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गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

नव युग का निर्माण करो



तुमने सरिताओं को मोड़ा
मरुस्थल में फूल खिला डाले
कुछ ही वर्षो में भारत में
कला मंदिर नए बना डाले

                 यह कौशल तकनीकी युग का
                  बढकर यह विद्या अपना लो
                तुम खून पसीना एक करो
                 उड़ते बादल को बरसा लो

नव युग की तुम्हे चुनौती ये
विज्ञानं तुम्हें है बुला रहा
यह द्वार प्रगति के नए खोज
वरदान तुम्हे है बुला रहा


मेरे भविष्य तुम अन्धकार




अंत;स्थल में इक पीर लिए
नयनो में अपने नीर लिए
सुख तंत्री के क्यों मौन तार
मेरे भविष्य तुम अन्धकार

                 कुछ तो बोलो नाविक मेरे
                 क्या कभी किनारा आएगा
                 या व्यथा त्विष लहरों में ही
                 यह जीवन लय हो जायेगा

है शिथिल आज सब अंग अंग
साथी छूटे साहस छूटा
अपनापन यहाँ निभाने का
सच एक झमेला है झूठा

                कितने बालू के महल बने
                टूटे सपनो के अखिल हार
                आ गया नियति का इक झोंका
                 हो गए स्वप्न वो तार तार 

किसी की याद आई


किसी की याद आई है
किसी ने याद फ़रमाया

                       हृदय की धड़कने दम  भर
                       ज़रा खामोश हो जाओ
                       किसी का खत ये आया है
                       किसी ने याद फ़रमाया

भर जाते है आँखों में
सुहाने मेघ सावन के
ये कैसी बिजलियाँ चमकी
ये कैसा ज़लज़ला आया

                     नयन के आँसुओ मेरे
                    नयन में ही समा जाओ
                    किसी की बेवफाई का
                    वही  मंज़र उभर आया

उन्हें दवा मुहब्बत का
मुहब्बत उनकी यह कैसी
विरह में भी बहारों का
खिलाना रास आया 

बुधवार, 30 दिसंबर 2015

स्मृति तुम्हारी





आज फिर स्मृति तुम्हारी
क्यों सताती विकल होकर
उधर प्राची से उठे है
श्याम घन संदेश लेकर

                गा उठा पागल पपीहा
                प्रणय के भूले फ़साने
                बज उठे सुन मधुर रिमझिम
                हृदय के कम्पित तराने

कोकिला की कुहुक उठती
मिलन का संदेश देकर
दूर है दो छोर अपने
चल रहे  विवश होकर

               कौन जाने मिल सकेंगे
               फिर कभी जीवन डगर पर
               आज फिर स्मृति तुम्हारी
               क्यों सताती सजग होकर 

हार हमें मंज़ूर नहीं




यह तंग ख्यालों की दुनिया 
कब समझी दिल की बातों को 
पिंज़रे में तड़पते पंछी की 
आँख क्ति कुछ रातों को 

                अब चाह सिसक कर रोती है 
                जब साथ ही अपने छोड़ चले 
                दीवार ,दरीचे ,गुल ,बुलबुल 
                देकर हसरत मुँह मोड़ चले 

चलने पर हमारे पाबंदी 
और रुकना हमें मंज़ूर नहीं 
इस जान की बाज़ी हाज़िर है 
पर हार  हमें मंज़ूर नहीं 

मौजो के इशारे काफी है



कोशिश तो बहुत की कुछ बदले
पर बदली सारी तस्वीरें 
आज़ाद ख्यालो की मेरी 
दुनिया को न भाई तस्वीरें 

                  सब रंग मेरे छीन लिए 
                  हाथों में लगा दी जंजीरे 
                 यह तंग ख्यालों की दुनिया 
                 कब समझी दिल की बातों को 

पतझड़ की हवाओ और चलो 
सब  फूल गिरा दो उपवन के 
यादों के सुलगते अंगारे 
हर दाग जला दो दामन  के 

                 मंजिल पर न पहुंचे तो क्या 
                 दीदार ऐ  मंजिल काफी है 
                 सैलाब से लौहा लेने को 
                 मौजो के इशारे काफी है 

तुम्हारा प्यार कम है





भावना मेरी असीमित 
व्योम का विस्तार कम है 
कामना मेरी अपरिमित 
पर तुम्हारा प्यार कम है 


खेलता आया हमेशा 
जो विनाशों की गली में 
विश्व का विष पी  रहा हूँ 
क्या यही अभिसार कम है 

आज हँसा मन का गगन


खोलकर हृदय की बंद खिड़की 
झांक रहे किसके प्यासे नयन 

               अन्तर का मूक प्यार 
               मुखरित हो बार बार 
               आज करने लगा 
               मधुमय गुन्जन 

परिचित सी तुम अजान 
तुमने छू दिए प्राण 
आज हँसा फूल सा 
मन का ये गगन 

             भूला हूँ पथिक क्लान्त 
             मंजिल निर्जन नितान्त 
            दीप डगर हाथ लिए 
            भोली सी चितवन 

तुमको आकाश बुलाता है



तुम नई क्रान्ति के सेनानी 
तुम स्वर्ग धरा पर ला सकते 
धरती में छिपे खज़ाने से 
भारत का आँचल भर सकते 

