रविवार, 30 सितंबर 2018

कैसा वहशीपना ये आज है

ज़रा सामने तो आओ युवको समाज बर्बाद हुआ आज है
आँख खोलके ज़रा देख लो तेरे हाथों में भारत की लाज है

पहले तो लड़की बिकती थी पर आज पुरुष भी बिकते हैं
गरीब की लड़की पढ़ी लिखी हो किन्तु धनिक पर मरते हैं
धिक्कार जवानों तुम्हें आज है क्या मुर्दा तुम्हारी आवाज़ है

देखो ज़रा तुम देश में कैसा  दहेज का ये व्यवहार चला
घर घर में कोहराम मचा है किसी के घर चूल्हा न जला
कई जीवन हुए बर्बाद हैं घर टूटने की कगार पे आज हैं

वक्त है नाज़ुक सम्भल भी जाओ थामो इस रफ्तार को
दहेज प्रथा का कलंक मिटाओ बदलो ऐसे समाज को
इन बेटियों की लुट रही लाज है कैसा वहशीपना ये आज है
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 29 सितंबर 2018

भारत को उच्च शिखर पहुँचाया

आज फिर धूप आँगन में खिल उठी
मन के आकाश पर छितरा गई
कैनवास पर अक्स उभरने लगे
तूलिका रंग से भरकर चलने लगी
हरे रंग से धरा की हरीतिमा झलकी
सुनहरे रंग से धूप की किरणें चमकी
हथेली मेहँदी रचाकर माथे बिंदिया लगा
फूलों के कर्णफूल पहन धरा दुल्हन सी दमकी
पैरों में महावर  रचाकर रुनझुन पायल खनकी
गले में पहनी फूलमाला ओढ़ा पत्तों का दुशाला
काजल बदरी से चुरा धरा ने नैनो में लगाया
मांग में सिन्दूरी फूल चले झूमती उड़ाके धूल
स्वप्न हुए उसके सिन्दूरी हर आशा करने को पूरी
धरती ने खलिहान सजाया धन धान्य उपजाया
नए नए आयामों से भारत को उच्च शिखर पहुँचाया
@मीना गुलियानी

शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

रुख़सत अब दे दीजिए जनाब

ये भोली चितवन और उस पर हिज़ाब
दिल  बोला वल्लाह क्या बात है जनाब

आये हो तुम दूर से बैठो ज़रा
कुछ तुमसे बातें करलें ज़रा
अच्छी शायरी कर लेते जनाब

जाने की जल्दी क्यों तुमको पड़ी
इतनी जल्दबाज़ी भी अच्छी नहीं
थोड़ा इत्मिनान कीजिए जनाब

 आयेंगे फिर भी सुनिए  हुज़ूर
ख़िदमत का मौका देंगे ज़रूर
रुख़सत अब दे दीजिए जनाब
@मीना गुलियानी



गुरुवार, 27 सितंबर 2018

तू शान बन के जी

ओ जीने वाले तू सिर्फ इक इंसान बनके जी
धरती का बोझ बनकर न हैवान बनके जी

हो पेट जिनका खाली तू उनका पेट भर
ओ मौज करने वाले कभी उनकी ले खबर
गिरतों का बन सहारा तू इंसान बनके जी

नैया भंवर में डोले किसी की  तू पार लगा दे
हो आफत में जां किसी की तू उसको बचाले
रोते  हुए चेहरे की  तू मुस्कान बनके जी

बन अन्धों की लाठी निराशों की आस बन
भटके हुए लोगों के लिए तू प्रकाश बन
इस पावन धरा की तू शान बन के जी
@मीना गुलियानी

इतनी न सज़ा दीजिए

अपने दिल में जगह दीजिए करम इतना अता कीजिए

दुनिया ने लाखो सितम ढाये हैं हम पर
थोड़ा मरहम लगा दीजिए

कभी तुझसे शिकवा या शिकायत न करेंगे
आते जाते रहा कीजिए

दिल्लगी की है हमने माना थोड़ी सी मगर
इतनी न सज़ा दीजिए
@मीना गुलियानी

मंगलवार, 25 सितंबर 2018

मानुष जन्म अनमोल रे

रे मन संभल संभल पग धरना
आँखें अपनी खोल रे
ये धरती है उबड़ खाबड़ कहीं
कदम न जाए डोल रे

