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मंगलवार, 5 मई 2020

दस साल बाद - एक मुलाक़ात

सीमा मेरी बहुत अच्छी सहेली थी।  हम दोनों बचपन में एक ही स्कूल में पढ़ते थे।  उसके बाद कालेज में मैंने 
दाखिला लिया पर उसकी शादी हो गई।  उनके यहाँ जल्दी शादी करने का रिवाज़ है।   उसके पति सेना में 
अच्छी पोस्ट पर थे।  उनका स्थानान्तरण प्रतापगढ़ हो गया था।   तबसे हमारा मिलना जुलना लगभग खत्म 
सा हो गया था।   कभी कभी फोन पर बात हो जाती थी।   कुछ साल पहले पता चला था कि उसके पति एक लड़ाई के दौरान शहीद हो गए थे।   विधवा होने के उपरान्त उसे एक नौकरी भी मिल गई थी।  उसका एक बेटा भी हुआ था।  अब तो वो भी बड़ा हो गया था।   मेरी भी एक बेटी हुई थी जो नौकरी कर रही थी।  सीमा का बेटा इंजीनियर बन चुका था।  सुनने में आया अब वो जयपुर में ही एक कार्यालय में नौकरी करेगा।   सीमा ने मुझे  कहा अब तो हम फिर से जल्दी ही मिलेंगे।  आखिर  में वो घड़ी भी आ गई जब वो हमारे ही पड़ोस में रहने को आई।   जयपुर आते ही उसने मुझे फोन किया और मेरे घर की घंटी बजाई।   जैसे ही मैनें किवाड़ खोले तो सीमा को सामने पाया।   मुझे देखते ही वो मेरे गले से लिपट  गई।   हम 10 साल के बाद मिल रहे थे।  बस इसी बात का दुःख था कि अब उसके पति शहीद हो चुके थे।  वो अपने समय में बहुत ही खुशमिज़ाज़ व्यक्ति थे।   सीमा 
का बेटा भी बिल्कुल अपने पिता की शक्ल का था वैसा ही गोरा चिट्टा लम्बा सजीला नौजवान।   
सीमा से मैंने कहा कि हाथ पैर धोकर आराम करले फिर बातें करेंगे।   उसने खाना खाते हुए अपने पति के बारे में सब वृतान्त सुनाया कि कैसे तीन आंतकवादियों को मारकर वो खुद भी शहीद हो गए।  उनका पुत्र भी मेरी बेटी से  रुचिपूर्वक बातें कर रहा था।  दोनों बहुत हँसकर अपने अपने बारे  मेंविस्तार से कि उन्हें क्या पसन्द या नापसन्द है  बता रहे थे।   मुझे तो इन दोनों की जोड़ी बहुत अच्छी लगी।   शाम को जब मेरे पति घर आये तो मैंने सीमा से परिचय कराया कि कितनी पुरानी सहेली मेरे घर पर बेटे सहित आई थी।   उनको भी यह जोड़ी अच्छी लगी तो मैंने फिर सीमा से इस बारे में राय मांगी तो उसने कहा  मैं तो ख़ुशी से रिश्ता करने को तैयार हूँ। उसने अपने  बेटे से भी पूछा और मैंने  अपनी बेटी से भी पूछा। 
दोनों ने अपनी स्वीकृति दे दी।  फिर तो हमने अच्छा मुहूर्त निकलवाया और सादगी से शादी कर दी।   हम दोनों की दोस्ती अब रिश्तेदारी में बदल चुकी थी।   ईश्वर की लीला भी कितनी  अपरम्पार है।   वो हमारी मुलाक़ात भी एक खूबसूरत यादगार बनकर रह गई।   आज भी उस पल को याद करके ख़ुशी से पलकें नम हो जाती हैं। 
@मीना गुलियानी 

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