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गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

नव युग का निर्माण करो



तुमने सरिताओं को मोड़ा
मरुस्थल में फूल खिला डाले
कुछ ही वर्षो में भारत में
कला मंदिर नए बना डाले

                 यह कौशल तकनीकी युग का
                  बढकर यह विद्या अपना लो
                तुम खून पसीना एक करो
                 उड़ते बादल को बरसा लो

नव युग की तुम्हे चुनौती ये
विज्ञानं तुम्हें है बुला रहा
यह द्वार प्रगति के नए खोज
वरदान तुम्हे है बुला रहा


मेरे भविष्य तुम अन्धकार




अंत;स्थल में इक पीर लिए
नयनो में अपने नीर लिए
सुख तंत्री के क्यों मौन तार
मेरे भविष्य तुम अन्धकार

                 कुछ तो बोलो नाविक मेरे
                 क्या कभी किनारा आएगा
                 या व्यथा त्विष लहरों में ही
                 यह जीवन लय हो जायेगा

है शिथिल आज सब अंग अंग
साथी छूटे साहस छूटा
अपनापन यहाँ निभाने का
सच एक झमेला है झूठा

                कितने बालू के महल बने
                टूटे सपनो के अखिल हार
                आ गया नियति का इक झोंका
                 हो गए स्वप्न वो तार तार 

किसी की याद आई


किसी की याद आई है
किसी ने याद फ़रमाया

                       हृदय की धड़कने दम  भर
                       ज़रा खामोश हो जाओ
                       किसी का खत ये आया है
                       किसी ने याद फ़रमाया

भर जाते है आँखों में
सुहाने मेघ सावन के
ये कैसी बिजलियाँ चमकी
ये कैसा ज़लज़ला आया

                     नयन के आँसुओ मेरे
                    नयन में ही समा जाओ
                    किसी की बेवफाई का
                    वही  मंज़र उभर आया

उन्हें दवा मुहब्बत का
मुहब्बत उनकी यह कैसी
विरह में भी बहारों का
खिलाना रास आया 

बुधवार, 30 दिसंबर 2015

स्मृति तुम्हारी





आज फिर स्मृति तुम्हारी
क्यों सताती विकल होकर
उधर प्राची से उठे है
श्याम घन संदेश लेकर

                गा उठा पागल पपीहा
                प्रणय के भूले फ़साने
                बज उठे सुन मधुर रिमझिम
                हृदय के कम्पित तराने

कोकिला की कुहुक उठती
मिलन का संदेश देकर
दूर है दो छोर अपने
चल रहे  विवश होकर

               कौन जाने मिल सकेंगे
               फिर कभी जीवन डगर पर
               आज फिर स्मृति तुम्हारी
               क्यों सताती सजग होकर 

हार हमें मंज़ूर नहीं




यह तंग ख्यालों की दुनिया 
कब समझी दिल की बातों को 
पिंज़रे में तड़पते पंछी की 
आँख क्ति कुछ रातों को 

                अब चाह सिसक कर रोती है 
                जब साथ ही अपने छोड़ चले 
                दीवार ,दरीचे ,गुल ,बुलबुल 
                देकर हसरत मुँह मोड़ चले 

चलने पर हमारे पाबंदी 
और रुकना हमें मंज़ूर नहीं 
इस जान की बाज़ी हाज़िर है 
पर हार  हमें मंज़ूर नहीं 

मौजो के इशारे काफी है



कोशिश तो बहुत की कुछ बदले
पर बदली सारी तस्वीरें 
आज़ाद ख्यालो की मेरी 
दुनिया को न भाई तस्वीरें 

                  सब रंग मेरे छीन लिए 
                  हाथों में लगा दी जंजीरे 
                 यह तंग ख्यालों की दुनिया 
                 कब समझी दिल की बातों को 

पतझड़ की हवाओ और चलो 
सब  फूल गिरा दो उपवन के 
यादों के सुलगते अंगारे 
हर दाग जला दो दामन  के 

                 मंजिल पर न पहुंचे तो क्या 
                 दीदार ऐ  मंजिल काफी है 
                 सैलाब से लौहा लेने को 
                 मौजो के इशारे काफी है 

तुम्हारा प्यार कम है





भावना मेरी असीमित 
व्योम का विस्तार कम है 
कामना मेरी अपरिमित 
पर तुम्हारा प्यार कम है 


खेलता आया हमेशा 
जो विनाशों की गली में 
विश्व का विष पी  रहा हूँ 
क्या यही अभिसार कम है 

आज हँसा मन का गगन


खोलकर हृदय की बंद खिड़की 
झांक रहे किसके प्यासे नयन 

               अन्तर का मूक प्यार 
               मुखरित हो बार बार 
               आज करने लगा 
               मधुमय गुन्जन 

परिचित सी तुम अजान 
तुमने छू दिए प्राण 
आज हँसा फूल सा 
मन का ये गगन 

             भूला हूँ पथिक क्लान्त 
             मंजिल निर्जन नितान्त 
            दीप डगर हाथ लिए 
            भोली सी चितवन 

तुमको आकाश बुलाता है



तुम नई क्रान्ति के सेनानी 
तुम स्वर्ग धरा पर ला सकते 
धरती में छिपे खज़ाने से 
भारत का आँचल भर सकते 

                इंसान बदलता जाता है 
               इतिहास बदलता जाता है 
               स्वप्नों में खोये उठो मनुज 
               संसार बदलता जाता है 

अंबर के चाँद सितारों में 
संदेश नया सा आता है 
सुषमा सीमित है कहीं नहीँ 
तुमको आकाश बुलाता है 

आई रजनी



आई रजनी करने विहार
छाई रजनी आँचल पसार

               तारक रत्नों से सजकर
               नव शशि किरणों की पहन माल

सुर परियों का कर श्रृंगार
पहना चन्द्र का मुकुट भाल

               लेकर आई सुषमा अपार
               छाई रजनी आँचल पसार 

मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

करे मन की प्रीत पुकार




करे मन की प्रीत पुकार
घर अाजा वैरी  बलमवा
काहे दीन्हि बिरहा की मार
करे मन की प्रीत पुकार

             ओ सपनों के मेरे मीत
             कैसे गाऊं ख़ुशी के गीत
             टूटे वीणा के है तार
             करे मन की प्रीत पुकार

दूर अंबर में तारे हँसते
नयन तारे मगर है बरसते
कैसे पाऊँ मै पार बता जा
करे मन की प्रीत पुकार


कठिन डगरिया रे

प्रेम नगर की कठिन डगरिया रे
राही सम्भल सम्भल पग धरना

दूर  अति दूर छिपा है
हृदय चुरिइया रे
प्रेम नगर की कठिन डगरिया रे

विरह व्यथा की नाव तुम्हारी
कौन खिवैया रे
प्रेम नगर की कठिन डगरिया रे

कासे कहूँ पीर मै मन की
चपला चमके रे
प्रेम नगर की कठिन डगरिया रे

मेरी प्रीत के फूल अरे
देखो मुरझाये रे
प्रेम नगर की कठिन डगरिया रे 

कोयल कूकती है


आज जीवन में तुम्हारे
आशा कोयल कूकती है

              लो प्रकृति ही सुख के
              मृदुल बंधन जोड़ती है
              आज तव अभिषेक करने
              स्वर्ग निधि उर खोलती है

चित्र पूरे हो गए है
अर्चना भी आज पूरी
हो अमर यह प्रणय बंधन
आज कोकिल कूकती है

             आज जीवन में तुम्हारे
             आशा कोकिल कूकती है 

फिर से मिले नहीं



एक बार नयन मिलकर
फिर से मिले नहीं

                   उठती हुई घटा
                   बरसी चली गई
                   चातक के विकल मन में
                   इक पीर भर गई

कम्पित अधर हिले
हिलकर खुले नहीं

                 लहरों ने तट को छुआ
                 परिचय ही क्या हुआ
                 अंतर में वेदना का
                संचय ही बस किया

तट से बिछुड़ चली
वे तट मिले नहीं

                जीवन के मोड़ पर
                दो पथिक मिल गए
                भावो की तूलिका में
                कुछ चित्र टंग गए

 जग के कुटिल नियम
टाले टले नहीं

मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

तुम तक कैसे आएं



तुम चिर परिचित अनजान रहे 
 अन्तर के तार न मिल पाये 
कल्पना मौन थी शब्दों में 
उदगार नयन में भर आये 