काम क्रोध मद लोभ के रोड़े
रास्ता तेरा रोकेंगे
ईर्ष्या द्वेष महीधर बैठे
तुझको न बढ़ने देंगे
न डरना तू इनसे मानव
तू  अपनी राह टटोल रे

इनके प्रलोभन में मत आना
दूर से ही नाता निभाना
अपने साक्षीभाव में रहकर
दुष्कर्मों को दूर भगाना
समझ लेना जग नश्वर है
मानुष जन्म अनमोल रे
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 24 सितंबर 2018

अपने जीवन की वीणा

ओ  जीने  वाले हँसते हँसते जीना

आँसू तेरे छलक न जाएँ
छलक कर ढलक न जाएँ
आँखों में ही इनको पीना

सूरज डूबे कभी न तेरा
जब तू जागे तभी सवेरा
तेरा रंग बदले कभी ना

बिजली तुझको राह दिखाए
सुख के स्वर में बजा बाँवरे
अपने  जीवन की वीणा
@मीना गुलियानी 

रविवार, 23 सितंबर 2018

कल फिर आये ना

तुमको कसम है मेरी दूर तुम जाओ ना
आओ बैठो पास मेरे ऐसे तरसाओ ना

कितने बरस के बाद दिन ऐसा आया
सपनों में तुमसे मिले फिर बने साया
आज की घड़ी को तुम यूँ ही गवाँओ ना

सोचा था दिल में सनम से होंगीं बातें
पता न था कितनी छोटी हैं मुलाकातें
बीता जाए ये लम्हा कल फिर आये ना
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 22 सितंबर 2018

रास्ता खुल जाएगा

इच्छाएँ हमेशा बलवती रहती हैं
ये कभी भी मरती ही नहीं हैं
 कभी राहें भी धूमिल होती हैं
जिससे मन हताश हो जाता है
लेकिन मन के पाँव नहीं रुकते
मन मृगतृष्णा में ही डोलता है
जीवन में संतुष्टि आवश्यक है
खुशियों का स्त्रोत हमारे भीतर है
अपने जीवन को स्वयं संवार लो
सांसारिक कामनाओं का अंत करो
जीवन को कभी बोझ न समझो
अपने विवेक को जागृत कर लो
फिर आगे का रास्ता खुल जाएगा
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

लौटके आएँ

विरही नैना नीर बहाए
कोई इन्हें आके समझाये
हर पल पलकों में रहते हैं
अश्रु बन जो छलक न पाए

गम नैनो में छिपा रहता
व्याकुल मन की कहते व्यथा
बदरी जब भी घिरके आये
उमड़ घुमड़ के जल बरसाए

सावन की रिमझिम का मौसम
बूँदों की टिपटिप सुनते हरदम
प्यासा सावन बीत न जाए
कहदो पिया  से लौटके आएँ
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 20 सितंबर 2018

व्याकुल जियरा है तुम बिन

उलझ गए जबसे तोसे नैन
मन ने तनिक न पायो चैन
श्यामल रंग बदरी से चुराया
साँवरा तू मेरे मन में समाया
हँस हँस करे तू मोसे मीठे बैन
तेरी बन्सी मोरा जियरा चुराए
दिल मेरा बिन मोल बिका जाए
इसके मीठे सुर मन को लुभायें
आऊँ जब पनघट पे संग सखियाँ
बावरी बनायें कान्हा तोरी बतियाँ
सखियाँ करत मोसे हँसी ठिठोली
कान्हा तूने मति हर लीन्ही मोरी
चकोरी ज्यों तड़पे चंदा के बिन
ऐसे व्याकुल जियरा है तुम बिन
@मीना गुलियानी

बुधवार, 19 सितंबर 2018

तू जाने ना

कैसे दिन बीते कैसे कटी रतियाँ तू जाने ना
नैना बरसें जागूँ सारी रतियाँ तू माने ना

एक एक पल ये बरस सम लागे
व्याकुल नैना रोयें अभागे
तुम बिन कौन सुने इस दिल की
पीर जो अंतर् में मोरे जागे
कासे कहूँ पिया दर्द मैं अपना तू जाने ना