                इंसान बदलता जाता है 
               इतिहास बदलता जाता है 
               स्वप्नों में खोये उठो मनुज 
               संसार बदलता जाता है 

अंबर के चाँद सितारों में 
संदेश नया सा आता है 
सुषमा सीमित है कहीं नहीँ 
तुमको आकाश बुलाता है 

आई रजनी



आई रजनी करने विहार
छाई रजनी आँचल पसार

               तारक रत्नों से सजकर
               नव शशि किरणों की पहन माल

सुर परियों का कर श्रृंगार
पहना चन्द्र का मुकुट भाल

               लेकर आई सुषमा अपार
               छाई रजनी आँचल पसार 

मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

करे मन की प्रीत पुकार




करे मन की प्रीत पुकार
घर अाजा वैरी  बलमवा
काहे दीन्हि बिरहा की मार
करे मन की प्रीत पुकार

             ओ सपनों के मेरे मीत
             कैसे गाऊं ख़ुशी के गीत
             टूटे वीणा के है तार
             करे मन की प्रीत पुकार

दूर अंबर में तारे हँसते
नयन तारे मगर है बरसते
कैसे पाऊँ मै पार बता जा
करे मन की प्रीत पुकार


कठिन डगरिया रे

प्रेम नगर की कठिन डगरिया रे
राही सम्भल सम्भल पग धरना

दूर  अति दूर छिपा है
हृदय चुरिइया रे
प्रेम नगर की कठिन डगरिया रे

विरह व्यथा की नाव तुम्हारी
कौन खिवैया रे
प्रेम नगर की कठिन डगरिया रे

कासे कहूँ पीर मै मन की
चपला चमके रे
प्रेम नगर की कठिन डगरिया रे

मेरी प्रीत के फूल अरे
देखो मुरझाये रे
प्रेम नगर की कठिन डगरिया रे 

कोयल कूकती है


आज जीवन में तुम्हारे
आशा कोयल कूकती है

              लो प्रकृति ही सुख के
              मृदुल बंधन जोड़ती है
              आज तव अभिषेक करने
              स्वर्ग निधि उर खोलती है

चित्र पूरे हो गए है
अर्चना भी आज पूरी
हो अमर यह प्रणय बंधन
आज कोकिल कूकती है

             आज जीवन में तुम्हारे
             आशा कोकिल कूकती है 

फिर से मिले नहीं



एक बार नयन मिलकर
फिर से मिले नहीं

                   उठती हुई घटा
                   बरसी चली गई
                   चातक के विकल मन में
                   इक पीर भर गई

कम्पित अधर हिले
हिलकर खुले नहीं

                 लहरों ने तट को छुआ
                 परिचय ही क्या हुआ
                 अंतर में वेदना का
                संचय ही बस किया

तट से बिछुड़ चली
वे तट मिले नहीं

                जीवन के मोड़ पर
                दो पथिक मिल गए
                भावो की तूलिका में
                कुछ चित्र टंग गए

 जग के कुटिल नियम
टाले टले नहीं

मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

तुम तक कैसे आएं



तुम चिर परिचित अनजान रहे 
 अन्तर के तार न मिल पाये 
कल्पना मौन थी शब्दों में 
उदगार नयन में भर आये 

                मूक रुदन इस अन्तर का 
                प्रिय  तुम तक कैसे आ पाये 
                उच्छ्वास भरे स्वप्निल जग का 
                आभास तुम्हें क्या मिल पाए 

अनभिज्ञ अकिंचन मै जग का 
व्याकुल प्राणी मैने माना 
पर उसकी अडिग भावना को 
क्षण भर कब तुमने  पहचाना 

               वरदान जिसे मै समझा था 
               वह शाप अरे क्यों बन जाए 
               जो अपना तुमको मान चुका 
               वह मन तुममें लय हो जाए 

तुम क्यों चले गए



मंमता की डोर तोड़कर तुम क्यों चले गए 
मंझधार नाव छोड़कर तुम क्यों चले  गए 

           सपनो के मीत  मेरे 
           भावोँ के गीत मेरे 
           कम्पन बने ,बने रहे 
           उलझन भी  बन गए 

यौवन के नयन खोले 
अन्तर में प्यार डोले 
जगते ही जगते कैसे 
वरदान सो गए 

           मिलने की आस लिए 
           युग युग से दीप लिए  
           झंझा झकोर आई 
           अंचल में बुझ गए 

सोमवार, 21 दिसंबर 2015

प्रात: हुआ



प्रात; हुआ पंछी भी जागे 
रवि ने स्वर्ण लुटाया 
ढलते दिन की थकती काया 
साँझ का वैभव आया 
दो क्षण को फिर जग का आँगन 
कलरव से इठलाया 
देख सकी  कब रजनी उसको 
मग में तिमिर बिछाया 

लहरों से अभिलाषाएं यह 
क्या क्या रंग दिखाती 
उठती गिरती बढ़ती जाती 
तट अवलोक न पाती 
पानी के बुद्बुदे से अपने 
सतरंगी बन आते 
बालू के कितने निकेत  वे 
झंझा में भर पाते 

