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रविवार, 31 मई 2020

जून तुम्हारा स्वागत है यहाँ

जून तुम्हारा स्वागत है यहाँ
दिल की उमंगें हैं सब जवां
सुनलो दिल की तुम दास्तां
फूलों से महकती हैं घाटियाँ
दिल चुराती हैं तेरी मस्तियाँ
रंग भरे फूलों भरा गुलिस्तां
किसको अब होश है यहाँ
बिन पिए मदहोश सब यहाँ
सारा दुःख भूले हम हैं यहाँ
सुरम्य वातावरण है यहाँ
@मीना गुलियानी

रेत पर लिखा था कुछ

रेत पर लिखा था कुछ
वो पढ़ा न गया मुझसे
मिटा डाला लहरों ने उसे
 कोई कैसे पूछे तो उनसे
बता दिया कौन समझेगा
कैसे ये राज़ वो जानेगा
क्या है सबब  पहचानेगा
क्या ये प्रीत की कहानी है
रेत पे कोई बेजुबानी है
किसी की दास्तां पुरानी है
गर समझो तो समझाना
राज़ क्या है मुझे बताना
@मीना गुलियानी


खर्च कर दिया खुद को

खर्च कर  दिया खुद को
कुछ भी न मिला मुझको
यूँ वीरानों में भटकना पड़ा
तन्हाईयों में बसना पड़ा
खामोशी की सदा ही मिली
कोई ख़ुशी भी न हमें मिली
दिल को सदा बेकली मिली
आता याद हमको वो जमाना
हो सके तो तुम लौटा लाना
@मीना गुलियानी


बदलते ठिकाने -कहानी

आपने अक्सर सड़कों पर खासतौर पर रैड लाइट होने पर कुछ बच्चों को हाथ में अगरबतियाँ , खिलौने ,गुब्बारे लेकर कार के आस पास या यूँ ही पैदल चलने वालों के पास भी जाते हैं।   मुझे उनको देखकर इस बात पर ख़ुशी होती है कि ये लोग कम से कम भीख तो नहीं मांग रहे हैं।  वो आत्मनिर्भर बनना चाहते हैं।  तभी तो वो लोग  सामान बेचकर पैसे कमाते हैं।  शायद कुछ स्वयं सेवी संस्थाएँ ऐसे लोगोँ से जुड़ी हैं।  एक बच्चे जिसका नाम रामू था वो ऐसे ही जब कार रोकी थी तो गुब्बारे और खिलौने उठाके ले आया।  मुझसे बोला- दीदी आप गुब्बारे ले लो चाहे कोई खिलौना खरीद लो।  आज बहुत भूख भी लगी है मेरी कोई बोहनी भी नहीं हुई है।   दस रूपये में गुब्बारा और पचास रूपये में छोटी कार बेच रहा था।  मैंने वो दोनों चीजें खरीद लीं जबकि मुझे उनकी कोई आवश्यकता नहीं थी।  रामू बोल रहा था -दीदी आप बहुत अच्छी हो भगवान आपकी मदद करेगा। 

  उस दिन मेरा एक टेण्डर पास होना था जो ईश्वर की कृपा से हो गया। ईश्वर भी तो बच्चों के निष्कपट दिल में बसता है।    मुझे लगता है कि इन बच्चों को ऊपर उठने में हमें भी सहयोग उनका सामान खरीद करके कर सकते हैं।  रामू से पता चला था कि कोई आकर उन्हें ये वस्तुएँ बेचने को दे जाता है।   उसने हमसे भीख न माँगने की कसम ली है। पहले तो हम सब जो भी फुटपाथ पर आपको दिख रहे हैं सब भीख माँगते थे।  पर अब सामान बेचकर जो पैसे मिलते हैं उसमें से कुछ पैसे वो सामान के काटकर बाकी पैसे हमको लौटा देता है और दूसरे दिन के लिए वो और सामान दे जाता है।   इस प्रकार मुझे भी उससे यह जानकर अच्छा लगा कि मेहनत से कमाकर वो लोग अपना गुज़ारा करते हैं। 

रामू जैसे और भी कई बच्चों ने यही बताया।  फिर मैंने उनसे पूछा कुछ पढ़ते लिखते भी हो या नहीं।  रामू ने जवाब दिया- दीदी मैं और मेरा छोटा भाई टिंकू तो सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते हैं।  स्कूल से ही हमें एक ड्रैस पहनने को मिल जाती है और खाना भी स्कूल से मुफ्त मिलता है।   एक गुरूजी वहाँ आकर स्कूल वालों से पूछते रहते हैं।  कोई भी गरीब बेसहारा होता है तो उसकी मदद करते हैं। गुरूजी तो उन बच्चों का नाम लिखकर ले जाते हैं।  फिर वो स्कूल में पैसे भेज देते हैं।   पहले  तो जब भीख मांगते थे तब हम लोग अपने ठिकाने बदलते रहते थे।  क्योंकि पुलिस वाले भी हमें पीटते थे।   कभी कभी तो कुछ लोग हम लोगों को जेल में बंद कर देते थे पता नहीं क्यों। लेकिन अब हम लोग भी इज्जत से जीवन गुजारते हैं। मेहनत करते हैं और अपना पेट पालते हैं। 

तबसे मैं भी कभी कभी उधर से गुजरते हुए उनके साथ किसी का जन्मदिन हो , त्यौहार हो खुशियाँ बाँटती हूँ। उनके चेहरे पर जो सुकून ख़ुशी देखती हूँ तो मेरा मन भी बहुत ख़ुशी से भर जाता है।  इन गरीबों का सहारा बनने की कोशिश करती हूँ।  रामू को कभी उसके भाई के लिए भी स्कूल ले जाने के लिए कॉपी ,पेन्सिल,रबर,स्केल आदि देती रहती हूँ। कभी आप भी किसी की सहायता करें तो पायेंगे खुशी आपको मिल रही है। इनका कोई घर तो नहीं है इसी फुटपाथ पर ही सड़क के किनारे जिंदगी गुजारते हैं।  जहाँ इनका मुक़ददर ले जाता है वहीं अपना ठिकाना आसमां के नीचे बसा लेते हैं। 
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 30 मई 2020

निभाना पड़ेगा

जिंदगी कैसी भी हो निभाना तो पड़ेगा
चाहे हँसी मिले या गम गाना तो पड़ेगा
चाहे हो गम के अँधेरे बादल घोर घनेरे
कर  विश्वास तू उस पर होंगे तेरे सवेरे
 जिंदगी प्रेम सागर , दुख की गागर है
करके विषपान तुझको मुस्कुराना पड़ेगा
जिंदगी इक पहेली भी है ,सहेली भी है
बढ़ा दोस्ती अब  इसको निभाना पड़ेगा
बाँसुरी की तरह इसके सुर सजाना पड़ेगा
@मीना गुलियानी 

सारा रंग बिखर जाता है

सारा  रंग बिखर जाता है
तू नहीं कहीं नज़र आता है
दिल ये देख के घबराता है
घोर अँधेरा सा छा जाता है
संकट में दिल घिर जाता है
आँखों में तू सिमट जाता है
दिल को सुकूँ  आ जाता है
इंद्रधनुष सा बन जाता है
@मीना गुलियानी 

करोना-कहानी

 आजकल पूरा विश्व करोना संकट से जूझ रहा है। पहले से कहीं ज्यादा स्थिति विकट होती जा रही है।   भारत में तो इसे नियंत्रण में करने के लिए लाक डाउन भी कभी कभी सप्ताह भर कभी 21 दिन फिर बढ़ाते जाते हैं। अब 31  मई तक का है।  इससे मजदूरों पर भारी संकट है वो लोग दाना पानी का जुगाड़ करने में भी सफल नहीं हो पा रहे हैं।  कुछ दिहाड़ी के मजदूर तो पलायन कर गए।  कितने ही मर गए। सरकार ने भी करोना से निपटने हेतु बहुत से राहत पैकेज भी घोषित किये हैं लेकिन पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है। 

 डाक्टर , नर्स , सफाईकर्मी सभी दिन रात मरीज़ों की सेवा में जुटे हुए हैं।  न तो उन्हें दिन का पता है न रात का दिन रात मरीजों के लिए न्यौछावर  कर दिया। उनकी फैमिली भी है उसे अपना समय नहीं दे पाते हैं।  कुछ लोग तो सप्ताह भर से घर का मुँह तक नहीं देख पाए।   पुलिस भी अपना पूरा सहयोग दे रही है।  कुछ ज्यादा संवेदनशील इलाकों में भीड़ नहीं होने देती है।  जहाँ कर्फ्यू लगा होता है वहाँ तो पूरा रास्ता ही रोक दिया जाता है जो कहना नहीं मानता तो डंडे बरसाए जाते हैं। 

इन दिनों कुछ समाजसेवी संस्थाएँ भी मदद को जुडी हैं जिन्होंने मुफ्त में भोजन की व्यवस्था इन असहाय लोगों के लिए की है।  गुरुद्वारों में लंगर दिया जा रहा है।  देव दर्शन इन दिनों बंद है। यातायात भी पूरी तरह से ठीक होने में वक्त लगेगा।   धीरे धीरे लॉक डाउन खुलने पर हवाई जहाज़ , रेल, बसें चलाई जायेंगी। कुल मिलाकर इसी निष्कर्ष पर हम पहुँचते हैं कि इसमें पूरी स्थिति सम्भलने में वक्त लगेगा।   तब तक समाज में सभी एक दूसरे से कम से कम एक मीटर की दूरी में रहे और मास्क भी जब जरूरी हो लगाए।   हाथों को बार बार धोता रहे सेनिटाइज़र का प्रयोग करे।  सफाई और खानपान सही हो।  पानी भी गुनगुना पिए व् गरारे करे।  ऐसा करने से भी काफी बचाव हो सकता है।   घर में रहें सुरक्षित रहें। सरकार की तरफ से आरोग्य सेतु एप भी चलाई गई है जिससे कोई भी व्यक्ति खुद ही अपना परीक्षण कर सकता है।   गंभीर हालत होने पर फोन करने से एम्बुलेंस से उसे अस्पताल पहुँचाया जाता है। धीरे धीरे कुछ ऑफिस खुलने लगे हैं कुछ दुकानें भी खुलने लगी हैं। पूरी हालत तो सुधरने के लिए वक्त लगेगा। 
@मीना गुलियानी 

जाया हो जाते हैं हम

जाया हो जाते हैं हम
तो कुछ लोग टूट जाते हैं
कुछ खुद को नक्कारा
समझकर बिखर जाते हैं
कुछ फिर से उम्मीद से
जीवन में उमंग भरते हैं
फिर से नए  जीवन को
फिर से आरम्भ करते हैं
@मीना गुलियानी

एक अरेंज्ड विवाह - कहानी

एक अरेंज्ड विवाह में मुझे शामिल होने का मौका मिला।   आजकल इसका प्रचलन करीब 60 -70 प्रतिशत ही रह गया है।  अधिकतर लोग प्रेम विवाह करते हैं या मैरेज ब्यूरो द्वारा करते हैं।  अरेंज्ड विवाह में पुराने जमाने में तो यह काम नाई  या पंडित लोग किया करते थे।  वो वर पक्ष या कन्या पक्ष दोनों के लिए वर या वधू का प्रस्ताव लाते थे।  घर के बड़े बुजुर्ग सभी सहमति देते थे तो जन्मपत्री का कुंडली का मिलान होता था।   कुछ लोग पैसे भी पंडित जी को खिला देते थे ताकि वो जजमान से कहे कि 24 गुण मिल रहे हैं तो रिश्ता पक्का हो जाता था। फिर लड़का लड़की को दिखाने का प्रोग्राम होता था जो स्कूल परीक्षा की तरह होता था पास या फेल। उसके बाद सगाई पक्की होती थी फिर शादी का महूर्त निकाला जाता था।  कुल मिलाकर पाँच या छः  महीने का समय लग जाता था।   आजकल पंडित जी ज्यादा समय नहीं लगाते हैं पहली बार में ही वो जन्मपत्री वर वधू आदि सब परिवार के सामने बुला लेते हैं फिर हाथों हाथ ही रिश्ता ओके कर दिया जाता है।

हमारे मित्र के साले का अरेंज्ड विवाह का निमन्त्रण पत्र प्राप्त हुआ था।  हम वहाँ गए।  अभी दूल्हे को तैयार करके घोड़ी पर बैठाना था फिर बैंड बाजा लेकर कन्या के घर जाना था।   दूल्हे को सेहरा पहनाया गया ,शेरवानी पहनाई ,गले में रुपयों की मालाएँ भी डाल दीं।  अब उसे घोड़ी पर बैठाकर पहले मंदिर ले जाया गया।  उसके बाद सारे बाराती इकट्ठे होकर दूल्हे की घोड़ी के आगे बैंड की धुन पर नाचने लगे।   इस समय तो जिसको नहीं भी आता वो भी थोड़ा हाथ पैर चला ही लेता है। कई परिवारों के लोग ऐसे समय में मदिरा पान भी करते हैं जो उचित नहीं है। अब 7 बजे के स्थान पर 9 बजे तक ही नाचते कूदते लोग दुल्हन के मंडप पहुँचते हैं।  दूल्हे की आरती उसकी सास उतारती है और जीजा घोड़ी से नीचे उतारता है।  फिर तो जलपान की व्यवस्था होती है  तरह तरह के पकवानों के स्टॉल लगे होते हैं।  उसके बाद खाना होता है।  दूसरी तरफ दूल्हा दुल्हन की जयमाला होती है फिर वो भी खाना खाते हैं।  कुछ बाराती घर चले जाते हैं और कुछ लोग पूरी शादी करवाकर डोली लेकर ही जाते हैं।   हमने भी खाना खाया और फेरे चालू हो गए थे तो हम भी पुष्प वर्षा करने लगे।दुल्हन के पिता ने कन्यादान किया। दुल्हन की दूल्हे ने मांग भरी।   फिर विदाई का समय आया।  दुल्हन सभी से गले मिलकर रोई और उसे फिर दूल्हे की कार में बिठाकर कार को दूल्हे के घर के लिए रवाना किया।

घर पहुँचकर दूल्हे की माँ ने दोनों की आरती उतारी और दुल्हन का गृह प्रवेश हुआ। फिर कुछ पूजा हुई और एक परात में थोड़ा दूध , फूल और पानी डालकर उसमें एक अँगूठी डाली गई और दुल्हन और दूल्हे को कहा गया जो पहले अँगूठी खोज लेगा वो जीतेगा और वो ही पूरी जिंदगी भर हावी रहेगा। इस गेम में बहुत मज़ा आता है। अब शादी तो हो गई जो लोग दूर से आते हैं उन्हें मिठाई कपड़े आदि देकर विदा किया जाता है।  सुबह दुल्हन का भाई बहिन के साथ घर पर दूल्हे के साथ फेरा लगाने आते हैं।   इस प्रकार हमने भी अरेंज्ड विवाह का आनन्द लिया। इस तरह से शादी करने का बड़ा फ़ायदा यह भी है की दोनों परिवार वाले लोग शादी से पहले पूरी जाँच पड़ताल कर  लेते हैं कहीं  कुछ बात हो भी जाए तो आपसी रजामंदी से नतीजा सामने आ जाता है और संबंध टूटने से बच जाते हैं।  प्रेम विवाह में तो तलाक जल्दी हो जाते हैं।  कभी कभी सफल होते हैं।
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 29 मई 2020

उम्मीद के नादान परिंदे

ऐ मेरी उम्मीद के नादान परिंदे
तू हमेशा गगन में उड़ता रहे
होंसलों की उड़ान तू भरता रहे
हर मुश्किल आसान करता रहे
जीवन में उमंग तू भरता रहे
अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता रहे
अपने सपनों को पूरा करता रहे
@मीना गुलियानी 

चार पंक्तियों की कहानी

एक था गुल और एक थी बुलबुल
दोनों प्यार से रहते थे
बुलबुल को एक सैयाद ने पकड़ा
 दीवाना गुल मुरझाया
@मीना गुलियानी 

आफ़ताब ढल गया बातों ही बातों में -कहानी

सुरेश और मीता आज पूरे एक सप्ताह बाद मिल रहे थे क्योंकि वो पेशे से डाक्टर थे और अलग अलग जगह पर उनकी ड्यूटी लगी हुई थी।   वो रात दिन करोना के मरीजों की देख रेख कर रहे थे।  करीब हफ्ते भर से घर पर भी न जा पाए थे।  न रात की नींद थी न दिन को आराम था वैसे ही कुर्सी पर बैठे बैठे झपकी ले लेते थे।  थोड़ी चाय ले लेते जब फ्री होते थे।   खाने का भी कोई निश्चित समय यहाँ नहीं था।   जब थोड़ा वक्त मिलता था उसी समय खा लेते थे।

सुरेश और मीता दोनों कालेज में साथ साथ ही एम बी बी एस  कर रहे थे।  पढ़ाई खत्म होते ही दोनों डाक्टर बन गए थे और अलग अलग अस्पताल में ड्यूटी लग गई थी।  जैसे ही एक दूसरे के पास समय मिलता था तो एक डोरी से खिंचे चले आते थे एक दूसरे से मिलने के लिए।    इस बार तो पूरा एक सप्ताह बीत गया बिना मिले। आज दोनोँ को अवकाश मिला था इसलिए उन्होंने घर की बजाए बाहर घूमने का सोचा।  पहले वो एक पार्क में गए वहीँ थोड़ी गप शप की पर मन नहीं भरा।

 वैसे भी लॉक डाउन का माहौल था तो सुरेश ने मीता से बोला चलो आज मेरे घर पर चलते हैं।  पहले फ्रेश हो जाते हैं फिर कुछ खाने पीने का साथ साथ मिलकर बना लेंगे। सुरेश ने कहा तुम लोग तो रोज़ घर पर खाना बनाती हो चलो आज मेरे हाथ का बना खाओ।  मेरा दावा है की अँगुलियाँ भी चबा जाओगी।   मीता कहने लगी - अरे वाह इतना भरोसा है खुद पर।  चलो देखते हैं कौन अच्छा बनाता है। दोनों ने एक एक डिश बनाने का सोचा।  सुरेश तो पनीर की सब्जी में माहिर था और मीता को दाल मखनी बनानी पड़ी।   वाकई में मजा आ गया मीता खाते हुई बोली।  सुरेश ने कहा - वह मीता तुमने भी दाल बहुत ही लाजवाब बनाई है।   एक एक कौर एक दूसरे के मुँह में भी डाल रहे थे। अब काफी का दौर चला। 

