शनिवार, 30 जनवरी 2016

तमन्ना



इक यही तमन्ना है और कोई चाह नहीं 
लुट जाएं तेरे प्यार में और कोई राह नहीँ 
सहते जाएँ सितम जमाने के 
मुस्कुराते रहें 
मिले कितने ही गम 
गुनगुनाते रहें 
प्यार की हसीन वादी में 
चाहत के फूल खिलाते रहें 
गम न कर कोई गर जलाए आशियाँ 
उजड़ा आशियाँ फिर बसाते रहें 
झड़ गए पत्ते शाख से तो क्या हुआ 
प्यार के सुमन फिर खिलाते रहें 
कोई न रह जाए गम अछूता 
सबको गले से हम लगाते रहें 

मेरे हमसफ़र


जी चाहता है ये दिल तेरे नाम कर दूँ
अपनी सारी खुशियाँ तेरे नाम कर दूँ

                  अपनी जिंदगी तेरे हवाले करके
                   गम की बस्ती से बहुत दूर हटके
                  जीवन से सभी काँटों को दूर करके
                 तेरी झोली प्यार के फूलों से भरके
                  तमाम खुशियाँ तेरे नाम कर दूँ

भूल जाए तू सारे दुनिया के सितम
इस तरह से एक हो जाएँ हम
जैसे चँदा मिले सितारों से
जैसे सागर मिले किनारों से
अपनी जीवन नैया मांझी के नाम करदूँ

               डूबता है लो अब दिल का सफीना
              तू ही एक नज़र आता है नगीना
              ले चल तू मुझे बनाकर हमसफ़र
              तो कट जायेगी तेरी ये लम्बी डगर
              मै तेरी राहों को आसान कर दूँ 

शुक्रवार, 29 जनवरी 2016

दहेज व्यंग्य चित्र - मुक्तक


१.              किसी गाँव में बारात आई 
                 दुल्हे के पिता ने माँगा दहेज में 
                 कार, फ्रिज और टी.वी. 
                 तुरन्त ला हाज़िर किए 
                  उनके समधी ने बच्चों के वही खिलौने 
                 और दे दिए कन्या के पिता ने 
                 दहेज में वरपक्ष को 



२.              विदा होते समय वर बोला 
                 दुल्हन की डोली तभी उठेगी 
                 जब कन्या के पिता 
                 दहेज में पैट्रोल की या गैस से चलने वाली 
                कोई वस्तु उन्हें देंगे 
                दूरदर्शी पिता ने जेब से 
               सिगरेट लाइटर निकाला 
               और वर को दे दिया 

चुप्पी



यह कैसी है रात्रिबेला की निस्तब्धता 
तुम्हारा बिना आहट किये चले आना 
होठों पर चुप के ताले लगा देना 
ताकि वातावरण भी शान्त रहे 
तुम्हारी बातों में कोई खलल न पड़े 
तुम यूँ ही चुपचाप मेरे पास  बैठे रहो 
मै भी ऐसे हो तुम्हें देखती रहूँ 
नज़रों से बातें हों अठखेलियाँ हों 
पर मुँह से कुछ न बोलें 
ताकि अपना प्यारा दिवास्वप्न 
छिन्न भिन्न न करदें ज़माने वाले 
कहते है दीवारों के भी कान होते है 
कहीं कोई अफ़साना न बन जाए 
इसलिए चुप्पी साध ली है हमने 

भई रे बावरिया


तेरे ही कारण मै तो भई रे बावरिया
साजन तूने  लीनी न मोरी खबरिया

                  तेरे ही कारण मैने दुनिया बिसरा दी
                   सुध बुध खोके जिंदगानी लुटा दी
                   अंग अंग झूमे बरसूँ बनके बदरिया

प्रेम में तेरे सारा जग ठुकरा दूँ
तुझको न भूलूँ सबको बिसरा दूँ
चाहत में भूल गई अपनी डगरिया

                  धरती भी डोले और अंबर भी डोले
                  पायल मोरी बाजे मन खाए हिचकोले
                  रंग में तेरे मै तो रंग गई साँवरिया


गुरुवार, 28 जनवरी 2016

कुछ बोल ना



कब तक चुप बैठोगे अब कुछ बोल ना
धीरे धीरे से तू भेद जिया के खोल ना

                  दो चार कदम तुम संग चलो
                  तेरे साथ चलूँगी मै भी
                   ये फासले दिलों के
                   तय करना तुम और मै भी
                   आगे बढो बढ़ते चलो यूँ डोल ना

तुम जीत गए हो हमसे
हम हार गए  दिल तुमसे
क्या जान लगा दी तुमने
पहुँचे करीब मंजिल के
मंजिल तक आके बीच मुझे न छोड़ना 

जी लेने दे



यादों का सहारा है झूठा
                  दरिया का किनारा भी टूटा
न डूबने से बचा ऐे साहिल मेरे
                  मरकर ही मुझे चैन आने दे
इस विष को मुझे पी लेने दे
                  सब खुशियाँ लुट चुकी है मेरी
अब साँसों को भी सी लेने दे
                  जो दिल तेरे सजदे में झुका
उसका चाक दामन सी लेने दे
                  भुला लेने दे दुनिया के दर्दो - अलम
इस दुनिया से दूर मुझे जी लेने दे

आराध्य देव

जब भी मेरा दिल उदास होता है 
लगता है तू मेरे आस पास होता है 

कोई वादा नहीँ किया तुमने 
फिर भी क्यों इंतज़ार रहता है 
बेवजह ही करार मिलने पर 
दिल बड़ा बेकरार रहता है 

