सुमन मेरी स्कूल की सहपाठिनी थी। उसमें बहुत से गुण थे लेकिन उसकी सोच में नकारात्मकता बहुत ज्यादा थी। हर बात में वो डरती ही रहती थी। कोई भी काम शुरू करने से पहले ही उसके हाथ पाँव ठंडे पड़ जाते थे। इसलिए उसकी सहेलियाँ भी बहुत कम ही थीं। अधिकतर जो ज्यादा खुशमिजाज लोग होते हैं लोग भी उनसे बातें करना पसंद करते हैं। इसलिए दो सहेलियाँ ही सुमन के साथ बातें करती थीं एक तो मैं और दूसरी रूचि। रूचि के घर के हालात ज्यादा अच्छे नहीं थे इसलिए वो भी थोड़ा बातों में संकोच करती थी। पता नहीं वो दोनों कहाँ खोई सी रहती थीं। जब कभी उनको आवाज़ देती थी तो वो सुना अनसुना करती थीं। मुझे यह अच्छा नहीं लगता था। कभी कहीं स्कूल के बगीचे में भी जाने को बोलती थी तो कह देती मन नहीं है तुम चली जाओ। बस सिर्फ खाना खाते समय वो थोड़ी सी देर वो बातें करती थीं। हम तीनों ने पढ़ाई पूरी की उसके बाद सुमन के पापा की ट्राँसफर हो गई थी तो सब पूना में शिफ्ट हो गए और रूचि दिल्ली में रहती थी। मेरा घर उसके घर के पास ही था कभी कभी वो नज़र आ जाया करती थी। उसके घर पर कभी आना जाना नहीं होता था।
अब इन बातो को करीब दस साल बीत गए थे। एक बार मुझे नौकरी के सिलसिले में पूना जाना पड़ा वहाँ पर सुमन रास्ते में सड़क पार करती हुई मिल गई। इतने सालों बाद वो कुछ मोटी हो गई थी उसकी शादी हो चुकी थी और दो बच्चे भी थे। उसने मुझे अपने घर चलने को कहा मुझे तो बहुत हैरानी हुई कि क्या ये वही सुमन है जो किसी से बात तक नहीं करती थी आज कितनी अच्छी तरह हँसकर बातें भी कर रही थी। मैंने इस बदलाव को महसूस किया पर ज्यादा देर तक मुझसे चुप न रहा गया तो मैं उससे पूछ बैठी कि तुम्हारे स्वभाव में इतना परिवर्तन कैसे आया। उसने बोला कि मेरे पति बहुत ही खुशमिज़ाज हैं। कुछ तो उनका प्रभाव पड़ा और हमारी गली में एक बुढिया भिखारिन अपनी पोती के साथ रहती है। उसे मैं घर में जो भी बासी खाना या बचा हुआ जो कुछ भी होता है दे देती हूँ तो वो ख़ुशी से ले लेती है। एक दिन मैं खूब तेज़ बारिश के कारण उसको कुछ नहीं दे पाई। मैंने अपनी खिड़की खोलकर देखा तो बुढ़िया अपनी पोती के साथ बारिश में भीगने का आनन्द उठा रही थी। बुढ़िया कोई लोकगीत भी अपनी भाषा में गा रही थी। उनकी इस ख़ुशी ने मेरी भी सोच को बदल दिया कि ख़ुशी तो मन की होती है। जब एक गरीब बुढ़िया और उसकी पोती इतने अभाव में भूखे रहकर भी खुश हैं तो हमे भी खुश रहना चाहिए। इसे कहीं से हम खरीद नहीं सकते तबसे मेरी नकारात्मक सोच बदली और मैंने हर बात में ख़ुशी को तलाश करना शुरू किया। मुझे बहुत अच्छा लगा क्योंकि वो सुमन अब बहुत ही बदल गई थी। उसने चाय पिलाई साथ में पकौड़े भी बना लिए थे। थोड़ी देर में मैं वापिस जाने को खड़ी हुई तो वो मेरे से गले मिली और बोली अब कभी कभी आते रहना।