 सुरेश ने बोला मीता अब तुम्हारी शादी के बारे में क्या राय है।  क्या बुढ़ापे में शादी करोगी।  मैं तो चाहता हूँ तुम जल्दी से मेरे घर पर शादी करके आ जाओ तो तुम्हारे हाथों से बना हुआ खाना रोज़ ही खाऊं।  मीता बोली अब जब मैं अपने घर जाऊँगी तो ममी से बात करके बताऊँगी नहीं तो तुम ही उनसे बात करके पूछ लेना।  तुम्हारी बात कभी उन्होंने टाली है।   अब देखते ही देखते आफताब ढल गया था बातों बातों में।  सुरेश ने मीता से अगले रविवार के दिन उसके घर पर आने का बोलकर विदा ली।
@मीना गुलियानी 

किनारा कर लिया

किनारा कर लिया हमने
दुनिया के रीति रिवाज से
झूठे इसके अलफ़ाज़ से
सहेंगे न अब जुर्म कोई
टूटेगी न हिम्मत संजोई
डिग सकेगा न इमां हमारा
मुझे है इक तेरा सहारा
@मीना गुलियानी 

हो अगर दिल में प्यार

हो अगर दिल में प्यार तो
जिंदगी हसीं हो जाती है
ग़म कोसों दूर हो जाता है
खुशियों की बहारें आती हैं
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 28 मई 2020

अपने खालीपन को भरते

पहले हम तेरी यादों से ही
 अपने खालीपन को भरते
अब तुझको पाकर जीवन
हम नित नवीन हैं करते
चरणों में तेरे स्वर्ग निहित
यही हम महसूस हैं करते
 @मीना गुलियानी 

वो गुलाबी फ्राक वाली लड़की - कहानी

कुछ साल पहले हमारे पड़ौस में एक ईसाई धर्म को मानने वाले लोग रहते थे।   उनके दो छोटे छोटे बच्चे भी थे। एक बच्चा तो तीसरी कक्षा में पढ़ता था और बेटी पहली कक्षा में पढ़ती थी।   वो बिल्कुल गोरी थी गोल मटोल सुंदर सी आँखें चेहरे पे गुलाबी रंगत थी।   दूर से देखो तो पूरी गुड़िया सी दिखती थी।  जब वो हँसती थी तो उसके गालों में डिंपल पड़ते थे। उसके हँसने पर मोती जैसे दाँत भी चमकते थे।  ख़ुशी की फुलझड़ी जैसे किसी ने छोड़ दी हो ऐसे वो खिलखिलाकर हँसती थी।   सबको उसने अपनी बातों से लुभाया हुआ था।  शाम को हमारे पोते के साथ भी बॉल खेलने आ जाया करती थी।  कभी कभी बाहर पार्क में दोनों खेल लेते थे।  दोनों ही हमउम्र थे और एक ही स्कूल में पढ़ने जाते थे।  सुबह स्कूल वैन आकर ले जाती थी और दोपहर में छोड़ देती थी।  उनका बेटा भी उसी स्कूल में उसके साथ ही जाता था। 

रविवार के दिन वो लोग चर्च जाया करते थे।  उस लड़की का नाम लिली था और बेटे का नाम डेविड था।   पढ़ाई में दोनोँ बच्चे अच्छे थे।  डेविड चर्च में पियानो बजाया करता था जो उसने अपने घर पर ही एक ट्यूटर से सीखा था।    मेरा पोता ड्रम सीखता था और स्कूल के प्रोग्राम में बजाता भी था।  लिली बहुत सुंदर गाती थी उसे डान्स करने में भी रूचि थी। जब वो डान्स करती थी तो उसकी गुलाबी फ्राक गोल गोल फूल जाती थी।   यह फ्राक पहनकर तो राजकुमारी लगती थी।   उन्होंने क्रिसमिस के दिन हमको घर पर पार्टी के लिए बुलाया था।   हम सब उनके घर फूलों का बुके और बच्चों के लिए चॉकलेट लेकर गए थे।   उन्होंने खुद अपने हाथों से ही घर पर बहुत ही सुंदर ड्राईफ्रूट वाला बेनीला केक बनाया था जो उन्होंने बड़े प्यार से हमको खिलाया। उसके बाद से हम लोग हर त्यौहार उनके साथ मिलकर मनाने लगे थे। 

हमने भी दीवाली की  शाम को उनको बुलाया था।पहले हम लोगों ने दीवाली की पूजा की थी फिर शाम सात बजे वो लोग सपरिवार आये थे।   वो भी बच्चों के लिए मिठाई लाये थे।   सब बच्चों ने मिलकर खूब फुलझड़ी , पटाखे , जमीन चक्कर आदि आतिशबाजी छोड़ी।  उसके बाद हमने खाना खाया। पनीर की सब्जी और दाल मखनी सभी को अच्छी लगी।   मीठे पीले चावल भी बनाये थे उसमें ड्राई फ्रूट डाले थे।  हम सबने दीवाली का त्यौहार खुशी से मनाया था। उस रात को लिली ,डेविड और मेरे पोते ने मिलकर एक गाने पर डान्स भी किया था।उसके बाद से हम लोग हर त्यौहार उनके साथ मिलकर मनाने लगे थे।  

इन बातों को चार पाँच साल बीत चुके हैं पर लगता है वो आज भी यहीं कहीं हैं और उनकी बिटिया लिली अभी अंकल कहती हुई भागी चली आयेगी।   पाँच साल पहले उनका यहाँ से ट्रांसफर पूना हो गया था।   उनके फोन आते रहते हैं।   ऐसे ही कुछ मीठी मीठी लिली की बातें आज भी उसकी याद दिला जाती है।   वो सबकी नकल उतारने में भी माहिर थी। अब तो सब स्मृतियाँ ही हैं जो हमारे दिलों में उनकी याद बनाये हुए हैं। 
@मीना गुलियानी 

कम से कम

कम से कम तेरी मोहब्बत का  सहारा मिल जाता
अगर ये तूफान नहीं आता तो किनारा मिल जाता
बहुत दुःख झेले हैं हमने दूरी में तुझसे अब तक
न था  कोई आसमां था न कोई छत थी जमीं पर
चल रहे थे तन्हा और तन्हाई ही तो हमसफ़र थी
तुझसे बिछुड़ कर हमे अपनी कोई सुध बुध न थी
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 27 मई 2020

आओ मिलकर

आओ मिलकर इक दूजे की थाम ले बाहें
हम दोनों ही कदम अब आगे को बढ़ाएँ
जीवन तो इक गहरा सागर है हम दोनों
 पतवार थामके इक दूजे को पार लगायें
सुख दुःख को साथ सहेंगे वचन निभायें
@मीना गुलियानी 

अपना ख्याल रखना -कहानी

राजेश के लिए उसके गुड़गाँव हैड ऑफिस से मैनेजिंग डायरेक्टर का फोन आया कि इस सोमवार से ही उसे इन्दौर वापिस जाना होगा अपनी ऑफिस में जाकर ड्यूटी सम्भालने के लिए।   अभी तक तो वह अपने घर लॉकडाउन से पहले ही आया हुआ था।  उसके आते ही दो दिन के बाद से लॉकडाउन हो गया था।  तबसे ही राजेश अपने ऑफिस का काम घर से ही निपटा रहा था।   सारे पत्र व्यवहार सब घर में ही अपने लैपटॉप के द्वारा कर रहा था।   इन्दौर में वो डिप्टी मैनेजर की पोस्ट पर काम कर रहा था।    जयपुर में राजेश की बूढ़ी माँ , पत्नी और एक प्यारा सा बेटा रहता है जिनसे मिलने वो महीने में समय मिलने पर एक दो चक्कर लगा लेता था।  अब करीब डेढ़ माह से वो जयपुर से ही ऑफिस का काम देख रहा था क्योकि कोई भी फ्लाइट या ट्रेन इन्दौर के लिए अभी उपलब्ध नहीं थी।  अब तो उसे वापिस जाना ही था क्योंकि लॉक डाउन भी समाप्त हो चुका था और बॉस का फोन भी आ चुका था।   

उसने अपना जरूरी सामान और कुछ कपड़े आदि बैग में रखे और नीतू अपनी पत्नी से कहा सुबह 6 बजे की फ्लाइट से रवाना हो जाऊँगा।  मुझे घर से तो 5 बजे कैब से एयरोड्रम जाना होगा।  सुबह राजेश अपने समय के अनुसार उठ गया।   नीतू ने भी उसका हल्का फुल्का नाश्ता बना दिया था वो उसने खाया और कैब लेकर रवाना हो गया।  बेटा अभी सो रहा था  और नीतू बाहर दरवाजे तक छोड़ने आई थी। उसने राजेश को जाने से पहले ही कई हिदायतें भी दीं थीं।   6 मास्क सेनेटाइजर भी रख दिए थे।    कुछ भी बाहर से मत खाना ऐसा अनुरोध भी किया था।   लॉकडाउन के दौरान थोड़ा बहुत खाना उसने घर पर खुद बनाना भी सीख लिया था। यही सब उसके लिए अच्छी बात थी कि बाज़ार के खाने से बच सकता था।   

अब वो इन्दौर पहुँच चुका था ऑफिस की गाडी लेने के लिए आई थी।  उसमें बैठकर वो सीधा ऑफिस पहुँचा। सारे ही लोग एक दूसरे से काफी दिनों बाद मिल रहे थे।  सबके चेहरों पर ख़ुशी के भाव थे पर कोई भी शेक हेंड नहीं कर रहे थे।   करोना की वजह से सभी सोशल डिस्टेंसिंग को अपनाये हुए थे।  राजेश ने अपने केबिन में प्रवेश किया।   उसके कक्ष में खूब फाईल इकठ्ठी हो चुकी थीं।   धीरे धीरे उनको निपटाना शुरू किया।   लंच टाईम तक 15 फ़ाइल निपटा चुका था।   अब सब लोगों ने खाना खाया।  राजेश का खाना तो उसकी पत्नी ने पैक करके दिया था।  उसने वो खा लिया फिर एक कॉफ़ी पी फिर वापिस अपने काम में जुट गया। 

पूरा स्टॉफ उसकी कार्यशैली से प्रभावित था।   ऑफिस वाले बड़े सम्मान की दृष्टि से उसे देखते थे। राजेश की पत्नी ने सुबह से तीन चार बार उसका हाल चाल पूछने के लिए और अपना ध्यान रखने को बोला।   उसने बोला मुझे पता है कि तुम बिलकुल आराम नहीं करते हो।   इसलिए ही मुझे तुम्हारी  चिंता है।   काम के साथ आराम भी जरूरी है।  जयपुर में तो मैं तुम्हें देख लेती थी वहाँ तो अपना ख्याल खुद ही रखना होगा।  समय पर खाना खा लेना।   मास्क लगाकर ही किसी से बात करना इत्यादि सारी  हिदायतें फोन पर दे डालीं।   राजेश ने कहा -तुम आराम करो मैं पूरा ध्यान रखूँगा। पति पत्नी का संबंध ही कुछ ऐसा भगवान ने बनाया है कि दोनों एक दूसरे के  बिना नहीं रह सकते पर विपरीत परिस्थितियों में दूर बैठे बैठे ही उनका ध्यान एक दूसरे की सुरक्षा पर केन्द्रित रहता है। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वो सबको खुशहाल रखे और इस महामारी से सबको बचाए। 
@मीना गुलियानी 

तुम समझते नहीं

प्यार की ये मूक भाषा तुम समझते नहीं
आँसुओं से लिखी गाथा तुम समझते नहीं
मोती की लड़ियों जैसे दिल को पिरो दिया
सांसों की सरगम की तारों को पिरो दिया
दिल की धड़कन बज उठेगी गूंजेंगे तार
राग छेड़ देंगे सुर ये सारे गायेगा संसार
@मीना गुलियानी

किस्मत अच्छी थी -कहानी

मुझे अक्सर दिल्ली किसी न किसी काम से जाना ही पड़ता है।  वैसे तो मेरा पीहर भी वहीँ है तो इसी बहाने सबसे मिलना भी हो ही जाता है।   वैसे तो हर बार टिकिट पहले से ही रिज़र्व करवा लेती हूँ लेकिन एक बार अचानक ही जाना पड़ा तो टिकिट भी लेनी थी और जाने में देरी भी हो रही थी।   मैंने कैब बुक कराई तो वो बीस मिनट तक तो आई ही नहीं।   आखिर हारकर मैंने बेटे को जगाया कि अब तो सिर्फ बीस मिनट में गाड़ी भी गाँधी नगर पहुँच  जायेगी तो मेरी डबल डैकर ट्रेन नहीं मिल पायेगी वो जल्दी से नीचे उतरा और गाड़ी स्टार्ट की  और पूरे बारह मिनट में हम गाँधी नगर स्टेशन पर पहुँच गए।    उसी ने फुर्ती से टिकिट भी ली और मुझे ट्रेन में सवार करा  दिया। 

  यह तो किस्मत अच्छी थी जो समय पर स्टेशन पहुँच गए थे नहीं तो गाडी छूट ही जाती।   अब जब दो दिन के बाद मुझे दिल्ली से वापिस आना था तो टिकिट तो मैंने जयपुर के लिए बुक करवा ली थी। शाम को सराय रोहिल्ला से करीब साढे पाँच के आसपास दिल्ली से जयपुर के लिए रवाना होती है।   उस दिन  दुर्गा पूजा की मूर्तियों को बंगाली लोग विसर्जन हेतु  लेकर जा रहे थे तो इस वजह से बहुत जाम लगा हुआ था।   घर से तो मैं बहुत जल्दी ही निकल पड़ी थी।मुझे बहुत ही घबराहट होने लगी थी जाम को देखकर पता नहीं समय पर पहुँच भी पाऊँगी या नहीं।यह तो किस्मत अच्छी थी कि  रास्ते में जाम होने के बावजूद  बिल्कुल समय पर पहुँची।  मेरे प्लेटफार्म की सीढियाँ उतरते ही गार्ड ने सीटी भी बजा दी और मैं जल्दी से ईश्वर का नाम लेते हुए चढ़ गई। 

  इस बार पहली बार ही मेरे साथ ऐसा हुआ कि  आते और जाते दोनों समय मेरी किस्मत अच्छी थी जो मुझे गाड़ी मिल गई।  वैसे तो मेरा यह नियम है कि कहीं भी जाना हो तो वक्त से कम से कम 20 -25 मिनट पहले ही पहुँचती हूँ। इस यात्रा के बारे में तो मैंने सभी को बताया था कि भगवान हमेशा ही साथ देता है और उनकी ही कृपा से किस्मत ने भी उस दिन मेरा साथ दिया जो समय पर पहुँच गई।  

@ मीना गुलियानी 

हम अगर कुछ कहते हैं

हम अगर कुछ कहते हैं
तो तुम खफ़ा हो जाते हो
ये सोचो कितने सितम
अनचाहे मुझपे ढाते हो
मतलब तुम कुछ न जानो
पर हमसे क्यों कतराते हो
हम पास में जब आना चाहें
उतने ही दूर तुम जाते हो
@मीना गुलियानी

मंगलवार, 26 मई 2020

सौदेबाज किस्मत -कहानी

गरीब इन्सान की जिंदगी में तो ठोकरें खाना ही लिखा है।   वो तो जबसे जन्म लेता है तबसे ही जिंदगी भर वो दुःख ही झेलता है।   दुःखों की गोद में पलता है , बड़ा होता है और हर समय ठोकरें खाने पर मजबूर होता है।  कोई उसका सगा नहीं होता क्योंकि आजकल रिश्तेदारी भी पैसों से ही निभती है। ऐसी एक दारुणकथा हरिया की है जो सोनीपत हरियाणा का रहने वाला है।  एक किसान परिवार से उसका संबंध है।  पिताजी किसान थे तबसे यही काम उसने भी विरासत में सीखा।

घर पर उसकी  बूढी माँ , पत्नी और दो बच्चे हैं।   पिताजी तो दो साल पहले ही चल बसे थे।   उसकी जमीन भी गिरवी पड़ी है साहूकार के पास  पिताजी की बीमारी में खूब पैसा लग गया था तो जमीन भी गिरवी करने की नौबत आ गई।  दो सालों से खेतों में भी अच्छी फसल नहीं हुई।   इस बार तो जो थोड़ी बहुत हुई तो असमय की बारिश और ओले बरसने के कारण सब नष्ट हो गई।   साहूकार ने उसे कोई खर्चा पानी के पैसे भी नहीं दिए  तो बच्चों को खाना कैसे खिलाए।   अब उसने भी सोचा कि शहर में कोई मजदूरी कर लूँगा।   उसके पड़ोस में राधे रहता था।  उसका भी हरिया जैसा ही हाल था।  दोनों बस में बैठकर शहर की तरफ जहाँ मकान बन रहे थे एक जगह पर दोनों मजदूरी पर लग गए।  जैसे तैसे गुज़ारा होने लगा वो घर पर कुछ पैसे भेज देता था फिर भी इतना ज्यादा भी नहीं मिलता था कि पूरा परिवार पेट भर खा ले।   कई बार तो हरिया खुद तो सत्तू खाकर और पानी पीकर ही अपना गुज़ारा कर लेता था पर घर पर पैसा भेजता था।   ईश्वर की लीला भी बड़ी विचित्र है उसका छोटा बेटा अचानक घर के बाहर  खेल रहा था तो गिर पड़ा।   काफी खून बह गया सिर में गहरी चोट लगी थी जो शायद अंदर की कोई नस फट गई थी इलाज भी गए कि कराया पर ठीक नहीं हुआ वो भी चल बसा।

कहते हैं कि गरीबी में आता गीला वो ही हालत हरिया की हो रही थी।  पहले ही खाने को जुगाड़ करने की जुगत में उसके सारे पैसे खत्म हो गए थे रहे सहे बच्चे की बीमारी में लग गए थे।   हरिया भी पेट भर न खाता था तो उसका दोस्त कहता था थोड़ी बीड़ी का दम भर लो फिर थोड़ा नशे से काम सही होगा।   अब उसको बीड़ी की लत भी लग गई।  शाम को सारे दोस्त दारु के ठेके पर मिलते थे तो एक दिन उसने भी दारु पी ली।   नशा ऐसा हुआ कि उसने खाना भी नहीं खाया।   अब ऐसा कई बार होने लगा कि वो नशे में रहता जब वो खाना नहीं खाता था। उसने सोचा कि इससे थोड़े पैसे बचेंगे पर ये नहीं पता था कि इस नशे के व्यसन ने उसकी सेहत खराब कर दी थी  अब उसको खाँसी आती थी।   कभी कभी क़फ़ भी आता था।   उसने कभी डाक्टर को नहीं दिखाया।  राधे के कहने पर सरकारी अस्पताल जरूर चला गया जाँच में टी बी की बिमारी पाई गई।   थोड़ा बहुत इलाज कराया फिर छोड़ दिया।  क्योंकि दिहाड़ी के काम से उसे दिखाने के लिए अस्पताल जाने के लिए समय नहीं मिलता था। रोग बढ़ता जा रहा था।

  उसकी किस्मत भी सौदेबाजी कर रही थी।  रही सही कसर लॉक डाऊन ने निकाल दी। दिहाड़ी के सारे मजदूरों ने अपने गाँव में पलायन करना शुरू कर दिया।   हरिया के पास तो न पैसों की कोई जुगाड़ थी न ही उसके खेत ही अपने थे।  बेचारा जाता भी तो कहाँ।  खुद वो अपनी बीमारी और घर के हालात से घबरा गया तो उसने निराश होकर आत्महत्या के लिए सोचा।  एक बारगी तो वो सर से पाँव तक काँप गया दूसरे पल सोचा जिन्दा रहेगा तो भी घर वालों के लिए बोझ बन जाएगा।  किस्मत ने उसे वापिस उसी रेल की पटड़ी पर छोड़ा जहाँ उसने अपने जीवन की इहलीला समाप्त कर दी।  किस्मत की ये सौदेबाजी उसे भी महंगी पड़ी अब उसकी पत्नी को भी बच्चे और खुद का पेट पालने के लिए घर घर जाकर लोगों की चाकरी करनी पड़ती थी और उनकी बुरी नज़रों का शिकार भी बनना पड़ता था। हरिया की पत्नी ने हिम्मत न हारते हुए अपने बच्चे को पढ़ाने के लिए सरकारी स्कूल में दाखिल करा दिया हालांकि गाँव के कई लोगों ने उसे रोका भी कहाँ से इतने पैसे लाओगी पढ़ाने के लिए पर उसने किसी की न सुनी।  उसकी मेहनत रंग लाई।  बच्चे ने दसवीं पास करके मैकेनिक का कोर्स किया और किसी गैराज में मैकेनिक का काम करने लगा।   अब उस बच्चे ने माँ का घर घर पर जाने का काम भी छुड़वा दिया।   इस तरह से उस बच्चे ने घर की काया पलट कर दी जिसका सपना उसकी माँ ने देखा था वो पूरा कर दिखाया।   आज उसके पिता की बरसी थी उसकी माँ ने कहा तुम्हारे बापू हरिया भी आज होते तो देखते किस्मत ने क्या सौदेबाजी हमारे साथ की है।
@मीना गुलियानी

आदत से वो मजबूर हैं

आदत से वो मजबूर हैं
रहते घमण्ड में चूर हैं
बहुत ही वो मगरूर हैं
रहते सबसे वो दूर हैं
खुद दर्शाते मसरूफ़ हैं
 निकलने से मजबूर हैं
आलस्य से भरपूर हैं
 झगड़ने में मशहूर हैं
लक्ष्य से कोसों दूर हैं
@मीना गुलियानी 

मैंगो शेक - कहानी

मैंगो शेक बचपन से ही मेरा प्रिय शेक रहा है।   इसे मेरी माता जी कुल्फी बनाने के लिए भी प्रयोग में लाती थी। फिर उसमे फलूदा और बर्फ डालकर खाते थे।   मैंगो शेक में तो हम ड्राई फ्रूट डाल देते हैं इससे इसका स्वाद बढ़ जाता है।एक बार सारे फ्रूट एक मीटिंग कर रहे थे और अपने अपने गुण बता रहे थे हमने भी कहा - चलो हम खुद ही ये सवाल मैंगो शेक से ही करते हैं।   कहो मैंगो शेक -  अपने बारे में कुछ  तुम मुझे भी तो बताओ कि तुमको कैसे हम ज्यादा उपयोगी बनायें।   इसका स्वाद कैसे बढायें।   इसके फायदे क्या हैं।  मैंगो शेक ने जब पपीता से कहा - मैं तो गर्मियों का  राजा हूँ।   सब लोग मेरा ही सेवन इन दिनों करना पसंद करते हैं।  इसे दूध में मिलाकर रोज मेरा शेक बनाकर पीने से मैं व्यक्ति का स्वास्थ्य ठीक करता हूँ।  अगर वो पतला है तो उसे मोटा भी कर सकता हूँ।   रक्त की वृद्धि करता हूँ।  खून साफ़ करता हूँ।   इम्यून सिस्टम ठीक करता हूँ।  रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक शक्ति को बढाता हूँ।

अब पपीता भी कहाँ पीछे रहने वाला था उसने बोला - मैं  भूख बढ़ाता हूँ।   पेट के अल्सर का भी उपचार करता हूँ।  खाना आसानी से पचाता हूँ।   पेट के रोगों में उपयोग में लाया जाता हूँ।   मौसमी और संतरा भी आगे आये और बोले - हम भी कुछ कम थोड़े ही हैं हर रोगी के शरीर में नई ऊर्जा जगा देते हैं।  मुख पे कांति  लाते हैं।  इस प्रकार अब अनार भी कहाँ पीछे रहने वाला था उसने भी आगे बढ़कर कहा - मैं तो सांस के रोगों और हृदय के रोगों में राम बाण का काम  करता हूँ।   सबसे आखिर में फिर बात मैंगो शेक पर आकर समाप्त हुई जो कि  सबने स्वीकार किया कि आम तो फलों का राजा ही है।  इसे हम खा सकते हैं इसकी आईसक्रीम भी बनाते हैं और शेक भी बनाते हैं।   हर उम्र के लोग इसे पी सकते हैं भूख शांत होती है।   ताकत आती है।  खून बढ़ता है। इस तरह से क्या क्या गुण  बताऊँ।   हम तो इतना ही कह सकते हैं कि कैसे भी इसका प्रयोग करो फायदे ही फायदे हैं।  खुद पी लो तब जान जाओगे कि मैंने सच बोला था।   एक बार पीने के बाद बार बार पीने की इच्छा होगी।
@मीना गुलियानी 

आँसुओं की चाशनी में

आँसुओं की चाशनी में
घुल गए हैं गीत मेरे
हे विधाता तुम बताओ
होंगे कब सुख के सवेरे
विधि के संताप ने तो
दिए हैं मुझे दुःख घनेरे
आज हरलो संताप सब
काटो सारे फन्द मोरे
आई तेरे द्वार याचक
बनके हे त्रिपुरारी मोरे
@मीना गुलियानी 

मैं दिल का बुरा नहीं हूँ -- कहानी

मैं दिल का बुरा नहीं हूँ - यह रोहित का तकिया कलाम है।   हर आधे घंटे बाद उसके मुँह से निकल ही जाता है।  वैसे भी रोहित बहुत ही अच्छा खाते पीते घर का सुंदर सजीला नौजवान है।   किसी प्राइवेट कम्पनी में सी ई ओ की पोस्ट पर काम करता है।   सब व्यक्ति उससे बात करना जुड़ा रहना चाहते हैं।   उसका रवैया बहुत अच्छा है। अपने मातहत कर्मचारियों से भी उसका व्यवहार बहुत अच्छा है।   समय की पाबंदी भी उसका गुण है।   उसे जो भी कहना होता है कर्मचारी के सामने कहता है उसके पीठ पीछे बुराई नहीं करता है।  नीना उसकी स्टेनो है वो भी बहुत सुंदर है लेकिन बहुत ही विनम्र और शालीनता से व्यवहार करती है। सौम्यता उसके चेहरे से झलकती है वैसे वो एक मध्यम परिवार की लड़की है  और अपने काम से काम रखती है।   लड़कों से ज्यादा बात नहीं करती। यही सारे गुण रोहित को बहुत पसंद हैं मन ही मन वो उसे चाहता भी है पर उसने कभी इज़हार नहीं किया।  वो एक अच्छे से मौके की इंतज़ार में था कि कब वो अपने दिल की बात उससे कहे।   एक दिन जब नीना बस स्टाप पर खड़ी बस का इंतज़ार कर रही थी तो अचानक पता चला कि आज तो बसों की हड़ताल है।  इतने में उसने देखा कि रोहित अपनी कार से गुज़र रहा था।  रोहित को पता चल चुका था कि आज हड़ताल की वजह से बस नहीं आयेगी।  रोहित ने अपनी कार उसके पास लाकर रोक दी और गेट भी खोल दिया बोला मैं तुम्हे ड्राप कर दूँगा।   नीना ने ज्यादा हील हुज्जत नहीं की और कार में बैठ गई।   रोहित कार में मिरर से उसका चेहरा देख रहा था उसमे बार बार संकोच जैसे भाव आ जा रहे थे।   नीना बार बार  अपना चेहरा रुमाल से पोंछ रही थी।   शायद कुछ नर्वस थी।

रोहित ने उसको बोला -नीना आराम से बैठो।  टेक इट इज़ी।   नीना ने कहा - मैं ठीक हूँ।   रोहित ने पूछा कहीं तुमको मुझसे कोई डर  तो नहीं लग रहा है।  मैं दिल का बुरा नहीं हूँ।  थोड़ा बहुत मज़ाक कर लेता हूँ कभी कभी जब ज्यादा बोर हो जाता हूँ।   ज्यादा देर तक मैं सीरियस नहीं रह सकता हूँ।   तुम भी कुछ बात करो कुछ अपने घर के बारे में बताओ ताकि सफर भी आराम से कट जाए।   नीना ने बताया कि उसके पापा किसी ऑफिस में हैड क्लर्क की पोस्ट पर काम करते हैं और ममी जी घर पर ही  रहती हैं।  मेरा एक छोटा भाई है जो स्कूल में जाता है अगले साल वो भी कालेज जाना शुरू करेगा।   अब रोहित ने कहा - तुमने मेरे बारे में तो कुछ पूछा नहीं खैर कोई बात नहीं मेरे पापा  भारत मंत्रालय में असिस्टेंट सेकेरेट्री हैं और ममी जी हाऊस वाईफ हैं।  घर का मैं ही इकलौता ममी का चहेता बेटा हूँ।  ममी जी मेरी शादी के बारे में सोचने लगी है।  वैसे रिश्ते भी आने शुरू हो चुके हैं पर मुझे कोई भी लड़की अभी तक पसंद नहीं आई।   हाँ जब मैं तुम्हारे बारे में सोचता हूँ तो तुम मुझे अच्छी लगती हो। अब नीना का घर आ चुका था।  उसने कार रुकवाई और चाय पीकर जाने को बोला उसने कहा मैं किसी दिन अपनी  ममी के साथ आऊँगा।

दूसरे दिन भी बस की हड़ताल खत्म नहीं हुई थी तो आज फिर रोहित से लिफ्ट लेनी पड़ गई।   लेकिन आज उसके मन में कोई घबराहट नहीं थी।  रोहित ने उसे ऑफिस ड्राप किया और बोला शाम को यदि बस न आये तो मैं घर पर ड्रॉप कर  दूँगा।   नीना ने कहा - जी ठीक है  और वह  कार से उतर कर अपने कमरे में चली गई।   अब शाम का वक्त होने वाला था।  रोहित कल की तरह उसके बस स्टॉप पर मिल गया।  नीना ने कार का गेट खोला और बैठ गई।   रोहित ने कहा - आज तो तुम नर्वस नहीं लग रही हो।   क्या मैं तुमसे एक पर्सनल प्रश्न पूछ सकता हूँ।  नीना ने कहा - पूछिए।  रोहित ने पूछा क्या तुम भी मुझे पसंद करती हो मैं तो जबसे तुम्हें ऑफिस में सीट पर काम करते हुए देखता हूँ तबसे तुम्हारा फैन बन चुका हूँ यदि तुम मुझे पसंद करती हो तो मैं अपनी ममी जी को लेकर तुम्हारे घर चाय पीने आ जाऊँगा और तुम्हारी ममी से तुम्हारा हाथ भी शादी के लिए मांग लूँगा। 

नीना ने कहा - जी यह बात सच है कि आपसे तो कोई भी लड़की विवाह करना चाहेगी क्योंकि आप हर तरह से योग्य पुरुष हैं लेकिन हमारा घर तो इस लायक भी नहीं है कि आपसे शादी की बात कर सकें।  हमारे घर और आपके घर के बीच तो जमीन आसमान का फर्क है।  मखमल में टाट का पैबंद नहीं लग सकता।  शायद मेरी ममी जी और आपकी ममी के विचार भी ऐसे ही होंगे।  आपकी ममी भी चाहेंगी कि बराबर के खानदान में रिश्ता तय हो।  वैसे यह तो मेरी राय है आप ज्यादा समझदार हैं।  रोहित ने कहा - तुम मुझे और सोचकर बताना मेरे बारे में तुम्हारी क्या राय है।  नीना बोली यदि आप मुझे पसंद हों और आपकी ममी न राज़ी हों तो आप क्या करेंगे। रोहित बोला  ममी को मैं मना लूँगा।   अब मैं तुम्हारे घर जल्दी  ही अपनी ममी के साथ अगले रविवार को आऊँगा और तुम्हारी ममी से तुम्हारा हाथ भी मांग लूँगा।   मुझे लगता है तुम मुझे निराश नहीं करोगी क्योंकि मैं दिल का बुरा नहीं हूँ  और दहेज़ के ख़िलाफ़ हूँ।  नीना ने कहा - ठीक है फिर मिलेंगे। 

 अब अगला रविवार भी आ गया और वायदे के मुताबिक़ रोहित अपनी ममी जी के साथ आया।  नीना ने भी घर पर अपनी ममी से सब बता दिया था।  जब रोहित की ममी ने रिश्ते की बात चलाई तो नीना की ममी ने कहा - हमारे पास कोई दहेज़ वगैरह देने के लिए नहीं है दो कपड़ों में ही लड़की का विवाह कर देंगे।   रोहित की ममी बोली आए आप तो कोई चिंता न करें क्योंकि भगवान की दया से सब कुछ है हमारे पास बस सिर्फ आपकी बेटी ही हम शुभ मुहूर्त निकलवा कर ले जायेंगे।  सिर्फ घर के ही चार लोग आ जायेंगे और कन्या ले जायेंगे फिर हम आशीर्वाद समारोह  अपने घर में करेँगे।   इस तरह सब बातें हो गईं अब नीना के पिता जी ने रोहित के हाथ में एक नारियल और ग्यारह रुपए दे दिए।  एक मिठाई का डिब्बा रोहित की ममी जी को दिया और इस तरह से नेग हो गया।  अब तो सिर्फ फेरे होने बाकी थे जो पंडित जी के अनुसार होने थे।  अब रोहित और उसकी ममी अपने घर लौट आए।  अब तो रोहित की ममी को भी शादी की जल्दी थी तो जल्दी ही एक सप्ताह के भीतर का ही मुहूर्त निकल गया।   शादी का दिन भी आ गया और सादगी से फेरे हो गए और रोहित की नीना जीवन संगिनी बन गई।   रोहित ने कहा अब बताओ मैं कैसा हूँ वैसे जैसा भी हूँ पर मैं दिल का बुरा नहीं हूँ और वायदे का पक्का हूँ।   नीना मुस्कुरा दी और रोहित ने उसके हाथों को अपने हाथों में ले लिया।   अब तो वो दोनों एक हो गए थे।
@मीना गुलियानी        

दूर ले जायेगी

दूर ले जायेगी हमको ये ज़िद हमारी
कुछ काम न आएगी ये होशियारी
अगर तूने न निभाई ये जिम्मेदारी
आ जायेगी जान आफत में तुम्हारी 
फिर न कहना मैं इक अबला बेचारी
घर को हमेशा स्वर्ग बनाती है नारी
ऐसे काम को न समझो तुम भारी
छोड़ो ज़िद अब तुम अपनी ऐ नारी
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 25 मई 2020

देखो मन का दर्पण देखो

देखो मन का दर्पण देखो
उसमें खुद का अक्स देखो
मन की मैल को धोके देखो
मन में फिर तुम डूबके देखो
मन है कितना पावन तुम्हारा
हर तरफ फैला है उजियारा
अनहद नाद बजे है भीतर
उसको भी तुम सुनकर देखो
@मीना गुलियानी 

बातूनी बिल्ली -कहानी

 कुछ वर्ष पूर्व मैंने एक किटी नाम की बिल्ली पाली थी।  मेरे घर में एक शेरू नाम का कुत्ता भी था।  लोग तो कहते हैं कि बिल्ली और कुत्ते की आपस में दुश्मनी होती है।  ये कभी भी दोस्त नहीं बन सकते हैं लेकिन मेरे घर में ऐसा नहीं था।  दोनों बहुत प्यार से रहते थे किटी थोड़ी ज्यादा ही शैतानी करती थी।   शेरू की खाने की प्लेट कभी अपने पास खींच लेती थी फिर धीरे धीरे उसका खाना भी चट कर जाती थी।  शेरू उसे डराता तो वो भी उसे जोर से म्याऊँ बोलकर डराती कभी पंजा मारती थी।  दूध और ब्रैड बिस्कुट चाव से खाती थी।   कोई मेहमान आता था तो उसके कान खड़े हो जाते थे और गुर्राती थी।  उससे हम समझे जाते थे कोई आया है।   वो हैलो कहना सीख गई थी।  शेक हैंड करती थी टाटा कहना भी आता था।  मुझे दूर से आते देखकर उसकी पूँछ हिलती थी ऐसे ही शेरू भी मेरा पर्स अपने गले में लटका लेता था।   दोनों ही मुझे गली से घर तक लेने व छोड़ने आते थे। जब कभी उसे पॉटी आती थी तो मेरे कपड़ों को मुँह से दबाकर खींचती थी यह कहने के लिए कि बाहर ले जाओ। घर को कभी गंदा नहीं करती थी। 