चलो चलें दूर




चलो चलें , चलो चलें
दूर गगन में , दूर दूर दूर
दूर           दूर             दूर

हों  न शूल भरे
जहाँ जग के इशारे
हों न प्रीत बंधे
हृदय दुखारे
जीवन के स्वप्न जहाँ
सुख से हों भरपूर
चलो चलें----------दूर     दूर      दूर 

रविवार, 20 दिसंबर 2015

मिलने न दिया


उनको मिलने की चाहत बहुत थी मगर 
अपनी मजबूरियों ने मिलने न दिया 

                न ही जीने दिया न ही मरने दिया 
                दिल ने मुझको कहीं का न रहने दिया 

दिल की बेताबियाँ दिल में ही घुट गई 
ख्याले रुसवाई ने कुछ न कहने दिया 

                लाख सोचा सिजदा करें ख़्वाब में 
                 बेरहम चाँद ने वो भी न करने दिया 

कफ़स की कशिश में कमी कब हुई 
साये जुल्फों में खुद को तड़पने दिया 

               उनकी खामोशियों का शिकवा क्या करें 
               अपनी तन्हाइयों ने न मिलने दिया 

बाद मुद्द्त मिले तो  देखते रह गए 
बेबसी ने लबों को हिलने न दिया 

              चाहते तो चमन खिल ही जाता कभी 
              खुद को वीरानियों में भटकने दिया 

हँस रहा गगन




सौरभ बिखेरता है खिलता हुआ चमन
जग हँस रहा है और हँस रहा गगन

                    सुरभित समीर कहता कलियों से तुम खिलो
                     लहरो चली चलो सागर से तुम मिलो
                    जीवन का सुख यही अन्तर का मृदु मिलन

चितवन किसी की भोली मन में समा  गई
आकाश गंगा सी एक रेखा बन गई
सुधियों के साथ जागे आँखों के ये सपन 

शनिवार, 19 दिसंबर 2015

देखा ही तो था



चाहो तो सज़ा दे दो
मासूम गुनाहों की
देखा ही तो था तुमको
क्या और किया हमने

                उस हुस्न मुजस्सम पर
                कैसे न  नज़र उठती
                जब चाहते मंज़र में
                उम्र बिता दी हमने

इज़हारे बेबसी  का
करते ही भला कैसे
दिल में तो बहुत चाहा
कहने न दिया गम ने

मौन आँसू



उमड़ पड़ते मौन आँसू 
बन विरह का गान मेरे 
पीर अंतर की छिपाए 
वेदना का नीर भरकर 
खो गए इस विश्व पथ पर 
प्रणय के उपधान मेरे 

                    इन्द्रधनुष से सप्तरंगी 
                   थे कभी जीवन हमारे 
                   अरुण ऊषा थी हमारी 
                   थे मिलन के गीत प्यारे 
                   रात आती थी लुटाने 
                   उस जगत के सुमन तारे 

कोकिला का कलित कुंजन 
नूपुरों में राग जीवन 
मौन तुम तंद्रिल क्षणों में 
प्राण चेतन पर अचेतन 
रुक गया वह मलय मारुत 
जल उठे अनगिनत अँगारे 

तुमको बिसरा दूँ कैसे




मै भी मानव हूँ जग का
तुमको बिसरा  दूँ कैसे

                        कब पीर मिटी लहरों की
                        सरिता के तट से टकराकर
                        कब शलभों की प्रीत जली है
                        दीपशिखा के प्राण जलाकर

संवेदना के इन आंसू से
निज ज्वाल बुझा दूँ कैसे

                     एक वेदना से भूमि और
                    अंबर भी तड़पा करते है
                    एक बूँद के प्यासे चातक
                    गगन निहारा करते है

अपने मचले अरमानो को
मै आज सुला दूँ कैसे

                   यह मादक स्पर्श तुम्हारा
                    जब दिल पे मेरे लहराया
                   नई चेतना की किरणों ने
                  सोया अनुराग जगाया

आज जागरण की बेला में
सुधि का दीप बुझा दूँ कैसे


शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

कैसे करूँ बयां




कैसे करूँ बयां ग़मे जिंदगी आज
शहरे वफ़ा के लोग घूरे है मुझे आज

                   माना कि जिंदगी यूँ ही भटकेगी दर बदर
                   तुम होश में तो आओ क्यों बेवफ़ा हो आज

आ जाओ तो लिखूँ मैकोई गीत या ग़ज़ल
हर गीत कर रहा है तुम्हारे बदन पे नाज़

                अाया हूँ दर्द की हर हद से गुज़र कर
                छालों  पे पाँव के मरहम लगाओ आज

कहाँ तक जलाऊँ दीप मज़ारों के आसपास
अब रोशनी करो मेरी जिंदगी में आज

जुस्तजू क्या है




कोई मुझसे पूछे की हकीकत क्या है
मेरे अश्कों से पूछो कि जुस्तजू क्या है

              दर्दे दिल कुरेदने से क्या मिलेगा तुम्हे
             आशियाँ जल चुका राखे जुस्तजू क्या है

