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गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

पथ में मैं प्रकाश फैलाती

काश तुम गर लौट आते साजन
तुम्हारे संग लौट आता बचपन
वो  यादें सब तुमसे जुडी थीं
गुलशन में कलियां महकी थीं

तुम आते तो छंटता कोहरा
हवाओं ने रुख ऐसा मोड़ा
ज़ुल्मों के छाये हैं बादल
आ जाते तो होते ओझल

अश्रुधार जो हरदम बहती
तेरे आने से रुक जाती
सांसो की उठती गिरती लय
फिर से लयबद्ध हो जाती

जब तुम इस जीवन में आते
फूलों को मैं पथ में बिछाती
नैनो के मैं दीप जलाकर
पथ में मैं प्रकाश फैलाती
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 28 दिसंबर 2016

विश्वास की डोर

मैं आज  मंजिल को पाना चाहती हूँ 

हर मुसीबत को दूर करना चाहती हूँ 

तुम्हें पाकर मेरा विश्वास लौट  आया है 

मैं दरिया को चीरकर रास्ता बना सकती हूँ 

पर्वतों को भी लांघकर तुम तक आ सकती हूँ 

हवाओं का रुख बदलने  की सोच सकती हूँ 

तुम जो हाथ पकड़ो इस जहाँ को छोड़ सकती हूँ 

मैं तुम्हारे लिए दुनिया से भी लड़ सकती हूँ 

हर मुसीबत का सामना भी कर सकती हूँ 

मुझको जीवन में तुम्हारा सम्बल जो मिला 

अब मैं अपना किनारा मैं खुद ढूंढ सकती हूँ 

डर नहीँ लगता मुझे सागर की उठती मौज़ो से 

नहीँ डरती हूँ मैं अब समाज के भी थपेडों से 

अपने रास्ते के कांटो को भी  बुहार सकती हूँ 

सभी मजबूरियों के दामन को झाड़ सकती हूँ 

तुम कभी मेरे इस विश्वास को टूटने मत देना 

हर कदम पे साथ रहना  हौंसला देते ही रहना  

एक उसी विश्वास की डोर को मैं थामे हुए 

सारी दुनिया में अपना नाम कर सकती हूँ 
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

सपने हैं सपने

आसमां को तो सभी देखते हैं 

 ये किसी को भी मिलता नहीँ 

कभी ज़मी भी सितम ढाती है 

पैदावार भी यही बढ़ाती है 

यहीँ पर जन्म लेते हैं सभी 

मरके दफन भी होते यहीँ 

मिट्टी से मिट्टी का सफर 

ये ज़मी ही तो कराती है 

आदमी आकाश छूना चाहता है 

धूल पैरों से लिपट जाती है 

रास्ता रोकती हर ख्वाहिश का 

बड़े आशियां सपनों के सजाती है 

ये आसमां  रहता सदा  अछूता ही 

वक्त के आगे न किसी की चली 

कितनो  ने घुटने टेके हारे महाबली 

जाने  क्यों इन्सान नहीँ समझता 

क्यों ऊँचे ख़्वाब देखता रहता है 

जिनका टूटना ही यकीनी हो 

ऐसे सपने वो क्यों बुनता है 
@मीना गुलियानी 


जीना खुशगवार बन जाता है

ये तेरे कदमों की शायद आहट है 

तुमने ही द्वार पर दस्तक दी है 

हवा के झोंके से भी आई तेरी महक 

मेरी सांसो में जो घुलने लगी है 

एक सिहरन सी मेरे दिल में उठी है 

तुमसे मिलने की लगन  जग उठी है 

हवा ने पत्तों की बिछा दी चादर 

पाँव तुम अपना सम्भालकर रखना 

वहीँ पर कहीँ बिछा है दिल मेरा 

उसको तुम न कहीँ कुचल देना 

बड़े अरमानों से मैंने इसे संजोया है 

सिर्फ तुम्हारे लिए ही द्वार खोला है 

वरना दिल पे ताला लगा रहता है 

उदासी का पहरा सा उसपे रहता है 

तेरे आने से उमंगे दिल में जगीं हैं 

लम्हा लम्हा यूँ  तू जो मुझको मिला है 

तुम्हें  पाके जीना खुशगवार बन जाता है 
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 26 दिसंबर 2016