क्या हालत है तुम बिन मोरी
कबसे राह देखत हूँ तोरी
अब तो विनती सुनलो मोरी
बावरी हो गई विरह में तोरी
दर्द से दूखन  लागि मोरी अखियाँ तू जाने ना
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 18 सितंबर 2018

मेरी मंजिल कहाँ है

हर तूफ़ां को इशारा मिलेगा
हर लहर को किनारा मिलेगा
उठेंगीं मोजें समुन्द्र में जब भी
किश्ती को लेकिन धारा मिलेगा

हम वो नहीं बैठ जाएँ जो थककर
अभी हौसला और यकीं है खुद पर
चाहे लाख  तूफ़ां राहों में आएँ
पूरा करेंगे जो शुरू किया है सफर

हैं फौलादी बाजू उमंगें जवां हैं
दिलों में उमड़ा हुआ तूफ़ां है
ये सफर तो जैसे इक इम्तहाँ है
बताए कोई मेरी मंजिल कहाँ है
@मीना गुलियानी

सदायें दिए जा

उठाए जा रंजो -ओ सितम और जिए जा
 न शिकवा जुबां पे ला अश्क अपने पिए जा

यही तेरी किस्मत का फैसला ऐ दिल
उठाए जा दर्दो -अलम दुआएँ दिए जा

सताये ज़माना तू परवाह न करना
उसी की इबादत का सहारा लिए जा

कोई गम नहीं गर जान भी जाए
तू चौखट पे उसकी सदायें दिए जा
@मीना गुलियानी 

रविवार, 16 सितंबर 2018

राहों से काँटे बुहारना

ऐ मन तू कभी भी हिम्मत न हारना
दिन जैसे भी हों तेरे हँसके गुज़ारना

मत घबराना गर हो गहन अँधियारा
मन दीप जलाकर कर लेना उजियारा
उस उज्ज्वल रौशनी में जीवन गुज़ारना

जीवन में सुख दुःख तो आते हैं जाते हैं
हौसले वाले केवल लक्ष्य अपना पाते हैं
हर हाल में तू खुश होके जीवन संवारना

चाहे पर्वत रोके राहें चाहे सागर पार उतरना
हिम्मत से सम्भव है हर मुशिकल से उबरना
तू खुद अपनी  कंटीली राहों से काँटे बुहारना
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

हमसफ़र हमनशीं न हुए

ऐ चाँद तू गवाह रहना
        मेरे उन पलों का जो
        दूरी में उनकी बिताए
        हर कदम पे धोखे खाए
        लब से कुछ कह न पाए

ऐ चाँद तू गवाह रहना
       मेरी उन हसीन यादों का
       जो संग पिया के गुज़रीं
       जो डोर बँधी न उलझी
       जब उलझी कभी न सुलझी

ऐ चाँद तू गवाह रहना
        पलों का जो हमारे न हुए
        साये की तरह साथ चले
        बेगानों की तरह मिले बिछुड़े
        हमसफ़र हमनशीं न हुए
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 13 सितंबर 2018

हम संग और झूमें ज़मी

है प्यारा सफर और कितना हसीं
सुहाना है मौसम और संग हमनशीं

कितने प्यारे ये गुलशन यहाँ हैं
फूल हर रंग के सब यहाँ हैं
प्यारे प्यारे हैं नज़ारे नज़र लगे न कहीं

लहरें टकरातीं जब भी यहाँ हैं
उमंगें दिल की हो जाती जवां हैं
खूबसूरत ये समां है बदल न जाए कहीं

चाँद तारों का लगता है मेला
मेले में भी क्यों दिल है अकेला
चलो साथी झूमें हम संग और झूमें ज़मी
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 12 सितंबर 2018

उसकी बलैंया लेती जाती

ये सुरमई शाम सुहाने झरने
कल कल बहता है पानी
ये हवा मदमस्त सी दीवानी
आई है रुत ये मस्तानी
नभ पर सितारे भी चमके
लगता है जुगनू जैसे दमके
खगवृन्द भी पंक्तिबद्ध आते
खुले व्योम में वो छा जाते
गाय चरकर शाम को आती
 कुमुदिनी देखो खिल जाती
चन्द्रमा भी गगन में निकला
चाँदनी को भी संग में लाया
 सितारों की ओढ़नी लहराती
जुल्फ़ें बादल सी बन जातीं
घटा में बिजुरिया चमक जाती
चाँदनी फिर पायल छनकाती
हिमकणों का मुकुट पहनती
मणिमेखला करधनी लटकाती
लगती वो स्वर्ग की अप्सरा सी
चले लज्जाती सकुचाती बलखाती
धरती उसकी बलैंया लेती जाती
@मीना गुलियानी

मंगलवार, 11 सितंबर 2018

कोहराम मचा रखा है

न कभी पूछ मुझसे वफ़ा में क्या रखा है
एक शोला सा है जो दिल में छुपा रखा है

कम नहीं होगी कभी मेरी वफ़ा तेरे लिए
वादा धड़कन ने ये कबसे निभा रखा है

ये ज़माना जिसे बेताब था दफन करने को
मैंने उस याद को सीने से लगा रखा है

सिर्फ़ नज़रों से ही बेताबी मिट जाती है
 फिर क्यों यूँ ही कोहराम मचा रखा है
@मीना गुलियानी

सोमवार, 10 सितंबर 2018

मन पंछी सा डोले

सखी री मोरा मनवा यूँ मुझसे बोले
भाग जगें मेरे जब उनके दर्श होलें

उन बिन मुझको चैन पड़े ना
डोलूँ इत उत ध्यान बँटे ना
छत पे कौआ भी बोले

आँखों से मेरे नीँद उड़ी है
प्यास जाने कैसी जगी है
दिल में उमंगें डोले

जाने कब आयेंगे साजन
बाट निहारूँ बनके पुजारन
मन पंछी सा डोले
@मीना गुलियानी 

रविवार, 9 सितंबर 2018

क्यों करूँ ख़ुद की फ़िक्र

पी जायेंगे खुद अकेले ही
यह चुप्पी का ज़हर
न हमसे कभी पूछना
क्यों छलकी ये नज़र
जुबां पर न लायेंगे कभी
शिकवा ज़माने भर का
न बतायेंगे किसी को कभी
क्या है अपनी अब खबर
पहले कभी न किया था जिक्र
सुना है तू नहीं है बेख़बर
फिर क्यों करूँ ख़ुद की फ़िक्र
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 8 सितंबर 2018

लट ये बिखर जायेगी

ऐ चाँद कुछ देर के लिए तू छिप जा
मुझे एक झलक उसे देख लेने दे
तेरे आने से वो शर्मा जाती है लेकिन
तेरे ओझल होने पर वो नज़र आएगी

सितारे फ़लक पे चमकने दो ज़रा
मेरी उम्मीद को भी जगने दो ज़रा
बाज़ी किस्मत की भी पलट जायेगी
उसके रुख पे लट ये बिखर जायेगी
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

मैं उदास नहीं

मैं भाव भरी हूँ इक बदली
आज आँगन तेरे बरस गई
कितनी दुविधा में तुमसे मिली
अखियाँ भादो सी बरस गईं

कितने वो स्वप्न सुहाने थे
गुज़रे वो कल के ज़माने थे
थे कुछ वो ख़्वाब अधूरे से
 लब पर दिल के फ़साने थे

उस पल का अब एहसास नहीं
लगता ही नहीं तू पास नहीं
मेरे दिल में समाया रहता है
अब देख मुझे मैं उदास नहीं
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 6 सितंबर 2018

यादों के दीप जलते हैं

जिंदगी के सफर में अब तो हम
तेरी यादों के साथ चलते हैं
तन्हा न रह सकेंगे तुझ बिन हम
थामके हाथ हम साथ चलते हैं

कभी मुझसे न दूर जाना तुम
न कभी आँख यूँ चुराना तुम
तेरे जाने से प्राण मेरे तो
लगता है जिस्म से निकलते हैं

न कभी मुझसे तुम खफा होना
रूठ जाऊँ तो तुम मना लेना
तेरे होने से सारी रौनक है
दिल में यादों के दीप जलते हैं
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 5 सितंबर 2018

