यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, 7 अक्तूबर 2017

राहते जां अब क्यों हो गए हैं

मेरे अलफ़ाज़ कहीं खो गए हैं
 क्यों खामोश  सब  हो गए हैं

 तेरी रहनुमाई दर्द का सबब बनी
आशना सभी बेगाने से हो गए हैं

जाने क्यों दर्द अंदर से सालता है
जख़्म दिल के फिर हरे हो गए हैं

क्यों इतनी कडुवाहट रिश्तों में घुली
दर्दे दिल जख्मों की  दवा हो गए हैं

नासूर से जख्म फिर रिसने लगे
बेकसी के आलम फना हो गए हैं

सुकूं इस दिल का जिसने लूट लिया
वही राहते जां अब क्यों हो गए हैं
@मीना गुलियानी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें