शनिवार, 31 मार्च 2018

लक्ष्य बन चुका है

कभी कभी ये सारा जहाँ
मुझे तुच्छ जान पड़ता है
मुझे लगता है कि मैं किसी
महाशून्य में खो गई हूँ
मैं खुद को जानना चाहती हूँ
कि मैं कौन हूँ ? क्या हूँ ?
क्या है मेरा वर्चस्व ,अस्तित्व
अपने आप को पाना चाहती हूँ
खुद को मिटाकर मैं
उस शून्य से खुद को मैं
उबारना चाहती हूँ
अब इस अन्धकार को
भेदकर बाहर आना चाहती हूँ
इस गहन यंत्रणा को
मैंने बहुत झेला है
पर अब और नहीं
अब मुक्ति पाना ही
मेरा लक्ष्य बन चुका  है
@मीना गुलियानी

अल्हड़पन मासूमियत को

ऐ वक्त काश तुम लौट आओ
मुझे बताओ ज़रा मैं अपना
खुशहाली भरा जीवन कैसे लाऊँ
इस कंक्रीट भरे जंगल सरीखे
जीवन से कैसे मैं निज़ात पाऊँ
कैसे बचाऊँ खुद को मैं इस
दुनिया में ईर्ष्या ,द्वेष ,नफरत से
कैसे बचाऊँ मैं इंसानियत को
जब हावी हो रही हैवानियत
कैसे भरूँ दिल के जख्मों को
जो हर समय टीस देते हैं
कैसे करूँ दूर ग़म के अंधेरों को
ऐ वक्त काश तुम्हीं लौटा पाते
मेरी हसरतों भरी सुबह शामों को
मेरा अल्हड़पन मासूमियत को
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 29 मार्च 2018

दुनिया में सिमट जाओ

जब सुहानी भोर दस्तक देती है
तुम्हारी आँखे अधखुली होती हैं
 नर्म अंगुलियाँ मेरी हथेली को
छूकर मेरी  धड़कनें बढ़ा देती हैं

तमाम यादें फिर से उभर आती हैं
बीते पलों की याद दिलाती हैं
दुनिया का वजूद  हम भूल जाते हैं
अपनी यादों का मेला सजाते हैं

जी चाहता है तुम मेरे पास बैठो
चुपचाप मुस्कुराते हुए मुझे निहारो
दिल की संवेदना मुझ पर उढ़ेलो
 ख्यालों की दुनिया में सिमट जाओ
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 28 मार्च 2018

कड़वा सच है

मैं एक पानी की बूँद हूँ
कुछ हवा भी तूफ़ान उठाती है
एक प्रलय ,ज्वारभाटा सा
मेरे अन्तर में उभरता है
हर कोई जिसे नहीं समझता
कभी शबनम तो कभी शोले
मेरे अन्तर में धधकते हैं
हर लम्हा मेरा रूप
बदलता ही रहता है
रात दिन एक प्रलय सा
तूफ़ान उमड़ता है
वक्त ने मुझे ऐसे मोड़ पे
लाकर खड़ा कर दिया
कितना कोहराम मचता है
पर सुनता ही कौन है
कभी मेरे अन्तर में
झरना बहा करता था
आज वो एक रेगिस्तान
बन चुका है
यह सब वक्त की
विडम्बना , कड़वा सच है
@मीना गुलियानी 

जिसे नहीं चाहती खोना

मैं तो हँसना ही जानूँ नहीं जानती हूँ मैं रोना
मुझको भाता है हँसना न भाता मुझको रोना

कितनी  पीड़ाएँ झेली पर तनिक क्षोभ नहीं है
हर चिंता क्रीड़ा करती मुझमें  भूल गई हूँ रोना

जीवन को ऐसा ढाला तन मन को बदला मैंने
सुख का सागर लहराए दुःख का उठा बिछौना

अब भरा है मेरा तन मन उत्साह और उमंग से
है प्रेम से अब आलोकित मेरे मन का हर कोना

मेरे जीवन में निराशा कैसे घेरेगी अब मुझको
अब धैर्य है मेरा साथी जिसे नहीं चाहती खोना
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 27 मार्च 2018

गगन की ओर बढ़ी जा रही है

प्रकृति की मनोरम छटा लुभा रही है
कहीं ऊँचे पर्वत तो कहीं खलिहान
कहीं गुलिस्तान तो  कहीं  रेगिस्तान
धरती की धानी चुनरी लहरा रही है