यह सच है कि सकारात्मक विचारों से हमारा मन बहुत प्रभावित होता है और हम खुश हो जाते हैं। सभी लोगों को ख़ुशी जिसके चेहरे पर बरसती हो उसका चेहरा देखने को मन करता है। इसलिए हमेशा खुश रहना चाहिए। पूना से वापिस दिल्ली लौटने पर सुमन से फोन पर बात करके पता चला की उस बुढ़िया का निधन हो चुका था और उसकी पोती को सुमन ने एक बोर्डिंग स्कूल में दाखिल करवा दिया। इससे उस बुढ़िया की आत्मा को भी शान्ति मिली होगी। सुमन का अब हृदय परिवर्तन हो चुका था। अब वो सबसे प्रेम से व्यवहार करती थी। सभी पड़ौसी भी उससे खुश रहते थे।
@मीना गुलियानी
अब इन बातो को करीब दस साल बीत गए थे। एक बार मुझे नौकरी के सिलसिले में पूना जाना पड़ा वहाँ पर सुमन रास्ते में सड़क पार करती हुई मिल गई। इतने सालों बाद वो कुछ मोटी हो गई थी उसकी शादी हो चुकी थी और दो बच्चे भी थे। उसने मुझे अपने घर चलने को कहा मुझे तो बहुत हैरानी हुई कि क्या ये वही सुमन है जो किसी से बात तक नहीं करती थी आज कितनी अच्छी तरह हँसकर बातें भी कर रही थी। मैंने इस बदलाव को महसूस किया पर ज्यादा देर तक मुझसे चुप न रहा गया तो मैं उससे पूछ बैठी कि तुम्हारे स्वभाव में इतना परिवर्तन कैसे आया। उसने बोला कि मेरे पति बहुत ही खुशमिज़ाज हैं। कुछ तो उनका प्रभाव पड़ा और हमारी गली में एक बुढिया भिखारिन अपनी पोती के साथ रहती है। उसे मैं घर में जो भी बासी खाना या बचा हुआ जो कुछ भी होता है दे देती हूँ तो वो ख़ुशी से ले लेती है। एक दिन मैं खूब तेज़ बारिश के कारण उसको कुछ नहीं दे पाई। मैंने अपनी खिड़की खोलकर देखा तो बुढ़िया अपनी पोती के साथ बारिश में भीगने का आनन्द उठा रही थी। बुढ़िया कोई लोकगीत भी अपनी भाषा में गा रही थी। उनकी इस ख़ुशी ने मेरी भी सोच को बदल दिया कि ख़ुशी तो मन की होती है। जब एक गरीब बुढ़िया और उसकी पोती इतने अभाव में भूखे रहकर भी खुश हैं तो हमे भी खुश रहना चाहिए। इसे कहीं से हम खरीद नहीं सकते तबसे मेरी नकारात्मक सोच बदली और मैंने हर बात में ख़ुशी को तलाश करना शुरू किया। मुझे बहुत अच्छा लगा क्योंकि वो सुमन अब बहुत ही बदल गई थी। उसने चाय पिलाई साथ में पकौड़े भी बना लिए थे। थोड़ी देर में मैं वापिस जाने को खड़ी हुई तो वो मेरे से गले मिली और बोली अब कभी कभी आते रहना।
यह सच है कि सकारात्मक विचारों से हमारा मन बहुत प्रभावित होता है और हम खुश हो जाते हैं। सभी लोगों को ख़ुशी जिसके चेहरे पर बरसती हो उसका चेहरा देखने को मन करता है। इसलिए हमेशा खुश रहना चाहिए। पूना से वापिस दिल्ली लौटने पर सुमन से फोन पर बात करके पता चला की उस बुढ़िया का निधन हो चुका था और उसकी पोती को सुमन ने एक बोर्डिंग स्कूल में दाखिल करवा दिया। इससे उस बुढ़िया की आत्मा को भी शान्ति मिली होगी। सुमन का अब हृदय परिवर्तन हो चुका था। अब वो सबसे प्रेम से व्यवहार करती थी। सभी पड़ौसी भी उससे खुश रहते थे।
@मीना गुलियानी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें