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शुक्रवार, 29 मई 2020

आफ़ताब ढल गया बातों ही बातों में -कहानी

सुरेश और मीता आज पूरे एक सप्ताह बाद मिल रहे थे क्योंकि वो पेशे से डाक्टर थे और अलग अलग जगह पर उनकी ड्यूटी लगी हुई थी।   वो रात दिन करोना के मरीजों की देख रेख कर रहे थे।  करीब हफ्ते भर से घर पर भी न जा पाए थे।  न रात की नींद थी न दिन को आराम था वैसे ही कुर्सी पर बैठे बैठे झपकी ले लेते थे।  थोड़ी चाय ले लेते जब फ्री होते थे।   खाने का भी कोई निश्चित समय यहाँ नहीं था।   जब थोड़ा वक्त मिलता था उसी समय खा लेते थे।

सुरेश और मीता दोनों कालेज में साथ साथ ही एम बी बी एस  कर रहे थे।  पढ़ाई खत्म होते ही दोनों डाक्टर बन गए थे और अलग अलग अस्पताल में ड्यूटी लग गई थी।  जैसे ही एक दूसरे के पास समय मिलता था तो एक डोरी से खिंचे चले आते थे एक दूसरे से मिलने के लिए।    इस बार तो पूरा एक सप्ताह बीत गया बिना मिले। आज दोनोँ को अवकाश मिला था इसलिए उन्होंने घर की बजाए बाहर घूमने का सोचा।  पहले वो एक पार्क में गए वहीँ थोड़ी गप शप की पर मन नहीं भरा।

 वैसे भी लॉक डाउन का माहौल था तो सुरेश ने मीता से बोला चलो आज मेरे घर पर चलते हैं।  पहले फ्रेश हो जाते हैं फिर कुछ खाने पीने का साथ साथ मिलकर बना लेंगे। सुरेश ने कहा तुम लोग तो रोज़ घर पर खाना बनाती हो चलो आज मेरे हाथ का बना खाओ।  मेरा दावा है की अँगुलियाँ भी चबा जाओगी।   मीता कहने लगी - अरे वाह इतना भरोसा है खुद पर।  चलो देखते हैं कौन अच्छा बनाता है। दोनों ने एक एक डिश बनाने का सोचा।  सुरेश तो पनीर की सब्जी में माहिर था और मीता को दाल मखनी बनानी पड़ी।   वाकई में मजा आ गया मीता खाते हुई बोली।  सुरेश ने कहा - वह मीता तुमने भी दाल बहुत ही लाजवाब बनाई है।   एक एक कौर एक दूसरे के मुँह में भी डाल रहे थे। अब काफी का दौर चला। 

 सुरेश ने बोला मीता अब तुम्हारी शादी के बारे में क्या राय है।  क्या बुढ़ापे में शादी करोगी।  मैं तो चाहता हूँ तुम जल्दी से मेरे घर पर शादी करके आ जाओ तो तुम्हारे हाथों से बना हुआ खाना रोज़ ही खाऊं।  मीता बोली अब जब मैं अपने घर जाऊँगी तो ममी से बात करके बताऊँगी नहीं तो तुम ही उनसे बात करके पूछ लेना।  तुम्हारी बात कभी उन्होंने टाली है।   अब देखते ही देखते आफताब ढल गया था बातों बातों में।  सुरेश ने मीता से अगले रविवार के दिन उसके घर पर आने का बोलकर विदा ली।
@मीना गुलियानी 

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