सुख के जनक बन जाओगे

सुख और दुःख दोनों का ही 
जीवन में जन्म भर का नाता है 
सुख को तो सभी अपनाते हैं 
पर दुःख न किसी को भाता है 
सुख तो केवल दो पल का साथी है 
दुःख से है जीवन भर का नाता 
सुख के पल को भी जियो जब 
 दुःख के संग भी तुम जी लो 
तब न तुम्हें ईर्ष्या होगी किसी 
अपने के सुखमय जीवन से 
न कभी निराशा होगी दुखमय 
अपने जीवन के विष पीने से 
जीवन का रथ चलता हर पल 
तुम पर ही निर्भर करता है 
तुम चाहो यदि जीवन सुखमय हो 
तो मन की कटुता को भूलो और 
भूलो अवसाद के हर  क्षण को 
हर दुःख के विष को पी लो 
जगादो अन्तस् की वेदना तुम 
फिर  संवेदना उभरेगी दुःख से 
उभर पाओगे  तुम दुःख भूल जाओगे 
फिर तुम सुख के जनक बन जाओगे 
@मीना गुलियानी 

रविवार, 25 दिसंबर 2016

मंजिल पाकर खुश रहूँगी

तुम कल वापिस चले जाओगे

सोचती हूँ फिर मैं क्या करूँगी

सुधियों को भूलकर जीऊँगी न मरूँगी

फिर से तुम्हारी ही प्रतीक्षा करूँगी

तुम्हारे न लौटने का दर्द सालता है

दर्द जब खत्म होगा तो क्या करूँगी

विरह की तपन तड़पाती है

विरह वेदना सिहरन बन जाएगी

तब मैं फिर क्या करूँगी

नयनों के कोरों से बहते अश्रुजल

जब भिगो देंगे तुम्हारा अन्तःस्थल

तब तुम्हारे इसी दिल में रहूँगी

फिर इंतज़ार किसका करूँगी

अपनी मंजिल पाकर खुश रहूँगी
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2016

फिर क्या कयामत होती

गर हकीकत में पूरे सारे ख़्वाब होते
सोचो फिर क्या कयामत होती

किसी के दिल में क्या है
ये तो ईश्वर ही जानता है
गर दिल सारे बेनकाब होते
सोचो फिर क्या कयामत होती

रहना खामोश हमारी भी आदत है
इसी वजह से सबसे निभाया है
गर हर बात के जवाब होते
सोचो फिर क्या कयामत होती

लोगों ने हमेशा हमको बुरा जाना
जहाँ से गुज़रे समझा  इक दीवाना
गर सच में हम खराब ही होते
सोचो फिर क्या कयामत होती
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

काहे प्रभु नाम न गाए

तेरा पल छिन बीता जाए
काहे प्रभु नाम न गाए

मनमन्दिर के पट तुम खोलो
मुख से अपने हरि हरि बोलो
कोई स्वांस न खाली जाए

दुनिया ये दो दिन का मेला
उड़ जाएगा हँस अकेला
तन मन तेरे साथ न जाए

मुसाफिरी जब पूरी होगी
चलने की मजबूरी होगी
खाली करनी पड़ेगी सराय

हरि पूजा में ध्यान लगा ले
भक्ति सुधा रस को तू पा ले
अंत ,में काम ये तेरे आये
@मीना गुलियानी 

नवदीप हम जलाएं

आज फिर सुबह से ठंडक बढ़ गई है

कोहरे की चादर भी उस पर पड़ गई है

रिश्तों पर भी मौसम की सर्दी पड़ गई है

चलो अपने प्यार की गर्माहट उसमें भरदें

मन की कड़वाहट मिटाके रिश्ते जीवन्त करदें

दूर करके विषमताएँ फासलों को मिटाएँ

होठों को बन्द करके इशारों से मुस्कुराएं

सब शिकवे हम भुलादें कुछ गीत नए गाएं

कुछ फिर से बने सपने संवेदना को जगाएं

अन्धकार को मिटाकर नवदीप हम जलाएं
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 20 दिसंबर 2016