तुम किसी के ख्वाबों की 
इक तस्वीर लगते हो 
करूँ कैसे बयाँ तब्बसुम को 
कितने तुम हसीन लगते हो 

तुम तो जन्नत का  करिश्मा हो 
तेरे जलवों से ही बहार आये 
देखे जो सुन्दर रूप तुम्हारा 
कामदेव भी शर्मा जाए 

तुम ही मेरी कल्पना हो 
तुम ही सर्वस्व हो मेरे 
कैसे भुला दूँ मै तुम्हें 
तुम्हीं आराध्य देव हो मेरे 

बुधवार, 27 जनवरी 2016

अट्टालिकाओं का प्रतिशोध



शिखरों को चूमती हुई अट्टालिकाएँ 
                     आज अट्टाहस कर उठी 
न जाने कितनी मर्मान्तक यंत्रणाएँ  सहकर 
                     आज उद्दीप्त हो उठीं 
उन धवल वस्त्रधारी के प्रति 
                    कितनी क्रूर हो उठी 
जो वहीँ रहते थे मन में मैली परत थी 
                   आज असहिष्णु हो उठीं 
न जाने कितने मजदूरों का शोषण हुआ 
                  प्रतिशोध लेने अग्रसर हो उठीं 
सहे  जिन्होंने वज्रप्रहार भी, भूख ,लताड़ भी 
                 अब बर्बरता की सीमा लांघ उठी
आज तक की दबी हुई वो चिन्गारी 
                फिर से प्रज्वलित हो उठी  

मंगलवार, 26 जनवरी 2016

आशंका निर्मूल हुई




आशंकाओ से घिरा मेरा मन 
खोया हुआ था कहीं पर 
तुमने उसे जगा दिया 
एक मधुर स्पर्श से ही 
तन मन मेरा हिला दिया 
प्राणो में जीवन संचार हुआ 
आशा का आधार मिला 
तुम्हारा एक सहारा पाकर 
आशंकाएँ निर्मूल हुईं 
भय का बंधन टूटा 
और सुखमय संसार हुआ  

उदास न हो



मेरे हमनशीं , मेरे हमसफ़र
उदास न हो
कठिन सही तेरी जिंदगी का सफर
मगर उदास न हो

हज़ार मुश्किलें आयेंगी तेरी राहों में
है भरोसा तू हौसले से हटा देगा उन्हें
मुझे पायेगा अपने साथ तू  ख्यालों में
जो न हो यकीं वफ़ा पर तो आजमाना मुझे
मगर उदास न हो

सहर के बाद धूप भी तो निखरेगी
तेरे जज्बातों की माला भी तो बिखरेगी
उड़ायेगी उसकी सुगन्धि पवन फूलों से
छंट जायेगी तेरी दुःख  बदली
मगर उदास न हो

जानती हूँ तेरा लक्ष्य बहुत ऊँचा है
तेरे प्यार के चमन को वफ़ा से सींचा है
जो हो जाए तू कुर्बान वतन की राहों में
हज़ार सजदे करूंगी मै तेरी राहों में
मगर उदास न हो



प्यार की दास्तां



ज़मी और आसमां से भी पहले 
तेरा मेरा प्यार यूँ ही जवां था 

कहाँ से भटकते कदम कहाँ तक आ गए 
सारे जहान पर हम खुमार बनके छा गए 
प्यार में सारी मुश्किलें मेरी आसां हो गई 
खुदा भी हम पर कुछ मेहरबाँ था 

खाई जो कसमें वफ़ा की हमने निभा दी 
तेरे प्यार में ये जिंदगानी लुटा दी 
दिल की तड़प को हमने भुलाया 
हर एक अरमां जो नौजवां था 

सोमवार, 25 जनवरी 2016

कैसे करूँ जुदा




कैसे करूँ जुदा दिल से तेरे ख्याल को


यह बन चुका है मेरे जीने का आखिरी सहारा
जब छोड़ दिया था सबने मुझे बेसहारा
तेरे हाथों ने ही थामकर दिया था सहारा
अब चमका है मेरी किस्मत का सितारा


नज़र तेरी मेरे दिल की बात कहती है
तेरी तस्वीर मेरे साथ साथ रहती है
बहुत ही मुश्किल है तुमको यूँ भुला देना
तू कभी भी मुझे बेवफा नहीं कहना


करेगी क्या अगर दुनिया हमें सताएगी
मौत भी तुम्हारे बिन मेरे निशां न पाएगी
खो जाऊँगा मै तेरे सघन केशपाश में
भुला दूंगा तमाम दर्दो -गम दुनिया के मै 

रविवार, 24 जनवरी 2016

उनकी याद



तेरी  याद में सारी दुनिया भुला दी
 तेरे प्यार में जिंदगानी लुटा दी

                   क्या गज़ब है ग़मे मोहब्बत का हासिल होना
                  दिल पे चोट खाके भी लबों का हँसते रहना

हज़ार पर्दे पहरे  भी छुपा न पाएंगे उनको
मै तो रखता हूँ हमेशा दिल में बसाए उनको

                  उनके दीदार की बस एक झलक काफी है जीने के लिए
                 शमा का परवाना  बना रहना  काफी है मरने के लिए

शनिवार, 23 जनवरी 2016

न इतना सताओ


न मुझे इतना सताओ ज़माने वालो
कि खो दूँ होश मै अपने सताने वालो

                तुम्हें क्या खबर कि न उनसे मिलने से
                कहर  की रात  कल मेरे साथ गुजरी है
                तमाम खुशियों का गला घोंटकर जिऊँ कैसे
               तुम्हीं बताओ मुझे मुझ पे कहर ढाने वालो

उजड़ जाएगा मेरे प्यार का मुस्कुराता जहाँ
जो ये मालूम होता तो न बनाता मै आशियाँ
तिनका तिनका बिखर गया मिल गया धूल में
न जुल्म इतना ढाओ मुझे जिन्दा जलाने वालो

                  धरती आसमा सब जल रहे है मेरी आहों से
                  कर ली है सबने तोबा डरकर मेरी पनाहों से
                   पर नोच डाले है बेदर्द बनके तुमने परवाज़ के
                  न समझना रूह बख्शेगी मेरी कहर बरसाने वालो

ऐ दो जहाँ के वाली



कोई फरियाद कर रहा है,  ऐ दो जहाँ के वाली
सुनते है कि ,तेरे  दर से जाता न कोई खाली 

                 बिगड़ी बनाई तुमने इज्जत सभी को बक्शी
                 न मिटा पाएगी तेरे रहम को जहाँ की हस्ती
                 हे दाता सब दुखियों के मेरे भी बनो वाली

रो रोके कर रहा हूँ कबसे फरियाद तेरे आगे
देखना है तेरी चौखट पे कब मेरा नसीब जागे
हे दाता कर्म करना सुन दो  जहाँ के वाली

                  जब सबने था सताया तेरा हाथ सर पे पाया
                  मिला दिल को मेरे सुकून जो तेरे दर पे आया
                  बना दे बिगड़ी बात खाली जाए न सवाली 

शुक्रवार, 22 जनवरी 2016

चार मुक्तक



दिए है दर्द कई इस बेदर्द ज़माने ने 
झोली भरदी है अश्कों के खज़ानों ने 


जज़्ब किए है हर दर्द मुहब्बत के सीने में दफन 
क्यों कुरेदते हो कद्रदां बनकर वो सारे  जख्म 


जाने कब मिटेगा फासला अपना 
टूटेगा चुप्पी का सिलसिला अपना 
कसमसाती जिंदगी की कैद से 
छूटेगा पंछी बावरा पूछो सैयाद से 


न पूछो दास्ताँ इस जिंदगी की मेरे यारो 
कुछ गुज़र गई कुछ गुजर जायेगी यारो 
कठिन था उन लम्हों से गुज़र जाना 
गुज़र गया हूँ हर खतरों से अब यारो 

यह कौन आया

यह कौन आया कि

                कलियाँ चटक उठीं

यह कौन आया कि

                बिजली चमक उठी

यह कौन आया कि

              भंवरे गुनगुनाने लगे

यह कौन आया कि

            फूल मुस्कुराने लगे

यह कौन आया कि

           मौसमे बहार आ गई

यह कौन आया कि

          ख़ुशी की फुहार आ गई

यह कौन आया कि

           मस्ती सी छाने लगी

यह कौन आया कि

         कोयल भी गाने लगी

यह कौन आया कि

          दिल झूम गया

यह कौन आया कि

          पवन का झोंका आँचल चूम गया 

गुरुवार, 21 जनवरी 2016

सजन तुम बिन





कितनी सुहानी है यह साँझ की बेला
                 किन्तु है सूनी सूनी सजन तुम बिन

मीठे मीठे कोयल के सुर
                 पड़ गए फीके सजन तुम बिन

साँसों की गति मंद पड़ गई
               तीव्र न हुई सजन तुम  बिन 

पायल और वीणा  झंकार
               पड़ गई धीेमी सजन तुम बिन

मन मयूर हुआ बेचैन
             आये न चैन सजन तुम बिन

तुम ही तो मेरे खिवैया हो
               कैसे लगूँ पार सजन तुम बिन

तुमसे ही नाता जोड़ा है
             पर टूटे  दिल के तार सजन तुम बिन

वियोग



दूर  है नदी का किनारा 
जल है कितना गहरा 
नैया है मेरी टूटी हुई 
मांझी बिन पतवार बिना 

 फिर दिल  ने तुझे पुकारा 
पर तुम नहीं आये 
चाँद फिर निकल आया 
दिल देखकर जल उठा 

रो रोकर इस दिल ने सदा दी 
मस्त बहारो का मौसम बीता 
कलियाँ कुँवारी रह गई 
उनका यौवन कुम्लहा गया 

सुप्त जनता



शिराओं का खून जम गया 
जनता हाहाकार कर उठी 
चारों ओर क्रंदन मच गया 
रोटी,कपड़ा,और मकान दो 
यही समवेत स्वर गूँज उठे 
कहाँ गया धमनियों के  रक्त  का 
वो शुभ्र प्रवाह ,क्या सो गया 
जनता के प्रहरी क्या अपने 
वादों से चूक गए /?
क्यों मूक हो गई वाणी 
जो जोश भरी थी गुंजित थी 
जिसमे शेरों सी गर्जना थी 
उठो आवाज़ बुलंद करो 
फिर से जागृति का आह्वान करो 
उठो फिर से नया अभियान शुरू करो 

बुधवार, 20 जनवरी 2016

जीवन एक दरिया



जीवन एक बहता हुआ  दरिया है
उसे बहने  दो
सुख दुःख का मधुर मिलन होता है
उसे होने दो
मौजो को साहिल  से टकराना होता है
टकराने दो

तुम क्यों उदास मन लिए गुमसुम से बैठे हो
उठो देखो , दुःख की बदली अब छंट चुकी है

जीवन से कभी हार न मानो
नहीं तो टूट ही जाओगे

अथक परिश्रम करते चलो
रुको नहीं,बढ़े चलो बड़े चलो

तुम्हें अपनी मंजिल मिल  जायेगी
फिर  तुम्हारी जिंदगी लहलहाएगी 

प्रियतम का संदेश



जब मैने प्रियतम का संदेश सुना
मन उनसे मिलने को उत्सुक हुआ

              घर, आँगन सभी बुहारना है
              अपना तन ,मन संवारना है

जी भरकर आज श्रृंगार करुँगी
सजधजकर उनके पास चलूँगी

             पहली नज़र में वो मोहित हो जाये
              देखके मुझे सारे गम भूल जाएं

मै उनकी साकी बनकर जाम पिलाऊँ
और मरहम बन जख्मों पे लग जाऊँ 

मंगलवार, 19 जनवरी 2016

मौन आमन्त्रण



प्रिय तुम्हारे मौन आमन्त्रण ने छला मुझे
जिसकी न थी ऐसी कभी कल्पना मुझे
न मालूम था कि मिलेगी यंत्रणा मुझे

                 पायल  की रुन -झुन मेरा दिल ले गई
                 बिंदिया की झिलमिल मेरी नींद ले गई
                 तेरे झुमके ने चैन न लेने दिया मुझे

वो रस भरे नयनों की मूक भाषा
मानो कह रही हो प्रेमभरी गाथा
तेरी बाँकी चितवन ने मारा मुझे 

                  वो तेरे दुप्पटे का सरककर गिरना
                  हवा से मदमाती जुल्फों का बिखरना
                 तेरी इन्ही अदाओं ने लूटा मुझे

सोमवार, 18 जनवरी 2016

आँखों में छुपा राज़


इन आँखों के पार जो मैने देखा 
दिखी उसमें खिंची मेरी ही रेखा 

                  न डूब जाऊँ कहीं इस समुन्द्र में 
                  न कर कैद मुझे अपनी अंजुमन में 
                  कि खो दूँ अपने मै होशो हवास 
                 आ गई मै अपनी मंजिल के  पास 

ऐसे लगा जैसे पुकारा किसी ने 
बजाया हो जलतरंग किसी ने 
देखा  झुकके तेरी आँखों में मैने 
 लगा अनबूझी बात जान ली मैने 

                मै सिमटती खिंचती सी चली आई 
                तेरी आँखों की  चितवन ले आई 
                देखने को अपनी बोझिल पलकें उठाई 
                तेरी नीर भरी उनींदी आँखे छलछलाई 

अब वो राज जान गई थी मै 
बात क्या है पहचान गई थी मै 
क्या थी तेरे दिल की मजबूरी 
आँखों से वो राज जान गई थी मै 

गोकुल के कान्हा

उस काल अचानक मादक 
चंचल समीर वह   आया 
सब प्रहरी भी अलसाये 
निद्रा ने राज्य जमाया 

 
                          स्वर्गीय किरण इक फूटी 
                           हो गई  प्रकाशित कारा 
                           वसुदेव देवकी का फिर 
                           चमका  यूँ भाग्य सितारा 

थी मोर मुकुट कटि काछिन 
उर में बैजयन्ती माला 
धर  वेणु अधर पर प्रकटे 
वसुदेव देवकी लाला 

                        हँसती थी  दिव्य प्रभाएँ 
                       कारा पट खुलते जाते 
                       थी लीलाधर की लीला 
                       सब साधन सजते जाते 

 रजनी की नीरवता में 
डूबी थी गोकुल नगरी 
सपनों में खोई जसुदा 
सोती थी सुध बुध बिसरी 

                    दृग उमड़ पड़े अब वसु के 
                   वह नयन सिंधु लहराया 
                    कम्पित हाथो में ले कन्या
                    निज शिशु को वहाँ सुलाया 

अपना सर्वस्व लुटाकर 
युग युग के पुण्य कमाए 
जग जान गया है जैसे 
गोकुल के कान्ह कहाए 

रविवार, 17 जनवरी 2016

तू रहे सलामत



हर अरमान जिंदगी के तेरे हों पूरे
कोई भी सपने रहें न अधूरे

                 खुशियों का साया तुझ पर रहे मेहरबां
                  तुझको  परवरदिगार की मिले पनाह

न हो खौफ कभी जिंदगी में तुझे किसी का
हो झोली मुरादों भरी बने आसरा किसी का

                  हर पल रहे जनून तुझे दोस्ती का
                  रहे दूर तुझसे साया भी दुश्मनी का

खुद का हाथ हमेशा सिर पे बना रहे
तू रहे सलामत दिल मेरा ये दुआ करे 

इल्तज़ा की है



मेरे दिल ने फिर अमन  की दुआ की है
न हो तू कभी खफा ये सदा दी है

                 तू रहे  सदा सलामत हर ख़ुशी तुझे मिले
                  हम रहें या न रहें तू बहारों में पले

हर बूटे पत्ते पे तेरा नाम लिखा रहे
हरसू गुलज़ार में तू ही समाया रहे

                यूँ ही सपनों का जहाँ मेरा बसा रहे
                 खुदा से मैने  इतनी इल्तज़ा की है 

शनिवार, 16 जनवरी 2016

तेरा मेरा रिश्ता



तेरा मेरा रिश्ता रब ने क्या बनाया है
ऐसा लगता है कि तू ही मेरा साया है

                दो दिल एक जान है ऐसा लगता है मुझे
                बताओ क्या यही दिल तेरा कहता है तुझे

दिलों के सोये अरमां जग गए
तुमसे मिलकर ख़्वाब सच हो गए

                गुफ्तगू जो तुमसे की दिल को सुकून मिला
                बरसों का मुरझाया दिल का चमन खिला