नदिया की कल कल ध्वनि आ रही है
एक मधुर संगीत की लय भा रही है
बहते झरने धरा से कुछ कह रहे हैं
चंद्रकिरणें पत्तों से छनके आ रही हैं

बादल भी उमड़ घुमड़कर छाने लगे हैं
गगन के तारे भी चमक दिखाने लगे हैं
धीमे से पुरवइया कुछ गुनगुना रही है
सुनके धरा भी जिसे सकुचा रही है

मन का मयूरा देखो कैसे इतरा रहा है
पपीहा भी पीहू पीहू की रट लगा रहा है
मधुर मिलन की नैनो में प्यास लिए
धरती गगन की ओर बढ़ी जा रही है
@मीना गुलियानी



सोमवार, 26 मार्च 2018

बात यूँ सताने की

उनको आदत है दिल दुखाने की
हमको आदत है फ़रेब खाने की

जाने क्यों रूठके यूँ बैठ गए
राज़ न खोला छिपाके बैठ गए
उनको आदत है रूठ जाने की

मिन्नतें खुशामद गवारा न तुझे
मनाऊँ कैसे तू ही बता दे मुझे
बिना मनाए लौटके न जाने की

ख़ता नहीं है फिर भी मुझे माफ़ करो
मुस्कुराके अपने दिल को साफ़ करो
मान जाओ न करो बात यूँ सताने की
@मीना गुलियानी 

रविवार, 25 मार्च 2018

तेरी याद

हर रोज़ सुबह की धूप
खिड़की के झरोखों से
छनकर मुझ तक आती है
फूलों और पत्तों पर
चमक अपनी लुटाती है
मलयानिल के झोंके भी
सुरभि ,मकरंद लाते हैं
उनकी महक जादू जगाती है
हवा में जब तुम्हारी ज़ुल्फ़
यूँ ही लहराती है
लगता है कोई बदली
घुमड़कर छा  जाती है
साँसों में इक सिहरन
सी दौड़ जाती है
धड़कन मेरी थम जाती है
तेरी पायल की रुनझुन
मधुर गीत सुनाती है
दिल पे बिजली सी
कौंध कौंध जाती है
शाम  होते ही  तेरी याद
मुझ तक दबे पाँव
रोज़ चुपचाप चली आती  है
दिल में हलचल मचाती है
नई पुरानी यादें दोहराती है
जब मैं थक जाता हूँ
अपनी आग़ोश में सुलाती है
@मीना गुलियानी

शनिवार, 24 मार्च 2018

एहसास

तुम मेरे पास नहीं हो
फिर भी तेरे  पास  होने का
एहसास मुझे होता है
हर पल तुम्हारी यादोँ का
मेला सा लगा होता है
हर वो लम्हाा  मेरे लिए
बहुत ही ख़ास होता है
तुम्हारी शरारतें वो बातें
सब दिल के पर्दे में
उतर सी आती हैं
दिल की धड़कनों को
यूँ ही वो बढ़ाती हैं
तेरे साये का अक्स
अक्सर ही साथ होता है
दिल के आईने में तेरा
चेहरा छिपा होता है
तुम हमेशा यूँ ही मुझसे
लुकाछिपी खेला करते हो
कभी हँसाते कभी यूँ ही
मुझे रुलाते और मनाते हो
मेरे सपनो में गुनगुनाते हो
मेरी उदासी दूर भगाते हो
अपनी कमी का एहसास
कभी  न होने देते मुझे 
मेरी कल्पना में समाए जाते हो
@मीना गुलियानी


शुक्रवार, 23 मार्च 2018

माता की भेंट -हृदय में जगाओ प्रीत

अब देर न कर हे माँ तुझे तेरे भक्त बुलाते हैं
आके विनती ज़रा सुनलो तेरे बिन चैन न पाते हैं

बरसे नयन मेरा तरसे है मन
 ऐ मैया तू दर्श दिखा जा
तेरे दर्श बिन तड़पे है मन
मेरी मैया तू जल्दी से आ जा
ये जीवन न जाए बीत-------------तुझे------

माता मेरी जगदाता तू ही
अब तो मैया जी दर्श दिखाओ
नैया भंवर में डोले मेरी
आके मैया जी पार लगाओ
मेरी मैया मिटाओ भव भीत ------ --तुझे-----