                मूक रुदन इस अन्तर का 
                प्रिय  तुम तक कैसे आ पाये 
                उच्छ्वास भरे स्वप्निल जग का 
                आभास तुम्हें क्या मिल पाए 

अनभिज्ञ अकिंचन मै जग का 
व्याकुल प्राणी मैने माना 
पर उसकी अडिग भावना को 
क्षण भर कब तुमने  पहचाना 

               वरदान जिसे मै समझा था 
               वह शाप अरे क्यों बन जाए 
               जो अपना तुमको मान चुका 
               वह मन तुममें लय हो जाए 

तुम क्यों चले गए



मंमता की डोर तोड़कर तुम क्यों चले गए 
मंझधार नाव छोड़कर तुम क्यों चले  गए 

           सपनो के मीत  मेरे 
           भावोँ के गीत मेरे 
           कम्पन बने ,बने रहे 
           उलझन भी  बन गए 

यौवन के नयन खोले 
अन्तर में प्यार डोले 
जगते ही जगते कैसे 
वरदान सो गए 

           मिलने की आस लिए 
           युग युग से दीप लिए  
           झंझा झकोर आई 
           अंचल में बुझ गए 

सोमवार, 21 दिसंबर 2015

प्रात: हुआ



प्रात; हुआ पंछी भी जागे 
रवि ने स्वर्ण लुटाया 
ढलते दिन की थकती काया 
साँझ का वैभव आया 
दो क्षण को फिर जग का आँगन 
कलरव से इठलाया 
देख सकी  कब रजनी उसको 
मग में तिमिर बिछाया 

लहरों से अभिलाषाएं यह 
क्या क्या रंग दिखाती 
उठती गिरती बढ़ती जाती 
तट अवलोक न पाती 
पानी के बुद्बुदे से अपने 
सतरंगी बन आते 
बालू के कितने निकेत  वे 
झंझा में भर पाते 

चलो चलें दूर




चलो चलें , चलो चलें
दूर गगन में , दूर दूर दूर
दूर           दूर             दूर

हों  न शूल भरे
जहाँ जग के इशारे
हों न प्रीत बंधे
हृदय दुखारे
जीवन के स्वप्न जहाँ
सुख से हों भरपूर
चलो चलें----------दूर     दूर      दूर 

रविवार, 20 दिसंबर 2015

मिलने न दिया


उनको मिलने की चाहत बहुत थी मगर 
अपनी मजबूरियों ने मिलने न दिया 

                न ही जीने दिया न ही मरने दिया 
                दिल ने मुझको कहीं का न रहने दिया 

दिल की बेताबियाँ दिल में ही घुट गई 
ख्याले रुसवाई ने कुछ न कहने दिया 

                लाख सोचा सिजदा करें ख़्वाब में 
                 बेरहम चाँद ने वो भी न करने दिया 

कफ़स की कशिश में कमी कब हुई 
साये जुल्फों में खुद को तड़पने दिया 

               उनकी खामोशियों का शिकवा क्या करें 
               अपनी तन्हाइयों ने न मिलने दिया 

बाद मुद्द्त मिले तो  देखते रह गए 
बेबसी ने लबों को हिलने न दिया 

              चाहते तो चमन खिल ही जाता कभी 
              खुद को वीरानियों में भटकने दिया 

हँस रहा गगन




सौरभ बिखेरता है खिलता हुआ चमन
जग हँस रहा है और हँस रहा गगन

                    सुरभित समीर कहता कलियों से तुम खिलो
                     लहरो चली चलो सागर से तुम मिलो
                    जीवन का सुख यही अन्तर का मृदु मिलन

चितवन किसी की भोली मन में समा  गई
आकाश गंगा सी एक रेखा बन गई
सुधियों के साथ जागे आँखों के ये सपन 

शनिवार, 19 दिसंबर 2015

देखा ही तो था



चाहो तो सज़ा दे दो
मासूम गुनाहों की
देखा ही तो था तुमको
क्या और किया हमने

                उस हुस्न मुजस्सम पर
                कैसे न  नज़र उठती
                जब चाहते मंज़र में
                उम्र बिता दी हमने

इज़हारे बेबसी  का
करते ही भला कैसे
दिल में तो बहुत चाहा
कहने न दिया गम ने

मौन आँसू



उमड़ पड़ते मौन आँसू 
बन विरह का गान मेरे 
पीर अंतर की छिपाए 
वेदना का नीर भरकर 
खो गए इस विश्व पथ पर 
प्रणय के उपधान मेरे 

                    इन्द्रधनुष से सप्तरंगी 
                   थे कभी जीवन हमारे 
                   अरुण ऊषा थी हमारी 
                   थे मिलन के गीत प्यारे 
                   रात आती थी लुटाने 
                   उस जगत के सुमन तारे 

कोकिला का कलित कुंजन 
नूपुरों में राग जीवन 
मौन तुम तंद्रिल क्षणों में 
प्राण चेतन पर अचेतन 
रुक गया वह मलय मारुत 
जल उठे अनगिनत अँगारे 

तुमको बिसरा दूँ कैसे




मै भी मानव हूँ जग का
तुमको बिसरा  दूँ कैसे

                        कब पीर मिटी लहरों की
                        सरिता के तट से टकराकर
                        कब शलभों की प्रीत जली है
                        दीपशिखा के प्राण जलाकर

संवेदना के इन आंसू से
निज ज्वाल बुझा दूँ कैसे

                     एक वेदना से भूमि और
                    अंबर भी तड़पा करते है
                    एक बूँद के प्यासे चातक
                    गगन निहारा करते है

अपने मचले अरमानो को
मै आज सुला दूँ कैसे

                   यह मादक स्पर्श तुम्हारा
                    जब दिल पे मेरे लहराया
                   नई चेतना की किरणों ने
                  सोया अनुराग जगाया

आज जागरण की बेला में
सुधि का दीप बुझा दूँ कैसे


शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

कैसे करूँ बयां




कैसे करूँ बयां ग़मे जिंदगी आज
शहरे वफ़ा के लोग घूरे है मुझे आज

                   माना कि जिंदगी यूँ ही भटकेगी दर बदर
                   तुम होश में तो आओ क्यों बेवफ़ा हो आज

आ जाओ तो लिखूँ मैकोई गीत या ग़ज़ल
हर गीत कर रहा है तुम्हारे बदन पे नाज़

                अाया हूँ दर्द की हर हद से गुज़र कर
                छालों  पे पाँव के मरहम लगाओ आज

कहाँ तक जलाऊँ दीप मज़ारों के आसपास
अब रोशनी करो मेरी जिंदगी में आज

जुस्तजू क्या है




कोई मुझसे पूछे की हकीकत क्या है
मेरे अश्कों से पूछो कि जुस्तजू क्या है

              दर्दे दिल कुरेदने से क्या मिलेगा तुम्हे
             आशियाँ जल चुका राखे जुस्तजू क्या है

क्यों रोंदते हो पैरों तले मेरी तस्वीर को
गिरके संभला है दिल अब आरजू क्या है

             हमीं से प्यार करते हो ठुकराते भी हो
             तुम्हीं कहदो ये गुफ्तगू क्या है

न चैन लेने देंगीकभी तुझे  ये बदुआएं मेरी
कब्र में सोने भी नहीँ देते माजरा क्या है 

जी लेने दे




यादों का सहारा है झूठा
दरिया का किनारा भी टूटा 

              न डूबने से बचा ऐ साहिल मेरे 
              मरकर ही मुझे चैन आने दे 

सब खुशियाँ लुट चुकी है मेरी 
अब साँसों को भी सी लेने दे 

             जो दिल तेरे सजदे में अब  झुका 
             उसका चाक दामन  तो सी लेने दे 

भुला लूँ सब दुनिया के दर्दो अलम 
इस दुनिया से दूर मुझे जी लेने दे 

तेरी याद



जब भी तेरी याद आती है 
बिजली सी कौंध जाती है 
मन की बात मुँह से न कहो 
अश्रुधारा से फूट आती है 

                    मन का हर भेद कितना गहरा हो 
                    चाहे प्रीत को दफना दो गहराई में 
                    फ़िज़ा को ये प्रीत महका जाती है 

दूर दूर रहना अब मन को नहीँ भाता 
बंधन ये ऊपर का टूट नहीँ पाता 
तन्हाई मुझे कितना तड़पाती है 


गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

मुक्तक



१.           तुम पास नही तो क्या हुआ 
               तुम्हारी याद के लिए तस्वीर तो है 
                तुम साथ न भी हो तो क्या हुआ 
                मेरे साथ मेरी तकदीर तो है 




