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सोमवार, 8 जून 2015

माता की भेंट - 139



तेरे द्वार कैसे आऊँ मैया ज़रा बता दे 
मंझधार में फंसी हूँ तू ही रास्ता बता दे 

घेरे हुए है मुझको रंगीन वासनाएं 
मन का नही भरोसा पल पल पे जो दगा दे 

मुझमे वो बल कहाँ है जो यहाँ तुझे बुला लू 
निर्बल को दे सहारा , भव पार तू लगा दे 

लाखो उबर गए है , तेरे नाम के सहारे 
सौलह भुजाओ वाली , मुझको भी आसरा दे 

कैसे सुनाऊँ तुमको,  अपनी करुंण कहानी 
शायद ये मेरे आंसू , सब दास्ता बता दे 

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