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शुक्रवार, 15 मई 2020

अंतहीन ज़ुड़ाव - कहानी

रमेश एक अच्छे कार्यालय में मैनेजर था।  उसकी पत्नी एक बच्चा और पिताजी उस परिवार के अन्य सदस्य थे।रमेश की माता जी दो वर्ष पूर्व ही स्वर्ग सिधार चुकी थी।    रमेश की पत्नी कौशल्या बहुत ही तेज़ तर्रार स्वभाव की महिला थी।   आज काम वाली बाई नीरू भी अभी तक नहीं आई थी तो वो ही साड़ी को कमर में खोंसकर झटपट झाड़ू लगाने लगी।   आज अखबार वाला भी अभी तक नहीं आया था।   कौशल्या बार बार  दरवाजे की तरफ देखकर झुंझला उठती थी।   अब उसे नीरू आती हुई दिखाई दी।   कौशल्या की तो जैसे जान में जान आई उसकी बाँछें खिल गईं।   कौशल्या ने नीरू  को झिड़कते हुए पूछा कहाँ मर गई थी।  तुझे समय का कुछ ध्यान भी रहता है।  कबका सूरज निकल चुका तू अब आई है चल अब जल्दी से सारे काम निपटा ले।   मुझे तो अभी साहब का और पिताजी के लिए भी नाश्ता बनाना है।   फिर सोनू भी तैयार होकर  स्कूल जायेगा।   तेरे लिए बर्तन कबसे पड़े हैं उनको पहले साफ़ करले तो नाश्ता बनाऊँ।  फिर कपड़े धो लेना तब तक सोनू को नहाने भेजती हूँ। 

नीरू अब धीरे धीरे हँसकर चहककर बोली मेम साहब सारा काम हो जायेगा क्यों परेशान होती हो।   उसे हँसते देखकर कौशल्या का पारा चढ़ गया वो बोली - नीरू क्या बात है आज तो बहुत हँसी आ रही है लगता है आजकल तेरी अपने आदमी से पटने लगी है।   नीरू बोली - मेम साहब आपने भी क्या पकड़ा बात तो सच है।   आजकल वो दारु कम पीता है और पिटाई भी नहीं करता।  इसलिए ही मैं भी खुश हूँ।   इतनी देर में अखबार वाले ने भी आवाज़ लगाई और कमरे में अखबार रोल करके पटक दिया।   कौशल्या ने उसकी भी खबर ली - कहाँ थे अब तक आज देर क्यों करी।  बनवारी ने जवाब दिया - क्या कहूँ बाई जी आज तो सुबह से ही भारत बंद बोलकर सब रास्ते जाम कर दिया।  दुकानें भी बंद करवा रहे हैं।   बहुत मुश्किल से गलियों में घूमकर आया हूँ।   आपने कल की खबर पढ़ी थी बाई जी एक आदमी ने अपनी लुगाई को ही शराब की बोतल के पैसे न देने के कारण मार ही डाला।   आज तो सर्दी भी बढ़ गई है एक कप चाय ही पिलवा दो बड़ी मेहरबानी होगी।  सर्दी के मारे साईकिल का हैंडल भी पकड़ा नहीं जा रहा।  कौशल्या ने नीरू से बोला दो कप चाय बना दे।   एक मेरे लिए और एक बनवारी के लिए तुझे पीनी हो तो एक कप और भी बना लेना।   नीरू - जी अभी बनाके लाती हूँ। आज बाऊजी नज़र नहीं आ रहे  बाहर घूमने गए हैं क्या बनवारी यूँ ही पूछ बैठा।   कौशल्या बोली हाँ वो अपनी बहिन के पास गए हैं।  

कौशल्या मन ही मन तो बहुत खुश थी उनके जाने की वजह से क्योंकि उनको हर समय खाँसी आती रहती थी इसलिए वो सोनू को भी उनसे दूर रखती थी।   सोनू तो स्कूल से आते ही दादा जी के पास जाना चाहता था।   कौशल्या ने रमेश से कहा अपने पिताजी को किसी वृद्ध आश्रम में भेज दो।  हर समय खाँसते रहते हैं घर का उनसे कोई काम भी नहीं  होता।   हर समय चाय ही दिन भर में बनवाते रहते हैं।   वैसे ही इतने काम मेरे को करने पड़ते हैं।   एक आदमी तो सिर्फ उनकी सेवा के लिए चाहिए।  रमेश भी रोज़ रोज़ के ताने सुनकर थक गया था।   जब उसके पिताजी अपनी बहिन के घर से लौट आये थे तो रमेश  ने कहा - पिता जी आपको मेरे साथ वृद्ध आश्रम में जाना पड़ेगा।   वहाँ पर मैं आपको छोड़ आऊँगा क्योंकि कौशल्या भी आपकी वजह से मेरे से रोज़ झगड़ा करती है।   पिता जी ने कहा - जैसे तुम्हारी इच्छा  उन्होंने एक थैला उठाया और चल दिए।   रमेश ने वृद्ध आश्रम पहुँच कर अपनी गाड़ी से उनको उतारकर कहा आप इसके अंदर चले जाओ।  ऐसा बोलकर उसने कहा  मैं कभी कभी मिल जाया करूँगा।   रमेश अब घर लौट आया।

   जब सोनू स्कूल से आया तो सीधा दादा जी के कमरे में गया।  वहाँ उनको न पाकर इधर उधर ढूँढने लगा।   फिर उसने अपनी मम्मी से पूछा दादा जी कहाँ हैं।   अब उसने टालमटोल करते हुए जवाब दिया आ जायेँगे।   उस दिन सोनू मायूस सा चुपचाप बैठा  रहा।   रात को भी उसे दादा जी जब नज़र नहीं आये तो उसने रात को भी खाना नहीं खाया। उसे बुखार भी हो गया।   अब तो कौशल्या और रमेश दोनों घबरा गए  डाक्टर को फोन पर आने  के लिए बोला।   डाक्टर ने सोनू की जाँच की और कहा इसको कोई सदमा लगा है।   इसलिए इसकी हालत ऐसी हो गई है डाक्टर ने एक इंजैक्शन भी लगा दिया।  सोनू का बुखार तो उतर  नहीं रहा था।   डाक्टर को फिर बुलाया गया तो वह बोला  क्या घर में कोई घटना घटित हुई है जिसका इस बच्चे पर गहरा असर हुआ है।   कौशल्या और रमेश ने पिताजी वाली बात बताई।   अब डाक्टर ने बोला - यदि बच्चे की जिंदगी बचाना चाहते हो तो उनको फौरन लेकर आओ नहीं तो इसकी तबियत और भी बिगड़  सकती है।   अब कौशल्या ने रमेश को कहा - देख क्या रहे हो जल्दी से जाकर उनको ले आओ मैं अपनी ग़लती जान चुकी हूँ।   उनसे माफ़ी मांग लूंगी।   रमेश उनको वृद्ध आश्रम लेने के लिए पहुँचा और लगभग रोते हुए उनसे क्षमा याचना करते हुए वापिस लौटने के लिए बोला।   सोनू की तबियत का वास्ता दिया तो पिताजी तुरंत ही चलने के लिए राज़ी हो गए।   अब वो घर पहुँचे तो दादा जी ने बड़े प्रेम से सोनू के माथे पर अपना हाथ रखा और आवाज़ लगाई।   उठो सोनू बेटा  आँखें खोलो देखो तुम्हारे दादा जी तुमसे मिलने आये हैं। एकदम जैसे कि चमत्कार हुआ सोनू दादा जी दादा जी बोलता हुआ उनसे लिपट गया।   अब घर पर सबकी आँखें इस दृश्य को देखकर भर आई थीं।   कौशल्या और रमेश दोनों ने अपने अपराध के लिए पिताजी से क्षमा मांगी।   पिताजी ने दोनों को माफ़ कर दिया।   यह था दादा जी और पोते का अंतहीन जुड़ाव जो दादा जी के बिना न रह पाया। 
@मीना गुलियानी 

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