यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 31 दिसंबर 2018

मुझको याद आना नहीं

तुम अगर आ सको तो आ जाओ
आके फिर दूर मुझसे जाना नहीं

है फिक्रमंद जिंदगी अपनी तो क्या
तू मगर इसका रश्क खाना नहीं

 मेरा दिल गर तुम्हारे ख़्वाब में डूबे
तुम मुझे नींद से कभी जगाना नहीं

गर तुम कभी भी मुझसे दूर हो जाओ
कसम तुम्हें है मुझको याद आना नहीं
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 29 दिसंबर 2018

दीदार करता हूँ

तुमसे मिलकर ख़ुशी है मिल जाती
मैं तुम्हें अब भी याद करता हूँ

तुम्हें ख़्वाबों में देखता हूँ अक्सर
बिन तेरे मैं बहुत उदास रहता हूँ

सोचता हूँ गुज़री ये जिंदगी कैसे
तुझपे मैं जां  निसार करता हूँ

तुम बिन जिंदगी वीरान है मेरी
दिल के आईने में दीदार करता हूँ
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

उसे धिक्कारेगा

सोचती हूँ आज का मानव भी
कैसा  निर्मम ,निष्ठुर,कामपिपासु
 हो गया है उसकी अंतर्मन की दशा
उसे निम्नस्तर पर लिए जा रही है
 वह  जघन्य अपराध कर  बैठता है
उसकी आत्मा क्या मर चुकी है
केवल नारी देह की लोलुपता ही
उसे आकर्षित करती है उसमें उसे
माँ बहिन की छवि नज़र नहीं आती
नारी केवल भोग्या नहीं है
वो शक्ति स्वरूपा भी है
उसमे दया ,ममता,प्रेम भी है
वो अबला नहीं सबला भी है
पुरुष कामासक्त होकर असुर हो जाता है
उसे अपनी मनोवृति बदलनी होगी
नहीं तो केवल समाज ही नहीं
समूचा राष्ट्र इस जघन्य
कृत्य के लिए उसे धिक्कारेगा
@मीना गुलियानी

हाथ थामे और खो जाएँ

चलो हम सुंदर सा आशियाना बनायें
फूलों की सुरभि से इसे हम महकायें
शीतल बयार के झोंकों से प्रदूषण भगाएँ
इंद्रधनुष और तितली के रंगों से सजाएँ
तिनका तिनका चुनें और इसे बनायें
भंवरों की गुंजन से इसमें संगीत गुंजायें
बच्चों की किलकारियों से खिलखिलाएं
हर ग़म को अपने से दूर हम भगाएँ
सुन्दर सपनों की दुनिया में खो जाएँ
दिल में उमंगों के झरनें हम बहाएँ
खुशियों की तरंगों में हम झूम जाएँ
आकाश तक ऊँची प्रेम पींगें बढ़ाएँ
हाथों में हाथ थामे और खो जाएँ
@मीना गुलियानी

मंगलवार, 25 दिसंबर 2018

बसा लूँ तो क्या हो

बड़ी कातिल है ये तेरी बेवफाई भी
ये दिल किसी से लगा लूँ तो क्या हो

तेरे दूर जाने से जिंदगी वीरान है
चिराग दिल के जला लूँ तो क्या हो

दुनिया ने कितने ज़ख़्म मुझको दिए
उन पे मरहम लगा लूँ तो क्या हो

चाहती हूँ ज़िंदगी याद में तेरी कट जाए
मैं तुझे अपने मन में बसा लूँ तो क्या हो
@मीना गुलियानी 

जल रही होगी

चाँद छुप गया है बदली में
अब वो पहलू बदल रही होगी

सुबह के वक्त इन्हीं वादियों में
वो मेरे साथ चल रही होगी

घने पेड़ों की घनी छाँव तले
उसकी हसरत मचल रही होगी

शाम को झिलमिलाते सितारों तले
दबे पाँव घास पे वो चल रही होगी

रात होने को आई है अब तो
झरोखे में कंदील जल रही होगी
@मीना गुलियानी 

रविवार, 23 दिसंबर 2018

बिन मेरे गुज़र तेरा

दरिया किनारे पे भी प्यासा मैं रहा
तुम लहर बनकर मचलती ही रही

तुम मुझसे बहुत दूर चले आए
उम्मीद की शमा भी बुझने चली

मेरा तुम जिक्र न करना किसी से
रह गया रिश्ता क्या अजनबी से

अगर ढूँढ लेते तो मंजिल भी पा जाते
तुमने ढूँढना चाहा ही नहीं पता मेरा

दुआ तुम करो निज़ात पाने की
हो न पायेगा बिन मेरे गुज़र तेरा
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 22 दिसंबर 2018