इतरा रही थी

सूर्योदय के समय गगन की लाली
मन को आल्हादित कर रही थी
सूरजमुखी फूलों की आभा निखर रही थी
उषा नागरी भी अंबर पनघट में से
अपनी मटकी को भरने आई हुई थी
चन्द्रमा ने सितारों के साथ विदाई ली
सूरज की रश्मियाँ ज्योत्स्ना लुटा रही थीं
हरे पत्तों पर ओस की बूँदे चमक रहीं थीं
शीतल सुगंधित बयार मन लुभा रही थी
पक्षियों का कलरव सौंदर्य बढ़ा रहा था
उनकी कतार गगन की ओर जा रही थी
लोग हरी घास पर योगाभ्यास कर रहे थे
गाय के रम्भाने की आवाज़ आ रही थी
मुर्गे भी बांग देकर सबको जगा रहे थे
मंदिर में शंखनाद घण्टाध्वनि हो रही थी
बच्चे पेड़ों से अमरुद आंवले तोड़ रहे थे
किसान खेतों में ट्रैक्टर चला रहे थे
गाँव की पनिहारिनें गीत गा रही थीं
कुछ बच्चे खो खो कबड्डी खेल रहे थे
महिलाएँ आँगन में रंगोली बना रही थीं
धरा  स्वर्णिम आभा पर इतरा रही थी
@मीना गुलियानी


मंगलवार, 4 सितंबर 2018

जलाया जा नहीं सकता

सुनाऊँ क्या मैं ग़म अपना
तुझे बतला नहीं सकता
जो मेरे दिल की बातें हैं
तुझे समझा नहीं सकता

तुझे पाकर के खो देना
ये किस्मत की थी मजबूरी
मिलकर भी मिल नहीं पाए
गम भुलाया जा नहीं सकता

न जाने कैसा दौर आया
जिसने सितम है ये ढाया
जिग़र के हो गए टुकड़े
तुझे बतला नहीं सकता

गुलिस्तां ऐसा अब उजड़ा
बसाना जिसको मुश्किल है
वो शमा कैसे करूँ मैं रोशन
जिसे जलाया जा नहीं सकता
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 3 सितंबर 2018

मनवा मोरा हर्षाये

मतवारे तेरे नैन
लूटें मन का चैन
सितारे ये चमकें
बिजुरिया भी दमके
काले काले मेघा छाये
बारिश की बूँदे लाये
कोयलिया कूक मचाये
जियरा हुलसा जाए
मन मयूरा झूमे गाये
दिल पागल हुआ जाए
शीतल बयार मस्त बनाये
मन व्याकुल कर जाए
मलयानिल की पवन आए
पिया का संदेशा लाये
मनवा मोरा हर्षाये
@मीना गुलियानी 

रविवार, 2 सितंबर 2018

पछताओगे वरना

उन विशाल अट्टालिकाओं के पीछे से
कोई एकटक उसे निहार रहा था
एक विद्रूप सी स्मित रेखा थी उसके चेहरे पर
जो छल ,प्रपंच रच रही प्रतीत होती थी
वो भोली भाली ग्रामीण कन्या अपनी धुन में
इठलाते हुए  मंथरगति से चली जा रही थी
अचानक ही पीछे से उसने कन्या के कंधे पर
झपट्टा सा मारा तो उस कन्या ने पलटकर देखा
यकायक ही वो कन्या सकपका गई ,सहम गई
फिर भी उसने हिम्मत न हारी, वो पलटी
बिजली सी फुर्ती दिखाई ,सामने पड़े बांस को उठाया
पलटवार उस पर किया वो लड़खड़ाया और गिरा
वो ग्रामीण बाला अब साक्षात् चण्डी के रूप में थी
बांस त्रिशूल जैसा प्रतीत हो रहा था उसे घुमाने लगी
सीधा उसकी छाती पर तान दिया हुँकारने लगी
वो उसका चण्डी रूप देखकर डर गया
जल्दी से ही घबराकर उसके पाँव पड़ गया
अब वो लगा गिड़गिड़ाने लगा क्षमा मांगने
उस कन्या ने बोला फिर कभी ऐसा न करना
जान भी न बचा पाओगे पछताओगे वरना
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 1 सितंबर 2018

इस बारिश में

स्वप्न हुए सिन्दूरी अपने
इस मतवाली बारिश में
टिपटिप बरसा है पानी
छत पे रात भर बारिश में

बच्चों ने फिर नाव बनाई
पोखर तलैया में चलाई
पकौड़े और जलेबी खाई
इस मदमाती बारिश में

भीगी है धरती की चूनर
इस रुपहली बारिश में
मौसम फिर गुलज़ार हुआ
रिमझिम सी इस बारिश में
@मीना गुलियानी