कुण्डलिया छंद :-
व्याख्या :-
इस छंद में 6 चरण होते है। इसमें प्रारम्भ की दो पंक्तियाँ दोहे की और शेष चार
रोल छंद की होती है। दोहे के चतुर्थ चरण की आवृति रोल के आदि में होती है।
आरम्भ का और अन्त का शब्द एक होता है।
उदाहरण :-
गुन के गाहक सहस नर , बिनु गुन लहै न कोय
जैसे कागा कोकिला , शब्द सुने सब कोय। --------------- दोहा
शब्द सुने सब कोय कोकिला सबै सुहावन ---------------- रोला -
दोऊ को इक रंग , काग सब भये अपावन।
कह गिरधर कविराय , सुनो हो ठाकुर मन के
बिनु गुन लहे न कोय , सहस नर गाहक गुन के।
व्याख्या ::-
इनमे पहले दो चरणो में दोहे के लक्षण है अर्थात 13 और 11 पर यति है और अंतिम
चार पंक्तियों में 24 -24 मात्राएँ है तथा 11 व 13 पर यति है। अत: यह कुंडलिया
छंद है। दूसरे चरण का उत्तरार्ध और तीसरे चरण का पूर्वाद्ध का पहला और अंतिम
शब्द एक है। अत: यह कुण्डलिया छंद है।
व्याख्या :-
इस छंद में 6 चरण होते है। इसमें प्रारम्भ की दो पंक्तियाँ दोहे की और शेष चार
रोल छंद की होती है। दोहे के चतुर्थ चरण की आवृति रोल के आदि में होती है।
आरम्भ का और अन्त का शब्द एक होता है।
उदाहरण :-
गुन के गाहक सहस नर , बिनु गुन लहै न कोय
जैसे कागा कोकिला , शब्द सुने सब कोय। --------------- दोहा
शब्द सुने सब कोय कोकिला सबै सुहावन ---------------- रोला -
दोऊ को इक रंग , काग सब भये अपावन।
कह गिरधर कविराय , सुनो हो ठाकुर मन के
बिनु गुन लहे न कोय , सहस नर गाहक गुन के।
व्याख्या ::-
इनमे पहले दो चरणो में दोहे के लक्षण है अर्थात 13 और 11 पर यति है और अंतिम
चार पंक्तियों में 24 -24 मात्राएँ है तथा 11 व 13 पर यति है। अत: यह कुंडलिया
छंद है। दूसरे चरण का उत्तरार्ध और तीसरे चरण का पूर्वाद्ध का पहला और अंतिम
शब्द एक है। अत: यह कुण्डलिया छंद है।
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