आ जाओ

मेरे  दिले नादाँ ने पुकारा तुमको
सदा तुम  सुनके इसकी आ जाओ

दुनिया से कुछ नहीं शिकवा है मुझे
तुमसे शिकवा है मुझको आ जाओ

वही एहसास वही कशमकश ज़ारी है
दिल की तिश्नगी मिटाने आ जाओ

जिस घरौंदे  को हमने  बसाया था
वो बिखर  न जाए कहीं आ जाओ
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

गीत ख़ुशी के गाएँ

आज सूरज तपा नहीं सर्दी ने जकड़ा बदन
सुबह की सर्द हवा ने बढ़ाई दिल की धड़कन

ठण्ड में याद आया हमको फिर गर्मी का मौसम
न थी ठिठुरन न इतने लबादे ओढ़ते थे हम

अब तो पानी पीते भी याद आती है नानी
सुबह पानी से अच्छी लगती चाय बनानी

सुबह हमेशा नहाने को चाहिए गीज़र का पानी
उसके बिना तो  ऐसा लगता शामत पड़ी बुलानी

अच्छी लगती मक्की की रोटी साग और गुड़ धानी
पुआ पराँठे पीछे छोड़े चाहे मुँह से टपके पानी

बच्चे धमाचौकड़ी करते घर से बाहर जाकर
हमको खाट है अच्छी लगती और हमारा बिस्तर

गर्मा गर्म पकोड़े और मूँगफली इतनी मन को भाए
चाहे जितनी भी हम खाएँ मन भूखा ही रह जाए

अगर धूप निकल आये तो जाड़ा हम दूर भगाएँ
सबसे प्यारा लगे ये मौसम गीत ख़ुशी के गाएँ
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

तलाश में बढ़ते चलो

जीवन इक बहता हुआ दरिया है
इसे बहने दो
सुख दुःख का मधुर मिलन होता है
उसे होने दो
मौजों को साहिल से टकराना होता है
उन्हें टकराने दो
तुम क्यों उदास मन लिए
गुमसुम से बैठे हो
जीवन से हार न मानो
नहीं तो टूट जाओगे
अथक परिश्रम करते चलो
मंजिल की तलाश में बढ़ते चलो
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 3 दिसंबर 2018

अगवानी में प्रतीक्षारत हूँ

फूलों से कहो -
अपने पराग  से सजाएँ पालकी
वृक्षों से कहो -
अपनी हरियाली से सजाएँ पालकी
आकाश से कहो -
चाँद सितारों से सजाएँ पालकी
बादलों से कहो -
इंद्रधनुष से सजाए पालकी
इस पालकी पर मेरी प्रियतमा जब आए
द्वार पे बंधनवार बांधे
सुहागिनें मंगलगान गाएँ
उसकी आरती उतारें
फिर वो देहरी लांघकर
मेरे अंतर्मन में प्रवेश करे
मैं पलकें बिछाए हुए
उसकी अगवानी में प्रतीक्षारत हूँ
@मीना गुलियानी 

रविवार, 2 दिसंबर 2018

हँसके सहती है

नारी है शमा की जैसी
जो सदैव ही है जलती
एक सांचे में है ढलती
जीवन प्रकाशित करती
कितनी यातनाएँ सहती
पर उफ़ न कभी करती
उसके दर्द को किसने जाना
किसने उसको पहचाना
वो रोज़ फ़ना होती है
मन ही मन में रोती है
देती है सबको खुशियाँ
हर ग़म हँसके सहती है
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 1 दिसंबर 2018

हम भी हँसे मुस्कुराएं

लगता है समुंद्र का पानी गहरा हो गया है
तेरा मेरा रिश्ता भी गहरा हो गया है
लोगों की निगाहें भी अब उठने लगी हैं
सितारों की आँखें भी झुकने लगी हैं
जुल्फों पे बादल का पहरा हो गया है

तमन्नाओं के सावन तो बरसते रहेंगे
फूल इन बहारों के महकते ही रहेंगे
गुलशन में हमेशा ही बहारें रहेंगीं
जिंदगी  का हर पल सुनहरा हो गया है

यादों से कोई कहदो अब वो लौट जाएँ
तमन्ना से कहदो वो महफ़िल सजाएँ
गुज़रे वो पल लौट आये हैं अब तो
चलो थोड़ा सा हम भी हँसे मुस्कुराएं
@मीना गुलियानी