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गुरुवार, 28 मई 2020

वो गुलाबी फ्राक वाली लड़की - कहानी

कुछ साल पहले हमारे पड़ौस में एक ईसाई धर्म को मानने वाले लोग रहते थे।   उनके दो छोटे छोटे बच्चे भी थे। एक बच्चा तो तीसरी कक्षा में पढ़ता था और बेटी पहली कक्षा में पढ़ती थी।   वो बिल्कुल गोरी थी गोल मटोल सुंदर सी आँखें चेहरे पे गुलाबी रंगत थी।   दूर से देखो तो पूरी गुड़िया सी दिखती थी।  जब वो हँसती थी तो उसके गालों में डिंपल पड़ते थे। उसके हँसने पर मोती जैसे दाँत भी चमकते थे।  ख़ुशी की फुलझड़ी जैसे किसी ने छोड़ दी हो ऐसे वो खिलखिलाकर हँसती थी।   सबको उसने अपनी बातों से लुभाया हुआ था।  शाम को हमारे पोते के साथ भी बॉल खेलने आ जाया करती थी।  कभी कभी बाहर पार्क में दोनों खेल लेते थे।  दोनों ही हमउम्र थे और एक ही स्कूल में पढ़ने जाते थे।  सुबह स्कूल वैन आकर ले जाती थी और दोपहर में छोड़ देती थी।  उनका बेटा भी उसी स्कूल में उसके साथ ही जाता था। 

रविवार के दिन वो लोग चर्च जाया करते थे।  उस लड़की का नाम लिली था और बेटे का नाम डेविड था।   पढ़ाई में दोनोँ बच्चे अच्छे थे।  डेविड चर्च में पियानो बजाया करता था जो उसने अपने घर पर ही एक ट्यूटर से सीखा था।    मेरा पोता ड्रम सीखता था और स्कूल के प्रोग्राम में बजाता भी था।  लिली बहुत सुंदर गाती थी उसे डान्स करने में भी रूचि थी। जब वो डान्स करती थी तो उसकी गुलाबी फ्राक गोल गोल फूल जाती थी।   यह फ्राक पहनकर तो राजकुमारी लगती थी।   उन्होंने क्रिसमिस के दिन हमको घर पर पार्टी के लिए बुलाया था।   हम सब उनके घर फूलों का बुके और बच्चों के लिए चॉकलेट लेकर गए थे।   उन्होंने खुद अपने हाथों से ही घर पर बहुत ही सुंदर ड्राईफ्रूट वाला बेनीला केक बनाया था जो उन्होंने बड़े प्यार से हमको खिलाया। उसके बाद से हम लोग हर त्यौहार उनके साथ मिलकर मनाने लगे थे। 

हमने भी दीवाली की  शाम को उनको बुलाया था।पहले हम लोगों ने दीवाली की पूजा की थी फिर शाम सात बजे वो लोग सपरिवार आये थे।   वो भी बच्चों के लिए मिठाई लाये थे।   सब बच्चों ने मिलकर खूब फुलझड़ी , पटाखे , जमीन चक्कर आदि आतिशबाजी छोड़ी।  उसके बाद हमने खाना खाया। पनीर की सब्जी और दाल मखनी सभी को अच्छी लगी।   मीठे पीले चावल भी बनाये थे उसमें ड्राई फ्रूट डाले थे।  हम सबने दीवाली का त्यौहार खुशी से मनाया था। उस रात को लिली ,डेविड और मेरे पोते ने मिलकर एक गाने पर डान्स भी किया था।उसके बाद से हम लोग हर त्यौहार उनके साथ मिलकर मनाने लगे थे।  

इन बातों को चार पाँच साल बीत चुके हैं पर लगता है वो आज भी यहीं कहीं हैं और उनकी बिटिया लिली अभी अंकल कहती हुई भागी चली आयेगी।   पाँच साल पहले उनका यहाँ से ट्रांसफर पूना हो गया था।   उनके फोन आते रहते हैं।   ऐसे ही कुछ मीठी मीठी लिली की बातें आज भी उसकी याद दिला जाती है।   वो सबकी नकल उतारने में भी माहिर थी। अब तो सब स्मृतियाँ ही हैं जो हमारे दिलों में उनकी याद बनाये हुए हैं। 
@मीना गुलियानी 

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