तेरी याद में ही ये शाम है

आके इक नज़र तू भी देख ले
तेरे सामने मेरा हाल है
तू जो मुड़के देखले इस कदर
मेरी जिंदगी का सवाल है

मेरे हमनशीं मेरी जिंदगी
है तुझसे ही दिल में रौशनी
तुझे कैसे दिल से जुदा करूँ
तुझसे जिंदगी बेमिसाल है

मेरे दिल में तू है समा गया
तू मेरे जहाँ में यूँ छा गया
तेरे आने से ये शमा जले
तेरे  जाने से तो बवाल है

न करो यूँ दूर नज़र से तुम
 हो न जाऊँ मैं दुनिया से गुम
तेरी यादों से हो सहर मेरी
तेरी याद में ही ये शाम है
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 19 दिसंबर 2016

क्लान्त मन भूले दुःख सारा

तुम्हारे आँसुओं से ये धरा द्रवित हो उठती है
तुम जो हँस दो कली  मन की खिल उठती है

यूँ तो हँसने रोने का रंगमंच सा होता मंचन
तुम्हारे हँसने से लगता हमने पाया है कंचन

तुम्हारी आभा बहुत नैसर्गिक पावन उज्ज्वल
तुम्हें देखकर मन में हमारे होती कुछ  हलचल

तुम्हारा रूप निश्छल निर्मल मधुमास के जैसा
तारे भी झुककर देखें तुम्हें लगता है कुछ ऐसा

तेरी केशराशि चेहरे पे हवा से जब भी बिखरे
लगता है चाँद उतर आया धरा पर गलती से

प्रकृति ने तुम्हारा रूप खुद अपने हाथों से सँवारा
तुम्हें लखकर व्याकुल क्लान्त मन भूले दुःख सारा
@मीना गुलियानी 

दिलवालों के लुटते यहाँ ख़ज़ाने हैं

शोहरत की चाह में जिंदगी गुज़ारी हमने
 जीना चाहा तो मोहलत न मिली जीने की
रब ने नवाज़ा था हमें जिंदगी देकर
पर तब तमन्ना हमें न थी जीने की

अब लगता है हमें यूँ ही दुनिया से चल देंगे
कोई कांधा भी शायद हमें नसीब न हो
इस तरह जिंदगी गुज़ार दी है हमने
रफीक तो हम क्या ढूंढे शायद रकीब न हो

समंदर भी बड़ा बेपरवाह ही निकला
डूबना जब चाहा तो डूबने न दिया
जब जीना चाहा  तो तैरने न दिया
कितना वो  तेरी तरह बेदर्द निकला

दुनिया में हर शख्स के अफ़साने हैं
जिस्मो जा के ही सब दीवाने हैं
सिर्फ दौलत की हवस है सबको
दिलवालों के लुटते यहाँ ख़ज़ाने हैं
@मीना गुलियानी 

रविवार, 18 दिसंबर 2016

सभी अपने हैं कोई नहीँ पराया है

मुझे ज़माने में इस शोहरत की चाह नहीँ है

चाहती हूँ कि तुम मुझे पहचान लो

जो जैसा होता है वैसा ही अक्स ढूँढता है

पर मुझे अपनी औकात का पता है

यह मिट्टी ही अब मेरी पहचान है

ज़िन्दगी यूँ ही गुज़रती जा रही है

हार जीत के दोनों मुकाम तय करने हैं

सागर की गहराई से जीना सीखा है

जो चुपचाप अपनी मौज में जीता है

मुझे फरेब से सख्त नफरत है

वक्त के साथ रंग ढंग बदलते हैं

बचपन के सुहाने पल खो गए हैं

पहले हँसते कूदते इठलाते रहते थे

अब मुस्कुराते भी बहुत कम ही हैं

रिश्तों को निभाने में खुद को खो दिया

मेरी जिंदगी ने यही फलसफा सिखाया है

 जहाँ में सभी अपने हैं कोई नहीँ पराया है
@मीना गुलियानी 

अफ़साने वादी में छाये हुए हैं

हमने माना कि तेरे दिल में समाये हुए हैं
इक पल झलक दिखा  दो चोट खाये हुए हैं

गुलशन का हर फूल देता रहा है गवाही
गुंचे गुंचे में इसकी खुशबु फैलाये हुए हैं

तुझको पाया है अपने दिल की गहराईयों में
ज़माने से इस कदर हम तो घबराये हुए हैं

न दूर कभी मुझसे होना मेरे करीब आके
अफ़साने तेरे इस वादी में अब छाये हुए हैं
@मीना गुलियानी



शुक्रवार, 16 दिसंबर 2016

भरोसा करके तो देख

दुश्मन नहीँ हैं हम तेरे भरोसा करके तो देख
आज़मा ले चाहे जितना अपना बनाके तो देख

हर वक्त तेरे साथ खड़े रहेंगे हम भी
बचके दूर जाने न पायेगा जाके तो देख

तेरे मुस्कुराने से आती है जहाँ में रौनक
कुछ पल हँसी को चेहरे पे लाके तो देख

हम जहाँ में हर पल ढूँढा करते हैं तुझको
चेहरे को इक पल इधर भी घुमाके देख

इतनी मसरूफ़ियत भी अच्छी नहीँ लगती
कभी तू भी तो मेरी गली से गुज़र के देख
@मीना गुलियानी 

बू में असर न हो

दूरियों का कुछ मुझे गम नहीँ
अगर फासले न दिलों में हों
नज़दीकियाँ भी तब बेकार हैं
जो ये फासले जिगर में हों

तेरा जिक्र भी चला है यूँ
क्यों न बात इस नज़र से हो
तेरी गुफ्तगू भी रही बेअसर
दिन तो ढला पर सहर न हो

तू तो आज भी गरूर है मेरा
कैसी चश्म वो जो तर न हो
कैसा बागबाँ जो खिला नहीँ
कैसा फूल जो बू में असर न हो
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 15 दिसंबर 2016

हर पल को सुहाना बनाओ

तुम अपनी आँख में आंसू न अब भर लाना

दर्द को भी कहदो मेरे करीब अब मत आना

अब तो तुम केवल खुश रहना थोड़ा मुस्कुराना

कोई प्यार भरा नग़मा धीरे से तुम गुनगुनाना

जीवन का काम है चंचल लहरो  की तरह बहना

समय कहाँ ठहरता उसे धारा पर नाव सा चलना

चाहे जीवन में पतझड़ आये या बसन्त फूल खिलाये

सूरज की तपिश कभी सही न जाए कभी मन को भाए

तेरे फूल से नाजुक होंठो की हँसी कभी कोई न चुराए

हमेशा मुस्कुराते रहो  खुश रहो कुछ अच्छे गीत गाओ

खुशियाँ जीवन में बिखेरो हर पल को सुहाना बनाओ
@मीना गुलियानी


बुधवार, 14 दिसंबर 2016

मेरे साथ मेरा करीम है

तू जो आज मेरे करीब है
मुझे तुझपे कितना यकीन है

कभी दूर न था तू पास से
तेरा रिश्ता कितना अज़ीम है

ये जो लम्हे सारे गुज़र गए
मेरे हौसलों में यकीन है

मेरी धड़कनों में रमा है तू
मुझे खुद पे इतना यकीन है

तेरी रहमतें मुझ पर हुईं
मेरे साथ मेरा करीम है
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 13 दिसंबर 2016

याद तुम्हें भी आती तो होगी

साजन मेरी याद तुम्हें भी आती तो होगी
मेरी याद में आँख तेरी भर जाती तो होगी

ये हवा ये सब नज़ारे साजन तुमसे हैं
ये महक गुलशन बहारें साजन तुमसे हैं
फूलों की खुशबु तुम्हें महकाती तो होगी

ओ रे तू भँवरे नगरिया उनकी जब जाना
मेरा भी सन्देश पिया को जाके पहुँचाना
याद मेरी दिल उनका तड़पाती तो होगी

प्यार की सारी वफायें तुमसे ही रोशन
तुमसे ही दिलकश नज़ारे तुमसे जग रोशन
चाँदनी लोरी गाकर तुमको सुलाती तो होगी
@मीना गुलियानी 

मनवा है बेचैन

साजन तेरी याद में मनवा है बेचैन
कबसे पंथ निहारूँ मैं
दिन कटते नहीँ रैन

इक पल दर्श दिखाओ तुम
इतना न तरसाओ तुम
बादल बन आ जाओ तुम
बरसो सारी रैन

साजन तुम कब  आओगे
कितना  मुझे तड़पाओगे
जीते जी मर जाएंगे
मन को न आवे चैन

निरखत हर पल द्वार मैं
बैठी पंथ निहार मैं
आवोगे जिस राह तुम
पथ में बिछादूँ नैन
@ मीन गुलियानी 

सोमवार, 12 दिसंबर 2016

साँसों की डोर पिया तुम संग बाँधी

साँसों की डोर पिया तुम संग बाँधी
तोड़ सके न इसको कोई
 आये कितनी  भी आंधी

तुम हो मेरे चन्द्रमा तो मैं हूँ तेरी इक किरण
मन है  व्याकुल तेरे बिन जैसे हो घायल हिरण
कैसे डोलेगा वो बन बन आएगी जब आंधी

तुम हो सूरज तो धरा मैं मुक्त हो आकाश तुम
चाहे मन मेरा उड़ूँ बन पक्षी हो जाऊँ मैं गुम
ढूंढें ये जग मुझको करूँ पीर तुम्हीं संग सांझी

तेरे लिए जीवन ये मेरा कट जाए तेरे प्यार में
तेरे बिन  कुछ भी न चाहूँ मैं पिया संसार में
रास्ता रोकेगी कैसे मुझको जग की आंधी
@मीना  गुलियानी

बुधवार, 7 दिसंबर 2016

माटी में सब मिल जायेगा

 दौलत  के  नशे में ना होना मगरूर
उलझना  न उनसे  जो हो बेकसूर
वरना सुख न कभी भी तू पायेगा
तेरा माटी में सब मिल जाएगा

तेरी ऊँची हवेली और ऊँचे महल
अर्श से आये फर्श पे होगा ऐसा पल
मत ले बददुआ ले दुआओं का फल
छोड़ बुराई का रास्ता नेकी पे चल
जो बोयेगा वही तू फल पायेगा

उड़े आसमान  पे तू पैसा तेरे पास है
 ये भी सोच गिनती की तेरी साँस है
नेकी बदी का हिसाब कर बुराई से डर
कर तू सबकी भलाई दूर कर बुराई
केवल भलाई का ही फल तू पायेगा
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

मन में पिया जी समाये गयो रे

मेरे मन में पिया जी समाये गयो रे 
कि मैं अपनी तो सुध बुध गंवा बैठी 
 आये आहट तो देखूं वो आये गयो रे 
मैं तो पलकों में उसको समा बैठी 

नित आने की बाट संजोती हूँ मैं 
मेरे आँगन की खोले किवड़िया 
जाने कब आयेंगे पिया जी मोरे 
अपने बालों में गजरा सजा बैठी 

किस गाँव गए हैं सांवरिया मोरे 
रूप उनका मेरे मन को भाया 
नैनो को मूँद लूँ तो दर्शन करूँ 
अपने दिल में उसे मैं बसा बैठी 

उसकी खुशबु लिए पुरवईया चली 
मेरा आँचल भी उसने उड़ाया 
छाई बदरी भी काली  बरसने लगी 
झट आँचल में मुखड़ा छिपा बैठी 
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 5 दिसंबर 2016

दुखड़ा अपना किसको सुनाऊँ

सखी री उसका नाम ना पूछो
मैं कैसे बताऊँ हाय मैं शरमाऊं

दिल में छिपा है प्रीतम मेरा
आने से उसके आये सवेरा
पल पल उसकी याद में जागूँ
 ढूँढूँ उसे पर ढूँढ न पाऊँ

हर पल डोलूँ इत उत धाऊं
जीवन  अपना यूँ ही गवाऊँ
कोई तो बता दे मंजिल मेरी
मैं तो बावरी खोज न पाऊँ

उसका पता न कोई खबरिया
जाने कहाँ गए मोरे सांवरिया
खोजा मैंने तो सारी नगरिया
दुखड़ा मैं अपना किसको सुनाऊँ
@मीना गुलियानी 

रविवार, 4 दिसंबर 2016

तुझसे मेरा जग रोशन है

दिल में बसा है मेरे अब तू कण कण में स्पन्दन है 
रोम रोम तेरा नाम पुकारे तू ही तो अन्तर्मन में है 

तुझसे ही तो संगीत है मेरा तू ही मेरी सरगम है 
सांसों  में तू ही समाया तू ही दिल की धड़कन है 
मन की भावना में तू बसा है तुझको मेरा वन्दन है 

अस्ताचल की किरणों में तू लहरों में तेरा गान बसा 
मन उपवन का फूल भी तू है तुझसे ये संसार बसा 
हर रचना से तू मुझे प्यारा तू ही तो मेरा दर्पण है 

मेरी इच्छा को तू जाने क्या चाहूँ मैं इसके सिवा 
दिल तेरा ही दर्शन मांगे कुछ न मांगू इसके सिवा 
 नज़रों में तू ही समाया तुझसे मेरा जग रोशन है 
@मीना गुलियानी 

दिल में मेरे मुस्कुराता है

मेरे दिल तू ज़रा धीरे से धड़क
उसका पैगाम आता है 
पवन तू भी ज़रा धीरे से चल 
कोई गुनगुनाता है 

हवा उसकी खुशबु लेके चली 
घटा भी झूमके बरसने लगी 
मुझको करना है उसका इंतज़ार 
वो जो मेरी नगरिया आता है 

मुझको छूने लगी है उसकी परछाई 
दिल के कोने में बजती है शहनाई 
 उमंगें दिल में उठी बज उठे हैं तार 
 वो जब  दिल में मेरे मुस्कुराता है
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 3 दिसंबर 2016

जैसा चाहो वैसा बन जाऊँ

हो सकती मेरी भी ये हार नहीँ
 आज तुम प्रबल हो जीवन में
मिला  सब पाया जो चाहा तुमने
क्या हुआ मैं व्यथित रहा मन में

                                          किन्तु कोई ग्लानि नहीँ मेरे मन में
                                          जीवन  में कई जीते तो हारे भी कितने
                                          मानते सुख पाने को विजित होने में
                                         मैं चाहूँ सुख अपना सब कुछ खोने में

 तुम्हारा बन पाऊँ क्या अपने आदर्श भुला दूँ
क्या तुम भी चाहते हो कि मैं ऐसा बन जाऊँ
वरना  हाथ बंटाओ मेरा कूदो  समरांगन  में
फिर देख लेना मुझको जैसा चाहो वैसा बन जाऊँ
@मीना गुलियानी


गुरुवार, 1 दिसंबर 2016

समसामयिक रचना

बैंकों के बाहर कतारों के नज़ारे बोल रहे हैं 

आज तो नदिया के भी धारे बोल रहे हैं 

 ज़लज़ला आया जिंदगी में महल डोल रहे हैं 

गरीबों को तो रोज़ का ही राशन जुटाना था 

अमीरोँ के तहख़ाने सारे राज़ खोल रहे हैं 

गरीब तो चुपचाप आधे पेट खाके सोते हैं 

जिनके पास ख़ज़ाने हैं सिंहासन डोल रहे हैं 

चर्चा है जग में धुआंदार हो रही जयजयकार 

जाने जनता किसे नेता चुने पहनाये वो हार 

कब ले करवट ऊँट  जाने कब क्या हो जाए 

अभी तो यह समरांगन है कौन वोट ले जाए 
@मीना गुलियानी