क्यों रोंदते हो पैरों तले मेरी तस्वीर को
गिरके संभला है दिल अब आरजू क्या है

             हमीं से प्यार करते हो ठुकराते भी हो
             तुम्हीं कहदो ये गुफ्तगू क्या है

न चैन लेने देंगीकभी तुझे  ये बदुआएं मेरी
कब्र में सोने भी नहीँ देते माजरा क्या है 

जी लेने दे




यादों का सहारा है झूठा
दरिया का किनारा भी टूटा 

              न डूबने से बचा ऐ साहिल मेरे 
              मरकर ही मुझे चैन आने दे 

सब खुशियाँ लुट चुकी है मेरी 
अब साँसों को भी सी लेने दे 

             जो दिल तेरे सजदे में अब  झुका 
             उसका चाक दामन  तो सी लेने दे 

भुला लूँ सब दुनिया के दर्दो अलम 
इस दुनिया से दूर मुझे जी लेने दे 

तेरी याद



जब भी तेरी याद आती है 
बिजली सी कौंध जाती है 
मन की बात मुँह से न कहो 
अश्रुधारा से फूट आती है 

                    मन का हर भेद कितना गहरा हो 
                    चाहे प्रीत को दफना दो गहराई में 
                    फ़िज़ा को ये प्रीत महका जाती है 

दूर दूर रहना अब मन को नहीँ भाता 
बंधन ये ऊपर का टूट नहीँ पाता 
तन्हाई मुझे कितना तड़पाती है 


गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

मुक्तक



१.           तुम पास नही तो क्या हुआ 
               तुम्हारी याद के लिए तस्वीर तो है 
                तुम साथ न भी हो तो क्या हुआ 
                मेरे साथ मेरी तकदीर तो है 




२           . किसी विडंबना जीवन की किसी ये लाचारी 
               चिढ़ता  जिनसे अन्तर्मन करनी पड़ती यारी 

जिन्दगी



जलता हुआ इक  दीपक था 
लौ थरथरा रही हो जैसे 
तभी  मुझे याद आ गई जिंदगी 
यह भी अद्भुत सत्य है 
इससे कब तक तुम दूर जाओगे 
एक दिन सभी उसके समक्ष झुकेंगे 
फिर क्यों न मोल माने जिंदगी का 
ऐ जिंदगी कितने ही सितम तूने ढाए मुझ पर 
किसी मोड़ पर मिलन था किसी पे जुदाई 
यह एक अजीब शह गुज़री है मुझ पर 
सपनों में भी जिंदगी का अक्स देता है धोखा 
इसमें कई बार देखा है पलकों के पीछे से 
भागते हुए मुसाफिरों को पाकर मौका 

जाने क्या बात है



जाने क्या बात है नज़र आप झुकी जाती है
तुझसे मै बात करूँ फिर भी ह्या आती है

                   पहले ऐसा न हुआ था कभी मुलाकातों में
                    रोज़ मिलते थे हँसते थे बातों बातों में
                    अब तो हर बात पे गर्दन मेरी झुक जाती है

दिल को जाने क्यों तुझे देखने का शौक हुआ
जाने क्यों फिर मेरा आँचल इन हवाओं ने छुआ
अब तो ये घटाएं भी बिजलियाँ गिराती है

                 सीने में अरमां ये है कि बुला लूँ तुमको
                 और पलकों में बंद करके छुपालूँ तुमको
                जाने क्यों तमन्ना मेरी बेबाक हुई जाती है 

जन्म गंवाया है



ऐ मेरे हमदम तू न कभी किसी बात पे खफा होना
चाहे मै रूठ जाऊँ तुझसे तू न मुझसे जुदा होना

                  इश्क में लाखो ही तूफ़ान उठाने पड़ते है
                 जाने कितने जन्मो के वादे निभाने पड़ते है

क्या जाने किस जन्म का ये कर्ज चुकाना होगा
अब तो मिटकर भी हमे प्यार निभाना होगा

              बहुत गहरा है पानी और डूबके जाना है
              सोचो तुम कैसे तुम्हें वादा निभाना है

जो डर गया वो उस पार कैसे जाएगा
खुद जो न संभला वजूद क्या बचाएगा

              जो उतरा है  पानी में मोती उसने पाया है
              वरना समझो यूँ ही उसने जन्म गंवाया है


चैन खो गया




चैन जाने कहाँ खो गया
जाने मुझको ये क्या हो गया

             नींद उड़ने लगी दिल मेरा खो गया
             सपने में ये सारा जहाँ सो गया

इस  तरह वो मुझे याद आने लगे
सपनोँ को मेरे वो सजाने लगे

             पल दो पल में ये क्या हो गया
              दिल मेरा गैर का हो गया

ऐसा सोचा न था पास आएंगे वो
पलको में कभी छुप जाएंगे वो

           जाने क्या हादसा हो गया
           अब तो बस में नहीँ है जिया

आजा चोरी चोरी



आजा चोरी चोरी पलको में बन्द कर लूँ
फिर दिल में बिठाके बातें चंद कर लूँ

                    दिल में बसके  बोलो कैसे तुम जाओगे
                    पलकों में समाके  हमें भूल तो न जाओगे
                    पलकें खोलूँगी न आँखे ज़रा बंद करलूँ

दिल का हाल तुम खुद ही जान जाओगे
छोड़के मुझको बोलो कैसे अब तुम जाओगे
बच न पाओगे रास्ता जो बंद कर लूँ