शेरू और किटी दोनों मस्ती से बॉल से खेलते थे।  रोज़ टब में नहाते थे उस टब में सेवलॉन की कुछ बूँदे मैं डाल देती थी।  जब वो नहा लेते तो टॉवल से पोंछ देती थी।   फिर खाना खाते और कभी टी वी  चलता था तो वो भी देखते थे।   ऐसा लगता था जैसे सब समझ में आ रहा है।  शाम को थोड़ी देर उनको बाहर पार्क में घुमा लाती थी।बाहर जाकर वो किसी से डरती नहीं थी।  मस्ती से चलती रहती थी।   बच्चों को देखकर खुश होती थी।   उनसे खेलती थी।  वो भी प्यार से उसके सिर और गले को सहला देते तो वह उनकी गोदी में लेट जाती थी।   उसे सिर सहलाने में अच्छा लगता था। उसे देखकर लगता था जैसे खूब बातें वो कहना चाहती है।  उसकी भाषा मूक थी पर मुझे समझ में आ जाती थी।   उसने चार और बिल्लियों को जन्म भी  दिया तब वो उनके पास रहकर रखवाली करती थी। कोई उन्हें छेड़ता तो मेरी तरफ देखकर गुहार लगाती कि उसे मना करो। कभी अपना मुँह मेरे कानों के पास लाती लगता था खूब बातें कर रही है लेकिन हर कोई उसकी बातें समझ न पाता था।  फिर वो असमय ही चल बसी पर उसकी छवि हमारे दिल में अंकित है।   उसकी मासूमियत भर चेहरा याद आता है। लगता है वो टाटा कर रही है। 
@मीना गुलियानी  

गुमशुदा रास्तों पर

गुमशुदा रास्तों पर तन्हाई मिली
फिर मुझे मेरी परछाई भी मिली
धीरे धीरे काफिला बढ़ता ही गया
राह में मुझसे कोई जुड़ता ही गया
सफर अब अन्जाना नहीं रह गया
मैं भी किसी के लिए बेगाना न रहा
जिंदगी के सफर में चुनौतियाँ होंगीं
समस्या का करो सामना हल होंगीं
@मीना गुलियानी 

सोचा तो था

सोचा तो था कि तुमसे मिलेंगे
मिलेंगे फिर क्या बात करेंगे
अब न कभी हम रूठा करेंगे
रूठें जो कभी मनाया करेंगे
 एक पल न जुदा हम रहेंगे
क्योंकि जुदाई सह न सकेंगे
तेरे बिना हम जी न सकेंगे
@मीना गुलियानी 

रविवार, 24 मई 2020

दिल से रंजिश निकाल दो यारो

दिल से रंजिश निकाल दो यारो
गिले शिकवों को भुला दो यारो
कल थे जो अपने बन गए सपने
उन सपनों को फिर जगा दो यारो
रिश्ते न टूटें अपने न कभी रूठें
रूठों को फिर से मना लो यारो
गया वक्त फिर न ये लौटेगा
आज के दिन ईद मना लो यारो
@मीना गुलियानी 

समय की रेत फिसलती हुई

समय की रेत फिसलती हुई
ये उम्र भी है ढलती सी हुई
कब तलक बोझ उठायेगी
इक दिन जुदा हो जायेगी
फिर अकेले ही चलना होगा
खुद ही जीना  मरना होगा
@मीना गुलियानी

और दोनों हँस दिए -कहानी

शमा आज गुमसुम सी रात के अँधेरे में बैठी थी।  उसकी मम्मी आई तो प्यार से पूछा क्या बात है।   आज तो बहुत ही उदास लग रही है।  क्या अरुण से फिर कोई झगड़ा हो गया है।  शमा एकदम तमक कर  बोली मम्मी आज के बाद तो नाम भी मत लेना कभी उसका।   मैंने भी तय कर लिया है मैं तो अब जिंदगी भर उससे बात नहीं करुँगी।  मम्मी पूछने लगी - बता मेरी लाडो क्या बात हो गई जो इतनी उससे तू खफा हो गई।  जो एक पल को भी अलग नहीं रहना चाहती थी। शमा बोली -आजकल वो बिल्कुल बदल गया है।  मेरी चोटी पकड़कर खींचता नहीं है।  कभी मुझे छेड़ता भी नहीं है।  कभी रास्ते में साथ नहीं चलता दो कदम आगे या दस कदम पीछे रहता है।   अब मुझे मोटो भी नहीं कहता।  सारी कुल्फी खुद ही गप कर  जाता है।  पहले तो वो ऐसा नहीं था बात बात पर झगड़ा करता था।  कुल्फी भी छीनकर खा जाते थे हम दोनों।  वो जब भी मेरी चोटी खींचता था और  
मोटो कहता था तो मुझे बहुत उस  पर प्यार आता था।   मैं तो उस पर झूठा रोब जमाती थी।   अब तो लगता है  वो किसी दूसरी लड़की को जो हमारे ही साथ आती जाती थी उसको पसंद करता है।  शिबू है  उसका नाम उससे ही बातें करता रहता है।   आप ही बताओ मुझे गुस्सा नहीं आएगा।

मम्मी बोली - अच्छा तो यह बात है तू उसको घर पर बुला लेना मैं उसे समझा दूँगी।   शमा बोली -नहीं मम्मी मैं खुद ही अपनी उलझन को सुलझाऊँगी।  दूसरे ही दिन शमा को अरुण सामने से आता हुआ दिखा तो उसने गुस्से से अपना मुँह फिरा लिया और अनदेखा कर दिया।   अरुण फिर से अपनी पुरानी वाली शरारत पर उतर  आया और उसकी चोटी खींच कर बोला मोटो आजकल तेरे को क्या हुआ मुझसे क्यों बात भी नहीं करती हो।   कालेज में नज़र भी नहीं मिलाती हो।  मुझसे कोई गलती हो गई क्या देवी जी कैसे मैं तुमको मनाऊँ कैसे रिझाऊँ।  बस एक बार मुस्कुरा दो तो दस रूपये वाली कुल्फी भी खिलाऊँ।   अब क्या था शमा तो खिलखिलाकर ज़ोर से हँस पड़ी उसे देखकर अरुण भी उसके कन्धे दोनों हाथों से पकड़कर हँस पड़ा।  इस तरह उन दोनों का गुस्सा काफ़ूर हो चुका था।  अब अरुण ने पूछा तुम्हें कुछ गलतफहमी हो गई थी क्या या मुझ पर से तुम्हारा यकीन उठ गया था जो इस तरह से बर्ताव कर  रही थी।  शमा ने खा- तुम भी तो शिबू के दीवाने हो गए थे।  अरुण जोर से ठहाके मारकर हँस पड़ा।  ओह अब समझा देवी जो को ईर्ष्या होने लगी थी।  शिबू तो मुझे सिर्फ ये बता रही थी कि उसकी दुबई में राज के साथ अगले महीने शादी हो जायेगी तब वो दुबई में शिफ्ट हो जायेगी।   इसलिए ही थोड़ा उसका मनोबल न गिरे मैं कभी कभी उससे बात कर लेता था लेकिन जो जगह तुम्हारी मेरे दिल में है वो तो मैं किसी और को नहीं दे सकता।  अच्छा मोटो अब तुम बताओ कुछ और भी तुम्हेँ मुझसे शिकायत है तो मैं अभी उसको दूर कर देता हूँ।   सच बात यह है कि तुमसे बिना बात किए नहीं रह सकता।  तुमसे दूर नहीं रह सकता।  मुझे लगता है जो मेरा हाल है वही तुम्हारा भी हाल है।   चलो अब तो कुल्फी खाते हैं ये कहकर दोनों फिर से हँस दिए और फिर से दोनों प्रेमी एक हो गए।
@मीना गुलियानी 

दुआ करो कि

सब दुआ करो कि
ईद मुबारक सबको
सबको मुरादें मिलें
सबकी झोली भरे
फूल खुशियों के खिलें
सबके बुरे दिन टलें
सब बिछुड़े हुए मिलें
सभी फूलें और फलें
वैर भुलादें गले मिलें
@मीना गुलियानी 

तुझे प्रीत पुरानी बिसरी - कहानी

रमा और उमेश बचपन के दोस्त थे।   साथ साथ खेले बड़े हुए अब कालेज की पढ़ाई भी साथ में ही कर रहे थे।  रमा पढ़ाई में हमेशा अव्व्वल रहती थी।   उमेश थोड़ा पढ़ने में रूचि कम रखता था।   उसके पिता जी भी कहते थे इसे कौन सा पढ़कर कलक्टर बनना है।   कालेज की परीक्षा होने के बाद मेरा कारोबार इसको ही तो संभालना है। रमा तो हमेशा पढ़ाई में पूरा ध्यान देती थी।   उमेश कभी कभी उसे टोक देता था थोड़ी देर आराम भी कर लिया करो।  जब वो सुना अनसुना कर देती तो उसकी चोटी खींच देता था।   फिर वो उसे पीटने के लिए उसके पीछे पीछे भागी रहती और वो बहुत आगे चला जाता।   रमा तो आधे रास्ते में ही बैठ जाती फिर वो वापिस आ जाता था।  इसी तरह छोटी मोती छेड़छाड़ तो चलती रहती थी.  खाना भी साथ में ही खाते थे।   कालेज में आते जाते भी साथ साथ थे।   घर वालों को इनके मिलने पर कोई आपत्ति नहीं थी क्योंकि दोनों ही मर्यादा में रहकर ही बातें करते थे।

एक दिन शाम हो गई थी लौटते हुए क्योकि कालेज में वार्षिक उत्सव का आयोजन था।   उसी में देरी हो गई थी। रास्ते में उमेश से पूछ बैठा था कि तुम कैसे लड़के से विवाह करना चाहती हो।   पल भर के लिए तो वह स्तब्ध रह गई।   कुछ सूझ नहीं पाया कि क्या उत्तर दे।   फिर शर्माकर कहा -जो बिल्कुल तुम्हारे जैसा हो उसी से मैं शादी करुँगी।   उमेश ने कहा - पगली मेरे जैसा तो मैं ही हूँ कोई और थोड़ी हो सकता है।   यदि कोई और न मिला तो क्या तुम कंवारी रह जाओगी।   शादी नहीं करोगी क्या वो बोली मैं तो मन में तुमको चाहने लगी हूँ और किसी की तरफ देखती भी नहीँ।   पता नहीँ ईश्वर को क्या मंजूर है। मन ही मन उमेश भी उसकी तरफ झुकाव रखता था पर उसने भी कभी अपना प्रेम उस पर जाहिर नहीं होने दिया था।

अब उमेश और रमा दोनों की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। रमा ने तो किसी फर्म में नौकरी के लिए फ़ार्म भरा था।   उसका रिजल्ट भी आ चुका था।   कालेज में वो प्रथम श्रेणी में पास हुई थी।   उमेश भी पास हो गया  था।   उमेश ने तो अपने पिताजी का व्यवसाय संभाल लिया था।   रमा का भी जिस फर्म के लिए फ़ार्म भरा था वहाँ से साक्षात्कार के लिए बुलाया था।   उमेश ने अपने घर से उसे बाहर निकलते हुए देखा था तो वह भी उसके पास जाकर बोला बैस्ट ऑफ लक।   रमा ने उसे धन्यवाद कहा और बोला शाम को मिलेंगे।   अब रमा को भी नौकरी के लिए चयनित कर  लिया गया।   शाम को उमेश ने उसे बाग़ में बुलाया था उससे पूछा दिन कैसा रहा।   उमेश ने कहा - मेरा तो आज का दिन बोरियत भरा था।   रोज तो हम मिलते रहते थे समय गुज़र जाता था।   रमा ने कहा -अब धीरे धीरे अपनी आदत सुधार लो।  रोज तो मैं नहीं मिल सकती हूँ।   कभी कभी दस पन्द्रह  दिनों में आने की कोशिश करुँगी।   वैसे तो मुश्किल ही है क्योंकि अब साथ पढ़ते नहीं हैं तो घर के लोग भी एतराज़ कर सकते हैं। 

 अब उमेश के रिश्ते की बाते  घर में होने लगीँ थीं।   धीरे धीरे चर्चा  उसके कानों तक भी  पहुँची।   उमेश अपने घर का इकलौता वारिस था तो उसके घर वाले चाहते थे कि कोई अच्छे घराने का रिश्ता मिल जाए तो उमेश की शादी करदें। उमेश से कुछ भी नहीं पूछा पंडित जी किसी की जन्मपत्री लाये थे और मिला ली और सगाई का दिन भी तय हो गया।   अब सगाई के दिन उमेश की सब बात पता चली जब उसकी माता जी ने कहा बेटा तैयार हो जाओ लड़की वालों को आज आना है सगाई का मुहूर्त है।  रमा के घर भी न्यौता भेजा गया था शाम को चाय पार्टी का प्रोग्राम था ,  सगाई के बाद। रमा का दिल तो रोने जैसा होने लगा  क्योंकि उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था की बचपन के दोनोँ साथी यूँ बिछुड़ जायेंगे। शाम को उमेश का रिश्ता भी तय होना था  वो तो बात करने पर उमेश को पता चला कि वो तो हकलाती है।   अब जब उसने घर पर कहा कि उस लड़की से वो शादी नहीं कर सकता वो तो हकलाती है।   लड़की के घर वालों ने खूब दहेज़ में कार इत्यादि देने का वादा किया था और इस बात को  छुपाया था।उमेश की माता जी ने भी पंडित जी से कहा आप इनसे मना कर दो।  हम ऐसी लड़की से उमेश की शादी नहीं करेंगे। उमेश की माता जी ने कहा यह तो अच्छा हुआ कि शादी से पहले सब पता चल गया।    रमा ने तो उमेश से शाम को आने से पहले फोन पर कहा  भी था तुमने तो कितनी जल्दी मुझे भुला दिया  जो आज सगाई करने चले हो।   चलो हम तो तुमसे कुट्टी कर  देते हैं।   उसके बोलने  में गले का रुँधा हुआ स्वर उमेश को सुनाई दिया।   उसे भी अपने पुराने वो साथ साथ रहने के पल याद आने लगे।     रमा ने उसे अपने प्यार के बारे में फोन पर बताया कि वो तो मन ही मन उसको ही अपना सब कुछ मानती है।   अब उमेश ने भी अपने घर पर माता जी को बताया कि मै रमा से शादी करना चाहता हूँ।  रमा के घर के लोग वहीँ मौजूद थे।   रमा की माता जी ने कहा हमारे पास तो सिर्फ ये लड़की ही है।   देने के लिए तो हमने इसे अच्छे संस्कार दिए हैं।   घर का सब काम कर लेती है।  उमेश की माता जी ने भी जब देखा कि उनका बेटा भी रमा को चाहता है  तो पंडित से कहा कि इन दोनोँ के नाम से लग्न देख कर बताना। दहेज का तो उन्हेँ कोई लालच नहीं था।

पंडित जी ने अपनी पत्रिका बाँची और बताया कि अच्छे गुण मिल रहे हैं।  अब रमा को भी उमेश से कोई गिला नहीं था कि उसके प्यार को उसने बिसरा दिया था।   उमेश की माता जी ने उन दोनों की सगाई करवा दी और चाय पार्टी का भी आयोजन हुआ।   अब दोनों के परिवार खुश थे।   उमेश को भी अपनी बिसरी प्रीत स्मरण हो आई थी जिसने पूरा माहौल ही बदल दिया था। उमेश और रमा फिर से एक हो गए थे।
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 23 मई 2020

थोड़े से सुख के लिए मानव

थोड़े से सुख के लिए मानव
 कभी हैवान भी बन जाता है
लोभ मिटता ही नहीं उम्र भर
एक रोग सा उसे लग जाता है
सारी उम्र गुज़ारता सपनों में
रहते अधूरे पूरा न कर पाता है
दो गज ज़मीन पाने को कभी
वो तो शैतान भी बन जाता है
कर  देता खून सभी रिश्तों का
ख़ुशी से वो फूला न समाता है
पैदा हुआ मिट्टी से उसी में ही
समाना है ये समझ न पाता है
@मीना गुलियानी 

आराम करो आराम का दिन है

आराम करो आराम का दिन है
रविवार का दिन है अपने संग है
खुशियों भरी सौगातों का दिन है
परिवार मित्र सब लोग साथ में हैं
ईद हो मुबारक मुरादों का दिन है
रंजिशें मिटा गले लगने का दिन है
@मीना गुलियानी 

ये ठंडी हवा का झोंका

ये ठंडी हवा का झोंका
दिल को महका गया
चुनरिया उड़ा ले गया
जियरा चुराके ले गया
जुल्फें बिखराके गया
बावरी मोहे बना गया
सपने वो जगा के गया
@मीना गुलियानी

भरदे चाय का कुल्हड़ - कहानी

रामू अपनी टपरी वाले ढाबे में चाय बेचता था।   चाय  तो वो कुल्हड़ में ही सबको पिलाता था।   बस एक बार जो उसके ढाबे में चाय पीने आ गया तो समझ लो हमेशा के लिए उसका मुरीद हो गया।   चाय तो हम सब लोग भी बनाते हैं और पीते हैं लेकिन उसके हाथों में न जाने क्या जादू भरा था कि सब उसकी चाय के दीवाने थे।  रोज़ ही सुबह ढाबा खुलते ही चाय पीने वालों की लाईन लग जाती थी।   एक तो चाय दूसरा उसका मीठा बर्ताव सच में 
जैसे मुँह में मिश्री घुली हो सोने में सुहागा जैसा काम करता था।   चाय चाहे वो एक कुल्हड़ 10 रूपये में देता था पर पीने वाले का पैसा वसूल हो जाता था। 

सुबह सवेरे आकर पहले वो झाड़ू लगाता फिर हाथ मुँह धोकर एक कप चाय बनाकर अपने ठाकुर जी को भोग लगाता था।   उसके बाद आम जनता के लिए चाय की बिक्री शुरू हो जाती थी।   उसकी चाय पास की दुकानों में,  बैंक में  भी जाती थी।   कुछ लोग तो उसके महीने भर के ग्राहक थे वो उनकी डायरी में चाय दर्ज करता जाता था।   उससे हिसाब में कभी कोई भूल चूक नहीं होती थी।   सब लोग उसकी ईमानदारी के कायल थे।   सुबह वो चाय के साथ उस दिन की खबरें भी सुनाता जाता था।   चाय पीने वाले का उसकी लच्छेदार बातों से रस दुगना हो जाता था।  एक दिन के लिए उसको जयपुर से बाहर किसी की शादी में एक दिन के लिए जाना पड़ गया तो दूसरे दिन सब लोगों ने उससे कहा भाई तुम तो कहीं मत जाया करो।   तुम्हारी चाय पीकर ही तो हम फ्रैश दिखते हैं नहीं तो सारा दिन आलस्य में ही बीतता है।   

रामू बड़े प्यार से सबके कुल्हड़ में मुस्कुराते हुए चाय डालते हुए बोलता जाता है बाऊजी ये तो आपका प्यार है वरना हम तो इस काबिल  कहाँ हैं। रामू की यही तो भोली अदाएँ सबके मन को भाती हैं।   सभी के मुँह से उसकी चाय पीने के लिए आर्डर देते समय  यही निकलता है रामू भाई  - भरदे चाय का कुल्हड़। 
@मीना गुलियानी

कितने दिन हुए

कितने दिन हुए तुमसे बिछुड़े हुए
ये विरही नैना भी व्याकुल हुए
निर्मोही तुमने क्यों नाता जोड़ा
 तड़पने के लिए फिर क्यों छोड़ा
कैसी प्रीत की अगन ये लगाई
ओ रे बलम तू निकला हरजाई
@मीना गुलियानी 

कितने दिन हुए

कितने दिन हुए तुमको देखे हुए 
हम तुम्हें देखने को तरस गए 
फूल भी खिलने को तरस गए 
बादल भी आँगन में बरस गए 
 नैना रिमझिम से बरस गए 
अकुलाये जियरा पाए न चैना
 निर्मोही सजना ढूँढे ये कँगना 
दर्श दिखाओ प्रीतम अब आओ 
काँपे हैं मोरे प्राण निकसे है जान 
धीर बँधाओ मोहे आन  बचाओ 
@मीना गुलियानी 

मानवता परमो धर्म: - कहानी

आज के इस युग में व्यक्ति में मानवता लुप्त होती जा रही है।   सब अपने स्वार्थ के लिए एक दूसरे की टांग खींचने में लगे रहते हैं।   जातिवाद पनप  रहा है  इन्सानियत खोती  जा रही है।   मानव के अंदर हिंसक प्रवृति ने जन्म लिया है।   उसकी मनुष्यता घायल हो चुकी है।   वो व्यभिचारी भी बन गया है।   अब तो पूरी सभ्यता को सुधारने के लिए ही शायद करोना महामारी आई है।   जब धरती पर पाप अत्याचार बढ़ते हैं तब प्रलय आती है।

इस महामारी ने सबको मानव के मूल्यों से परिचय करवा दिया है।   सबको भाईचारे का संदेश दिया है।   अब धर्म की दीवार किसी की सहायता करते समय आड़े नहीं आती।   उस समय सिर्फ मनुष्यता ही दिखाई देती है।   जब इतने ज्यादा लोग अस्पतालों में इस महामारी से जूझ रहे हैं हमारे देश के तमाम डाक्टर , नर्स  रात दिन उनकी सेवा कर रहे हैं।  सभी गली मोहल्लों के लोग हर घर से खाने पीने का सामान एकत्र करके गरीबों में बाँट रहे हैं।   गुरूद्वारे में लंगर चलाये जा रहे हैं जहाँ सारी  संगत मिलकर लंगर की सेवा कर  रही है।   इसी प्रकरण पर एक छोटी सी घटना मुझे भी याद आ रही है। 

मैंने कुछ मजदूरों को  देखा था जिनके साथ छोटे छोटे बच्चे भी थे वो धूप में रोज़ी रोटी की तलाश में फिर रहे थे।अचानक किसी सरदार जी की नज़र उन पर पड़ गई उन्होनें तुरन्त ही उन सबके लिए मुफ्त लंगर की व्यवस्था वहीँ पर कर  दी।   सबको प्रसादी मिली जबकि कितनी दूर तक उनको किसी ने कुछ नहीं दिया था।   एक दूसरे को सेवा करते देखकर बाकी लोगों में भी अब सेवा भाव जग गया है।  एक सेठ जी की तरफ से सबको आटा चावल के पैकेट मुफ्त में  बांटे जा रहे थे।  एक  गरीब औरत भी लाईन में लगी थी पर शक्ल से वो किसी मध्यम परिवार की लग रही थी वो आटा  चावल  कुछ पैसे या मूल्य चुकाकर ही लेना चाहती थी।   अब वो लोग भी समझ गए थे कि ये महिला इस समय कुछ ऐसी परिस्थिति होने के कारण ही लाईन में लगी थी इसलिए उससे कहा गया कि आप पचास रूपये में दोनों चीज़ें ले जाओ।   उसने ख़ुशी से पचास रूपये दिए और दोनों पैकिट उठा लिए।  घर पर जाकर जब उसने वो पैकिट खोले तो दोनों में सौ सौ के नोट  रखे हुए थे।   इस तरह से वो सेवा भाव रखने वाले लोग हर तरह से सबकी सेवा ताकि किसी को बुरा भी न लगे और ऐसे समय में उसे धन की भी आवश्यकता हो सकती है वो भी पूरी कर  सके।   इसी तरह से जरुरतमंदों की सेवा बिना किसी को बताए गुप्त रूप से कर रहे थे।

इस समय मानवता का धर्म यही है कि तन,मन,धन से जो भी गरीब परिवार का व्यक्ति जो भी जरूरतमंद हो जिसे दवा की जरूरत हो उसे दवा दिलाई जाए।   अस्पताल में पहुँचाने की व्यवस्था करवाई जाए।   मजदूरों के वेतन काटे न जाएँ। हर भूखे को भोजन मिले उसमेँ कोई जाति का भेद भाव न किया जाए।   इस समय तो सभी भरतीय हैं।   हमारे देश में डाक्टर, नर्स, पुलिसकर्मी ,सफाईकर्मी  सेवा में दिन रात एक कर रहे हैं।   सबसे बड़ी मानवता सेवा धर्म वो लोग निभा रहे हैं।  हमें उनका सम्मान करना चाहिए और पूरा सहयोग करना चाहिए।  इस आपदा की घड़ी में कंधे से कंधा मिलाकर चलना होगा तभी मानवता परमो धर्म:  सिद्धान्त अपना पायेंगे।
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 22 मई 2020

छुप नहीं सकते तुम

छुप नहीं सकते तुम  छुपा लो हमसे तुम चेहरा
दिल की हर बात बता देगा तेरा ये नकली चेहरा
@मीना गुलियानी 

वर्ण पिरामिड - कविता

मैं
दिल हूँ
जो धड़कता है
सिर्फ तुम्हारे ही लिए
पर तुम हो इससे बेखबर
मैं
हूँ दिल
इसमें हो तुम
होकर हम एक जां
हुए एक दसरे  में गुम
मैं
तेरी  कविता
बसी दिल में
धड़कन मैं तेरी बनकर
आ जाओ तुम नज़्म बनकर
@मीना गुलियानी

अनसुना कर दिया

तुमने मेरी बातों को अनसुना कर  दिया
कहो इससे तुम्हें क्या कुछ हासिल हुआ
सोचो अपने दिल में क्या ये अच्छा किया
गर मैं भी ऐसा ही करूँ जो तुमने है किया
तब तुम्हारा दिल दुखेगा क्यों ऐसा किया
@मीना गुलियानी 

कच्चे आम - कहानी

बचपन में मुझे कच्चे आम खाने का बहुत शौक था।  स्कूल से वापिस आते समय हम पाँच लड़कियों का ग्रुप जो एक ही मोहल्ले में रहते थे इकट्ठे आते थे।  रास्ते में एक बाग़ था जिसमें कच्चे आम के बहुत से पेड़ थे।   मेरी एक सहेली तो पेड़ पर चढ़ जाया करती थी।  फिर एक एक करके सबको वो गिन गिन  के बराबर कच्चे आम यानि कैरी दे दिया करती थी।   जब कभी वो हमारे साथ नहीं होती थी तो हम पत्थर मार कर कच्चे आम तोड़ते थे।   वो इतने स्वादिष्ट लगते थे कि पेड़ के पास पहुँचते ही हमारे मुँह में पानी आ जाता था।  उस बाग़ में सिर्फ कच्चे आम के ही पेड़ थे उसके साथ के दूसरे बगीचे में अमरुद और पपीता के फल के पेड़ थे।   लेकिन हम सब तो कैरी के शौकीन थे उधर नहीं जाते थे।  हमारी माता जी गर्मियों में कैरी का पन्ना बनाकर पिलाती थी।   कैरी की लौंजी भी पराँठे के साथ देती थी।   खट्टे मीठे कैरी के अचार का तो स्वाद बहुत अच्छा लगता था। 

एक दिन मैंने क़रीब 5  कैरी तोड़ी थी  तो मैंने सोचा इनको घर ले जाकर अपनी माता जी को दूँगी वो खुश हो जायेंगी।   बाकी सहेलियों ने भी ऐसा ही किया वो भी अपने अपने घर ले गईं।   अब क्या था सबकी घर पर खूब खिंचाई हुई।   अभी तक तो किसी को पता नहीं था कि हम लोग छुप छुप के चोरी करके कैरी तोड़कर रोज़ खाते थे।   अब सबके घर वालों को खबर लग गई थी।   सबने पहले तो डाँटा ये तो एक तरह से चोरी है और सबने एक अपराध किया है जिसका वो बगीचा है उसने कितनी मेहनत से इसे लगाया होगा तब जाके तीन चार साल के बाद फल आये होंगे जो आप  सबने तोड़ दिए।   सोचो उसको कितना बुरा  लगा होगा कि उसने कितनी मेहनत की और फल तोड़कर कोई और ले गया।   अगर वो माली आकर हमको बताता तो हमें और भी ज्यादा बुरा लगता।  आज के बाद फिर कभी वहाँ से बिना माली काका के पूछे बगीचे से कैरी नहीं तोड़ोगे।

हम सबने उस दिन से कसम खा ली कि आगे से बिना माली काका की इजाज़त के हम कभी भी कैरी नहीं तोड़ेंगे। अगले दिन शाम को आते समय हमने देखा माली काका खड़े मुस्कुरा रहे थे शायद हमारे घर वालों ने भी उनसे कुछ कहा होगा यह तो हमारे मन का चोर बोल रहा था।   माली काका चुप रहे हम बिना कैरी के जाने लगे तो उन्होंने सबके हाथों में एक एक कैरी खुद ही बड़े प्यार से थमा दी।   हमने भी फिर खुद ही उनसे पिछले दिनों की कैरी की चोरी के लिए क्षमा मांगी।   उन्होंने हम सबको प्यार से गले लगाया और बोले मैंने कैरी तोड़ते हुए तो आप लोगों  देखा था पर बच्चा समझकर छोड़ दिया था।   आज आप समझदार बच्चे बन चुके हो।   आगे से भी ऐसे ही बिना किसी की इजाज़त किसी की कोई चीज़ मत लेना नहीं तो उसे चोरी माना जाता है फिर उसे दण्ड मिलता है। 
@मीना गुलियानी 

तुम्हें क्या मिला

तुम्हें क्या मिला है मुझे इस तरह सता के
तुम्हें क्या मिलेगा आखिर ऐसे मुझे रुला के
मेरे जख्मी दिल से पूछो हाले दिल मेरा
छलनी हुआ ज़हर से दिए घूँट दो पिलाके
चाहा न मैंने कुछ भी इक सिर्फ तुम्हें पाके
@मीना गुलियानी 

इज़हार-ए - इश्क

शारदा और ममता दोनों एक ही कालेज की पक्की सहेलियाँ थीं।   उनके घर वाले भी अक्सर कहा करते थे कि भगवान करे इनकी दोस्ती सलामत रहे और एक ही घर में जिसमें दो भाई हों वहाँ इनकी शादी हो जाए। लेकिन आदमी कुछ सोचता है पर होता वही है जो मंज़ूरे खुदा होता है।   कालेज की पढ़ाई करते करते उन दोनोँ की दोस्ती भी विनय और रमेश जो कि किसी फ़र्म में इंजीनियर थे उनसे हो गई। कालेज की छुट्टी के वक्त दोनोँ अपनी गाड़ियाँ लेकर आ जाते थे और फिर थोड़ा बहुत सैर सपाटा हो जाता था।   विनय शारदा को चाहता था और ममता रमेश को चाहती थी। उन लोगोँ ने आपस में कभी भी अपने इश्क का इज़हार नहीं किया था।    सब यही सोचते थे कि जल्दी क्या है कह देंगे।   कई  बार कहते कहते देर होने से अंधेर हो जाता है।   यहाँ भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला।   हुआ यूं कि धीरे धीरे जितना वो आपस में बातचीत में खुलने लगे थे तो उन्हें लगा कि शायद वो दोनों उनके लिए नहीं बने हैं। 

अब इसका उल्टा हो गया शारदा को लगने लगा कि जैसे रमेश अब उसकी चाहत बनता जा रहा है उसकी लच्छेदार बातें सुनकर उसे अच्छा लगता था।   ममता को अब शारदा से ईर्ष्या होने लगी थी उसको लगा कि वो दोनों पर डोरे डाल रही है। उधर विनय के घर वाले भी विनय पर जल्दी से कोई लड़की पसंद करने का दबाव डालने लगे ताकि उसकी शादी हो जाए तो फिर वो विनय की बहिन गीता की शादी भी करें।   ममता भी असमंजस में थी।   रमेश का ट्रांसफर आगरा हो गया था दो महीने के अन्दर उसे नया पद संभालना था उसकी प्रोमोशन हो गई थी। जब चारों शाम को इकट्ठे मिले तो उन्होंने अपनी समस्या बताई।

रमेश ने विनय से पूछा यार तुम्हीं बताओ अपने माता जी पिताजी से क्या बात करूँ वो तो बहुत पीछे पड़े हैं जैसे शादी कोई खेल है। विनय ने जवाब दिया मेरे घर में भी यही बवाल है। क्योंकि मेरी बहिन गीता की भी शादी होनी है इसलिए वो मेरी शादी जल्दी कराना चाहते हैं।   रमेश ने पूछा फिर क्या सोचा।    कोई  लड़की पसंद आई क्या।  विनय ने कहा कि मुझे तो तेरी वाली ममता पसन्द आई है पर उससे कैसे कहूँ।   वो बोलेगी कि सारा दिन तो शारदा के साथ बिताते हो अब मुझे कैसे पसंद किया।   रमेश बोला यार मेरे साथ भी कुछ कुछ यही मन में चल रहा था पर तुमसे मैं कह नहीं पाया।   चलो आज हम दोनों ही मिलकर अपने अपने इश्क का इज़हार उन दोनों के सामने कर देते हैं क्या पता हम दोनोँ भी उनकी पसन्द हैं या नहीं। 

रमेश ने बहुत सकुचाते हुए शारदा से कहा - क्या तुम मेरे साथ शादी करना पसंद करोगी।   मैंने  इतने दिनों तक तुम्हारा व्यवहार देखकर ही तुमसे शादी करने का विचार बनाया है।   तुम्हारी हाँ होने पर ही आगे बात चलाने के लिए घर वालों से बात होगी। शारदा बोली - रमेश तुमने तो मरे मन की बात कह दी  जो  मैं आज तक तुमसे अपने प्यार का इज़हार न कर पाई वो तुमने कर दिया।   विनय ने अब ममता से  पूछा क्या तुम मुझसे शादी करना पसन्द करोगी।   ममता को भी विनय इन दिनों अच्छा लगने लगा था।   उसने भी शर्माते हुए अपनी चाहत का इज़हार कर दिया - मैं भी तुम्हीं को अपनी पसंद बना चुकी थी पर सोचती थी कहीं  तुम मुझे गलत न समझ बैठो कि  मैं रमेश के साथ घूमती थी अब तुमको कैसे अपना बना लिया।   खैर अब तो हम लोग इन दीवानों को बातें करने के लिए छोड़ देते हैं ताकि वो इत्मिनान से अपना इज़हार -ए -इश्क एक दूसरे से करें और फिर उनके घर वाली जल्दी ही इनकी शादी भी कर दें।
@मीना गुलियानी


गुरुवार, 21 मई 2020

नए जूते -कहानी

रामू एक होनहार लड़का था पर गरीब परिवार का था।   उसे खेलों में रूचि थी।   वो लम्बी दौड़ में हिस्सा लेना चाहता था लेकिन उसके पास दौड़ लगाने के लिए जूते नहीं थे।  एक ही जोड़ी जूते थे जो पता नहीं कितनी बार उसके पापा ने मोची से मरम्मत करवाकर उसे रोज़ पहनाकर स्कूल छोड़ आते थे।  उसे मालूम था कि अगर वो स्कूल की दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लेगा तो अवश्य जीतेगा।   घर की हालत उसे मालूम थी कितनी मुश्किल से उसकी माँ कितने  घरों के कपडे लाकर प्रैस करती थी।   पापा एक स्कूल के चौकीदार थे।   घर में यह बात बताकर वो उनको और ज्यादा परेशान नहीं करना चाहता था। 

अचानक ही एक अखबार में उसने एक विज्ञापन देखा जो बच्चा कुश्ती में जीतेगा  उसे पाँच सौ रुपए मिलेंगे।   उसने अपना नाम कुश्ती खेलने के लिए लिखवा लिया।   अब वो उसमें विजयी घोषित हुआ।   जब ईनाम दिया जाने लगा तो उसने अपनी एक इच्छा ज़ाहिर की कि मुझे इन रुपयों के बदले जूते दिलवा दिए जाएँ तो मैं अपने स्कूल की प्रतियोगिता में भी हिस्सा ले पाउँगा।   उस बच्चे के उत्साह को देखते हुए उसके लिए नए जूतों की व्यवस्था की गई।   अब वो उनको पहनकर जब घर पर आया तो पहले उसके माता पिता जी ने उसे बहुत डाँटा कि इतने महँगे जूते तुमने कहाँ से चोरी किये।   तुमने कहाँ से पैसे चुराए।   जब उनको असलियत पता चली तो उन्होंने अपने बच्चे को प्रेम से गले लगा लिया।   उनकी आँखों से पश्चाताप के आँसू बहने लगे कि अपने बच्चे पर चोरी का आरोप लगा दिया था।   बच्चे ने उनको चुप कराया और बोला मैं आप लोगों को परेशान नहीं करना चाहता था इसलिए आपको मैंने आपसे नहीं खा था नए जूते लाने के लिए।   अब तो वो ख़ुशी से अगले रविवार का इंतज़ार करने लगा जब प्रतियोगिता में उसे हिस्सा लेना था।   अब वो दिन भी आ गया और उसके माता पिता भी उसे भागते हुए देखना चाहते थे।   वो भी गए और वो प्रथम स्थान पर विजयी घोषित किया गया। 
इसलिए हिम्मत और मेहनत तथा लग्न से सब हासिल हो सकता है। 
@मीना गुलियानी 

चुप न रहो

खामोश न रहो कहना है खुलके कहो
समस्या का समाधान भी होगा जब
तुम यूं गुमसुम उदास न हो सब कहो
चुप्पी से रिश्तों में दीवार होगी कहो
@मीना गुलियानी 

चुप न रहो

चुप न रहो
खुलके कहो
चुप्पी खलती  है
चुप रहने से बात न बनती है
बोलने से समाधान होगा
यूँ उदास परेशान न हो
समस्या को कहो
निवारण होगा
सबसे बोलो
चुप न रहो
@मीना गुलियानी 

सुख है तो बस इतना है

ये सुख है तो बस इतना है
गागर में सागर जितना है
किसी वस्तु की न कमी है
संचय ही  करो  जितना है
यही सुख जीवन गहना है
जीवन जो लो जितना है
@मीना गुलियानी 

दूर का ये मेरा सफर है

दूर का ये मेरा सफर है
पता न जाना किधर है
तू छिपा अब किधर है
ग़ाफ़िल मेरी नज़र है
सफर से हूँ अनजाना
चल पड़ा हूँ मैं बेगाना
हिम्मत  हमसफ़र है
न कोई डर न फ़िक्र है
रहमो कर्म मुझ पर है
@मीना गुलियानी 

सब सुरक्षित रहें

सब सुरक्षित रहें कैसे कभी सोचा है
आपदा बड़ी भारी बचें कैसे सोचा है
नदियाँ सैलाब लायेंगी प्रलय लायेंगी
हे त्रिपुरारी काटो विपदा यही मौका है
सब है तेरे बस में काल ने फंदा फेंका
हम हैं तेरे सहारे सबने दिया धोखा है
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 20 मई 2020

इतना मुश्किल भी नहीं था

इतना मुश्किल भी नहीं था
इस नादां दिल को समझाना
जो बन बैठा था तेरा दीवाना
दुनिया ने कहा मुझे परवाना
बना डाला तेरा मेरा अफसाना
मुमकिन था मेरा भटक जाना
दिल ने छलकाया था पैमाना
@मीना गुलियानी 

वक्त को रोकना चाहा था

मैंने वक्त को रोकना चाहा था
तुम्हें पल्लू से बाँधना चाहा था
पर कौन किसी के रोके रुका था
ये मेरा केवल मिथ्या भ्रम था
मुझे अपने यौवन का घमंड था
ये न पता वो ढलती छाया था
हाथ न फिर कुछ मेरे आया था
मुट्ठी से रेत सा फिसल आया था
@मीना गुलियानी 

अचानक - कहानी

रेशमा और प्रेम दोनों शादी के बंधन में बंधने ही जा रहे थे कि अचानक उनके बीच में उषा आ गई जिसने कि समय पर आकर प्रेम के झूठे नाटक का जो उसने उषा से भी किया था और फिर अपने खेल खेलकर वो भाग गया था।   उसने उषा को भी अपने जाल में फंसा कर बहुत से पैसे ऐंठ लिए थे।   रेशमा भी भोली भाली लड़की थी जो उसके चंगुल में फंस गई थी किन्तु उषा ने उसे बचा लिया।   उषा की तो प्रेम ने जिंदगी ही तबाह करके रख दी थी वो उसके बच्चे की माँ बनने वाली थी जो बिन ब्याही माँ थी।   उस पर तरह तरह के लांछन प्रेम की वजह से लगने वाले थे।   इसलिए उसने बिल्कुल सही वक्त पर जब उन दोनों के फेरे होने जा रहे थे।   प्रेम का सारा कच्चा चिट्ठा रेशमा के आगे खोल दिया।   दोनों के परिवार वालों को भी इन बातों का पता नहीं था।  प्रेम तो एकदम उसे देखकर हकबका रह गया था।   किसी जमाने में रेशमा और उषा सहेलियाँ हुआ करती थीं पर रेशमा को भी आज उषा के आने पर ही उनकी प्रेम कहानी इतनी आगे बढ़ चुकी थी का पता चला।

खैर अब तो प्रेम को ही सारा फैंसला लेना था उसके ऊपर रेशमा और उषा दोनों के परिवारों का दबाव था कि जिसकी जिंदगी उसने तबाह की है उसे न्याय मिलना चाहिए।   बच्चा जो जन्म लेगा उसे  उसका बाप मिलना जरूरी है।   सारी वेदी सजी हुई थी पंडित जी भी थे प्रेम का परिवार भी था।   अब मजबूरन प्रेम को उषा से ही उसी मंडप में शादी करनी पड़ी। यह सारा घटनाक्रम अचानक ही घटित हुआ लेकिन इससे उषा को न्याय मिला और रेशमा का जीवन नष्ट होने से बच गया।   क्योंकि पता नहीं फिर प्रेम कुछ और भी गुल खिलाता।   जो भी हुआ सब ठीक हो गया था।
@मीना गुलियानी


कितनी परछाईयाँ उभरती हैं

जब तुम सुनसान पथ से
रात के अंधेरों में ग़ुज़रते हो
इन वीरानियों में से न जाने
कितनी परछाईयाँ उभरती हैं
बस तेरी रहगुज़र  बनती हैं
चैन से वो रहने नहीं देती हैं
मेरे दिल को घायल करती हैं
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 19 मई 2020

हानि लाभ की बात नहीं है

हानि लाभ की बात नहीं है
दिल को कुछ संताप नहीं है
जो होगा अच्छा ही होगा मुझे
उस पर पूर्ण विश्वास यही है
पैसा ही सब कुछ नहीं होता
मोह माया का फसाद यही है
दिल को तराजू में तुम तोलो
कर्म से अच्छी बड़ी बात नहीं है
@मीना गुलियानी

भक्ति में शक्ति -कहानी

राम का नवजीवन नाम से गाँव में एक छोटा सा मेडिकल स्टोर था जिसमें हर तरह की दवाइयाँ मिल जाती थीं। उसके पिताजी पहले उस स्टोर पर बैठा करते थे तबसे उन्होंने बाँके बिहारी जी की एक कोने में मूर्ति स्थापित कर रखी थी।  नियमित रूप से वो दीपक जलाते थे।   उनके देहांत होने के बाद से राम ने ही वो मेडीकल स्टोर संभाल लिया था लेकिन पूजा के नाम पर वो एक तरह से नास्तिक ही था।   उसे खाली समय में चैस खेलने में मज़ा आता था।   पड़ोस के भी उसके एक दो दोस्त उसके साथ चैस खेलने आ जाते थे। 

एक बार शाम को वह  चैस खेल रहा था तभी एक छोटा सा गरीब परिवार का एक बच्चा भागा भागा आया और बोला मेरी माँ बुखार में तप रही है उसके लिए दवाई दे दो मेरे पास सिर्फ पाँच रूपये हैं यही ले लो और मुझे दवाई दे दो नहीं तो वो मर जायेगी।   राम का पूरा ध्यान तो चैस में था वो अनमने मन से उठा इतनी देर में ही लाईट भी चली गई उसने हाथों से टटोलकर एक शीशी उसे निकालकर पकड़ा दी।   वो बोला इसे दो चम्मच भरकर पिला देना अभी बुखार उतर  जायेगा।   बच्चा  दवाई लेकर चला गया।   इतनी देर में ही लाईट भी आ गई।   तभी उसकी नज़र ऊपर गई तो उसे याद आया कि इस स्थान पर तो उसने चूहे मारने वाली दवाई की शीशी रखी थी जो एक व्यक्ति कुछ देर पहले दे  गया था और उसने सोचा थोड़ी देर में इसे संभाल कर  रख दूंगा।   ये तो अनर्थ हो गया अगर उसकी माँ ने दवाई पी ली तो वह अवश्य ही मर जायेगी।   उसको रोना आ गया उसका घर भी वो नहीं जानता था।   अचानक ही उसका ध्यान बाँके बिहारी जी की मूर्ति की ओर गया।   इतने सालों के बाद उसने मूर्ति को देखा था।   पूरे मन से उसने अपना ध्यान भगवान की ओर लगाया और रोकर पश्चाताप के आँसू  बहाने लगा।   थोड़ी देर में उसने देखा वही बच्चा फिर से भागा भागा आया और कहने लगा अँधेरा बहुत था रास्ते में बारिश भी होने से मेरा पाँव फिसल गया था तो वो दवा की शीशी मुझसे टूट गई।   आपका मुझ पर बहुत उपकार होगा मुझे दूसरी शीशी दे दो पर मेरे पास आपको देने के लिए कोई पैसे नहीं हैं।   राम ने अब भगवान का चमत्कार देख लिया था जिसने वो दवाई उस बच्चे को माँ को पिलाने ही नहीं दी थी।   राम ने भगवान को दिल से प्रणाम किया और माफ़ी मांगी।   उस बच्चे को उसने दूसरी दवाई की शीशी दे दी और कहा अब तुम ध्यान से जाना।   दो चम्मच पिला देना ठीक हो जायेगी पैसे की चिंता मत करो।  तबसे राम का भी हृदय जो नास्तिक था अब पूरी तरह से आस्तिक बन चुका था।   ईश्वर की भक्ति का चमत्कार अपनी आँखों से वो स्वयं ही देख चुका था। भगवान के प्रति उस आस्था और विश्वास ने ही अनहोनी को टाल दिया था और जो दीपक राम के पिताजी रोज जलाया करते थे अब राम ने भी प्रेम से जलाना आरम्भ कर दिया। सच ही है भक्ति में शक्ति है जो नास्तिक को आस्तिक बना देती है।
@मीना गुलियानी 

राख को मत कुरेदिए

राख को मत कुरेदिए
दबी चिंगारी सुलगेगी
अरमान तो भस्म हुए
क्या फायदा है फिर से
उन्हेँ कुरेदने हरे करने का
उनको जब दफ़न किया
फिर क्यों याद करें क्यों
बार बार हम रोते रहें
@मीना गुलियानी

पुराने घर की छत -कहानी

मुझे आज भी अपने पुराने वाले मकान की छत याद आती है  जहाँ सर्दियों के दिनों में दिन भर छत पर बैठकर 
हम लोग चटाई बिछा  लेते थे और सभी धूप सेका करते थे।   घर की महिलाएँ ह्री सब्जियाँ जैसे कि साग , धनिया,पोदीना ,मेथी आदि साफ करने के लिए धूप में ही  लेकर बैठ जाती थीं।   एक पंथ दो काज हो जाते थे।   चटनी बनाने के लिए धनिया पोदीना तैयार मिलता था।   साग बनाने के लिए साग तैयार मिलता था।  मेथी भी साफ़ करके काट दी जाती थी ताकि समय के अनुसार बना सकें।   कभी कभी तो मटर भी छील लेते थे जरूरत के अनुसार बना लेते थे। 

बच्चे लोग छत पर शाम को पतंग उड़ाते थे।   छुट्टी के दिन ज्यादा पतंगें उड़ती थीं क्योंकि पड़ोस के और भी बच्चे हमारी छत पर पतंग उड़ाने आ जाते थे।  इसका ये भी कारण था कि हमारी छत ऊँची थी।   ऊपर से करीब पाँच किलो मीटर तक दी दूरी की बिल्डिंग हमारी छत से देखी जा सकती थीं। जब हम छोटे थे तो जब हवाई जहाज छत से ऊपर उड़कर जाता था हम लोग उसे टा टा करते थे। अपने स्कूल का काम भी छत पर आकर निपटा लेते थे। सभी पड़ोस के लोग छत पर बैठे बैठे एक दूसरे से आवाज़ लगाकर बाते कर  लेते थे।   औरतें अक्सर ऊन सलाईयाँ लेकर स्वैटर बुना  करती थीं।   गर्मियों की रातें भी ठण्डक से भरी होती थीं।   रात को ठण्डी हवा में पंखे या कूलर के बिना ही  अच्छी नींद आ जाती थी।   बारिश के दिनों में छत पर बारिश में नहाने का आनन्द ही अलग होता था। कई युवक युवतियाँ आपस में प्रेम के पेच भी चुपके से आँखे चार करके लगा लेते थे। 

इस प्रकार छत का आनन्द क्या होता है यह वो ही बता सकता है जिसने इसका रसास्वादन किया हो बाकी अन्य लोग तो ऐसे बता सकते थे जैसे बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद और गूंगा क्या बताये गुड़ का स्वाद।   हमने तो छत का पूरा पूरा लुत्फ़ उठाया हुआ है।   आजकल तो सभी लोग अपना अपना मकान नई कालोनियों में बना चुके हैं उनमे वो रौनक नहीं है जो उन पुराने घरों की छत पर हुआ करती थी।   आज भी उन छतों के आनन्द को हमारा दिल तरसता है जब मकर सक्रांति के रोज़ हम पतंगें उड़ाते थे और हमारे लिए गर्म पकौड़े छत पर भिजवा  दिए जाते थे।   कैसे भूल पायेंगे हम वो पल जो उन पुराने  घर की छतों पर हमने गुज़ारे। 
@मीना गुलियानी 

सपना सच या फ़साना -कहानी

पारुल ने देव से बहुत गर्मजोशी से मोहब्बत की थी।   वो उसे पागलपन की हद तक चाहती थी।   कालेज में उन दोनों के प्रेम के चर्चे बहुत मशहूर थे.  दोनों को ही हर जगह इकट्ठा देख सकते थे चाहे कहीं पिकनिक , गार्डन, फिल्म  या किसी कालेज की प्रतियोगिता में।   दोनों ही बढ़चढ़ कर सभी में हिस्सा लेते थे।   पारुल के काले काले घुँघराले बाल उसकी कमर पे बल खाते हुए चलते थे तो दिल पे आरी सी चलती थी।   देव भी बहुत ही सजीला लम्बे कद का नौजवान था।   सारे कालेज की लड़कियाँ उस पर दिलो जान न्यौछावर करने  को तैयार रहती थीं लेकिन वो भी  पारुल को ही चाहता था। 

 कहते हैं की इश्क दीवाना पागल बनाकर छोड़ता है तो बिल्कुल यही बात उन दोनों पर सच साबित होती थी। वो तो एक दूसरे के बिना एक पल भी अलग नहीं रहना चाहते थे।   पढ़ाई में भी दोनों अव्वल ही आते थे।   दोनों के परिवार अपने मोहल्ले में किसी पुरानी रियासत के राजकुमार से कम शानो शौकत की नहीं थी।   एक बार देव काफी स्पीड से अपनी गाड़ी चला रहा था तो उसकी टक्कर सामने  से आती हुई एक बाईक से हो गई उसे बचाने 
के लिए उसने कार को विपरीत दिशा में जब मोड़ने की कोशिश की तो कार बल खाती हुई डिवाईडर पर चढ़कर उलट गई।   देव तो बेहोश हो चुका था उसके साथियों ने ही उसे अस्पताल पहुँचाया।   अब उसकी टाँग में एक रॉड भी डालनी पड़ गई।   पारुल  फिर भी उससे मिलने उसके घर आ जाया करती थी।   देव को अब लगता था कि शायद वो अब पारुल जैसी सुन्दर लड़की के लायक नहीं रहा।  वो जब भी घर आती तो वो अपना मुँह फिरा देता था।   उसको टालने की कोशिश करता था ताकि पारुल को भी उससे नफरत हो जाए और वो किसी दूसरे से शादी कर ले।   एक बार तो उसने साफ़ शब्दों में उसे कह भी दिया कि मुझे छोड़कर तुम कहीं और अपना घर बसा लो। 

पारुल का मन टूट गया इन्हीं दिनों एक स्कूल से उसे टीचर की पोस्ट के लिए कॉल लैटर मिला तो उसने साक्षात्कार दिया और उसे नौकरी मिल गई।   अब वो अपने पैरों पर खड़ी हो गई।   देव भी धीरे धीरे कदम उठाने लगा था।   पारुल के घर वालों ने भी पारुल को कहा  कि हम तुम्हारी शादी कहीं  और तय कर देते हैं।   कब तक तुम उसी के इंतज़ार में रहोगी।  देव को उसके माता पिता ने इलाज के लिए अमरीका भेज दिया था जहाँ करीब पांच महीने बिताकर जब वो लौटा तो पहले जैसी ही हालत में आ चुका था यानि कि बिल्कुल स्वस्थ दिखता था।   अब इसे हम क्या कहेंगे कि देव के मन में पारुल के प्यार ने फिर से संगीत छेड़ दिया  और उधर से पारुल के भी रिश्ते की बात कहीं और चल रही थी।   देव ने पारुल को फोन पर कहा वो एक बार उससे मिलना चाहता है चाहे वो आखिरी बार ही उससे मिलने को आ जाए।  पारुल तो उसे भूल ही नहीं पाई थी वो तो एक बार में ही उसकी आवाज़ सुनकर उसके घर आ गई।   उनकी प्रीत फिर से जाग उठी।   देव ने अपनी गलती की उससे माफ़ी मांगी और उससे शादी करने की इच्छा जताई।   पारुल की भी रोते रोते आँखें सूज गईं देव ने उसे अपनी बाहों में कस लिया।   पारुल को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि कुछ महीने पहले जो देव ने उसे भूलने को बोला था।   क्या वो कोई सपना देख रही है या कोई हकीकत है।   उसने अपनी बाँह पर चिकोटी काटी तो लगा देव अब पहले जैसा ही हो गया है।   उसका प्यार बदला नहीं है।   पारुल के घर देव ने अपनी शादी का प्रस्ताव अपनी माता जी के द्वारा भेजा।   पारुल के घर वालों को कोई इंकार नहीं था।  अब तो पंडित जी से शुभ मुहूर्त निकलवाकर दोनों की शादी बहुत ही सादगी से हो गई।   पारुल और देव भी अभी तक यही सोच रहे थे कि उनका प्यार पहले फ़साना बना फिर दोनों ने सपने देखने शुरू किये और अब वो सपने हकीकत में बदल गए थे सच हो गए थे। 
@मीना गुलियानी 

