सवैया :-
विशेष : वार्णिक छन्दों में 22 वर्ण से लेकर 26 वर्ण तक के छन्दों को सवैया कहा जाता है। इसके अनेक
भेद है। उदाहरण के तौर पर दो निम्नलिखित है :-
मंदिरा सवैया :-
लक्षण :- सात भकार गुरु इक हो जब पिगलवेदि कहें मंदिरा
व्याख्या :- यह समवृत है। इसके प्रत्येक चरण में सात भगण और एक गुरु के क्रम से 22 वर्ण होते है।
उदाहरण :-
तोरि सरासन शंकर को सुभ सीय स्वयंवर मांहि वरी
ताते बढ़यो अभिमान महा मन मेरियो नेक न शंख धरो
सो अपराध परो हम सों अब क्यों सुधरे तुमहू धो कहो
बाहु दे देहु कुठारिह केशव आपने धाम को पंथ गहो
व्याख्या : इसमें क्रमश: सात भगण और एक गुरु क्रमश: चारो चरणों में आये है अत: यह
मंदिरा सवैया है।
विशेष : वार्णिक छन्दों में 22 वर्ण से लेकर 26 वर्ण तक के छन्दों को सवैया कहा जाता है। इसके अनेक
भेद है। उदाहरण के तौर पर दो निम्नलिखित है :-
मंदिरा सवैया :-
लक्षण :- सात भकार गुरु इक हो जब पिगलवेदि कहें मंदिरा
व्याख्या :- यह समवृत है। इसके प्रत्येक चरण में सात भगण और एक गुरु के क्रम से 22 वर्ण होते है।
उदाहरण :-
तोरि सरासन शंकर को सुभ सीय स्वयंवर मांहि वरी
ताते बढ़यो अभिमान महा मन मेरियो नेक न शंख धरो
सो अपराध परो हम सों अब क्यों सुधरे तुमहू धो कहो
बाहु दे देहु कुठारिह केशव आपने धाम को पंथ गहो
व्याख्या : इसमें क्रमश: सात भगण और एक गुरु क्रमश: चारो चरणों में आये है अत: यह
मंदिरा सवैया है।
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