                    खोलूँगी न पलकें तुम लाख बुलाओ
                    जानती हूँ भेद तेरे अब न सताओ
                    आँखे चोरी चोरी खोलूँ फिर बंद करलूँ 

बुधवार, 16 दिसंबर 2015

जाने नहीँ दूंगा



जाने नहीँ दूंगा सरकार को
दिल में बसाया दिलदार को

                  तेरा मेरा रिश्ता है कितना अनोखा
                  और किसी पे नहीँ मुझको भरोसा
                   जाने नहीँ दूंगा दिलदार को

कैसे तुम मेरे दिल में समाये
फिर धीरे से मेरे करीब आये
छेड़ो न मेरे जज़्बात को

                 तुम सदा ही मेरा साथ निभााना
                 जब मै पुकारूँ दौड़े दौड़े चले आना
                 वचन निभाना न छोड़ना साथ को 

मंगलवार, 15 दिसंबर 2015

दिल झूम जाता है




मेरे हमदम तुमको देखकर दिल झूम जाता है
ओ दूर जाने वाले तू मुझको याद अाता है

              बांकी अदाएं तेरी चैन चुराएं 
              तेरी प्यारी बातें मन को लुभाएं 
              तू हरदम ही मुझको याद आता है 

कैसा ये रिश्ता है ये हमारा तुम्हारा 
अपना समझ के जब भी पुकारा 
तेरा सुंदर चेहरा नैनो में घूम जाता है 
मेरा सभी पाठकों से निवेदन है कि वो मेरी रचनाओं को पढ़ने के लिए ब्लॉग का प्रयोग करते है इसके साथ
ही यह भी बताना ज़रूरी है की इसे आप अपने मोबाईल पर भी देख सकते है जो कि हर समय आपके
पास होता है  इसके लिए आपको गूगल प्लस पर जाकर टाइप करना होगा जैसे कि आप कम्प्यूटर पर
देखने के लिए मेरा नाम लिखकर ब्लॉग खोलते है  आपका इसी तरह से स्नेह मिलता रहे ऐसी मेरी
अभिलाषा है  नया साल सबको मुबारक हो धन्यवाद 

तू जिनके करीब होता है




मानते है हम कि दुनियादारी में हम थोड़े कच्चे है
पर यकीन मानो कि दोस्ती में हम  पूरे सच्चे है

                        हमारी सच्चाई का तुम यकीं करलो
                         हमारे दोस्त हमसे भी अच्छे है

वक्त तो बड़ा  बादशाह होता है
फिर भी इन्सां को गरूर होता है

                        दर्द तो सिर्फ अपने  हमे देते है
                         गैरों से कब ये नसीब होता है

प्रेम का पौधा तो दिलों में उगता है
पर  वहीँ  तू जिनके करीब होता है 

दिल धड़कता है




दिल तेरे आने से धड़कता है
वरना सूखे पत्ते सा खड़कता है

                 निर्जीव सी देह में जान आ गई
                 तेरे आने से फ़िज़ा में बहार आई

दिल की कली तेरे आने से चटकी है
मन की उमंगे भी आज चहकी है

               हवाओं ने मौसम खुशगवार किया है
               गुलशन तेरे आने से गुलज़ार हुआ है 

इतना प्यार करते है



तुमसे हम इतना प्यार करते है
जान तुम पर निसार करते है

                 कैसे तुमको मगर यक़ीं होगा
                 ऐसा तुमको मिला नहीँ होगा
                 जितना हम ऐतबार करते है

दिल की खुशियों का पारावार नहीँ
इसको आ जाए गर करार कहीं
इतना तो इंतज़ार करते है 

हालात बदल जायेंगे



दहलीज़ से पाँव जैसे जम गए है
तेरे आने से  आँसु भी थम गए है

                  दिल की हालत कैसी है मत पूछो
                  कैसी गुज़री शबे रात मत पूछो

न आँखों में नींद थी न दिल को सकूँ था
हज़ारो गम थे आँखों में फिर भी यक़ीं था

              गम  तेरे आने से मुस्कुराहट में बदल जायेंगे
              हम इस पे कायम है कि हालात बदल जायेंगे 

सोमवार, 14 दिसंबर 2015

दिल हुआ दीवाना



ये तेरे झुके नैना ये मस्त अदाएं
ये दिल हुआ मेरा दीवाना अब तेरा 

                  तेरे उलझे  से ये बाल मेरी तो उलझन  हो गए 
                  तेरे रेशम के ये रुमाल दिलों के दुश्मन हो गए 
                  तेरा निखरा ये  रूप जैसे सुनहरी हो  धूप 
                  क्यों न दिल ये मेरा निशाना हो तेरा 

तेरी मस्त अदा भी चैन का मेरे दुश्मन बन गई 
तेरी चंचल नैन कटार दिल में मेरे ऐसे उतर गई 
तेरे तीखे तीखे नैन तेरे मीठे मीठे बैन 
उसपे कातिल है जुल्मी शर्माना ये तेरा 

ऐतबार आ जाए




तुमको गर ऐतबार आ जाए
जिंदगी में बहार आ जाए

                  दिल पे मुझको तो ऐतबार नहीँ
                  इसको भी तो ज़रा करार नहीँ
                  दिल पे गर इख्तियार आ जाए

