मेरे सपनों का गाँव हो

मेरे अन्तर की पीड़ा को तुम क्या जान पाओगे
मेरे भावों की व्याकुलता को तुम क्या समझ पाओगे
मेरे जिस्म के अंदर एक भावुक मन भी है
जो नहीँ रहना चाहता किसी के भी पराधीन
इन सभी सम्बन्धों से ऊपर उठकर चाहता है जीना
वो जिंदगी जो कि शायद दुश्वार लगेगी तुमको
एक एहसास हमेशा मुझे कचोटता है क्या यही जीवन है
सुबह से शाम, शाम से रात, रात से फिर दिन
एक ही कल्पना, यही समरूपता , न भावों का स्पंदन
 वही आशा, वितृष्णा  भरी जिंदगी क्या जीना
जहाँ न शब्दों की है कोई परिभाषा ,सिर्फ निराशा
मैं चाहती हूँ एक नया  संसार यहाँ बसा दूँ
हर तरफ खुले आकाश का शामियाना हो
चाँद तारों को उसमें सजा दूँ ,दीपक सजा दूँ
जहाँ बादलों का झुरमुट अठखेलियाँ करता हो
लहरों भर समंदर सा मन मचलता हो
नए नए उद्गार मन में पनपते हों
नए नए पत्तों से गान हवा से झरते हों
कोयलिया जहाँ मीठे बोल सुनाती हो
तितली जहाँ पँख फैलाती उड़ती इतराती हो
वेदना का जहाँ नामोनिशान  न हो
वहीँ पर बसा मेरे सपनों का गाँव हो
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

ऐसा मकां बनाया जाए

ऐसा कब्रिस्तान कहाँ है जहाँ नफरतों को दफनाया जाए
ईर्ष्या ,द्वेष ,वैर  भाव को हर दिल से कैसे मिटाया जाए

                          हर कोई कुदरत के तमाशे पे ही नाचते रहते हैं
                          तन्हाई की महफ़िल ख़ामोशी के घुंघरू बजते हैं
                          कैसे इस बेचैनी को हर मन से अब हटाया जाए

वैसे तो जीने को तो हम यूँ भी जिए जाते हैं
बन्द कर होठों को अश्कों को  पिए जाते हैं
लम्हे जो गुज़रे नफरतों में कैसे भुलाया जाए

                       कभी तो कोई दिन ऐसा आये जो सुकूँ से भरा हो
                       कोई तो दिल मिले ऐसा जो मुहब्बत से भरा हों
                        सुकूँ  दिल को मिले कोई ऐसा मकां बनाया जाए
@मीना गुलियानी 

रविवार, 12 फ़रवरी 2017

स्वप्न फिर बुनने लगी

सुना है  डूबते को तिनके का सहारा काफी है
फिर से नए ख़्वाब ये जिंदगी बुनने लगी
हरी हरी घास ने दे दी है अपनी कोमलता
फूलों की पत्तियों ने लुटा दी अपनी सुंदरता
उनका मकरन्द भी चुराया पवन ने भँवरों ने
उसको अपने गीतों में चुपचाप मैं सँजोने लगी
मधुर सपने जो देखे आँखों ने मैं उनमें खोने लगी
मन  स्वच्छन्द सा उडा  जाता है हवा के झोंके से
दिल की तरंग मृदंग की थाप सी बजने लगी
पृथ्वी का स्पर्श मेरे अन्तर्मन को फिर छू गया
प्रकृति के इस आँगन में सृजन उत्सव भर गया
मेरी पलकें सृजन के स्वप्न फिर बुनने लगी
उन सुखद पलों के एहसास बन्द आँखे करने लगी
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

मीठे बोल मुँह से बोल तो ज़रा

तुझको निहारने से कभी मन नहीँ भरा
तुम ही मुझे बताओ ये क्या है माज़रा

क्यों आ गईं माथे पे तुम्हारे सिलवटें
क्यों हर बात पे सोचते बतलाओ ज़रा

शोहरत तो तुम्हारे कदम चूमेगी मगर
तुम अभी से न इतना इतराओ तो ज़रा

यूँ तो बगिया ये सारी वीरान ही पड़ी है
दिल का ये चमन है फिर भी हरा भरा

तन्हा ज़िन्दगी का सफर काटे नहीँ कटता
कुछ मीठे मीठे बोल मुँह से बोल तो ज़रा
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

ऊपर खुला आसमान है

यह सड़क हर तरफ से ही सुनसान है
आदमी मगर यहाँ का बड़ा सावधान है

हम फिसल गए तो फिसलते चले गए
सोचा न था कि इस मोड़ पर ढलान है

कभी तो हँस दो खुलके बात करो हमसे
वरना कहेगा कोई तू कितना बेज़ुबान है

इतनी मसरूफियत भी अच्छी नहीँ लगती
सभी अपने अपने हालातों से परेशान हैं

हम उस जगह पर हैं जहाँ अपनी खबर नहीँ
चल रहे हैं ज़मी पर ऊपर खुला आसमान है
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

अंगारों को फिर कैसे हम बुझाएंगे

मेरे दिल के जख्म कुछ हरे से हैं
न कुरेदो उन्हें रिसने लग जायेंगे
गमों से इतने मुझे पाले हैं पड़े
लगता है छाले वो सारे फूट जायेंगे

                       टूटते रिश्तों में भी मौजूदगी का एहसास है
                       दिल की टीस न कम होगी अरमां रह जायेंगे
                       भावनाओं का सैलाब है आँसू ढलक जाएंगे
                       सिसकते हुए अरमान लिए तेरी गली आएंगे

सीपी में बन्द अरमानों को किया हमने
नज़ारे को भी हम सामने तेरे लेके आएंगे
दिल पे जब तिश्नगी की चोट लगी
जलते अंगारों को फिर कैसे हम बुझाएंगे
@मीना गुलियानी 

मेरा सपना अधूरा ही रहा

कल का मेरा सपना अधूरा ही रहा
तू मुझसे रूठा रूठा सा ही रहा

               मेरा दिल तुझसे मिलने को तरसता रहा
               आसमाँ पर चाँद खिला पर सिमटा रहा

सितारों पर भी बादलों का पहरा सा रहा
कुहरा आसमान पे यूँ  बिखरा सा ही रहा

              वक्त तेरे आने की आहट को सुनता ही रहा
              खुशियों से भरा दामन सिकुड़ता सा ही रहा

आईना मेरी मुस्कुराहट देखने को तरसता रहा
तेरे बिना मोती कुंदन हीरा सब फीका सा रहा
@मीना गुलियानी


सोमवार, 6 फ़रवरी 2017

मय्यसर नहीँ है अपने लिए

मैंने तो सोचा था चिरागाँ करेंगे हर दिल को
 इक चिराग भी मय्यसर नहीँ है अपने लिए

इस शहर में अब कोई भी हमदम न बचा
चलो कहीँ दूर चलें छोड़के ताउम्र के लिए

कहीँ भी देखो सब ख़ाक ही नज़र आये
कोई हँसी नज़ारा न बचा नज़र के लिए

सब संगदिल ही हैं जो यहॉ पे बसते हैं
कैसी आवाज़ लाऊँ यहॉ असर के लिए

मेरा गुलशन भी तूफां से इस कदर उजड़ा
सुकूँ  दिल का मिट गया उम्र भर के लिए
@मीना गुलियानी 

रविवार, 5 फ़रवरी 2017

चिंगारी हमेशा सुलगनी चाहिए

दिल की पीर इतनी बर्फ सी जमी
आज कुछ तो पिघलनी ही चाहिए

                    दर्दे दिल जब नासूर बन जाए कभी
                    धारा आँसुओ की तो बहनी चाहिए

सिर्फ तमाशा हो यहाँ नहीँ कोशिश मेरी
इस जहाँ की तस्वीर तो बदलनी चाहिए

                  तूफां इतने हैं आए कांप उठी ये ज़मी
                  अब तो फांसले की दीवार गिरनी चाहिए

होंसलों को पस्त न होने देना कभी
एक चिंगारी हमेशा सुलगनी चाहिए
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 4 फ़रवरी 2017

अब बोल दे न मुझसे छिपा

तुम्हारे बगैर कुछ अच्छा नही  लगता है
दिल मेरा यूँ ही उड़ा उड़ा सा रहता है
              पूरा घर इक नुमाइश सा लगता है
              एक तूफ़ान सा दिल में उमड़ता है
मैं इन सितारों से बात करता हूँ
रौशनी इनसे घर में करता हूँ
                 कभी इनको तेरी जुल्फों में टांगता हूँ
                 कभी इनसे शामियाने को सजाता हूँ
हर पल तुझसे ही बातें करता हूँ
तेरे ही ख़्वाब बुनता रहता हूँ
              बस एक झील का किनारा है
               इसमें डूबा मेरा जहां सारा है
कैसे खोजूँ मैं अपना दिल ये बता
तू ही अब बोल दे न मुझसे छिपा
@मीना गुलियानी 

दर्द को इतना दिया गला

दिल मेरा कहीँ भी न मिला

आँगन में कोई फूल न खिला

अम्बर पे चाँद भी न घटा

बादलों में सूर्य जा छिपा

हँसी मेरी बन गई बेवफा

चुप की हमने सुनी है सदा

लहू का बहा दिया दरिया

धरती को दिया आज नहला

दर्द को इतना दिया गला
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2017

लरज़ते प्यालों में कहाँ

तुम्हारी आँखों में जो नशा है
वो इन लरज़ते प्यालों में कहाँ

             हम तो भूले से तेरे साये से  लिपट जाते हैं
            जो कसक तुझमें है सागरो मीना में कहाँ

करता हूँ इबादत गर कबूल हो जाए
सहर हो तेरी पर मेरा आफताब कहाँ

             अब तड़पती हुई ग़ज़ल तुम सुना दो मुझे
             जो  जुनून  तेरे प्यार में है वो और कहाँ
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 1 फ़रवरी 2017

मत करो धोखा किसी से

मत करो धोखा किसी से
रूह तुम्हारी भी काँप उठेगी
लगेगी किसी की बददुआ तो
दुनिया तेरी भी हिल उठेगी

पाँव फिर ज़मी पर न पड़ेंगे
धरती भी डोलने लगेगी
जुर्म सब कब  तक सहेंगे
आखिर कब तक चुप रहेंगे

कर्म फल भोगेंगे निश्चित
गीता में ऐसा लिखा है
तुम भी सब ये जानते हो
सच ये मैंने भी कहा है
@मीना गुलियानी