फिर उमंगो की बारिश हुई है
तपन  दिल की बुझ सी गई है 

शुक्रवार, 15 जनवरी 2016

चाहत के रंग भरेंगे



मीलों लम्बे फासले तय करेंगे
तभी तो चाहत के रंग भरेंगे 

                हर ख्वाहिश दिल की पूरी करेंगे 
               तहे दिल से तुझसे मुहब्बत करेंगे 

न शिकवा होगा न शिकायत होगी 
मेरी तुझसे हमेशा गुज़ारिश ये होगी 

                ता उम्र न छूटे तेरा ये दामन 
                ऐसी खुदा से इबादत होगी 

तुम्ही से अदावत और मुरव्वत करेंगे 
नाज़ो कर्म से तेरा दामन भरेंगे 

गुरुवार, 14 जनवरी 2016

हिमाकत की है



हम पे इल्ज़ाम क्यों है कि मुहब्बत की है
दिल तुझे देके क्या क़यामत की है

               गर न सम्भाला जाए दिल तो लौटा देना
               हमने तुझे अपना जानकर इनायत की है

पूछा गर रब ने तो बता देंगे उसे
इश्क पे जान देने की शरारत की है

               तेरी नज़रों से कभी  दिल को सलाम आया था
              अब कैसे नज़रें चुराने की हिमाकत की है 

निशाना बनेगा



मुझको  मालूम न था यूँ  अफ़साना बनेगा
जिंदगी मेरी का यूँ ही  फ़साना बनेगा 

              मुझे मार डालेंगी तेरी कातिल निगाहें 
              मासूम  दिल नज़र का निशाना बनेगा 

मदहोश करती है बलखाती ये ज़ुल्फ़ें 
इनमें उलझकर दिल दीवाना बनेगा 

               कहीं है नज़र और कहीं है निशाना 
                किसका जिगर अब निशाना बनेगा 

बुधवार, 13 जनवरी 2016

हिम्मत करेंगे



तुमसे ही शिकवा और शिकायत करेंगे
और  तुम्हीं से मुहब्बत करेंगे

              कभी भी  न भूलेंगे  हम तो तुम्हें
              तेरे पास आने की इबादत करेंगे

 खुदा जानता है मेरी बंदगी को
इसके सिवा क्या इनायत करेंगे

              हमें तुमसे दूरी  नहीं है गंवारा
             तुम्हें पास लाने की हिम्मत करेंगे


क्या मिलेगा तुम्हें



दिल पे क्या गुज़रती है तेरे यूँ चले जाने से
कैसे हम तुमको बताएं और कैसे ज़माने से

                  इश्क में तेरे हम तो दीवाने हो गए
                  अब क्या फायदा  फांसले बढ़ाने से

दिल की  केवल वो ही  जान पायेगा
खाई हो ठोकर जिसने  भी ज़माने से

                 आशियाँ फूँक दिया अब क्या मिलेगा तुम्हें
                  कुछ न हासिल होगा मुझको यूँ रुलाने से 

मंगलवार, 12 जनवरी 2016

तेरी बेरुखी




  आज तेरी महफ़िल से उठे तो दिल की शमा बुझने लगी
  सीने की धड़कन सांसों की लय आज फिर रुकने लगी

                 पहले तो तुम हाथ मेरा थाम लेते थे सबके सामने
                 आज न जाने हुआ क्या वो नज़र झुकने लगी

  तेरी महफ़िल से यूँ उठकर लौट जाना न गंवारा है हमें
  दिल ने शैदा कर दिया तुम्हारी बेरुखी डसने लगी 

मेरे हमसफ़र



ऐ मेरे हमसफ़र तू सदा मेरे साथ ही रहना
खुदा  न करे कभी भी जुदा तुमसे पड़े रहना 

               ऐसी तन्हाई बहुत बोझिल सी लगती है हमें 
               सालों की लम्बी जुदाई नागिन सी डसती हमें 

तारीफ़ तेरी क्या करूँ तुमको ही खुदा मान लिया 
पूजा करती हूँ तुम्हारी दुनिया से किनारा कर लिया 

              न है रुसवाई का डर न मुझे  तन्हाई का गिला 
             कोई मुझसे पूछे कि तेरा साथ पाके क्या मिला 

ऐसा लगता है मुझे कि अरमां पूरे है हुए 
लगता कभी तो ऐसा मरके जिन्दा है हुए 

सोमवार, 11 जनवरी 2016

जिंदगी का कारवां



जिंदगी का कारवां यूँ ही सदा चलता रहे
तू मेरे हाथों को थामे साथ यूँ चलता रहे

                 फिर सुबह से शाम आये वादों की शमा जले
                 रोशनी के दीपक हमेशा याद में जलते रहे

न खफा तू मुझसे होना न मै रूठूँगी कभी
तन्हा जिंदगी का सफर काटे न कटेगा कभी 

यादों का सफर

यही है यादों का सफर
क्या करूँ कहाँ तक जाऊँ
बहुत गहन अँधेरा है अब
जाते ही ज़रा मन डूबता है अब

               कोई मनमीत नही, साथी नहीं
                जिसके साथ मन विचरण करे अब
                क्या करूँ कोई तो ये समझाये
                क्या सब कुछ भूल जाऊँ मै अब

वो पल न जाने कैसे थे
बिखर गए वो प्यारे स्वप्न
हो गई अकेली शाम सुबह
वो प्रेमालाप की धड़कन

              सिर्फ यादें है उन चंद लम्हों की
              बस और कुछ नहीं न कोई मंजिल
             बाकी है अँधेरी गलियों का सफर
              सुनसान वीरानी डगर, बिना हमसफ़र 

