सफर पर चलते हमने देखा ही नहीं
कितने निशां बने कदमों के नीचे
कितने ही पहाड़ों को लांघकर आये
कितने ही जंगलों से भी हम गुज़रे
कितनी नदियों के उस पार भी गए
हमारे कदम रुके नहीं बस चलते गए
खुले आसमान के नीचे कदमों के निशां
हम बनाकर चुपचाप मंजिल की ओर
बढ़ते गए सफर अपना तय करते गए
@मीना गुलियानी
कितने निशां बने कदमों के नीचे
कितने ही पहाड़ों को लांघकर आये
कितने ही जंगलों से भी हम गुज़रे
कितनी नदियों के उस पार भी गए
हमारे कदम रुके नहीं बस चलते गए
खुले आसमान के नीचे कदमों के निशां
हम बनाकर चुपचाप मंजिल की ओर
बढ़ते गए सफर अपना तय करते गए
@मीना गुलियानी
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