इतनी जदोजहद के बाद हम
सोचते हैं कि कसूर किसका था
न तुम्हारा था न मेरा कसूर था
वो तो निगाहों का ही था
जो चुपके से आपस में मिली
धीरे धीरे उनमें बात बढ़ी
फिर कुछ सोच न समझा
न कुछ देखा न भाला
देखते देखते प्यार कर डाला
यही उनका मासूम कसूर था
@मीना गुलियानी
सोचते हैं कि कसूर किसका था
न तुम्हारा था न मेरा कसूर था
वो तो निगाहों का ही था
जो चुपके से आपस में मिली
धीरे धीरे उनमें बात बढ़ी
फिर कुछ सोच न समझा
न कुछ देखा न भाला
देखते देखते प्यार कर डाला
यही उनका मासूम कसूर था
@मीना गुलियानी
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