मैंने कब कहा

मैंने कब कहा कि तुमसे प्यार नहीं करते
इश्क करने वाले तो किसी से नहीं डरते
निभाते हैं कई लोग बेवफाई भी उसूलों से
आ जाए मौत राह में तो परवाह नहीं करते
तुमने भी तो ज़िद पकड़ी है मात देने की
वरना ऐसे वैसे दावों का सौदा हम नहीं करते
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 18 मई 2020

अगर मगर की बातें छोड़ो

अगर मगर की बातें छोड़ो
व्यर्थ ही तुम मत अब डरो
अपने लक्ष्य को प्राप्त करो
दृढ़ता से मार्ग पर डटे रहो
आलस्य बिल्कुल न करो
हिम्मत होंसले से तुम बढ़ो
सकारात्मक विचार रखो
सफलता को हासिल करो
@मीना गुलियानी 

याद नहीं रहा - कहानी

यह घटना उस समय की है जब मेरे पोते की ड्रम क्लास की प्रयोगिक परीक्षा थी।   परीक्षा केन्द्र करीब 15 किलो मीटर की दूरी पर था।   हमें वहाँ 9 बजे पहुँचने के लिए कहा गया था। मैंने अपने पोते से कह दिया था कि सारा सामान जो भी लेकर जाना हो पूरा बैग में जमा लेना ताकि किसी तरह की परेशानी न हो।   सुबह वो अपने दादा जी के साथ अपने समय पर घर से रवाना हो गया।   परीक्षा हाल में सबका रोल नंबर पुकारा गया तो उसे याद आया कि जल्दी में रोल नंबर तो टेबल पर ही छूट गया है।   उसके दादा जी ने परीक्षा अधीक्षक से क्षमा मांगते हुए कहा कि इसकी परीक्षा 10 बजे के बैच में करवा दीजिए क्योंकि जल्दी में रोल नंबर और ड्रम स्टिक टेबल पर रह गई है जिसे मैं घर जाकर अभी , ले आऊँगा।   परीक्षा अधीक्षक ने कहा वापिस जल्दी आ जाना ले आओ।   अब तो दादा जी को घर पर आना पड़ा और ड्रम स्टिक तथा रोल नंबर दोनों उठाकर परीक्षा भवन समय के अनुसार पहुँच गए।   उनके पहुँचते ही पोते का रोल नंबर भी आए चुका था।   अब उसने वो परीक्षा दी और अच्छे नंबर से उत्तीर्ण हुआ।

घर पर  लौटकर दादा जी ने उसे प्यार से समझाया कि इन छोटी छोटी बातों का जीवन में बहुत महत्व होता है। इसलिए आगे से कभी इस तरह की गलती मत करना।   अब तो काफी समझदार हो गया है।   उस दिन से उसने भी सबक लिया कि परीक्षा के दिनों में रोल नंबर, ज्योमैट्री बॉक्स ,पैन , पेन्सिल ,रबर आदि रात को ही बैग में जमा लेने चाहिए ताकि सुबह समय पर पहुँचा जा सके और फिर यह नहीं कहना पड़े कि 'याद नहीं रहा। '
@मीना गुलियानी 

जिंदगी की डाँट को खाके

जिंदगी की डाँट को खाके
पहले तो हम घबरा गए
थोड़ा मायूस हुए शर्मा गए
फिर हम फिसले सम्भले
फिर हमे चलना आ गया
गिरके सम्भलना आ गया
हर हाल में जीना आ गया
हँसना मुस्कुराना आ गया
गीत गुनगुनाना आ गया
सपंने को सजाना आ गया
जिंदगी को जीना आ गया
@मीना गुलियानी 

तन्हाई

जिंदगी की तन्हाई कम नहीं होती
तुम्हारी जुदाई अब सहन नहीं होती

सोच न था ऐसा ज़हर भी पीना पड़ेगा
जीयेंगे मगर घुट घुट के जीना पड़ेगा

जिंदगी के सफर पे हम चल तो पड़े हैं
राहों में कितने ही काँटे बिखरे पड़े हैं

दुनिया ने कितने जख्म हमको दिए हैं
उफ़ तक न की चुपके जख्म सिए हैं

राहों पे चलते  परछाईयाँ बोलती हैं
हम चुप रहते हैं तन्हाईयाँ बोलती हैं
@मीना गुलियानी 

कुछ तो साजिश होगी खुदा की - कहानी

आज रोशनी रोती  ही जा रही थी चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी।   आज राम पूना  जा रहा था जो रोशनी के गाँव से करीब हज़ार मील दूर था।   वो यही सोचकर परेशान हो रही थी कि अब वो उससे कैसे मिल पायेगी पता नहीं उसके घर वाले भी उसे दुबारा कभी मिलने की इजाजत भी देंगे या नहीं।   राम ने उसे अपने कंधे का सहारा दिया हुआ था और उसे प्यार से समझा भी रहा था कि ये तो नौकरी है अब ट्राँसफर हुआ है तो जाना तो पड़ेगा ही।   लोगों को नौकरी पाने के लिए कितने यत्न करने पड़ते हैं।   उसे तो अच्छी फर्म में सैक्शन ऑफ़िसर की पोस्ट मिली थी।   रोशनी भी एक फर्म में सहायक के पद पर कार्यरत थी।   दोनों रोज एक ही गली में साथ साथ रहते हुए पले  बड़े हुए और अब नौकरी भी कर रहे थे।   इतने सालों का लम्बा साथ जो अब जुदा होने जा रहा था इसलिए ही रोशनी उदास थी।

  राम ने उसे बहलाने के लिए एक फिल्म देखने के लिए पूछा अगर वो चाहे तो दोनों चलते हैं।   दोनों परिवारों को उनके मेल जोल पर कोई आपत्ति नहीं थी।   अब दोनों फिल्म देखने गए।   बहुत ही रोमांटिक फिल्म थी।   उसमे भी हीरो अपनी हीरोईन को छोड़कर विदेश जा रहा था।   रोशनी को फिर से रोना आ गया अब तो राम ने उसका हाथ अपने हाथों में लेकर चुप कराया।   धीरे धीरे वो शांत हुई।   मध्यांतर में दोनों ने कॉफ़ी पी और पॉप कॉर्न खाये।   राम एक एक करके उसके मुँह में डालता जा रहा था।  एक दो बार तो रोशनी ने उसकी अंगुली भी काट ली।   अब धीरे धीरे वो सरक कर उसके बिल्कुल पास आ गई। दोनों की सांसें टकरा रही थीं।   दोनों फिर भी संयमित थे थोड़ी बहुत शरारत तो चल ही जाती है।   आखिर इतना पुराना साथ जो ठहरा। अब फिल्म समाप्त हो गई।   वो भी रोशनी को घर छोड़ने गया।   रोशनी ने उससे बोला खाना खाकर चले जाना।   कल तो तुम चले ही जाओगे।   राम ने कहा - ठीक है पर ज्याद तकल्लुफ न करना जो भी हो हल्का फुल्का  बना लो।  रोशनी ने फटाफट आलू मटर की सब्जी छोंकी और रायता बना लिया और साथ में पूरी तल ली।   अब बड़े प्यार से उसे परोस दिया और राम भी उसकी तारीफ़ करता हुआ खाना खाने लगा।   रोशनी ने राम से वादा करवाया कि वो रोज़ उसको एक फोन करेगा।   राम ने स्वीकार कर लिया।

  राम पूना के लिए सुबह रवाना हो गया।   वहाँ  पहुँचकर उसने रोशनी से फोन पर बात की।   दोनों परिवार वाले भी उन दोनों का आपस में रिश्ता कर  देना चाहते थे।   इस ट्रान्सफर ने दोनों को बिछुड़ने पर मजबूर कर दिया था।  राम की जो टाइपिस्ट थी वो सभी लड़कों को बातों में पटाने में माहिर थी।   सभी ऑफिस के लोग इस बात को जानते थे।   धीरे धीरे राम भी खुद को उससे बचाकर रखने लगा।   सिर्फ काम की ही बात करता था वैसे भी उसके दिल दिमाग पर तो रोशनी ने अपना अधिकार जमाया हुआ था उसे वो किसी और को  कैसे  देता।   एक दिन पूजा ने यानि कि उस टाइपिस्ट ने राम को शाम के लिए अपने घर आने का निमंत्रण दिया कि मेरा जन्मदिन है आपको आना ही पड़ेगा।  राम ने सोचा नई जगह की नौकरी का सवाल है जन्मदिन पर तो बाकी लोग भी तो होंगे।   जब वो उसके घर पहुँचा दो देखकर दंग रह गया इतना भव्य घर सभी उपकरणों से सजा हुआ हुआ था।   हैरान करने वाली यह बात थी कि कोई और नहीं आया था।   पूजा ने बताया और किसी को नहीं बुलाया।   राम को उसने सॉफ्ट ड्रिंक में कुछ मिलाकर दे दिया जिससे उसे चक्कर आया।अब हल्की नींद आने लगी।    पूजा ने जल्दी से उसका हाथ  पकड़ा और खुद को उसके ऊपर गिरा दिया।   यह तो अच्छा हुआ कि ठीक उसी समय रोशनी का फोन राम के पास आया वो जैसे एकदम जैसे  नींद से जागा उसने पूजा को झटके से अपने ऊपर से उठाया और रोशनी से बात करने लगा।   अब जल्दी से वो बाहर आया और एक ऑटो रुकवाकर घर चला गया।   दूसरे दिन जब वो ऑफिस आया तो शर्म के कारण पूजा उससे आँखें नहीं मिला पा रही थी।   उसने भी किसी को यह बात नहीं बताई नहीं तो ऐसी बातें फैलते देर नहीं लगती।   कुछ ही दोनों के बाद लॉकडाउन का दिन घोषित हो गया था उसके एक दिन पहले ही वो रोशनी से मिलने उसके घर अचानक पहुँचा।   ख़ुशी के मारे वो तो राम को देखते ही लिपट सी गई। अब दोनों परिवारों ने भी इनकी शादी कराने का विचार बनाया ताकि जब वो वापिस जाए तो अपनी दुल्हन को भी साथ लेकर जाए।   ऐसा लगता है की पूजा से दूर करके रोशनी से  राम को मिलाने में कुछ तो साजिश उस खुदा  की भी रही होगी।   तभी तो वो उसके पास आ सका और सारा घटनाक्रम इसी तरह से चला कि वो हमेशा के लिए रोशनी का हो गया।
@मीना गुलियानी 

लिखते हैं मिटाते हैं

दिल पे तेरा नाम लिखते हैं मिटाते हैं
करें क्या याद में तेरी सोचे जाते हैं
ख्वाहिशें सर अपना उठाती हैं जब
उनको सीने  में दफन करते जाते हैं
तेरी चौखट पे हो खत्म जिंदगी मेरी
यही आरजू हम हमेशा  किए जाते हैं
@मीना गुलियानी 

रविवार, 17 मई 2020

ख़्वाब की परवरिश करो

अपने ख़्वाब की परवरिश करो
उसे अपने हृदय में पनपने दो
प्रेम से सींचकर हरा भरा करो
उसके लिए लहरों को बाँध लो
दिल में हौंसले को बनाये रखो
उम्मीद का दामन पकड़े रखो
ख्वाबों से ही जिंदगी निखरेगी
ख्वाब होंगे तो मंजिल मिलेगी
@मीना गुलियानी 

और कब तक

और कब तक ये दुःख सहेंगे
नैन भी प्यासे कब तक रहेंगे
तीर दिल पर हम भी सहेंगे
मेघ ये कब तलक न बरसेंगे
कयामत के दिन कब ढलेंगे
पत्थर दिल मोम पिघलेंगे
@मीना गुलियानी 

आँख लगते ही --कहानी

ये सपनों की दुनिया बहुत ही विचित्र होती है। जैसे ही हम बिस्तर पर नींद की आगोश में सोने लगते हैं तब हमारी आँखें सपने देखने लगती हैं।   कुछ सपने तो हमारे यथार्थ से संबंधित होते हैं जो इस धरातल पर आकर हमें उस समस्या का समाधान भी सपनों में ही बता देते हैं।   कुछ काल्पनिक होते हैं  कई सपने तो बेहद ही डरावने भी होते हैं।   हमारी चीख तक निकल जाती है।  रोंगटे खड़े हो जाते हैं।   कुछ सपने बेहद रोमांटिक होते हैं जैसे कि कोई फिल्म चल रही हो  और हम लगातार उसे देखते हुए  थकते भी नहीं हैं।

जब कोई व्यक्ति कुछ दिमाग में चल रहा हो उस सोच को साथ लेकर सोता है तो वो सपने में आता है ऐसा लोग मानते हैं।   सपनों का संबंध हमारी मानसिक स्थिति से होता है।   ये सपने काल्पनिक होते हैं.पर बहुत रोचक होते हैं।   अगर हम विदेश यात्रा का सपना देखते हैं तो ऐसा लगता है जैसे प्रत्यक्ष में ही हमने उस यात्रा को किया। हम अपनी मन की दबी कई इच्छाओं को सपनों के माध्यम से पूरा करते हैं। 

एक बार हमारी टीचर ने हमें खूब डांटा था।   इससे बहुत ही मुझे बुरा लगा क्योकि पूरी कक्षा के सामने डांटा गया था।   पूरी रात को वो गुस्सा मन में भरा हुआ था।   फिर वो सारा गुस्से का गुब्बार तब कम हुआ जब उस टीचर ने मेरे सपने में मुझे कहा मुझसे गलती हो गई आगे से सबके सामने तुम्हें कभी नहीं डाँटूंगी।फिर मुझे प्रेम से गले लगाकर खूब प्यार किया।   ये तो बाल मन की बात है।   जब आदमी वयस्क होता है तो अधिकतर सपने रोमांस से भरे होते हैं।   जब तक वो सपना चलता है आदमी आनंद लेता है जैसे ही सपना टूटता है वो परेशान हो जाता है।      

एक बार जब मैंने गुरुमंत्र लिया था तो हमारे गुरु जी ने दर्शन दिए और सपनों में आकर बहुत ज्ञान से भरे उपदेश भी दिए।   सपने तो सपने ही होते हैं।   ये जीवन को नई दिशा बताते हैं।   कई  बार हमारा मार्ग दर्शन भी करते हैं। कालेज के दिनों की एक घटना है कि मेरी एक सहेली  से झगड़ा हो गया था। मुझे लगा कि वो मेरे एक मित्र के बीच में दीवार बनके उससे मुझे अलग करना चाहती है।   उसने लाख बार मुझे माफ़ी भी मांगी और कहा कि तुमको गलतफहमी हो गई है।  जब मुझे सपना आया तो मुझे ये एहसास हुआ कि सारी गलती मेरी ही थी।   सपने में मैं खूब रोई  भी थी।   सुबह उठी तो उठते ही उसको फोन किया और अपनी गलती की उससे क्षमा मांगी। इस तरह सपनों का संसार बहुत ही निराला होता है  और ये सभी देखते हैं।   इनको देखने से मन शांत हो जाता है। 
@मीना गुलियानी 

मालूम नहीं क्यों ये मन

मालूम नहीं क्यों  ये मन
गुब्बारे सा दिखता है
ख़ुशी में फूलता रहता है
गम मिलने पर क्यों
पिचकता रहता है
पता नहीं ख़ुशी और गम
सबकी जिंदगी में आते हैं
 जिंदगी जीना सिखाते हैं
@मीना गुलियांनी 

वो जो एक अधूरी सी बात बाकी है --कहानी

आज रमा को आफिस  नहीं जाना था फिर भी वो रोज़ की तरह ही जाने के लिए तैयार हो गई।   राजेश ने पूछा कि कहाँ जाना है आज तो तुम्हारी छुट्टी है।  रमा ने बोला आज आफिस में कुछ हिसाब किताब का पेन्डिग काम को निपटाना है इसलिए बॉस से सबको बुलवाया था।   राजेश ने कहा -चलो फिर मैं रास्ते में तुमको छोड़ता हुआ आगे निकल जाऊँगा।   आज मुझे भी कहीं जाना था। रमा ने कहा ठीक है।   राजेश रमा का भाई था रमा उससे दो साल बड़ी थी।  रमा के माता पिता उसके लिए लड़का खोज रहे थे पर कोई ढंग का नहीं मिल रहा था। कई लोग तो दहेज की मांग कर रहे थे जिसके लिए रमा के माता पिता जी तैयार नहीं थे।   जो लोग खुद ही दहेज की मांग करते हैं उन लोगों को वो अच्छा नहीं समझते क्या पता बाद में बेटी को और भी ज्यादा परेशान करें।  उसके ऑफिस में भी राकेश नाम का एक मैनेजर की पोस्ट पर सुंदर व्यक्ति कार्यरत था।   वो भी रमा से प्रभावित था क्योंकि वो खूबसूरत होने के साथ ही साथ हर कार्य में दक्ष थी।   समय पर आना जाना सादगी और शालीन स्वभाव था रमा का जो एक अच्छे युवक को प्रभावित करने के लिए काफी था। सबसे बहुत ही विनम्रता पूर्वक बात करती थी।   अपने लैपटॉप पर कार्य करते हुए दिन में कितनी बार राकेश  नज़रें घुमाकर रमा को देख लेता था।

एक दिन बस स्टाप पर काफी देर तक प्रतीक्षा करते हुए रमा की बस नहीं आई तो राकेश उधर से अपनी कार से गुज़र रहा था उसने रमा को देखकर कार रोक ली और बैठने को कहा पहले तो रमा थोड़ा हिचकिचाई फिर राकेश के दुबारा अनुरोध करने पर बैठ गई।   राकेश ने भी रमा से इधर उधर की बातें शुरू करते हुए फिर उसके घर के सब सदस्यों के बारे में पूछा।   रमा ने भी कुछ नहीं छिपाया सब स्पष्ट बता दिया।   राकेश ने भी बातों बातों में पूछा कि क्या तुम मुझे इस लायक समझती हो कि तुम्हारा हाथ मांग सकूँ।   राकेश के माता पिता खुले विचारों के लोग थे।  राकेश उनका इकलौता बेटा था और उसी की पसंद की लड़की से ही उसकी शादी करना चाहते थे।  रमा ने धीरे से सिर हिला दिया जो उसकी मौन स्वीकृति का प्रतीक था कि उसे राकेश पसंद था।   अब रमा का घर आ चुका था।   रमा ने कार से उतरकर राकेश से अंदर आने को बोला।   राकेश ने कहा फिर किसी रोज़ आऊँगा और तुम्हारे हाथ की बनी हुई चाय भी पियूँगा।   रमा मुस्कुराकर अंदर आ गई।  राकेश ने भी अपने घर की और गाड़ी घुमा ली।  राजेश भी अपने ऑफिस से आ चुका था।   वो भी रमा से राकेश के बारे में पूछने लगा।   उसे भी राकेश एक सज्जन व्यक्ति लगा।

