सहर अब शाम बन चुकी
न जाने तुम कब आओगे
फ़िज़ा भी रंग बदल चुकी
न जाने तुम कब आओगे
सितारे न जाने कहाँ खो गए
नज़ारे सब खामोश क्यों हो गए
हवा भी अब तो बदल चुकी
न जाने तुम कब आओगे
शमा हर महफ़िल में जल गई
ये रंगत पल भर में बदल गई
धुएँ में शब ये ढल चुकी
न जाने तुम कब आओगे
@मीना गुलियानी
न जाने तुम कब आओगे
फ़िज़ा भी रंग बदल चुकी
न जाने तुम कब आओगे
सितारे न जाने कहाँ खो गए
नज़ारे सब खामोश क्यों हो गए
हवा भी अब तो बदल चुकी
न जाने तुम कब आओगे
शमा हर महफ़िल में जल गई
ये रंगत पल भर में बदल गई
धुएँ में शब ये ढल चुकी
न जाने तुम कब आओगे
@मीना गुलियानी
अच्छी पुकार..सुंदर रचना जी
जवाब देंहटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंवाह खूब एक पुराना गीत याद आ गया मीना जी ।
जवाब देंहटाएंसुहानी रात ढल चुकी न जाने तुम कब आओगे ...
बहुत सुंदर!
शमा हर महफ़िल में जल गई
जवाब देंहटाएंये रंगत पल भर में बदल गई
धुएँ में शब ये ढल चुकी
न जाने तुम कब आओगे!!!!!!!!!
क्या बात है मीना जी | जब इन्तजार लम्बा हो जाता है तो कयामत गुजरती है | सुंदर मर्मस्पर्शी रचना | ज्योति पर्व की बधाई स्वीकार करें |
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 8 नवम्बर 2018 को प्रकाशनार्थ 1210 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
प्रेम पाती सी सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंदिल की पुकार जरूर पूरी होती है ... प्रेम-मई रचना ....