चाहो तो सज़ा दे दो
मासूम गुनाहों की
देखा ही तो था तुमको
क्या और किया हमने
उस हुस्न मुजस्सम पर
कैसे न नज़र उठती
जब चाहते मंज़र में
उम्र बिता दी हमने
इजहारे बेबसी का
करते ही भला कैसे
दिल में तो बहुत चाहा
कहने न दिया गम ने
@मीना गुलियानी
मासूम गुनाहों की
देखा ही तो था तुमको
क्या और किया हमने
उस हुस्न मुजस्सम पर
कैसे न नज़र उठती
जब चाहते मंज़र में
उम्र बिता दी हमने
इजहारे बेबसी का
करते ही भला कैसे
दिल में तो बहुत चाहा
कहने न दिया गम ने
@मीना गुलियानी
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