रमा के पिताजी किसी की दुकान में काम करते थे।   वेतन भी न के बराबर ही था पर इतना भरा पूरा परिवार वो संभाल रहे थे। रमा की माताजी को अस्थमा की बीमारी थी।   रमा को तो ऑफिस से आकर घर की व्यवस्था  भी देखनी पड़ती थी ।   रमा की एक सहेली शीला  थी उससे अपने भाई के रिश्ते की बात चलाने की बात की। शीला भी राजेश को मन ही मन पसंद करती थी वो गरीब घर की लड़की थी पर उसके अच्छे संस्कार थे।   रमा ने राजेश से पूछा अगर वो तुम्हें पसंद है तो उसकी  मम्मी को अपनी मम्मी से मिलवा दूँ।   राजेश ने कहा लड़की तो ठीक है पर पहले तुम अपनी शादी की बात तो कर लो राकेश से पूछकर हम लोग उनके घर बात करने चले जायेँगे।  दूसरे दिन जब रमा ऑफिस गई तो राकेश उसी का इंतज़ार कर रहा था। उसने रमा से पूछा कि कब मैं अपनी माताजी पिताजी को तुम्हारे घर बात करने के  लिए भेज दूँ।   रमा बोली जब आप चाहो तो राकेश ने कहा फिर ठीक है कल रविवार है कल ही हम लोग चाय पीने आयेंगे।  रमा ने कहा ठीक है।  दूसरे दिन शाम को राकेश अपने माता पिताजी के साथ उनके घर पहुँचे।   रमा ने सादर प्रणाम किया और रसोई में जाकर चाय और पकौड़े बना दिए।  हलवाई से थोड़ी मिठाई तो मंगा ही रखी थी जिसे पकौड़ो के साथ ही परोस दिया।   सभी चाय की चुस्कियों के साथ रमा की तारीफ़ कर  रहे थे। राकेश की माताजी ने रमा की माता जी से राकेश के रिश्ते की बात चलाई।   रमा की माताजी कहने लगी की हम तो दहेज नहीं दे पायेंगे सिर्फ ये गुणवान बेटी ही है जो जिस घर में जायेगी उजाला कर देगी।  राकेश की माता जी ने कहा हम तो सिर्फ आपकी लड़की को चाहते हैं क्योंकि हमारा बेटा भी उसे पसंद करता है। रमा की माताजी ने कहा फिर तो पंडित जी से पूछकर कोई अच्छा सा मुहूर्त निकलवा देंगे।    अब रमा को अपने भाई की शादी के बारे में शीला के माताजी पिताजी से मिलवाने के लिए शीला से बात करके पूछा कि हम लोग कब उनके घर आएँ। ज्यादा  दिनों तक उनको भी इंतज़ार नहीं करना पड़ा।   वो भी अगले रविवार को शीला के घर रिश्ते की बात करने गए।   रमा ने शीला जी की माताजी से औपचारिक रूप से बात कर रखी थी इसलिए ज्यादा भूमिका बाँधने की जरूरत नहीं पड़ी।   दोनों ही मध्यम वर्ग से संबंध रखते थे इसलिए सरलता से ही बात बन गई।   अब तो तक खाली तारीख निकवाना बाकी रह गया था।  रमा भी खुश थी  क्योकि उसकी सहेली उसकी भाभी बनकर आ रही थी। 

अब राकेश और रमा भी थोड़ा आपस में घुलमिल गए थे क्योंकि दोनों परिवार रजामंद थे इस रिश्ते से। अब तो अक्सर छुट्टी के दिन राकेश और रमा कभी फिल्म देखने तो कभी बाहर खाना खाने चले जाते थे या किसी बाग़ वगैरह में जाकर समय बिताते थे।   राजेश और शीला भी थोड़ा बहुत घूम फिर लेते थे लेकिन शीला राजेश से कहती थी की मेरा मन तो करता है की हम लोग घर पर ही बैठकर कुछ अच्छा खाना बनाएँ।   राजेश मान गया और  जो लिस्ट शीला ने लिखकर दी वो सामान लेकर आ गया।   अब शीला ने सबके लिए खाना बनाया सबको बहुत ही अच्छा लगा.  राजेश की माताजी तो उसकी प्रशंसा करते हुए नहीं थक रही थी कि शीला सिर्फ सुंदर ही नहीं गुणवान भी है।   ऐसे ही राकेश के घर रमा ने भी अपने हाथों का जादू बिखेरा और सबको खूब अच्छा स्वादिष्ट खाना खाने को मिला।   राकेश की माताजी बहुत प्रसन्न थी कि राकेश ने योग्य बहू का चयन किया है।  राकेश ने एक दिन फिल्म देखते हुए रमा को किस करना चाहा तो रमा ने धीरे से अस्वीकार किया यह कहकर कि यह सब तो शादी के बाद ही होगा उससे पहले नहीं।   राकेश भी राजी था क्योंकि इससे रमा की इज्जत उसकी आँखों में और भी बढ़ गई थी कि कितने अच्छे संस्कार हैं।   आखिर अब वो घड़ी आ गई जिसका सबको इंतज़ार था।   पंडित जी ने दो सप्ताह के बाद शादी का मुहूर्त निकाला था।  पहले राकेश और रमा की शादी और उसके बाद अगले दिन राजेश और शीला की शादी।   दोनों ही विवाह सादगी से बिना  कोई दहेज़ लिए सम्पन्न हो गए।   अब राकेश रमा से कहा आज तो हमारी साडी भी हो चुकी है आज तो अपनी वो अधूरी वाली बात को पूरा करो। .  रमा ने पूछा कौन सी बात उसके तो दिमाग से भी उतर चुकी  थी वो 'किस' वाली बात।   यह सुनकर रमा ने लज्जाते हुए अपना सिर झुकाया और अपना मुँह राकेश के सामने कर दिया।   राकेश ने उसके माथे को चूम लिया और अपनी बाहों में भर लिया। 

दूसरे दिन शीला और राजेश की भी शादी हो गई और वो भी दोनों परिवार अपना जीवन ख़ुशी ख़ुशी बिताने लगे।
@मीना गुलियानी



शनिवार, 16 मई 2020

मन में थोड़ी लग्न हो

मन में थोड़ी लग्न हो
अथक ये परिश्रम हो
सतत चिंतन मनन हो
समर्पित तन मन हो
आस्था से समर्पण हो
व्याकुल  न ये मन हो 
प्रयास फिर सफल हो
@मीना गुलियानी 

कभी उदास न होना

कभी तुम उदास न होना
भरेगा तेरा रिक्त वो कोना
दिल पे तू बोझा मत लेना
हृदय तू व्याकुल न होना
टूटे न तेरा सपन सलोना
आशा के मोती न खोना
मिलेगा तेरा पिया सलोना
@मीना गुलियानी 

आखिरी चाय -एक कहानी

सुमित तुम्हें कुछ याद है कि कब हमने तुम्हारे साथ आखिरी बार चाय पी  थी।   अब तो करीब करीब महीना होने को आया है तुम्हें देखने को भी हम तो तरस गए चाय पीना तो दूर की बात हो गई। उस दिन की चाय के बाद से ही लॉकडाउन शुरू हो गया था।   हमारा तो इस करोना ने मन का सुकून भी छीन लिया।   एक तुम ही थे जिससे हम दिल की सब बातें कर  लिया  करते थे अब तो सब कुछ दरकिनार हो गया।   सिर्फ फोन पर ही बात होती है वो भी कभी कोई और उठा लेता है या तुम कहीं और व्यस्त होते हो तो ढंग से बात भी नहीं कर  पाते।  हम तो बात करने को,  देखने को, मिलने को तरस कर रह गए। 

यह तो ईश्वर ही जाने जबसे ये महामारी आई है सब लोगों का जीना दूभर है।   लोगों के धंधे चौपट हो गए।   दिहाड़ी के मजदूर बेकार हो गए।  कई  तो पलायन कर गए।   मैं तो बाहर बालकनी में बैठे बैठे शाम की प्रतीक्षा करती हूँ क्योंकि कभी कभी शाम को तुम अपने हाथ में चाय का कप उठाये हुए अपनी बालकनी में दिख जाते हो।   हर बार तो ऐसा करना भी सम्भव नहीं हो पाता।  घर के बाकी लोग भी जब तुम्हारी ओर मेरी नज़रें होंगी तो क्या सोचेंगे। यही सोचकर कई बार देखकर भी अनदेखा कर देती हूँ। पता नहीं कब तुम हमेशा के लिए मुझे अपना बनाकर अपने घर ले जाओगे।  उस दिन का भी मुझे इंतज़ार है। 

मुझे तो वो पुराने लम्हेँ आज भी याद हैं जब हम दोनों आफिस से लौटते हुए खूब लम्बा राउन्ड लेते हुए कभी गार्डन तो कभी चौपाटी पे कुल्फी खाते हुए आते थे।  गार्डन में भी कुछ देर बैठकर दुःख सुख की बातें करते थे। 
तुम मेरा हाथ अपने हाथों में लेकर न जाने क्या क्या वादे करते थे।   क्या तुम्हें वो सब याद हैं या भूल गए।  हम कितनी बार तो ऑफिस से छुट्टी लेकर फिल्म देखने भी गए थे।   एक बार तो आमेर का किला देखने भी गए थे। तुम्हारा साथ पाकर तो हम दूसरी दुनिया में पहुँच  जाया करते थे।   अब तो सिर्फ यादेँ ही मेरे जीने का सहारा बन चुकी हैं।   मेरे कान ये सुनने को भी तरस गए हैं रितु तुम जल्दी से मेरे घर आ जाओ मैं तुम्हारा चाय पर इंतज़ार कर रहा हूँ। अब तो बस उस दिन का इंतज़ार है कि लॉकडाउन खत्म हो और हम दुबारा से मिलकर चाय पियें। 
@मीना गुलियानी 

अनहोनी को रोके कौन

अनहोनी को रोके कौन
आज विधाता भी हैं मौन
वो चाहे सब हो जाए गौण
तांडव मौत नाचे है भौन
संकट से उबारे कौन
@मीना गुलियानी 

मुस्कुराता हुआ फूल

मुस्कुराता हुआ फूल बताता है
अपना किस्सा ये सुनाता है
सारी बीती बातें दोहराता है
तुम्हें हँसना गाना सिखाता है
तुमको जीना सिखलाता है
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 15 मई 2020

अंतहीन ज़ुड़ाव - कहानी

रमेश एक अच्छे कार्यालय में मैनेजर था।  उसकी पत्नी एक बच्चा और पिताजी उस परिवार के अन्य सदस्य थे।रमेश की माता जी दो वर्ष पूर्व ही स्वर्ग सिधार चुकी थी।    रमेश की पत्नी कौशल्या बहुत ही तेज़ तर्रार स्वभाव की महिला थी।   आज काम वाली बाई नीरू भी अभी तक नहीं आई थी तो वो ही साड़ी को कमर में खोंसकर झटपट झाड़ू लगाने लगी।   आज अखबार वाला भी अभी तक नहीं आया था।   कौशल्या बार बार  दरवाजे की तरफ देखकर झुंझला उठती थी।   अब उसे नीरू आती हुई दिखाई दी।   कौशल्या की तो जैसे जान में जान आई उसकी बाँछें खिल गईं।   कौशल्या ने नीरू  को झिड़कते हुए पूछा कहाँ मर गई थी।  तुझे समय का कुछ ध्यान भी रहता है।  कबका सूरज निकल चुका तू अब आई है चल अब जल्दी से सारे काम निपटा ले।   मुझे तो अभी साहब का और पिताजी के लिए भी नाश्ता बनाना है।   फिर सोनू भी तैयार होकर  स्कूल जायेगा।   तेरे लिए बर्तन कबसे पड़े हैं उनको पहले साफ़ करले तो नाश्ता बनाऊँ।  फिर कपड़े धो लेना तब तक सोनू को नहाने भेजती हूँ। 

नीरू अब धीरे धीरे हँसकर चहककर बोली मेम साहब सारा काम हो जायेगा क्यों परेशान होती हो।   उसे हँसते देखकर कौशल्या का पारा चढ़ गया वो बोली - नीरू क्या बात है आज तो बहुत हँसी आ रही है लगता है आजकल तेरी अपने आदमी से पटने लगी है।   नीरू बोली - मेम साहब आपने भी क्या पकड़ा बात तो सच है।   आजकल वो दारु कम पीता है और पिटाई भी नहीं करता।  इसलिए ही मैं भी खुश हूँ।   इतनी देर में अखबार वाले ने भी आवाज़ लगाई और कमरे में अखबार रोल करके पटक दिया।   कौशल्या ने उसकी भी खबर ली - कहाँ थे अब तक आज देर क्यों करी।  बनवारी ने जवाब दिया - क्या कहूँ बाई जी आज तो सुबह से ही भारत बंद बोलकर सब रास्ते जाम कर दिया।  दुकानें भी बंद करवा रहे हैं।   बहुत मुश्किल से गलियों में घूमकर आया हूँ।   आपने कल की खबर पढ़ी थी बाई जी एक आदमी ने अपनी लुगाई को ही शराब की बोतल के पैसे न देने के कारण मार ही डाला।   आज तो सर्दी भी बढ़ गई है एक कप चाय ही पिलवा दो बड़ी मेहरबानी होगी।  सर्दी के मारे साईकिल का हैंडल भी पकड़ा नहीं जा रहा।  कौशल्या ने नीरू से बोला दो कप चाय बना दे।   एक मेरे लिए और एक बनवारी के लिए तुझे पीनी हो तो एक कप और भी बना लेना।   नीरू - जी अभी बनाके लाती हूँ। आज बाऊजी नज़र नहीं आ रहे  बाहर घूमने गए हैं क्या बनवारी यूँ ही पूछ बैठा।   कौशल्या बोली हाँ वो अपनी बहिन के पास गए हैं।  

कौशल्या मन ही मन तो बहुत खुश थी उनके जाने की वजह से क्योंकि उनको हर समय खाँसी आती रहती थी इसलिए वो सोनू को भी उनसे दूर रखती थी।   सोनू तो स्कूल से आते ही दादा जी के पास जाना चाहता था।   कौशल्या ने रमेश से कहा अपने पिताजी को किसी वृद्ध आश्रम में भेज दो।  हर समय खाँसते रहते हैं घर का उनसे कोई काम भी नहीं  होता।   हर समय चाय ही दिन भर में बनवाते रहते हैं।   वैसे ही इतने काम मेरे को करने पड़ते हैं।   एक आदमी तो सिर्फ उनकी सेवा के लिए चाहिए।  रमेश भी रोज़ रोज़ के ताने सुनकर थक गया था।   जब उसके पिताजी अपनी बहिन के घर से लौट आये थे तो रमेश  ने कहा - पिता जी आपको मेरे साथ वृद्ध आश्रम में जाना पड़ेगा।   वहाँ पर मैं आपको छोड़ आऊँगा क्योंकि कौशल्या भी आपकी वजह से मेरे से रोज़ झगड़ा करती है।   पिता जी ने कहा - जैसे तुम्हारी इच्छा  उन्होंने एक थैला उठाया और चल दिए।   रमेश ने वृद्ध आश्रम पहुँच कर अपनी गाड़ी से उनको उतारकर कहा आप इसके अंदर चले जाओ।  ऐसा बोलकर उसने कहा  मैं कभी कभी मिल जाया करूँगा।   रमेश अब घर लौट आया।

   जब सोनू स्कूल से आया तो सीधा दादा जी के कमरे में गया।  वहाँ उनको न पाकर इधर उधर ढूँढने लगा।   फिर उसने अपनी मम्मी से पूछा दादा जी कहाँ हैं।   अब उसने टालमटोल करते हुए जवाब दिया आ जायेँगे।   उस दिन सोनू मायूस सा चुपचाप बैठा  रहा।   रात को भी उसे दादा जी जब नज़र नहीं आये तो उसने रात को भी खाना नहीं खाया। उसे बुखार भी हो गया।   अब तो कौशल्या और रमेश दोनों घबरा गए  डाक्टर को फोन पर आने  के लिए बोला।   डाक्टर ने सोनू की जाँच की और कहा इसको कोई सदमा लगा है।   इसलिए इसकी हालत ऐसी हो गई है डाक्टर ने एक इंजैक्शन भी लगा दिया।  सोनू का बुखार तो उतर  नहीं रहा था।   डाक्टर को फिर बुलाया गया तो वह बोला  क्या घर में कोई घटना घटित हुई है जिसका इस बच्चे पर गहरा असर हुआ है।   कौशल्या और रमेश ने पिताजी वाली बात बताई।   अब डाक्टर ने बोला - यदि बच्चे की जिंदगी बचाना चाहते हो तो उनको फौरन लेकर आओ नहीं तो इसकी तबियत और भी बिगड़  सकती है।   अब कौशल्या ने रमेश को कहा - देख क्या रहे हो जल्दी से जाकर उनको ले आओ मैं अपनी ग़लती जान चुकी हूँ।   उनसे माफ़ी मांग लूंगी।   रमेश उनको वृद्ध आश्रम लेने के लिए पहुँचा और लगभग रोते हुए उनसे क्षमा याचना करते हुए वापिस लौटने के लिए बोला।   सोनू की तबियत का वास्ता दिया तो पिताजी तुरंत ही चलने के लिए राज़ी हो गए।   अब वो घर पहुँचे तो दादा जी ने बड़े प्रेम से सोनू के माथे पर अपना हाथ रखा और आवाज़ लगाई।   उठो सोनू बेटा  आँखें खोलो देखो तुम्हारे दादा जी तुमसे मिलने आये हैं। एकदम जैसे कि चमत्कार हुआ सोनू दादा जी दादा जी बोलता हुआ उनसे लिपट गया।   अब घर पर सबकी आँखें इस दृश्य को देखकर भर आई थीं।   कौशल्या और रमेश दोनों ने अपने अपराध के लिए पिताजी से क्षमा मांगी।   पिताजी ने दोनों को माफ़ कर दिया।   यह था दादा जी और पोते का अंतहीन जुड़ाव जो दादा जी के बिना न रह पाया। 
@मीना गुलियानी