काम क्रोध मद लोभ मोह ने
मैया जी मुझको है घेरा
आके बचाओ जान मेरी
ये चौरासी वाला है फेरा
हृदय में जगाओ प्रीत ------------------तुझे-----
@मीना गुलियानी




वो लम्हा मेरा होता है

हर आहट पे तेरे आने का गुमा होता है
दिल के दरवाज़े पे खटका तेरा होता है

पहरों बीत जाते हैं तेरी यादों में
हर लम्हे में तजुर्बा नया होता है

तुमको फुरसत नहीं मिलती आने की
हम पे इस ज़माने का पहरा होता है

दिखाएँ जख्म तुम्हें क्या उल्फत के
क्या बताएँ दिल में दर्द कहाँ होता है

हम तो तेरी चौखट पे सजदा करते हैं
बड़ा पोशीदा वो लम्हा मेरा होता है
@मीना गुलियानी 

माता की भेंट -सब दास्तां बता दे

तेरे द्वार कैसे आऊँ मैया ज़रा बता दे
मँझधार में फंसी हूँ तू ही रास्ता बता दे

घेरे हुए हैं मुझको रंगीन वासनाएँ
मन का नहीं भरोसा पग पग पे जो दगा दे


मुझमें वो बल कहाँ है जो तुझे यहाँ बुला लूँ
निर्बल को दे सहारा, भव पार तू लगा दे

लाखों उबर गए हैं तेरे नाम के सहारे
सौलह भुजाओं वाली मुझको भी आसरा दे

कैसे सुनाऊँ तुमको, अपनी करुण कहानी
शायद ये मेरे आंसू ,सब दास्तां बता दे
@मीना गुलियानी



गुरुवार, 22 मार्च 2018

वफ़ा में मेरी कमी नहीं है

लबों की बातें हम सुन न पाए
नज़र भी उनकी झुकी हुई है
कहीं थीं तुमने हँसते हँसते
बातें वहीं पर रुकी हुईं हैं

जवाब मांगो तो क्या कहूँ मैं
कैसे तुम्हारा  जिक्र करूँ मैं
ह्या से चेहरा उठा न पाओ
नज़र तुम्हारी झुकी हुई है

बताओ दिल में क्या है तुम्हारे
खुले हुए हैं गेसू तुम्हारे
आँखों में कितना गहरा तूफां
बरसात जैसे बनी हुई है

जो न कहोगे और चुप रहोगे
करेंगे तेरा इंतज़ार फिर भी
सुनेंगे तेरी तो हम सदायें
वफ़ा में मेरी कमी नहीं है
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 21 मार्च 2018

माता की भेंट - भक्तों का करती है उद्धार

माँ जगदम्बे जी के द्वार जो भी करता है पुकार
आस पुजाये, माँ अम्बे , सुन लेती है पुकार

माँ जगदम्बे की शान निराली
लौटा न खाली कोई यहाँ से सवाली
सुनके करुणा भरी पुकार ,शेरों पे होके सवार
आके अम्बा हर लेती सबके दुखड़े अपार

जो भी मैया जी की आस लगाए
मैया जी उसकी हर आस पुजाये
माँ की महिमा अपरम्पार ,प्रेम की शीतल चले फुहार
मैया अम्बे  जगदम्बे ,कर देती भव से पार

राजा हो या कोई भिखारी
सब हैं बराबर यहाँ नरनारी
माँ के भरे हुए भंडार ,लेवे नाम जो होवे  पार 
माँ जगदम्बे जी भक्तों का करती है उद्धार
@मीना गुलियानी


मंगलवार, 20 मार्च 2018

माता की भेंट -अज्ञान को मिटाओ

हे अम्बिके भवानी दर्शन मुझे दिखाओ
अन्धकार ने है घेरा ज्योति मुझे दिखाओ

मैया तेरे ही दर का मुझको तो इक सहारा
नैया भँवर में डोले सूझे नहीं किनारा
मँझधार से निकालो नैया मेरी बचाओ

लाखों को तूने तारा भव पार है उतारा
बतलाओ मेरी माता मुझको है क्यों बिसारा
बच्चा तेरा हूँ मैया मुझको गले लगाओ

सूनी हैं मेरी राहें आँसू भरी निगाहें
बोझिल हैं मेरी साँसे दुःख कैसे सुनाएं
गम आज सारे मेरे मैया तुम्हीं मिटाओ