रविवार, 10 जनवरी 2016

मन है उदास



आज न जाने क्यों ये मन उदास है 
कुछ खो गया है शायद या पास है 

                  नजदीक हो इतने कि बहुत दूर हो 
                  मन दीदार को तरसे पर मजबूर हो 

तमन्ना दिल में दबाकर 
होठों को भींच भिंचाकर 

                 न जाने  क्यों कब तक यूं ही 
                 बस यूँ ही आम बात ख़ास है 

इक पल सिर्फ देख लूँ 
आखिरी सांस से पहले 

                सिर्फ इक सांस ले लूँ 
               जीवन की यही आस है 

तुम अब यहाँ नहीं हो 
फिर भी याद पास है 

मूक पुकार न की



नीरव निशीथ में चन्द्र किरण 
ज्योत्स्ना हास से धवलित हो   

                 सच कहना तब उर सपनों में 
                 मिलने की मृदु मनुहार न थी 

क्या कभी तुम्हारे प्राणों ने 
प्रियतम की मूक पुकार न की 

इक शमा बुझती है


इक सेज़ पे मातम छाया है
इक सेज़ सजी फूलों वाली 
इक चमन का मालिक हँसता है 
इक बाग़ का रोता है माली 

                     इक द्वार पर बजती शहनाई 
                     इक द्वार से अर्थी जाती है 
                     इक मांग में लो सिन्दूर भरा 
                    इक मांग उजड़ती जाती है 

इक महफ़िल लो आबाद हुई 
इक बज्मे मुहब्बत लुटती है 
देकर के उजाला औरो को 
इक शमा अचानक बुझती है 

शनिवार, 9 जनवरी 2016

दुनिया में इंसान न होता


मै पापों की गोद पला हूँ
मत पुण्यों की बात करो तुम 

              मुझको मेरा नर्क मुबारक 
              स्वर्ग तुम्हारा पास रखो तुम 

गर दुनिया में पाप न होता 
दुनिया इतनी हंसी न होती 

            मंदिर मस्जिद ओ गुरुद्वारे 
            अवतारों की ज़मीं न होती 

पाप न होता तो दुनिया का 
अफ़साना रंगीन न होता 

           मयकश  गर बन जाते जाहिद 
           मयखाना रंगीन न होता 

आदम हव्वा भूल न करते 
दुनिया में इंसान न होता 

           जीने का अरमान न होता 
          आज खुद का नाम न होता 

शुक्रवार, 8 जनवरी 2016

मीत मिल जाएगा


झिलमिलाती झलक सी
नयन  भा गई
ज़िन्दगी में हज़ारों
बहार आ गई

                    तुम नए प्यार की हो
                    नई कल्पना
                    तुम नए स्वप्न की
                    हो गई सर्जना

तुम नए व्योम की
हो नई नीलिमा
तुम नई चाह की हो
नई कामना

                इशारा मिले साथ
                हो जाएगा
                सहारा मिले पथ
                कट जाएगा

चाँद है चाँदनी
ओ मिलन यामिनी
राग है ,साज़ है
और है रागिनी

              रेशमी अंगुलियाँ साज़
              छू दो ज़रा
             सांस को भी सफर
             मीत मिल जाएगा












नई क्रांति के सेनानी



             तुम नई क्रांति के सेनानी
             तुम स्वर्ग धरा पर ला सकते


यदि तुममें संबल साहस है
तुम दुनिया नई बना सकते


               तुम इन हाथों की मेहनत से
                मिट्टी  को सोना कर  सकते


धरती में छिपे खज़ाने से
भारत का आँचल भर सकते 

तरुणों उठो



विहगों की तरह उड़ो तुम भी 
तुमको अतीत आमन्त्रण है 
तुम क्षितिज नए छू सकते हो 
तुममें यौवन -वय जीवन है 

                 है होड़ लगी लो मानव में 
                  नक्षत्रों में आकाश परे 
                 बुद्धि ,ज्ञान ,विज्ञान दुंदुभी 
                  नए विश्व की गूँज भरे 



गुरुवार, 7 जनवरी 2016

प्रकृति की गोद



मै रोता रहता फिर भी
तुम आकर क्यों हँस जाती 
उर की टूटी वीणा में 
क्यों मधुर रागिनी गाती 

                त्रय तापों के बीहड़ में 
                 मै नित्य डोलता फिरता 
                 तुम लेकर निज गोदी में 
                 क्यों बनती दुःख की हर्ता 

अब मुझे न जग भाता है 
तुम आकर क्यों अपनाती
 अंधियारे जीवन पथ पर 
बन मृदुल चाँदनी छाती 

मनोकामना




बन पागल चातक  सा प्रिय मै 

              नित आनन चन्द्र  निहारा करूँ 

नित नैनन नीर नवोदित से 

              तुम्हारे पद -पद्म  पखारा करूँ 

अपने हिय आज बसा तुमको 

            नित आरती मंजु उतारा करूॅ 

अपनापन लींन  तुम्हीं में करूँ 

           सर्वस्व तुम्हीं पर वारा करूँ 

सपनों में तुम आना



नैराश्य प्रकृति अँचल में
दो क्षण को मुस्का जाना 
जीवन की घोर निराशा में 
उज्ज्वल प्रकाश बन छाना 

                चिर बुझे आस  के दीपक 
                प्रिय आकर कभी जलाना 
                निज चपल उंगलियो से छू 
                मानस के तार बजाना 

यह प्रणय साधना मेरी 
दो पल तो सफल बनाना 
एक बार भूलकर के ही 
स्वप्नों में मेरे तुम आना 

