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रविवार, 24 मई 2020

तुझे प्रीत पुरानी बिसरी - कहानी

रमा और उमेश बचपन के दोस्त थे।   साथ साथ खेले बड़े हुए अब कालेज की पढ़ाई भी साथ में ही कर रहे थे।  रमा पढ़ाई में हमेशा अव्व्वल रहती थी।   उमेश थोड़ा पढ़ने में रूचि कम रखता था।   उसके पिता जी भी कहते थे इसे कौन सा पढ़कर कलक्टर बनना है।   कालेज की परीक्षा होने के बाद मेरा कारोबार इसको ही तो संभालना है। रमा तो हमेशा पढ़ाई में पूरा ध्यान देती थी।   उमेश कभी कभी उसे टोक देता था थोड़ी देर आराम भी कर लिया करो।  जब वो सुना अनसुना कर देती तो उसकी चोटी खींच देता था।   फिर वो उसे पीटने के लिए उसके पीछे पीछे भागी रहती और वो बहुत आगे चला जाता।   रमा तो आधे रास्ते में ही बैठ जाती फिर वो वापिस आ जाता था।  इसी तरह छोटी मोती छेड़छाड़ तो चलती रहती थी.  खाना भी साथ में ही खाते थे।   कालेज में आते जाते भी साथ साथ थे।   घर वालों को इनके मिलने पर कोई आपत्ति नहीं थी क्योंकि दोनों ही मर्यादा में रहकर ही बातें करते थे।

एक दिन शाम हो गई थी लौटते हुए क्योकि कालेज में वार्षिक उत्सव का आयोजन था।   उसी में देरी हो गई थी। रास्ते में उमेश से पूछ बैठा था कि तुम कैसे लड़के से विवाह करना चाहती हो।   पल भर के लिए तो वह स्तब्ध रह गई।   कुछ सूझ नहीं पाया कि क्या उत्तर दे।   फिर शर्माकर कहा -जो बिल्कुल तुम्हारे जैसा हो उसी से मैं शादी करुँगी।   उमेश ने कहा - पगली मेरे जैसा तो मैं ही हूँ कोई और थोड़ी हो सकता है।   यदि कोई और न मिला तो क्या तुम कंवारी रह जाओगी।   शादी नहीं करोगी क्या वो बोली मैं तो मन में तुमको चाहने लगी हूँ और किसी की तरफ देखती भी नहीँ।   पता नहीँ ईश्वर को क्या मंजूर है। मन ही मन उमेश भी उसकी तरफ झुकाव रखता था पर उसने भी कभी अपना प्रेम उस पर जाहिर नहीं होने दिया था।

अब उमेश और रमा दोनों की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। रमा ने तो किसी फर्म में नौकरी के लिए फ़ार्म भरा था।   उसका रिजल्ट भी आ चुका था।   कालेज में वो प्रथम श्रेणी में पास हुई थी।   उमेश भी पास हो गया  था।   उमेश ने तो अपने पिताजी का व्यवसाय संभाल लिया था।   रमा का भी जिस फर्म के लिए फ़ार्म भरा था वहाँ से साक्षात्कार के लिए बुलाया था।   उमेश ने अपने घर से उसे बाहर निकलते हुए देखा था तो वह भी उसके पास जाकर बोला बैस्ट ऑफ लक।   रमा ने उसे धन्यवाद कहा और बोला शाम को मिलेंगे।   अब रमा को भी नौकरी के लिए चयनित कर  लिया गया।   शाम को उमेश ने उसे बाग़ में बुलाया था उससे पूछा दिन कैसा रहा।   उमेश ने कहा - मेरा तो आज का दिन बोरियत भरा था।   रोज तो हम मिलते रहते थे समय गुज़र जाता था।   रमा ने कहा -अब धीरे धीरे अपनी आदत सुधार लो।  रोज तो मैं नहीं मिल सकती हूँ।   कभी कभी दस पन्द्रह  दिनों में आने की कोशिश करुँगी।   वैसे तो मुश्किल ही है क्योंकि अब साथ पढ़ते नहीं हैं तो घर के लोग भी एतराज़ कर सकते हैं। 

 अब उमेश के रिश्ते की बाते  घर में होने लगीँ थीं।   धीरे धीरे चर्चा  उसके कानों तक भी  पहुँची।   उमेश अपने घर का इकलौता वारिस था तो उसके घर वाले चाहते थे कि कोई अच्छे घराने का रिश्ता मिल जाए तो उमेश की शादी करदें। उमेश से कुछ भी नहीं पूछा पंडित जी किसी की जन्मपत्री लाये थे और मिला ली और सगाई का दिन भी तय हो गया।   अब सगाई के दिन उमेश की सब बात पता चली जब उसकी माता जी ने कहा बेटा तैयार हो जाओ लड़की वालों को आज आना है सगाई का मुहूर्त है।  रमा के घर भी न्यौता भेजा गया था शाम को चाय पार्टी का प्रोग्राम था ,  सगाई के बाद। रमा का दिल तो रोने जैसा होने लगा  क्योंकि उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था की बचपन के दोनोँ साथी यूँ बिछुड़ जायेंगे। शाम को उमेश का रिश्ता भी तय होना था  वो तो बात करने पर उमेश को पता चला कि वो तो हकलाती है।   अब जब उसने घर पर कहा कि उस लड़की से वो शादी नहीं कर सकता वो तो हकलाती है।   लड़की के घर वालों ने खूब दहेज़ में कार इत्यादि देने का वादा किया था और इस बात को  छुपाया था।उमेश की माता जी ने भी पंडित जी से कहा आप इनसे मना कर दो।  हम ऐसी लड़की से उमेश की शादी नहीं करेंगे। उमेश की माता जी ने कहा यह तो अच्छा हुआ कि शादी से पहले सब पता चल गया।    रमा ने तो उमेश से शाम को आने से पहले फोन पर कहा  भी था तुमने तो कितनी जल्दी मुझे भुला दिया  जो आज सगाई करने चले हो।   चलो हम तो तुमसे कुट्टी कर  देते हैं।   उसके बोलने  में गले का रुँधा हुआ स्वर उमेश को सुनाई दिया।   उसे भी अपने पुराने वो साथ साथ रहने के पल याद आने लगे।     रमा ने उसे अपने प्यार के बारे में फोन पर बताया कि वो तो मन ही मन उसको ही अपना सब कुछ मानती है।   अब उमेश ने भी अपने घर पर माता जी को बताया कि मै रमा से शादी करना चाहता हूँ।  रमा के घर के लोग वहीँ मौजूद थे।   रमा की माता जी ने कहा हमारे पास तो सिर्फ ये लड़की ही है।   देने के लिए तो हमने इसे अच्छे संस्कार दिए हैं।   घर का सब काम कर लेती है।  उमेश की माता जी ने भी जब देखा कि उनका बेटा भी रमा को चाहता है  तो पंडित से कहा कि इन दोनोँ के नाम से लग्न देख कर बताना। दहेज का तो उन्हेँ कोई लालच नहीं था।

पंडित जी ने अपनी पत्रिका बाँची और बताया कि अच्छे गुण मिल रहे हैं।  अब रमा को भी उमेश से कोई गिला नहीं था कि उसके प्यार को उसने बिसरा दिया था।   उमेश की माता जी ने उन दोनों की सगाई करवा दी और चाय पार्टी का भी आयोजन हुआ।   अब दोनों के परिवार खुश थे।   उमेश को भी अपनी बिसरी प्रीत स्मरण हो आई थी जिसने पूरा माहौल ही बदल दिया था। उमेश और रमा फिर से एक हो गए थे।
@मीना गुलियानी 

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