तेरा नाम सुनके आया जग का हूँ माँ सताया
मुझको गले लगालो तेरी शरण हूँ आया
रास्ते विकट हैं मैया अज्ञान को मिटाओ
@मीना गुलियानी



माता की भेंट -

माता की भेंट -छोड़ दिया जग सारा

मेरी मैया मेरा तुझ बिन दूजा न और सहारा
मेरी नाव भंवर में डोले माँ सूझे नहीं किनारा

तुम आके पार लगाओ माँ आप ही जान बचाओ
मुझे पार करो इस भव से नैया को पार लगाओ
माँ तेरे भरोसे पर ही मैंने जीवन को है गुज़ारा

माँ मैंने यही सुना है तू विपदाओं को मिटाती
माँ सबके दुखड़े हरके रोतों को तू है हँसाती
मेरी भी विनती सुनलो इस जग से मैं तो हारा

तुम अर्ज़ सुनो माँ मेरी सुनलो मत करना देरी
माँ शेर सवारी करके रखना तू लाज मेरी
तेरा ही सहारा लेकर माँ छोड़ दिया जग सारा
@मीना गुलियानी



सोमवार, 19 मार्च 2018

दिल मेरा कहाँ खो गया

जिंदगी मुझे बहलाने की
कोशिश न करो
मेरा दिल खिलौने की तरह
बहुत ही नाज़ुक सा है
हाथ लगाते ही वह
टुकड़ों में बिखर जायेगा
सुनी हमने चुप की सदा
अंबर पर चाँद न घटा
हँसी को करा लिया जिबह
दिल मेरा कहाँ खो गया
@मीना गुलियानी 

माता की भेंट -तूफ़ान में दिया है

बेकार सोचना है तेरे सोचने से क्या है
होगा वही जो कि तेरे भाग्य में लिखा है

तेरे रास्ते अगरचे , हैं मुसीबतों ने घेरे
माता का आसरा ले,जब तक है स्वांस तेरे
उसका ही नाम केवल, हर रोग की दवा है

उसका पता जो पूछे ,कटड़े से हो रवाना
जो सामने है पर्वत,उसपे तू चढ़ते जाना
दरबार पर पहुँच जा,माता की वो गुफा है

दुनिया की दौलतों का,झूठा है ये खज़ाना
ये महल और बंगले ,कुछ भी न साथ जाना
मत खेल ज़िन्दगी से, बेकार का जुआ है 

गर चाहते हो मुक्ति ,  माँ के चरण पकड़ लो
जीवन की नाव उसकी ,शक्ति से पार करलो
उसकी कृपा से जलता ,तूफ़ान में दिया है
@मीना गुलियानी



शनिवार, 17 मार्च 2018

माता की भेंट -कैसे क़द्रदानियाँ

तेरे दर आऊँ तेरा दर्श मैं पाऊँ खाली लौटके न जाऊँ
 मेरी माँ ---करदे मेहरबानियाँ करदे मेहरबानियाँ

तू है माँ भोली , भरती सबकी तू झोली
मुझे पार लगाना माँ ,मेरी नैया डोली
मेरी माँ शेरों वाली, जोतों वाली
सुन माँ  -  दुःख भरी कहानियाँ

तेरे दर आया हूँ , माँ ग़म का सताया हूँ
दुःख दूर करो मेरे ,जग का ठुकराया हूँ
मेरी माँ दे दो शक्ति ,करूँ मैं भक्ति
जलाऊँ  -  जोतें नुरानियाँ

तेरा सहारा है ,माँ तेरा ऊँचा द्वारा है
तेरे भक्तों को लगता ,तेरा नाम प्यारा है
माँ भव से तारे , पार उतारे
भूलें हम--कैसे क़द्रदानियाँ
@मीना गुलियानी




नित दर्शन की प्यासी

प्रभु जी तेरी शरण पड़ी है दासी
भव पार करो काटो जम की फाँसी

मैंने कष्ट बहुत है पाया
भटक भटक जून चौरासी
मानुष का तन पाया
मिटादो दुखों की ये राशि

मैंने बहुत पाप है कीन्हा
संसारी भोगों की आशा ने
दुःख बहुत मुझे  दीन्हा
ये कामना है सत्यानाशी

प्रभु जी मैंने भक्ति नहीं कीन्हि
झूठे भोगों की तृष्णा में
उम्र सारी खो दीन्ही
दुःख मेरे काटो अविनाशी

प्रभु जी अब सारी आशा टूटी
तेरे चरण की धूलि लागे
मुझे एक संजीवनी बूटी
रहूँ नित दर्शन की प्यासी
@मीना गुलियानी

वो लम्हा न मिला

मैं तन्हा हूँ तुम्हारा तसुव्वर है
वक्त कुछ ठहर सा गया है
तुम्हारे पाँव के निशान खो गए
मैं सोच रहा हूँ कि कहाँ जाएँ

तुम अभी अभी तो गुज़रे थे
तुम्हारी महक हवाओं में है
इस गहन सन्नाटों के बीच
तुम्हारे चहकने की आवाज़ है

मैंने अपनी उम्र यूँ ही गुज़ार दी
इसी बात का ग़म सालता है
मुझे सिर्फ तन्हाई ही मिली
फ़ुरक़त का वो लम्हा न मिला
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 14 मार्च 2018

किसी का दिल बहलाने

मैं जो कहता था तब किसी ने न सुना
अब चुप हुआ तो सबने बनाए अफ़साने

अपने ग़म खुद ही समेटे जीने के लिए
चाहता हूँ कि कोई भी न मुझे पहचाने

गुज़ारे हैं कितने ही लम्हे यूँ तेरे बगैर
अब तो खुद को भी लगने लगे दीवाने

ये चाँद सितारे भी आज ग़ुम क्यों हुए
गए हैं शायद किसी का दिल बहलाने
@मीना गुलियानी


सोमवार, 12 मार्च 2018

मेहमाँ तुम्हीं तो हो

करते हमेशा याद वो मेहरबां तुम्हीं तो हो
करते हैं जां निसार जिसपे राजदां तुम्हीं हो

दिल की बात कह रहे हैं तुमसे कबसे हम
मतलब भी पूछते हो नादाँ तुम्हीं तो हो

आता है बाद ज़ुल्म के रहम भी तुम्हीं को
अपने किए पे खुद भी परेशां तुम्हीं तो हो

पछताओगे एक दिन मेरा सुकूँ उजाड़कर
इस दिल में कौन है मेहमाँ तुम्हीं तो हो
@मीना गुलियानी

शनिवार, 10 मार्च 2018

तुम बहुत याद आते हो

इस मतलबी दुनिया की तंगदिली
दुनिया के फरेब और कड़वे शब्द
जब मेरे मन को ठेस पहुँचातें हैं
तुम बहुत याद आते हो

चलते चलते जब इस सफर में
बहुत घना अँधेरा  छा जाता है
और मन का हौंसला टूटता है
तुम बहुत याद आते हो

तुम्हारे प्यार की रोशनी मुझे
तब एक नई राह दिखाती है
 दुनिया की मची हलचल में
तुम बहुत याद आते हो
@मीना गुलियानी



शुक्रवार, 9 मार्च 2018

जीवन की भंवर से उबरूँ

जी चाहता है पँख लगाकर
नील गगन की परिक्रमा करूँ
आकाश की ऊँचाइयाँ छू लूँ
जहाँ घुटन भरे बादल न हों
न ही भेदभाव या स्वार्थ हो
हर तनाव ताप से मुक्त होऊं
जीवन सागर की गहराई में
फिर डूबकर गोता लगाऊँ
जीवन के सत्य के मोती ढूँढूँ
जीवन में मधुरता भर लूँ
उपवन सी ताज़गी पा लूँ
मन की भटकन खत्म करूँ
सरल शान्ति की आगोश पाऊँ
और जीवन की भंवर से उबरूँ
@मीना गुलियानी 

जब बेटी ससुराल पधारे

माता पिता के प्रेम का कैसे क़र्ज़ चुकायेंगे
बच्चों के सुख खातिर कितने ग़म उठायेंगे

कैसे भूलेंगे हम वो पल जब माँ थी लोरी गाती
खुद भूखी रहकर भी हमको भरपेट वो खिलाती

राजा बेटा रानी बिटिया कहकर गले लगाती
पापा से जब डाँट पड़ती वही आके हमें बचाती

बचपन के दिन हमें याद हैं करते थे हम मौज
पापा की पीठ के घोड़े पर चढ़ते थे हर रोज़

माँ की ममता का न कोई सांनी न ऐसा ज्ञाता
बच्चे की वो प्रथम गुरु है वो ही  भाग्यविधाता