बुधवार, 6 जनवरी 2016

तुलसी की रत्ना






वह मृदुल हास्य की रेखा 
अधरों में खेल रही थी 
तुलसी के आकुल उर में 
अनुराग उड़ेल रही थी 

               जग पड़ी अचानक रत्ना 
               दृग पटल उनींदे खोले 
               विषमय ,विषाद, मादकता 
               उन्माद हृदय में डोले 

कुछ स्नेह भाव से सिंचित 
कुछ जी में वो झुंझलाकर 
रत्ना ख उठी अचानक 
कुछ वचन मनोहर गुरुतर 

             यह "अस्थि चर्ममय पिंजर 
             उसमे यह प्रीत तुम्हारी 
             यदि होते तुम हरि सेवक 
             हो जाती जीत हमारी "

बन्धन



यह बन्धन ही मुझको प्रियकर
निष्कृति जीवन गति रुक जाना

                प्रियतम तुम्हारे बन्धन  में
                सुख मिलता मुझको मनमाना

चिर बन्धन ही है अमर मुक्ति
जिसमें धरती आकाश बँधे

               बन्धन ही प्रेरक है गति का
               इसमें प्राणों के पाश बँधे 

कौन चल पाया है



दो डग भी मनचाहे पथ पर
कब कौन यहाँ चल पाया है

मन की झोली वरदानों से
कब कौन यहाँ भर पाया है

चलना है सोच यही चलता
इतिहास छोड़ता पीड़ा का

मै अपने आंसू से भरता
जग में जो सागर क्रीड़ा का 

My book "Bikhare Panne"

Hello, thank you for liking my blog and here's my book

http://www.amazon.in/Bikhare-Panne-Meena-Gulyani/dp/1515087972/ref=sr_1_1?ie=UTF8&qid=1452087154&sr=8-1&keywords=meena+gulyani

मेरी हार नहीं



यह जीत तुम्हारी हो सकती 
पर मेरी तो यह हार नहीं 

                   मै तो अपनी आकुलता से 
                   निज प्रीत निभाया करता हूँ 
                   अपनी इस अंतर ज्वाला से 
                   नित दीप जलाया करता हूँ 

तट से  मिलने की चाह लिए 
लहरें अस्तित्व मिटा देती 
शलभों की टोली की टोली 
दीपक पर प्राण लुटा देती 

                मै मृत्यु लिए आलिंगन में 
               जीवन भी  मुझको भार नहीं 
               यह जीत तुम्हारी हो सकती 
               पर मेरी तो यह हार नहीं 

मंगलवार, 5 जनवरी 2016

अपना गम छुपा जाएँ



हम अपने दिल की बात को
क्यों ज़माने भर को बतलायें 
मगर अच्छा यही होगा 
हम अपना गम छुपा जाएँ 

                 ज़माने ने हवाले कर दिया 
                 हमको बदनसीबी के 
                 अब इसकी मर्जी पर हम है 
                 जहाँ  पकड़कर हमको ले जाएँ 

कभी बादल बरसते है 
कभी आँखे बरसती है 
न रोयेंगे छिपाकर 
आँसुओं को साथ ले जाएँ 

तब तुम चले जाना



इस दिल को मै सम्भालूँ तो तुम चले जाना
मै ज़रा होश में आ लूँ तो तुम चले जाना 

                  रास्ते में अभी तलक तो अँधेरा होगा 
                  कभी इस अँधेरे का भी सवेरा होगा 
                  राहों मे  दीप जला लूँ तो तुम चले जाना 

मेरी उनसे जो मुलाक़ात हुई खूब हुई 
अरमां सीने में जगे बात बढ़ी खूब हुई 
दिल की धड़कन को सम्भालूँ तो चले जाना 

फरेब खाते है





खुश रहने का भरम है सबको
लेकिन ख़ुशी कहीं नहीं मिलती
कहने को तो जिन्दा है लेकिन
जिंदगी कहीं नहीं मिलती
रोज़ ही हम फरेब खाते है

                  उम्मीदों के चिराग जलते है
                  रोशनी को  भी हम तरसते है
                  भूले भटके से तुम चले आओ
                  दीये  उम्मीद के ही जलते है
                  रोशनी का फरेब खाते है

यह बहकी हुई फ़िज़ा है उदास
इन बहारो की हर अदा है उदास
गुलशन को तो भा गई है खिज़ां
इसकी उजड़ी हुई खिज़ा है उदास
दिल के हर जख्म को छिपाते है

तुम कौन हो



तुम कौन अरे इस जीवन में
इतनी व्याकुलता घोल रही

               अपने इस मौन निमंत्रण से
               कर इस अंतर का मोल रही

स्वांसो की सुरभि तुम्हारी ले
भावों की कलियाँ महकी थीं

             वह खिलती कलियाँ मुरझाईं
             सुमनों का सुरभित दान नहीं

वह परिमल और पराग  नहीं
वह सौरभ और मुस्कान नहीं 

सोमवार, 4 जनवरी 2016

मुश्किल है



दीदार तो उनका क्या होगा 
कूचे में भी जाना मुश्किल है 
कुछ जाल रकीबों के ऐसे 
अब जान बचाना मुश्किल है 

               वो सामने आ भी जाएँ पर 
               नजरें भी मिलाना मुश्किल है 
               गर पूछ ही लें वो हाल मेरा 
               जख्मों को दिखाना मुश्किल है 

माना कि तरब की महफ़िल है 
पर साज़ उठाना मुश्किल है 
बढ़ते हुए काले सायों में 
अब शमा जलाना मुश्किल है 

प्रत्यावर्तन



यह प्रेम हृदय की प्रथम चाह 
स्वर्णगंगा सा पावन उज्ज्वल 
रति का कुंकुम श्रृंगार मधुर 
जड़ता में चेतन की हलचल 

                 यदि प्रत्यावर्तन सम्भव हो 
                 मानव क्यों जलना वरण करे 
                 क्यों पी पी चातक रटा करे 
                 क्यों शलभ प्रीति में मरण करे 

यह सृष्टि सदा से मोहमयी 
मानव ने बांटी है कटुता 
वह कितना गरल उड़ेल रहा 
कर दूर हृदय की समरसता 

पूरी हुई है अर्चनाएं



 आज  फिर तुम सामने हो
देखती  ललचाये लोचन
आज प्राणों में  तुम्हारे
भर रहा मै विकल कम्पन

                 सलज चितवन में छिपाए
                 प्यार की मादक कहानी
                आज कवि की कल्पना की
                बन  रही तुम रूपरानी

तुम  मिली जीवन डगर पर
पूरी हुई है अर्चनाएं
आओ आँखों में बसा लें
रूप की मृदु चाँदनी 

रविवार, 3 जनवरी 2016

अपना प्यार दिए जाओ



ओ जाने वाले जाते हो
पर अपना प्यार दिए जाओ

            आँखों से ओझल होकर भी
            आँखों में चिंतित छवि होगी

इन आकुल  आँखों को प्रियतम
अपनी मुस्कान दिए जाओ

          निर्जन रजनी मै बैठूँगा
          तारों के दीपक जला जला

तुम फिर आओगे जीवन में
इतना विश्वास दिए जाओ 

कल मिले डगर नहीं


क्या पता कि आज की
कल मिले डगर नहीं

                 उम्र की बहार यह
                 बीत जाए यूँ नहीं
                 हुस्न का शबाब यह
                रीत जाए कल नहीं

ये नज़र झुकी झुकी
आरज़ू घुटी घुटी
इस जवान चाह की
यह घटा उठी उठी

               फूल गंध की महक
               बुलबुलें रहीं चहक
               इस सिंगार पर न क्यों
               जाए ये नज़र बहक

रूप चाँद सा खिला
चाह की ये रागिनी
जिंदगी का आसमाँ
प्यार की ये चाँदनी

                प्यार से उठा नज़र
               देख लो हमे ज़रा
              क्या पता कि आज की
              कल मिले डगर नहीं

मुमकिन है रहबर मिल जाए



इस प्यार मुहब्बत आँगन में
अंजाम की परवाह क्या  करिये 
बहने  दो शबिश्ता किश्ती को 
जिस ओर तलातुम ले जाए 

                चाहत की अँधेरी गलियों में 
                चलने की तमन्ना क्यों  छोड़ें 
               आगाज़ से  भटके आलम में 
                मुमकिन है कि रहबर मिल जाए 

यादों के महकते फूलों को 
दम भर तो चमन में खिलने दो 
ऐसा तो कहर  मत तुम ढाओ 
हर  शाख ही सूनी हो जाये 

शनिवार, 2 जनवरी 2016

सकूँ मिल जाए



 चितवन से तुम ऐसे झांको 
जो कौंध के बिजली गिर जाए 
बेताब ऐ दिल का ख्याल करो 
दो पल ही सकूँ बस मिल जाए 

               जज़्बात जुबां पर गर आएं 
               डर है हमको रुसवाई का 
              इक अश्क भी गर आँखों से 
              खुद एक फ़साना बन जाए 

हर तूफां स  टकराया हूँ 
है सैलाबों से प्यार मुझे 
या रब मैने कब चाहा है 
कि सामने साहिल आ जाए 

मै साँझ की बुझती बेला



मै साँझ की बुझती बेला
मेरे लिए न जागा कोई
निशि भर दीप जलाकर
मेरे लिए न रोया कोई
नयनों में आंसू भरकर

                 आँचल की छाँव तले
                 युग से चलता आया
                 फिर भी जीवन डगर पर
                 मै चल रहा अकेला
                 मै साँझ की बुझती बेला

अपने उर में पाले ज्वाला
स्वयं आग में जलता
अंतर की इस सघन निराशा
को कब किसने तोला
मै साँझ की बुझती बेला 

शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

My Son's new book


My son's début fiction J's English Edition is available on pre-order at Amazon.in. Already in demand and doing really well. All you thriller-suspense lovers can read this fast paced novel. Here's the link below.

http://www.amazon.in/Jack-Jeniffer-Jaisalmer-Lokesh-Gulyani/dp/9384028630/ref=sr_1_2?ie=UTF8&qid=1451718619&sr=8-2&keywords=lokesh+gulyani

तुझे करार आएगा



गेसुओं के बीच ये मुस्कुराता चाँद 
हमको मालूम था गज़ब ढायेगा 

                  रातों की नींद हराम हो जायेगी 
                 करवटों को भी न आराम आएगा 

चिराग जलाये हम बैठे है अंधेरों में 
मौत के इंतज़ार में
                मेरे मालिक , मेरे रहबर, मेरे हमदम 
                मेरी मौत पर तुझे करार आएगा 

चित्र मिटा डाले



जितने चित्र बनाये मैने
तुमने सभी मिटा डाले 

                  जितने दीप जलाये मैने 
                  तुमने सभी बुझा डाले 

प्राण पपीहा पी पी करते 
यौवन की बरसात गई 

                 और मिलन के सपने लखते 
                  मादक मादक रात गई 

जितने स्वप्न संजोये मैने
 तुमने सभी गंवा डाले