यह प्रेम हृदय की प्रथम चाह
स्वर्गगंगा सा पावन उज्ज्वल
रति का कुंकुम श्रृंगार मधुर
जड़ता में चेतन की हलचल
यदि प्रत्यावर्तन सम्भव हो
मानव क्यों जलना वरण करे
क्यों पी पी चातक रटा करे
क्यों शलभ प्रीति में मरण करे
यह सृष्टि सदा से मोहमयी
मानव ने बांटी है कटुता
वह कितना गरल उड़ेल रहा
कर दूर ह्रदय की समरसता
@मीना गुलियानी
स्वर्गगंगा सा पावन उज्ज्वल
रति का कुंकुम श्रृंगार मधुर
जड़ता में चेतन की हलचल
यदि प्रत्यावर्तन सम्भव हो
मानव क्यों जलना वरण करे
क्यों पी पी चातक रटा करे
क्यों शलभ प्रीति में मरण करे
यह सृष्टि सदा से मोहमयी
मानव ने बांटी है कटुता
वह कितना गरल उड़ेल रहा
कर दूर ह्रदय की समरसता
@मीना गुलियानी
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंअद्भुत रचना अलंकृत सरस।
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