घर की वीरानी मुझसे सवाल करती है
सूनी दीवारें और ये छत भी पूछती है
कहाँ गए वो दिन सुहाने गाते थे गाने
कहाँ गईं वो शामें चलते थे हाथ थामें
अब दम घुटता है पँख पखेरू उड़ता है
कोई रूठे पल लौटाए गुज़रे ज़माने बुलाए
कोई नींद सुलाए आँखों को सपने दिखाए
@मीना गुलियानी
सूनी दीवारें और ये छत भी पूछती है
कहाँ गए वो दिन सुहाने गाते थे गाने
कहाँ गईं वो शामें चलते थे हाथ थामें
अब दम घुटता है पँख पखेरू उड़ता है
कोई रूठे पल लौटाए गुज़रे ज़माने बुलाए
कोई नींद सुलाए आँखों को सपने दिखाए
@मीना गुलियानी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें