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मंगलवार, 31 अक्तूबर 2017

न यूँ तुम गँवाया करो

दर्द अपना सभी से छुपाया करो
आँसुओं को न यूँ ही बहाया करो

होंठों पे हँसी यूँ ही छलकती रहे
ऐसा चेहरा सबको दिखाया करो

कौन सुने फरियाद दर्दे दिल की
बेरहम जहाँ को न बताया करो

हर तरफ जिंदगी में बिखेरो ख़ुशी
मिलें ग़म भी गर मुस्कुराया करो

शिकवे शिकायतें बड़ी बेमुरव्वत हैं
न इन पर अपना वक्त ज़ाया करो

हमेशा करो यकीं उसकी इमदाद पर
सब्र अपना न यूँ तुम  गँवाया करो
@मीना गुलियानी 

रविवार, 29 अक्तूबर 2017

सहस्रार निर्झर अन्तर

चन्द्रकिरण की ज्योत्स्ना से प्रकाशित है तन
प्रफुल्लित हुआ है देखो मेरे मन का भी उपवन

नभ के तारे चमक चमक कर मन को लुभाएं
अपनी रश्मि कणों  से चहुँ ओर प्रकाश फैलाएँ

बाल सुलभ हुआ आज मेरा प्रमुदित मन
वीणा सी झंकृत हुई तरंगित ये धड़कन

 कोई जैसे बुला रहा हो सोया भाग्य जगा रहा हो
त्वरित गति से कांपी धरती करने लगे पग नर्तन

नीला अंबर लगा झूमने बादल भी हर्षाने लगे
मन मयूरा नाच उठा गीत ख़ुशी के गाने लगे

भरा रोम रोम में अनुराग प्राणों का संचार हुआ
बरसों से प्यासी धरा में मधुमय मनुहार हुआ

अंतर्मन में गूँजे निनाद सुर अनहद बजे निरंतर
बरसी अमृत की धारा भी सहस्रार निर्झर अन्तर
@मीना गुलियानी



शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2017

अधिकार हमारा बाकी है

आहिस्ता चल मेरी जिंदगी
कुछ फ़र्ज़ निभाने बाकी हैं
कितना दुःख पाया है हमने
उसको भी मिटाना बाकी है

यूँ रफ्तार से तेरे चलने पर
अपने सब पीछे छूट गए
रूठों को मनाना बाकी है
रोतों को हँसाना बाकी है

,मेरी हसरतें पूरी हो न सकीं
कुछ ख़्वाब भी पड़े अधूरे हैं
जीवन में है कितनी उलझन
सबको सुलझाना बाकी है

कितने शिकवे इस रिश्ते में
मनुहार अभी तक बाकी है
मन के इस अवगुंठन पर
अधिकार हमारा बाकी है
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 25 अक्तूबर 2017

दिल पे घाव करते हैं

जब तेरी आँखों से दो आँसू छलकते हैं
मुझपे लम्हे वो नागवार से गुज़रते हैं

खुदारा इस लौ को अब तो बुझ ही जाने दो
मज़ारों पे रौशन चिराग अच्छे न लगते हैं

कितनी मासूमियत से वो पूछ बैठे हमसे
क्या ज़िन्दादिल इन्सा तन्हाई से डरते हैं

चलो जिन राहों पे तुम काँटे मुँह फेर लेते हैं
हम जैसे ख़ाकसारों के दिल पे घाव करते हैं
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 19 अक्तूबर 2017

सफर का मुसाफिर बनाया है

पैरों में सैंडल हो या जूते
पैरों के माप होते हैं
मिट्टी में मिट्टी बन जाते हैं
कोल्हू जब चलता है
चलते चलते घिस जाते हैं
जुर्म की इन्तहा तब होती है
जब वो पाँव बागी हो जाते हैं
जब पैरों की ज़ुम्बिश
कोई राग छेड़ देती है
सब कांप जाते हैं
मैंने पैरों को चलना सिखाया है
कंटीली वादियों में मिट्टी में
इस सफर का मुसाफिर बनाया है
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 16 अक्तूबर 2017

फिर मुस्कुराने लगी

जिंदगी और मौत की लड़ाई रूबरू देखी
 जिंदगी हावी कभी मौत का पलड़ा भारी
साँसें मेरी धीरे धीरे घुटने लगी
दिल की धड़कन मेरी रुकने लगी
काली बदरिया से मैं डरने लगी
बिजली चमकी तो सिहरने लगी
हवा से पत्ते भी खड़खड़ाने लगे
दिल को मेरे और भी डराने लगे
जाने फिर कैसे तुम पलटकर आये
जिंदगी को भी मेरी लौटा लाए
सांस धीमे से मेरी चलने लगी
दिल की धड़कन भी जादू करने लगी
जिस्म में फिर से जान आने लगी
जिंदगी मेरी फिर मुस्कुराने लगी
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 14 अक्तूबर 2017

होठों पे अपने हँसी लाना

मेरे द्वार पे तुलसी का पौधा है
जिसे बड़े चाव से मैंने सींचा है

देखो तो कितनी मंजरियाँ हैं खिली
तुम्हारे आने से उनको ख़ुशी मिली

पास ही उसके अमरुद की डाली है
जिसपे कूकती कोयल मतवाली है

सीताफल और अनार हो गए बड़े
तुमसे गुण सीखे हुए पैरों पे खड़े

इनकी आशाएं बलवती होने लगी हैं
कुछ कहानियाँ सी ये बुनने लगी हैं

देती हैं दलीलें मुझसे कुढ़ने लगी हैं
इन्हें दिलासा दो समझने लगी हैं

न हमसे यूँ उलझो इनकी भी सुनो
मत रूठो चुपके से ज़रा तुम हँस लो

  कुंठाएँ गुस्सा देहरी पे छोड़के आना
आओ जब होठों पे अपने हँसी लाना
@मीना गुलियानी

गुरुवार, 12 अक्तूबर 2017

अपनों का पता चलता है

हर एक आदमी खुद ही मरता है
वक्त और हालात कुछ नहीं करते
हमला और बचाव खुद ही करता है

प्यार आदमी को दुनिया में
रहने लायक बनाता है
इसके सहारे दुनिया विचरता है

मेरे भीतर घने बादल गरजते हैं
त्योहारों का चाव महकता है
अंग अंग नाच उठता है

कभी गिरो तो घबराना नहीं
औकात का पता चलता है
उठायें हाथ तो अपनों का पता चलता है
@मीना गुलियानी 

मोती पाते हैं जो हताश नहीं होते

जिंदगी में कभी भी निराश नहीं होते
तकदीर के तमाशे से नाराज़ नहीं होते

तुम लकीरों में कभी यक़ीं मत किया करो
लकीरें उनकी भी हैं जिनके हाथ नहीं होते

रिश्ते वो नहीं जो रोज़ बनते हैं बिगड़ते हैं
रिश्ते  टूटते हैं जिनमे एहसास नहीं होते

गर दुःख हर किसी का दिलों में संजोते
तो दुनिया में पत्थरदिल इन्सा न होते

हाथ खूबसूरत हैं जो किसी को दें सहारा
 भावनाहीन है जिसमें जज्बात नहीं होते

वक्त की रेत पर सब कुछ फिसल जाता है
सागर  में मोती पाते हैं जो हताश नहीं होते
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 10 अक्तूबर 2017

याद आती है

कुछ ऐसे आती है तुम्हारी याद
जैसे झील के उस पार नाव
बारिश की बूंदों में भीग जाती है
दिखती, सहमती ,ठहर जाती है

मुझे रहता है हर पल इंतज़ार
छूकर परछाई  चली जाती है
लगता है डरके सूरज से वो
यहीं कहीं पर छिप जाती है

 तुम्हारी आवाज़ को तरसता हूँ
तुम सपनों मेँ आती हो गाती हो
आँखों से छलके प्याले रीत गए
सुहाने पल बीत गए याद आती है 
@मीना गुलियानी



सोमवार, 9 अक्तूबर 2017

दिल को यूँ बेज़ार न कर

गुज़रे वक्त को फिर से याद न कर
तकदीर में लिखे की फरियाद न कर

वक्त जैसा  भी होगा वो गुज़र ही जाएगा
कल की फ़िक्र में आज को बर्बाद न कर

जिंदगी तो सुख दुःख के दो पहलू हैं
ख़ुशी के पल जी ग़मों को याद न कर

खोल मन की खिड़की अँधियारे को मिटा
आँसू पोंछ ले दिल को यूँ बेज़ार न कर
@मीना गुलियानी

शनिवार, 7 अक्तूबर 2017

राहते जां अब क्यों हो गए हैं

मेरे अलफ़ाज़ कहीं खो गए हैं
 क्यों खामोश  सब  हो गए हैं

 तेरी रहनुमाई दर्द का सबब बनी
आशना सभी बेगाने से हो गए हैं

जाने क्यों दर्द अंदर से सालता है
जख़्म दिल के फिर हरे हो गए हैं

क्यों इतनी कडुवाहट रिश्तों में घुली
दर्दे दिल जख्मों की  दवा हो गए हैं

नासूर से जख्म फिर रिसने लगे
बेकसी के आलम फना हो गए हैं

सुकूं इस दिल का जिसने लूट लिया
वही राहते जां अब क्यों हो गए हैं
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 5 अक्तूबर 2017

तेरी आँखों से छलक जाए

रोज़ सूरज यूँ ही निकलता है
शाम होने पर वो ढलता है
 धूप होती है साँझ होती है
जिंदगी यूँ ही  तमाम होती है

रात दिन जिंदगी के दो पहलू हैं
हर दिन रंग नए बदलते हैं
रात आनी है चाहे आ जाए
दिलों की कालिमा छंट जाए

गम की बदली सुबह में ढल जाए
तेरी खुशियों में चाँद लग जाए
जिंदगी तेरी फूलों सी महक जाए
ख़ुशी तेरी आँखों से छलक जाए
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 4 अक्तूबर 2017

हर आंधियों पे भारी हैं

ओ पंछियो वक्त तुम्हारी उड़ान पे भारी है
तुम्हारे हौसलों को परखने की आई बारी है

मैं तो जीवन की हर जंग लड़ता हूँ
मुझे बचाना उसकी जिम्मेदारी है

कैसे मैं मान लूँ कि जीवन की जंग हारी है
मेरी तो मौत भी इस जिंदगी पे भारी है

मैंने तो रोशन कर लिए दिल में चिराग
जो ग़मों की हर आंधियों पे भारी हैं
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 3 अक्तूबर 2017

वक्त थम जायेगा

खुद में डूबकर वक्त गुज़ारो गुज़र जाएगा
इसी बहाने खुद से परिचय भी हो जाएगा

बाहर के दीपक तो बहुत तुमने जलाए
 भीतर जलाओ तो उजियारा हो जाएगा

सबके गुण अवगुण को खूब परखा तुमने
झाँको भीतर खुद का अक्स नज़र आयेगा

तन को तो खूब महकाया उम्र भर तुमने
रूह को भी महकाओ सुकूँ मिल जाएगा

कभी वक्त मिले तो तन्हाई की सरगोशी में
धीरे से गुनगुनाओगे तो वक्त थम जाएगा
@मीना गुलियानी