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सोमवार, 25 जनवरी 2021

भोर आती तो है

कितनी चंचल है नदी की ये धारा 

इस पार से उस पार जाती तो है 


दिल का दिया भी बुझने को  है  

लाओ चिंगारी इसकी बाती तो है 


लहरों का अस्तित्व मिटने से पहले 

सागर के तट पर टकराती तो है 


संध्या ने ओढी है काली चुनरिया 

फिर रात के बाद भोर आती तो है 

@मीना गुलियानी 



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