पापा भी हैं सबको प्यारे हम हैं उनकी आँख के तारे
आँखे उनकी भी भर आती जब बेटी ससुराल पधारे
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 8 मार्च 2018

हस्ती को मिटाया जाएगा

वाह क्या यही है नारी का सम्मान 
सदा से सहा है उसने इतना अपमान 
करता रहा वो जुल्म और तू सहती रही 
वो तो वहशी है और तू नादान 

अरे ---ये तो है ---एक करोड़ का बंगला 
सभी कुछ होने पर भी तू है कंगला 
कितना बड़ा बनाया तेरा ये पिंजरा 

फिर से क्या वही पाठ दोहराया जाएगा 
फिर से तेरी हस्ती को मिटाया जाएगा 
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 7 मार्च 2018

आके तुम इसे जला जाओ

दिखता है हर ओर अँधेरा
उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम
चारों ओर अँधेरा छाया
सूझे न कोई राह मुझे

मन का कोरा मेरा आँचल
रोते रोते भीग गया है
भूले से ही सही तुम आओ
एक बार तो राह दिखाओ

यह जीवन की पगडंडी
पलक झपकते डसती है
जीवन की नागिन मुझ पर
मौत बनकर हँसती है

जिंदगी की रहगुज़र कैसे होगी
हर तरफ एक परछाईं है
एक अक्स नज़र आता है
दुनिया में कौन किसका है

ये जिंदगी एक रात की है
प्यार एक चिराग सा है
जितनी देर तक जल सके
आके तुम इसे जला जाओ
@मीना गुलियानी

मंगलवार, 6 मार्च 2018

मुझे तेरी सिसकियाँ

क्यों तेरे चेहरे पर दिखाई देती हैं वीरानियाँ
अजीब सी करती हैं मुझसे ये सरगोशियाँ

क्यों हैं फूलों के बगीचे यूँ पड़े सुनसान से
दर्द के गुल खिले छाईं ग़म की बदलियाँ

क्यों छिपा रहे हो हाथों से अपना चेहरा तुम
तेरे चेहरे से अयाँ होती कितनी कहानियाँ

दिल तेरा यूँ टूटा टूटा रोता है चुपचाप क्यों
अक्सर सुनाई देती हैं मुझे तेरी सिसकियाँ
@मीना गुलियानी

रविवार, 4 मार्च 2018

जग में तेरा आवागमन

मृत्यु के डर से छटपटाता है मन
सबको मुक्ति की चाह मिले न राह
पाप में सदैव डूबा रहता चंचल मन
पञ्चतत्व का है तन करे न चिंतन
तन अस्थाई और मोहपाश के बंधन
करे न कृष्ण चिंतन छूटे ये बंधन
काम ,क्रोध,ईर्ष्या में लीन है मन
वक्त है सम्भल नहीं व्यर्थ है जीवन
कर आत्मचिंतन छोड़ सारे ये भ्रम
ताकि न हो जग  में तेरा आवागमन
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 3 मार्च 2018

साये से लिपटा जा रहा हूँ

शीशे का महल बना रहा हूँ
दिल अपना बहला रहा हूँ

मेरे सीने में बहुत दर्द भरा है
सबसे उसको छिपा रहा हूँ

सारा ज़माना है मुझसे बेखबर
उसको मैं आईना दिखा रहा हूँ

सबके ज़ज्बात पत्थर से हो गए
अपने ज़ख्मों को सहला रहा हूँ

किसी से शिकवा गिला न मुझे
अपने साये से लिपटा जा रहा हूँ
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 2 मार्च 2018

हम दूर होने लगे हैं

यूँ यादों में उनकी खोने लगे हैं
कभी हँसते हँसते यूँ रोने लगे हैं

न बेचारगी थी हमें इससे पहले
कि यादों में खुद को खोने लगे हैं

सीखा न जीने का हमने सलीका
अरमां ये नश्तर चुभोने लगे हैं 

है दर्द ये कैसा बताए तो कोई
नशेमन में खुद को डुबोने लगे हैं

उतरे भी कैसे कोई साहिल के पार
साहिल से हम दूर होने लगे हैं
@मीना गुलियानी