कुछ मै तुमसे कह नही सकता
बिन तुम्हारे मै रह नहीँ सकता
तुमको गर ऐतबार आ जाए

                क्या करूँ  तुमको गर यकीन न हो
                कैसे समझाऊँ मै  गमगीन न हो
                 काबू में जो बेकरार आ जाए 

रविवार, 13 दिसंबर 2015

गुनहगार हम नहीँ



माना कि तुम हमारे तलबगार अब नहीँ
कैसे कहोगे तुम कि मेरा प्यार अब नहीँ

               हम न  बनेंगे राह की दीवार कभी भी
               दिल को जलाके ख़ाक बनायेंगे हम यहीं

अपनी वफ़ा के  लहू से सींचा है गुलिस्तां
लेकिन  उसकी बहार के हकदार हम नहीँ

            खायें है धोखे हमने वफ़ा के नाम पर
           लेकिन कहेंगे फिर भी गुनहगार हम नहीँ 

शनिवार, 12 दिसंबर 2015

मुलाकात तो होगी



हम जाएँ कहीं उनसे मुलाक़ात तो होगी
ख्वाबों में मिले चाहे मगर बात तो होगी

                तुम हमको सदा अपनी पनाहों में ही रखना
                इन आँखों में खो जाए छुपाये हुए रखना
                मेरी आँखों में तेरे प्यार की बरसात तो होगी

बीते हुए लम्हों की सौगात है  अच्छी
जज़्बात की दौलत हे ख्यालात से अच्छी
हम जाएँ कहीं साथ ये सौगात तो होगी

              हमें ढूंढ न ले कोई जुल्फों में छुपा लो
              दिल डूब रहा मेरा तुम मुझको सम्भालो
              मेरी किश्ती की पतवार तेरे हाथ तो होगी 

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

वो जो पहलू में आ बैठे



वो जो पहलू में मेरे आ बैठे
गम हमारे से दूर जा बैठे

                  दो घड़ी का तो पास आना था
                  तुमसे मिलने का इक बहाना था
                   दिल को क्यों तुमसे हम लगा बैठे

मेरी नज़रों से पूछो कि मुद्दा क्या है
तुम्हीं कहदो कि ये दुआ क्या है
हम तो सजदे में तेरे आ बैठे

                   क्यों ये शर्मो ह्या बरसती है
                    बस  दो दिन की सारी  हस्ती है
                    हम तो अपना तुझे बना बैठे 

दिल ने पुकारा




दिल ने फिर तुमको पुकारा कैसी तन्हाई है
दिल को बहलाने तेरी याद चली आई है

                   क्या बताएं तुम्हें हम दर्दे मुहब्बत क्या है
                   सिर्फ जलने के सिवा शमा की किस्मत क्या है
                   आज तेरे  इश्क में इस जान पे बन आई है

याद करो गुज़रे वो पल हमको बुलाया था कभी
पेड़ो की छाँव में सीने से लगाया था कभी
ऐसा उजड़ा है वो गुलशन न बहार आई है

                   हम तो सीने पे तेरा नाम लिखा करते है
                   इश्क की याद में हम रोज़ मरा करते है
                   आह निकले न कभी इश्क की रुसवाई है 

तूने जादू किया



कैसा तूने जादू किया मोरे पिया
पिया पिया बोले मतवाला जिया

                  तूने तो बदल दी दुनिया ही मेरी
                  तुझसे लगन  लागी  ऐसी मोरी
                  सपने जगाके तूने ये क्या किया

दिल की ये धड़कन शोर मचाये
कैसे रहूँ  चुप रहा भी न जाए
दिल में समाके ये क्या  किया

                 जाऊँ जो पनघट लेने मै पानी
                 लहर उठे मन में हुई मै दीवानी
                 छलके गगरिया मचले जिया

बुधवार, 9 दिसंबर 2015

पिया गए परदेस



मेरे  पिया गए परदेस
लगाकर दिल पे मेरे ठेस
जिया अब तुझ बिन जाए ना
काटूँ दिन कैसे समझ आये ना

                      इन सूखे फूलों में बास नहीं
                      अब जीने की भी आस नहीं
                       जब मै साजन के पास नहीं
                        मुझे कोई रुत भाये ना

क्यों सोया तू चादर तान
सिर पर मौत खड़ी है आन
मै तो हूँ तेरे कुर्बान
कहीं ईमान बदल जाए ना


हर हाल में खुश है



गर तूने दिया गम तो उसी गम में रहे खुश 
जिस तरह रखा तूने उसी आलम में रहे खुश 
दुःख दर्द में आफत में जंजाल में खुश है 

                   गर तूने ओढ़ाया तो लिया ओढ़ दुशाला 
                    कंबल जो दिया तूने उसे कंधे पे संभाला 
                    दिन रात घड़ी पहर हर हांल में खुश है 

चेहरे पे शिकन हे न जिगर में असरे गम 
यकसा है हमे जिंदगी और मौत का आलम 
गर माल दिया तूने तो उस हाल में खुश है 

