आसमां आग ये उगलता है
सारा मंज़र धुआँ धुआँ सा है
तुमसे दुश्मनी क्या हुई
ख़ाक गुलिस्तां सा है
शहर ये बेज़ुबाँ सा है
ले गया कहकहे हमारे सब
जो बना मेहरबां सा है
मुन्तज़िर यूँ तो ये जहाँ सा है
तेरे दहलीज़ पर कदम जो पड़े
जगमगाने लगा मकां सा है
@मीना गुलियानी
सारा मंज़र धुआँ धुआँ सा है
तुमसे दुश्मनी क्या हुई
ख़ाक गुलिस्तां सा है
शहर ये बेज़ुबाँ सा है
ले गया कहकहे हमारे सब
जो बना मेहरबां सा है
मुन्तज़िर यूँ तो ये जहाँ सा है
तेरे दहलीज़ पर कदम जो पड़े
जगमगाने लगा मकां सा है
@मीना गुलियानी
किसी के होने और न होने के फ़र्क़ को बख़ूबी लिखा है ...
जवाब देंहटाएंप्रेम शायद इसी को कहते हैं ...
बेहतरीन रचना यथार्थ के बेहद करीब
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर
जवाब देंहटाएंआसमां आग ये उगलता है
सारा मंज़र धुआँ धुआँ सा है बेहतरीन रचना
वाह मीना जी बहुत उम्दा गजल जैसी बानगी सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
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