शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

जगमग चमकेंगे तारे

काला कौआ मुँडेर पे सुबह से बोले
सुनके काँव काँव जियरा मेरा डोले
शायद पिया का संदेशा वो ले आये
मनवा ख़ुशी से मेरा झूमे और गाये
काली कोयल जब भी कूक सुनाये
दिल को मेरे वो तो घायल कर जाए
अपनी मीठी  वाणी में बोल सुनाये
बतियाँ अपनी सारी वो कह जाए
खोलके अपनी खिड़की और चौबारे
आ बैठी हूँ राह में उनकी नैन पसारे
गगन चंदा तू भी ज़रा राह दिखाना
उनकी राहों से हम अब शूल बुहारें
आयेंगे जब लौटके वो पिया हमारे
गगन में तब जगमग चमकेंगे तारे
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 30 अगस्त 2018

शमा दिल में जगाएं

पूर्णिमा को चाँदनी रात थी
हम खो गए मधुरता में
लबों पे लग गए थे ताले
न तुम कुछ कह पाए
न मैं तुमसे कुछ कह पाई
जिंदगी के मधुर क्षण यूँ
बेख़बरी  से गुज़रते रहे
उलझने बढ़ती ही रहीं
दिलों मेँ फासले भी बढ़े
फूलों की सुरभि खोने लगी
दिलों की पीर मुखरित हुई
वेदना के सुर चुपके से बजे
मधुर गीत के बोल न सुने
आज फिर चाँदनी रात है
बारिश का भी साथ है
 पुराने गिले शिकवे मिटाएं
प्रीत की शमा दिल में जगाएं
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 29 अगस्त 2018

प्रतीक्षारत हूँ

कहने को तो मैं एक समुंद्र हूँ
अनगिनत लहरें भी मेरे पास हैं
मुझसे आकर रोज़ टकराती हैं
जाने क्या क्या वो कह जाती हैं
फिर भी न जाने क्यों तन्हा हूँ
मेरा तट भी कबसे सूना पड़ा है
इसे तुम बिन कौन रोशन करेगा
तुम्हारे आने से ही उजाला होगा
मेरा सूनापन भी स्वत; दूर होगा
तुम्हारी राहों के शूल मैं चुनता हूँ
तुम्हारी माला के लिए मोती सीपियाँ
रोज़ मैं अपनी तलहटी से चुनता हूँ
आज भी इसी तट पर तुम्हारे लौटने को
दोनों किनारों की बाहें पसारकर मैं
जाने कितने समय से प्रतीक्षारत हूँ
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 28 अगस्त 2018

मिलेगा मुकाम

ऐ दिल कहाँ खोई तेरी मंजिल
जीवन पथ में छाया अंधियारा है
रोशनी का है ना नामो निशाँ
कैसे ढूँढे  है  धुआँ ही धुआँ

खुशियाँ जाने कहाँ खो गई हैं
सदियों से राहें भी वीरां पड़ी हैं
डगमग सी डोले है नैया तेरी
कैसे खोजेगा तू अपना मकां

हर पल गम के फैले हैं साये
सब हुए बेगाने जो थे हमसाये
सब हुए अपने भी अब पराये
न खो हौंसला तो मिलेगा मुकाम
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 27 अगस्त 2018

वो गुज़रा ज़माना

आज फिर याद आया वो गुज़रा ज़माना
वो हर बात पर हमेशा तेरा यूँ मुस्कुराना

 मुहल्ले में मोटरसाईकिल पर चक्कर लगाना
बिना काम के भी सबसे मिलते हुए चले आना

वो सैर , सपाटे , दोस्तों संग पिकनिक मनाना
हर पल को बेफ़िक्री यूँ ही से ठहाकों में बिताना

एक पल को भी न कभी भी यूँ खाली गंवाना
हर पल ज़िन्दगी का है आखिरी पल समझाना

उन बीते लम्हों का अब मुझ पर ही  कहर ढाना
कोई तो कहीं से लौटा दे मुझे वो गुज़रा ज़माना
@मीना गुलियानी

रविवार, 26 अगस्त 2018

जिसकी अंतर्रात्मा शुद्ध हो

प्रेम तो ईश्वर की देन है
जरूरी नहीं तो जिस्मों में हो
यह तो आसमाँ से,ज़मीं से
चाँद सितारों से हवाओं से
इन बरसती घटाओं से
कल कल बहते झरनों से
पर्वत की श्रृंखलाओं से
दूर की अमराइयों से
वन की इन लताओं से
अपनों और बेगानों से
खामोशी से गुनगुनाने से
देश में या विदेश में भी
यह जागृत हो सकता है
यह तो पूजा है इबादत है
दिल और भावना का संगम
सत्य पर आधारित होना चाहिए
बिना छल कपट ईर्ष्या के
कहीं भी प्रकट हो जाता है
इसे छुपाना मुश्किल है
यह तो दिल की धड़कन में
संगीत की तरह बजता है
इसकी धुन वही सुन सकता है
जिसकी अंतर्रात्मा शुद्ध हो
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 21 अगस्त 2018

मेरी शान है तू

तू मेरी है आरजू तू ही मेरी है ज़ुस्तज़ू
जिधर भी देखूँ मैं नज़र आये तू ही तू

हरसू तेरी ही वफ़ा मुझको नज़र आती है
जाऊँ कहीं दूर तो तेरी ही सदा आती है
हर पल साथ है तू मेरा एहसास है तू

देखूँ जो पलट के कहीं तू नज़र आये वहीँ
तेरे कदमों के निशाँ चलें संग मेरे वहीँ
मेरा ये जहान भी तू और मेरी शान है तू
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 20 अगस्त 2018

तुझे कितना मेरा ख्याल है

तुझे कैसे कह दूँ मैं खुश नहीं
तेरे दिल में लाखों सवाल हैं
क्या जवाब दूँ यही सोचूँ मैं
तेरे सामने मेरा हाल है

 ये जिंदगी बेसबब सी है
ये रौशनी न मतलब की है
तू नहीं जब मेरे पास तो
सब रौनके भी मुहाल हैं

किस काम की ये जिंदगी
जो किसी के काम न आ सके
शिकवे शिकायतें क्या करूँ
मेरे दिल की कब मज़ाल है

सारी  हसरतें तेरे दम से हैं
मेरी हर ख़ुशी तेरे दम से है
तू है बेखबर कैसे कहूँ
तुझे कितना मेरा ख्याल है
@मीना गुलियानी

रविवार, 19 अगस्त 2018

मेरी पीर न जाने कोय

मेरी वीणा के सुर खोए
दुःख कासे कहूँ सजना
मेरी पीड़ा न समझे कोय
दुःख कासे कहूँ सजना

कहाँ पे भेजूँ लिख लिख पत्तियां
मैं वो गाँव न जानू
कैसे काटूँ जीवन तुम बिन
मैं ये ज्ञान न जानू
कैसे दर्श तिहारो होय

प्यासे नैना तरसें तुम बिन
कब आवोगे साजन
बिना तुम्हारे सूनी बगिया
गुल मुरझाए साजन
मेरे नैना छमछम रोये

बिजुरी मोहे अगन लगावे
बदरिया जियरा जलावे
तुम बिन कल नहीं पावत जियरा
तड़प तड़प रह जाए
मेरी पीर न जाने कोय
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 18 अगस्त 2018

जुदा न कर पाऊँ

कैसे तुझे मैं अपने दिल से भुलाऊँ

बसते हो तुम दिल की गहराईयों में
हर बात में तेरा जिक्र कैसे न लाऊँ

तुम तो मौसम की तरह बदल जाते हो
फिर भी खुद के साये से लिपटा पाऊँ

तेरा वजूद ऐसे  जर्रे जर्रे में है समाया
तेरा अक्स खुद से जुदा न कर पाऊँ
@मीना गुलियानी


शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

धरती का सुंदर श्रृंगार

आज धरती ने किया श्रृंगार
कुंकुम लगाई है माथे पर
हरित रंग के वसन पहनकर
घटा से कजरा चुराकर
अपने नैनों में लगाकर
फूलों के कंगन हैं पहने
जुगनू जैसे लगे चमकने
कानों में धान की बाली
शोभा है कैसी मतवाली
पैरों के नूपुर की शोभा
करधनी ने भी मन को मोहा
बिजुरी जैसी लगी दमकने
हीरे मोती लगे चमकने
झूले पड़े सावन की फुहार
धरती को मिली ख़ुशी अपार
नाचे मयूरा पपीहा करे पुकार
उमंग लेकर आई है बयार
वर्षा  से ही पूर्ण होता है
धरती का सुंदर श्रृंगार
@मीना गुलियानी

गुरुवार, 16 अगस्त 2018

नन्हीं चिड़ियाँ चहचहाएं

ख़िज़ाँ ही क्यों देखूँ, चाहे ख़िज़ाँ है
बहार क्यों न देखूँ , जिसका रंग जवां है

आओ फिर से गढ़े नई परिभाषा
दोहराएँ वही  प्यार की भाषा
अँधेरे से निकलें ढूँढे उजाला कहाँ है

कोई नई उम्मीद भी जगायें
बगिया को फिर से महकायें
गुलशन में नन्हीं चिड़ियाँ चहचहाएं
@मीना गुलियानी 

झूला झुलाओ सखियो

आज झूला झुलाओ सखियो
कदम्ब तले आओ सखियो

बहे  शीतल बयार
नीचे यमुना की धार
प्यार अपना लुटाओ सखियो

सभी झूलो साथ साथ
लिए हाथों में हाथ
कभी छूटे न साथ सखियो

गाओ मंगल के गीत
यही दुनिया की रीत
प्रीत दिल से निभाओ सखियो
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 15 अगस्त 2018

इसे तेरी ही ज़रूरत है

बादलों की ठंडी छाँव में
और मदमस्त हवाओं में
तेरा मेरा गर साथ हो
तो फिर क्या बात हो

एक तरफ सिर्फ तुम हो
दूसरी तरफ सारी दुनिया
दिल की डोर फिर भी
तुम तक खींच लेगी

तेरे दीदार की चाहत है
प्यार में ही राहत है
जिंदगी तेरी अमानत है
इसे तेरी ही ज़रूरत है
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 14 अगस्त 2018

खुशियों का पैगाम आयेगा

वक्त का हर दौर गुज़र जायेगा
ग़म भी ज्यादा न ठहर पायेगा

कोई कहदे उनसे कभी आके मिलें
दूर कर दूँगी मैं सब शिकवे गिले
कोई दर्द न दिल में ठहर पायेगा

जबसे तुम रूठकर यहाँ से गए
सपने सब काँच से बिखर गए
गुलशन बिन तेरे उजड़ जायेगा

तेरी परछाईं मुझसे बात करती है
तू नहीं पास तन्हाई बात करती है
कब मेरी खुशियों का पैगाम आयेगा
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 13 अगस्त 2018

डोले मन और मेरे सपने

बावरा मन देखता है कैसे कैसे सपने
कभी लगते बेगाने से कभी लगे अपने

सपनों में देखती हूँ सुंदर सी इक नदिया
पास में उसके है मेरी फूलों वाली बगिया
इन्हीं फूलों से बुनती हूँ ख़्वाब मैं अपने

प्यासी प्यासी अखियाँ भी देखती हैं राहें
आजा पिया कबसे तेरी राह ये निहारें
प्यासा प्यासा सावन न बीते बिन अपने

काली काली बदरी है छाई मोरे अंगना
कोई संदेशा पिया का लाई मोरे अंगना
पुरवइया संग डोले मन और मेरे सपने
@मीना गुलियानी 

रविवार, 12 अगस्त 2018

हम अपने गले लगाएं

आओ चिराग़ मिलकर जलाएँ
तिश्नगी दिल की हम मिटायें

जो लम्हे पीछे हमसे छूट गए
हम उन्हें याद करके मुस्कुराएं

टूटकर गिर गए जो शाखों से
उन्हीं फूलों को फिर से सजाएँ

जिंदगी की टीस हम भुलाएं
दर्द को हम अपने गले लगाएं 
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 11 अगस्त 2018

न डगमगाना है

जीवन की डगर नहीं है आसां
फिर भी तुझे चलते जाना है
चाहे दिल हो बोझ से भारी
कदम न तुझे पीछे हटाना है

रास्ते में विकट पहाड़ भी होंगे
टूटते साये भी साथ न होंगे
पर तुझ हर हाल में केवल
कदम को आगे ही बढ़ाना है

लहरें सागर के तट से टकरातीं हैं
बदरिया भी घिरके छा जाती है
कौंधती है डराती है दामिनी भी
पर रख हौंसला न डगमगाना है
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

कोई दिलाए वो हौसले

ऐ दिल क्यों तू इस कदर
होता है बेकरार क्यों
दिल का चमन उजड़ गया
गुलशन का ऐतबार क्यों

माली ने सींचा था प्रेम से
पौधा भी कितना बड़ा किया
पर जो नसीब में था लिखा
उसको वही है मिल गया

रुठी हैं अब फ़िज़ाएं भी
लो चल पड़ीं हवाएँ भी
महफिलें भी उठ गईं
बुझ गईं शमाएं भी

दिल को सुकूँ कैसे मिले
कैसे मिटाएं शिकवे गिले
कैसे कम हो ये फासले
कोई दिलाए वो हौसले
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 9 अगस्त 2018

हो जा प्रभु का दीवाना

ऐ दिल ढूँढ अपनी मंजिल
जलाके मन का दीपक
अँधियारा अन्तर  का मिटा
वीणा के तार कसके
सुर सप्तक तू जगा
मत भूल क्यों तू आया
कहाँ तुझको है जाना
ढूँढ अपना तू ठिकाना
छोड़ मृगतृष्णा की नगरी
हो जा प्रभु का दीवाना
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 8 अगस्त 2018

मेरी नैया पार की

स्वप्न सारे टूट गए
अपने सभी रूठ गए
बुझे गए चिराग सभी
तारे पीछे छूट गए

पर हम यहीं खड़े
राह पर रुके रुके
वक्त के उतार की
ढलान देखते रहे

कल तो सब बहार थी
खुशियाँ बेशुमार थीं
रौनके ही रौनके थीं
महफिलें थी प्यार की


बदल गया है वो समां
ख्वाब हो गया धुआँ
आसमाँ सुलग उठा
दिल मेरा बिलख उठा

नाव जब मंझधार थी
दिल ने इक पुकार की
पतवार तुमने थाम ली
मेरी नैया पार की
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 7 अगस्त 2018

ये माज़रा क्या है

ऐ मेरे हमनशीं हुआ क्या है
क्या है तेरा मर्ज़ और दवा क्या है

मैं तो कुछ जानती नहीं तू बता
अपनी हालत का पता मुझको बता
सुनके कर दूँगी फैसला क्या है

ग़मों को तुम दबाए बैठे हो
कबसे मुझसे छुपाए बैठे हो
आखिर इस उदासी का सबब क्या है

कैसे इस जिंदगी को काटूँगी
तू है चुपचाप कैसे दुःख बाँटूगी
सबब इस तन्हाई का क्या है

हम नहीं हैं ग़ैर क्यों बताते नहीं
दिल में यूँ ग़मों को भी छुपाते नहीं
तुम्हीं कहदो ये माज़रा क्या है
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 6 अगस्त 2018