मुझे मालूम न था



मै जुदाई में तड़पता था ख़ता थी मेरी 
उसका हर राज़  हँसी था मुझे मालूम न था 

                मै समझता था वो मुझसे दूर है लेकिन 
                वो दिल के करीब था मुझे मालूम न था 

दिल से पर्दा उठा हो गईं रोशन आँखे 
दिल में वो पर्दानशीं था मुझे मालूम न था 

                 मै कहीं हूँ वो कहीं है ये गुमाँ था मुझको 
                 मै जहाँ था वो वहीँ था मुझे मालूम न था 

इश्क पे हम पे यूं भी कभी गुजरेगी 
दिल की होगी ये  हालत मुझे मालूम न था 


मंगलवार, 8 दिसंबर 2015

रूठे पिया



अब  हमे रूठे पिया को मनाना होगा
देर से ही सही ये फर्ज निभाना होगा

                  आपसे रूठके हम तो क्या ख़ाक जिए
                   कई  इल्जाम लिए और सौ इल्जाम दिए
                   आज के बाद हमे रिश्ता निभाना होगा

देर से आज ये जाना कि मुहब्बत क्या है
अब हमे सोने और चाँदी की जरूरत क्या है
प्यार से बढ़के भला कोई न गहना होगा

                दिल हमारा तेरे ही प्यार में मगरूर रहा
               जिंदगी भर तेरे ही प्यार में मशगूल रहा
               अब हमे प्यार का हर कर्ज चुकाना होगा 

तेरा ख्याल



मेरे दिल में तेरा ख्याल है
कहीं तू नज़र से गिरा न दे
इक तेरी नज़र का सवाल है
कहीं तू नज़र को फ़िर न दे

                  मेरे दिल के घाव हरे हुए
                  मेरे सीने  में वो अगन जली
                  मेरी आहों से उठता धुँआ
                  कहीं होश तेरे उड़ा न दे

किसे हाल दिल अपना कहूँ
दिल गैर का ही हो चुका
कहूँ दास्ताँ ये किससे मै
कहीं  कोई फ़साना बना न दे

                  मेरे इस दिए की रोशनी
                 मेरी हसरतों को जलाती है
                  मेरे दर्दे जिगर की खलिश कहीं
                    तेरे आशियाँ को जला न दे

सोमवार, 7 दिसंबर 2015

तारों की चुनरिया



चमकने लगी मेरी तारों  की चुनरिया 
हीरे मोती जड़ी मेरी रंगदे चुनरिया 

            पिया मोरे तू रंगा दे 
            रंग में अपने तू सजा दे 

पास आके तेरे ख़्वाब सजने लगे 
दिल में उल्फ़त भरे गीत जगने लगे 
बहक न  जाएं हम तू ओढ़ा दे चुनरिया 

            पिया मोरे तू रंगा दे 
            रंग में अपने तू सजा दे 

डाली से गिरा एक मै तो इक फूल हूँ 
दुनिया की आँखों में मै तो शूल हूँ 
अपनाओ मुझे बरसूँ बनके बदरिया 

            पिया मोरे तू रंगा दे 
           रंग में अपने तू सजा दे 

 

तेरी खुशबु आने लगी है



सांसो में तेरी खुशबु सी आने लगी है 
फ़िज़ाओं में मस्ती सी छाने लगी है 

                हवाओं ने भेजा हे पैगाम तेरा 
                सरगम जिसे गुनगुनाने लगी है 

फूलों से पत्ते पत्ते से पूछा 
हवाएं भी संदेश लाने लगी है 

               भीगा बदन है बिखरी लटें है 
               चुनरिया मेरी लहराने लगी है 

सारे अरमां खो गए



सारे अरमां मेरे  खो गए दूर हमसे जो तुम हो गए

                 तुमने वादा किया पर निभाया नही
                 साथ मेरा भी क्या तुमको भाया नहीं
                  जाने क्यों तुम खफा हो गए
                 क्यों ये शिकवे गिले हो गए

दिल तो नाजुक ही था टूटना ही तो था
यूं इसे तोडना भी तो लाज़िम न था
दिल के अरमां मेरे सो गए
सपने वीरान से हो गए

                दिल दुखाया मेरा न मनाया मुझे
                मेरे नाजुक से दिल ने बुलाया तुझे
                दिल के टुकड़े मेरे हो गए
                रास्ते जो जुदा  हो गए 

रविवार, 6 दिसंबर 2015

विश्वास



एक सा दिल जब सबके पास होता  है
हर किसी पे क्यों नहीं विश्वास होता है

                 डूबते हुए को तिनका क्या बचाएगा
                 एक सहारे का मगर एहसास होता है

आदमी कोई कितना आम हो लेकिन
वो किसी के वास्ते तो ख़ास होता है

               गालियाँ देता है दुआएँ कोई देता है
               वो वही देता है जो जिसके पास होता है 

दिल तेरे नाम



इश्क ने तेरे दीवाना किया है
सबने हमें बदनाम किया है

                   दिल की बातें तो वो ही जाने
                   जिस तन लागे वो दर्द पहचाने
                   हमने तो दिल को थाम लिया है

