ऐ गम की परछाइयों
तुम दूर रहो मुझसे
मेरा पीछा करना छोड़ो
मेरा तुम्हारा मेल नहीं
मैंने अब जीना सीख लिया
घुट घुट के बहुत जी लिए
अब कड़वे घूँट पीके भी
मैंने जीना सीख लिया
सागर में मौजो के हाथों में
पतवार ही जब सौंप दी
फिर तूफां से डर कैसा
मंझधार से तैरना सीख लिया
नीला अंबर मेरा प्रहरी बना
बिजली मुझे राह दिखाती है
हर मोड़ पे ग़म की बदली
मुझे देखके अब घबराती है
डर लगता नहीं किसी हार से
हर हार से जीतना सीख लिया
@मीना गुलियानी
तुम दूर रहो मुझसे
मेरा पीछा करना छोड़ो
मेरा तुम्हारा मेल नहीं
मैंने अब जीना सीख लिया
घुट घुट के बहुत जी लिए
अब कड़वे घूँट पीके भी
मैंने जीना सीख लिया
सागर में मौजो के हाथों में
पतवार ही जब सौंप दी
फिर तूफां से डर कैसा
मंझधार से तैरना सीख लिया
नीला अंबर मेरा प्रहरी बना
बिजली मुझे राह दिखाती है
हर मोड़ पे ग़म की बदली
मुझे देखके अब घबराती है
डर लगता नहीं किसी हार से
हर हार से जीतना सीख लिया
@मीना गुलियानी
वाह बहुत सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंमैने जीना सीख लिया।
हर हार से जीतना सीख लिया....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
वाह!!!