आत्मबोध भी वो कराने लगा

आज मन में आस का पंछी
फिर से नीड़ बनाने लगा
नई उमंगों से नई तंरंगों से
सपने नए वो सजाने लगा
खिलती हुई नई कलियों को
वो चुनकर ख़्वाब बुनने लगा
फूलों से राहें सँवारने लगा
गीतों की माला पिरोने लगा
उम्मीदों के पँख बिखराने लगा
ख़ुशी के गीत गुनगुनाने लगा
इस डाली कभी उस डाली पर
वो फुदकने लगा बौराने लगा
जोश में झूमने लगा कूदने लगा
मस्ती में गाने लगा मुस्काने लगा
कानों में रस वो घोलने लगा
सबसे मीठा मीठा वो बोलने लगा
मन की भाषा को समझाने लगा
अनकही बातें भी वो बताने लगा
प्रेम का सबक वो सिखाने लगा
आत्मबोध भी वो कराने लगा
@मीना गुलियानी 

रविवार, 5 अगस्त 2018

चली पुरवाई जो आँगन में

चुपके चोरी से जगा के गया
ये कौन आया मेरे आँगन में
सपने भी सारे जाग उठे
महक उठे हैं फूल आँगन में

धीरे धीरे चुपके से आया है कोई
यादों में मेरी समाया है कोई
दिल मेरा तो झूम उठा
अँचरा उड़ा है आँगन मेँ

उसके ही ख्यालों में खोने लगी मैं
जागते ही जागते सोने लगी मैं
सोये सपने जाग उठे
चली पुरवाई जो आँगन में
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 4 अगस्त 2018

दिल पर तू खाए बैठा है

क्यों तू नज़रें झुकाए बैठा है
ऐसा क्या  राज़ छुपाए बैठा है

दिल लगाना तो कोई खेल नहीं
तू क्यों दिल को लगाए बैठा है

क्या सिला मिला तुझे वफाओं का
चोट इस दिल पर तू खाए बैठा है
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 3 अगस्त 2018

नैनों की भोली चितवन

मन भूला नहीं मधुर क्षण
स्वीकारा था तुमने निमन्त्रण
आँखों ही से हुई थी बतियाँ
चाहत भरी तेरी वो पतियाँ
कितना माधुर्य भरा था
नैनों में प्यार उमड़ा था
मदभरे थे वो चंचल नैना
दिल बोल उठा क्या कहना
तेरे नैना भी सकुचाए
लब कुछ भी बोल न पाए
हिरणी सी तेरी दो आँखें
मेरे दिल का चैन उड़ाए
कस्तूरी सी गन्ध है तुझमें
उसे पाके खिंचा आता मन
जाने क्या जादू किया है
तेरे नैनों की भोली चितवन
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 2 अगस्त 2018

माला भी मुरझाए

जाने काहे  बदरा  घिर आए
जिया मोरा कल नहीं पाए

सूना मोरा अँगना आये नहीं सजना
राह तकत  मोरी अखियाँ थक जाएँ

कासे कहूँ बैना सूने हैं दिन रैना
दिन उगे फिर दिन ये ढल जाए

सूनी मेरी वीणा संगीत के बिना
बाती मन की जले फिर बुझ जाए

छिप गए हैं तारे छाए अँधियारे
सपनों की माला भी मुरझाए
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 1 अगस्त 2018

क्यों ओझल बता मुझे

ये किसकी पदचाप सुनाई दी मुझे
लगा तूने ही शायद सदा दी है मुझे

तेरे आने की कुछ महक सी आई
हवा का झोंका छूके गया मुझे

जाने क्यों दिल को इंतज़ार तेरा
जोशे जुनून ने भी तड़पाया मुझे

तू ही मेरी आरज़ू ज़ुस्तज़ू भी है
 नज़र से क्यों ओझल बता मुझे
@मीना गुलियानी