तेरे रूप का कोई न सानी
ऐसी भई मै तो प्रेम दीवानी
मैने तो दिल तेरे नाम किया है  

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

पिया की डगर





चली में तो पिया की डगर को चली
मन में साँवरिया हुई मै बावरिया

                    चंचल  मन मोरा इत  उत डोले
                     पानी की गगरी खाए हिचकोले
                     तन  ये सम्भले न मन ये माने ना
                     राह चलत उलझी उलझी

वैरी झोंका जब जब आये
सर से चुनरी उड़ उड़ जाये
दिल कुछ बोले ना
घूंघट खोलूँ ना
नैनन की भरूँ मै गगरी

                  नैना मोरे भये है दीवाने
                  दिल का भंवरा गाये गाने
                    चंचल मन मोरा
                   पुलकित तन मोरा
                   राह तकत हुई मै बावरी

ज़रा आहिस्ता चल



दर्द की बारिश अभी है कम
ज़रा आहिस्ता चल
तुझसे मिलने और बिछुड़ जाने का गम
ज़रा आहिस्ता चल

                  मेरी आँखों में ना सही
                   उस रेहबर की याद लेकिन
                  उसकी आँखें भी हुईं नम
                  ज़रा आहिस्ता चल

न हो तू इस कदर खुश ऐ दिल
उनसे  मिल जाने के बाद
अब न कर रुसवाई का गम
ज़रा आहिस्ता चल

बुधवार, 2 दिसंबर 2015

सब लोग जान लेंगे




छोड़ो ये बाहें मेरी सब लोग जान लेंगे
क्या है तुम्हारे दिल में सब लोग भांप लेंगे

                    हम हो गए तुम्हारे फिर क्यों हमे सताते
                    दिल तुमको दे चुके है अब क्यों पास मेरे आते
                    हम खूब जानते है सब लोग क्या कहेंगे

केवल तेरी ख़ता है साजिश है तेरे दिल की
वरना न ऐसी हालत होती कभी हमारे दिल की
लेकिन ज़माने वाले बोलो तो क्या कहेंगे

                 कुछ तुम भी तो समझो आती मुझे शर्म है
                 रहने दो अपने दिल में तुमको जो भरम है
                 हम तो जुबां से अपनी तुमको न हाँ कहेंगे 

पिया माने ना




पिया ऐसे रूठे कि माने ना
दिल का क्या हाल जाने ना

                    आँखे क्यों भीग गईं
                   अँसुअन की बरसात से
                     दिल की लग्न मन की छुअन
                     सांसो की तपन तू जाने ना

ये पपीहा पी पी गाये
क्यों हूक जिया में जगाये
मन भंवरा उड़ उड़ जाए
कुछ तुम बिन भाए ना

                  सपने सब टूट गए है
                 बलमा जो रूठ गए है
                  दिल सम्भले बोलो कैसे
                  ये तो कुछ माने ना 

तेरा साथ




तेरा साथ हम तो न छोड़ेंगे सनम
उठाने पड़ें चाहे कितने सितम

                      तेरे लिए हमको है मरना  गवारा
                      जीना है क्या जब न हो तेरा सहारा
                       है पल वही प्यारा जहाँ संग तू सनम

तेरी वफ़ा का हमें  मिले जो सहारा
वो पल है सुहाना जीवन संवरे हमारा
खुशियो से भरदो तुम मेरा दामन 

मेरी तारों की चुनरिया



चमकने लगी मेरी तारों की चुनरिया
हीरे मोती जड़ी मेरी रंगदे चुनरिया

                पिया मोरे तू रंगा दे
                रंग में अपने तू सजा दे

पास आके तेरे ख्वाब सजने लगे
दिल में उल्फ़त भरे गीत जगने लगे
जाएं बहक  न हम तू उढ़ा दे चुनरिया

                 पिया मोरे तू रंगा दे
                 रंग में अपने तू सजा दे

डाली से गिरा मै तो इक फूल हूँ
दुनिया की आँखों में मै तो शूल हूँ
अपनाओ मुझे बरसूँ बनके बदरिया

               पिया मोरे तू रंगा दे
                रंग में अपने तू सजा दे


तेरी खुशबु आने लगी है



सांसो में तेरी खुशबु सी आने लगी है
फिजाओं में मस्ती सी छाने लगी है

हवाओं ने भेजा है पैगाम तेरा
सरगम जिसे गुनगुनाने लगी है

फूलों से पूछा पत्ते पत्ते से पूछा
हवाएँ भी संदेश लाने लगी है

भीगा बदन है बिखरी लटें है
चुनरिया मेरी लहराने लगी है

                 

सारे अरमां खो गए




सारे अरमां मेरे  खो गए ,  दूर हमसे जो तुम हो गए

                   तुमने वादा किया पर निभाया नहीं
                   साथ मेरा भी क्या तुमको भाया नहीं
                   ऐसे जाने क्यों खफा हो गए
                   होश मेरे भी तो खो गए

दिल तो नाजुक ही था टूटना ही तो था
यूं इसे तोड़ना भी लाज़िम न था
दिल के अरमां मेरे सो गए
सपने वीरान से हो  गए

                 दिल दुखाया मेरा न मनाया मुझे
                 मेरे नाजुक से दिल ने बुलाया तुझे
                 दिल के टुकड़े मेरे हो गए
                 रास्ते जो जुदा हो गए