सब अपनी सूरत को ही संवारते रहते हैं
सीरत की तरफ किसी की नज़र नहीं है
इसलिए धूप का कतरा बन गई जिंदगी
मुक्ति को भी आज छटपटा रही जिंदगी
जो आत्मचिंतन करेगा संवरेगी जिंदगी
नहीं तो पीड़ा का समुन्द्र बनेगी जिंदगी
@मीना गुलियानी
सीरत की तरफ किसी की नज़र नहीं है
इसलिए धूप का कतरा बन गई जिंदगी
मुक्ति को भी आज छटपटा रही जिंदगी
जो आत्मचिंतन करेगा संवरेगी जिंदगी
नहीं तो पीड़ा का समुन्द्र बनेगी जिंदगी
@मीना गुलियानी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें