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मंगलवार, 19 मई 2020

भक्ति में शक्ति -कहानी

राम का नवजीवन नाम से गाँव में एक छोटा सा मेडिकल स्टोर था जिसमें हर तरह की दवाइयाँ मिल जाती थीं। उसके पिताजी पहले उस स्टोर पर बैठा करते थे तबसे उन्होंने बाँके बिहारी जी की एक कोने में मूर्ति स्थापित कर रखी थी।  नियमित रूप से वो दीपक जलाते थे।   उनके देहांत होने के बाद से राम ने ही वो मेडीकल स्टोर संभाल लिया था लेकिन पूजा के नाम पर वो एक तरह से नास्तिक ही था।   उसे खाली समय में चैस खेलने में मज़ा आता था।   पड़ोस के भी उसके एक दो दोस्त उसके साथ चैस खेलने आ जाते थे। 

एक बार शाम को वह  चैस खेल रहा था तभी एक छोटा सा गरीब परिवार का एक बच्चा भागा भागा आया और बोला मेरी माँ बुखार में तप रही है उसके लिए दवाई दे दो मेरे पास सिर्फ पाँच रूपये हैं यही ले लो और मुझे दवाई दे दो नहीं तो वो मर जायेगी।   राम का पूरा ध्यान तो चैस में था वो अनमने मन से उठा इतनी देर में ही लाईट भी चली गई उसने हाथों से टटोलकर एक शीशी उसे निकालकर पकड़ा दी।   वो बोला इसे दो चम्मच भरकर पिला देना अभी बुखार उतर  जायेगा।   बच्चा  दवाई लेकर चला गया।   इतनी देर में ही लाईट भी आ गई।   तभी उसकी नज़र ऊपर गई तो उसे याद आया कि इस स्थान पर तो उसने चूहे मारने वाली दवाई की शीशी रखी थी जो एक व्यक्ति कुछ देर पहले दे  गया था और उसने सोचा थोड़ी देर में इसे संभाल कर  रख दूंगा।   ये तो अनर्थ हो गया अगर उसकी माँ ने दवाई पी ली तो वह अवश्य ही मर जायेगी।   उसको रोना आ गया उसका घर भी वो नहीं जानता था।   अचानक ही उसका ध्यान बाँके बिहारी जी की मूर्ति की ओर गया।   इतने सालों के बाद उसने मूर्ति को देखा था।   पूरे मन से उसने अपना ध्यान भगवान की ओर लगाया और रोकर पश्चाताप के आँसू  बहाने लगा।   थोड़ी देर में उसने देखा वही बच्चा फिर से भागा भागा आया और कहने लगा अँधेरा बहुत था रास्ते में बारिश भी होने से मेरा पाँव फिसल गया था तो वो दवा की शीशी मुझसे टूट गई।   आपका मुझ पर बहुत उपकार होगा मुझे दूसरी शीशी दे दो पर मेरे पास आपको देने के लिए कोई पैसे नहीं हैं।   राम ने अब भगवान का चमत्कार देख लिया था जिसने वो दवाई उस बच्चे को माँ को पिलाने ही नहीं दी थी।   राम ने भगवान को दिल से प्रणाम किया और माफ़ी मांगी।   उस बच्चे को उसने दूसरी दवाई की शीशी दे दी और कहा अब तुम ध्यान से जाना।   दो चम्मच पिला देना ठीक हो जायेगी पैसे की चिंता मत करो।  तबसे राम का भी हृदय जो नास्तिक था अब पूरी तरह से आस्तिक बन चुका था।   ईश्वर की भक्ति का चमत्कार अपनी आँखों से वो स्वयं ही देख चुका था। भगवान के प्रति उस आस्था और विश्वास ने ही अनहोनी को टाल दिया था और जो दीपक राम के पिताजी रोज जलाया करते थे अब राम ने भी प्रेम से जलाना आरम्भ कर दिया। सच ही है भक्ति में शक्ति है जो नास्तिक को आस्तिक बना देती है।
@मीना गुलियानी 

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