हमारे गाँव में रामेश्वर नाम का एक श्रमिक अपनी
पत्नी और दो बच्चों सहित एक छोटे से कच्चे
मकान में रहता था। कई लोग तो लॉक डाउन के
कारण वहाँ से पलायन कर गए। पेट की भूख
बड़ी पीड़ा पहुंचाती है। रामेश्वर से उसकी पत्नी
बोली अब तो बिटिया सयानी हो गई है आप पंडित
जी के पास जाकर कोई शादी का अच्छा लग्न बँचवा
लो फिर जानकार से रिश्ता तय कर देंगे। रामेश्वर
उसकी बात सुनकर बिना कुछ खाये पिए ही घर से
चल दिया क्योंकि उसे यह डर था कि देर से जाने पर
कहीं पंडित जी जाने से इंकार न कर दें।
जब वो पंडित जी के पास गया उनसे बोला आप
मेरे घर चलकर मेरी कन्या के विवाह का मुहूर्त
बाँच दीजिये । पंडित जी ने कहा पहले तुम मेरे घर
की थोड़ी सी सफाई कर दो फिर तुम्हारे साथ जाऊँगा।
रामेश्वर ने तुरन्त ही दालान में बुहारी लगाई भंडार
गृह को साफ़ किया। गोबर के कंडे बोरी में रखे भूसा भी
रखा। तब तक पंडित जी खाना खाने बैठ चुके थे। उसने
कहा मैंने सारा काम कर दिया। पंडित जी ने कहा थोड़ी सी
लकड़ी काट दो फिर चलते हैं तब तक मैं विश्राम कर लूँ।
इस तरह सारा दिन का भूखा प्यासा रामेश्वर काम में
जुटा ही रहा। शाम होते ही उसकी हालत खराब हो गई
वो जब घर पहुँचा तो गई उसे तेज़ बुखार था। डाक्टर ने कहा
इसे तो तपेदिक हो गई है जाते जाते ही जायेगी। गाँव में
तो झाड़ फूँक करवाते हैं। उसकी पत्नी भी ऐसे ही किसी
झाड़ फूँक करने वाले को बुला लाई। उसने झाड़ा किया जल
दिया और एक डोरा बना दिया बोला ठीक हो जाएगा। दवा
और खाने के अभाव में रामेश्वर की हालत ज्यादा बिगड़
गई और वो चल बसा। अब सारी जिम्मेदारी उसकी
पत्नी के कंधो पर आ गई।
भूख और गरीबी का रिश्ता भी करीब का ही है। बच्चों की
पीड़ा माँ से देखी नहीं जाती. वह साहूकार के पास अनाज
लेने गई तो वह उस पर बुरी नज़र डालता है। वो लाचार हो
जाती है। वह लोगों के घरों में झाड़ू पोंछा करने लगी ताकि
बच्चों पेट भर सके। इस तरह कई रामेश्वर जैसे लोग आज
के इस युग में गरीबी और भूख से लाचार होकर यूँ दम तोड़
देते हैं। ग़रीबी , बेरोजगारी, भूख इन श्रमिकों को अपना
शिकार बना रही है।
@मीना गुलियानी
पत्नी और दो बच्चों सहित एक छोटे से कच्चे
मकान में रहता था। कई लोग तो लॉक डाउन के
कारण वहाँ से पलायन कर गए। पेट की भूख
बड़ी पीड़ा पहुंचाती है। रामेश्वर से उसकी पत्नी
बोली अब तो बिटिया सयानी हो गई है आप पंडित
जी के पास जाकर कोई शादी का अच्छा लग्न बँचवा
लो फिर जानकार से रिश्ता तय कर देंगे। रामेश्वर
उसकी बात सुनकर बिना कुछ खाये पिए ही घर से
चल दिया क्योंकि उसे यह डर था कि देर से जाने पर
कहीं पंडित जी जाने से इंकार न कर दें।
जब वो पंडित जी के पास गया उनसे बोला आप
मेरे घर चलकर मेरी कन्या के विवाह का मुहूर्त
बाँच दीजिये । पंडित जी ने कहा पहले तुम मेरे घर
की थोड़ी सी सफाई कर दो फिर तुम्हारे साथ जाऊँगा।
रामेश्वर ने तुरन्त ही दालान में बुहारी लगाई भंडार
गृह को साफ़ किया। गोबर के कंडे बोरी में रखे भूसा भी
रखा। तब तक पंडित जी खाना खाने बैठ चुके थे। उसने
कहा मैंने सारा काम कर दिया। पंडित जी ने कहा थोड़ी सी
लकड़ी काट दो फिर चलते हैं तब तक मैं विश्राम कर लूँ।
इस तरह सारा दिन का भूखा प्यासा रामेश्वर काम में
जुटा ही रहा। शाम होते ही उसकी हालत खराब हो गई
वो जब घर पहुँचा तो गई उसे तेज़ बुखार था। डाक्टर ने कहा
इसे तो तपेदिक हो गई है जाते जाते ही जायेगी। गाँव में
तो झाड़ फूँक करवाते हैं। उसकी पत्नी भी ऐसे ही किसी
झाड़ फूँक करने वाले को बुला लाई। उसने झाड़ा किया जल
दिया और एक डोरा बना दिया बोला ठीक हो जाएगा। दवा
और खाने के अभाव में रामेश्वर की हालत ज्यादा बिगड़
गई और वो चल बसा। अब सारी जिम्मेदारी उसकी
पत्नी के कंधो पर आ गई।
भूख और गरीबी का रिश्ता भी करीब का ही है। बच्चों की
पीड़ा माँ से देखी नहीं जाती. वह साहूकार के पास अनाज
लेने गई तो वह उस पर बुरी नज़र डालता है। वो लाचार हो
जाती है। वह लोगों के घरों में झाड़ू पोंछा करने लगी ताकि
बच्चों पेट भर सके। इस तरह कई रामेश्वर जैसे लोग आज
के इस युग में गरीबी और भूख से लाचार होकर यूँ दम तोड़
देते हैं। ग़रीबी , बेरोजगारी, भूख इन श्रमिकों को अपना
शिकार बना रही है।
@मीना गुलियानी
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