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सोमवार, 6 नवंबर 2017

आओ थोड़ा जी लें

हम जीवन में कबसे भाग रहे हैं
तुम अकेले नहीं हो मैं भी साथ हूँ
आओ कुछ देर पेड़ की छाया में सुस्ता लें
कुछ मन का बोझ हल्का करें थकन उतार लें
वो भी क्या वक्त था जब हम मिले थे
क्या वो समाँ था क्या सिलसिले थे
वो सागर किनारे मचलती लहरों का देखना
रेत को पैरों के अँगूठे से कुरेदना
वो दिन रात पंख लगाकर उड़ गए
जीवन की प्रभात , दुपहरी ढल गई
अब साँझ चुनरी फैलाकर स्वागत कर रही है
चन्द्रमा की किरणें बाहें फैलाकर बुला रही हैं
इस भागती दौड़ती जिंदगी से थक गए हैं
अपनी मरूफियत के बोझ मन से उतार दो
गुज़रे पलों को पलकों में समेट लो
 जीवन की इस सांध्य बेला में
आँखे मुंदने से पहले जीवन में
उमंग भरके नए  भरके
खुशियाँ उँड़ेले आओ थोड़ा जी लें
@मीना गुलियानी 

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