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शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

बहकने लगी हैं

तेरे काजल की रेखा चमकने लगी है
बादल से बिजुरिया दमकने लगी है

तेरे होंठ कहते हैं गुज़री कहानी
अलसाई शाम महकने लगी है

पत्ता पत्ता बूटा बूटा सुनाएगा दास्तां
शबनम मोती बनके दमकने लगी है

क्या पता लौटना फिर न हो दुबारा
उमंगें सावन में बहकने लगी हैं
@मीना गुलियानी 

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