२           . किसी विडंबना जीवन की किसी ये लाचारी 
               चिढ़ता  जिनसे अन्तर्मन करनी पड़ती यारी 

जिन्दगी



जलता हुआ इक  दीपक था 
लौ थरथरा रही हो जैसे 
तभी  मुझे याद आ गई जिंदगी 
यह भी अद्भुत सत्य है 
इससे कब तक तुम दूर जाओगे 
एक दिन सभी उसके समक्ष झुकेंगे 
फिर क्यों न मोल माने जिंदगी का 
ऐ जिंदगी कितने ही सितम तूने ढाए मुझ पर 
किसी मोड़ पर मिलन था किसी पे जुदाई 
यह एक अजीब शह गुज़री है मुझ पर 
सपनों में भी जिंदगी का अक्स देता है धोखा 
इसमें कई बार देखा है पलकों के पीछे से 
भागते हुए मुसाफिरों को पाकर मौका 

जाने क्या बात है



जाने क्या बात है नज़र आप झुकी जाती है
तुझसे मै बात करूँ फिर भी ह्या आती है

                   पहले ऐसा न हुआ था कभी मुलाकातों में
                    रोज़ मिलते थे हँसते थे बातों बातों में
                    अब तो हर बात पे गर्दन मेरी झुक जाती है

दिल को जाने क्यों तुझे देखने का शौक हुआ
जाने क्यों फिर मेरा आँचल इन हवाओं ने छुआ
अब तो ये घटाएं भी बिजलियाँ गिराती है

                 सीने में अरमां ये है कि बुला लूँ तुमको
                 और पलकों में बंद करके छुपालूँ तुमको
                जाने क्यों तमन्ना मेरी बेबाक हुई जाती है 

जन्म गंवाया है



ऐ मेरे हमदम तू न कभी किसी बात पे खफा होना
चाहे मै रूठ जाऊँ तुझसे तू न मुझसे जुदा होना

                  इश्क में लाखो ही तूफ़ान उठाने पड़ते है
                 जाने कितने जन्मो के वादे निभाने पड़ते है

क्या जाने किस जन्म का ये कर्ज चुकाना होगा
अब तो मिटकर भी हमे प्यार निभाना होगा

              बहुत गहरा है पानी और डूबके जाना है
              सोचो तुम कैसे तुम्हें वादा निभाना है

जो डर गया वो उस पार कैसे जाएगा
खुद जो न संभला वजूद क्या बचाएगा

              जो उतरा है  पानी में मोती उसने पाया है
              वरना समझो यूँ ही उसने जन्म गंवाया है


चैन खो गया




चैन जाने कहाँ खो गया
जाने मुझको ये क्या हो गया

             नींद उड़ने लगी दिल मेरा खो गया
             सपने में ये सारा जहाँ सो गया

इस  तरह वो मुझे याद आने लगे
सपनोँ को मेरे वो सजाने लगे

             पल दो पल में ये क्या हो गया
              दिल मेरा गैर का हो गया

ऐसा सोचा न था पास आएंगे वो
पलको में कभी छुप जाएंगे वो

           जाने क्या हादसा हो गया
           अब तो बस में नहीँ है जिया

आजा चोरी चोरी



आजा चोरी चोरी पलको में बन्द कर लूँ
फिर दिल में बिठाके बातें चंद कर लूँ

                    दिल में बसके  बोलो कैसे तुम जाओगे
                    पलकों में समाके  हमें भूल तो न जाओगे
                    पलकें खोलूँगी न आँखे ज़रा बंद करलूँ

दिल का हाल तुम खुद ही जान जाओगे
छोड़के मुझको बोलो कैसे अब तुम जाओगे
बच न पाओगे रास्ता जो बंद कर लूँ

                    खोलूँगी न पलकें तुम लाख बुलाओ
                    जानती हूँ भेद तेरे अब न सताओ
                    आँखे चोरी चोरी खोलूँ फिर बंद करलूँ 

बुधवार, 16 दिसंबर 2015

जाने नहीँ दूंगा



जाने नहीँ दूंगा सरकार को
दिल में बसाया दिलदार को

                  तेरा मेरा रिश्ता है कितना अनोखा
                  और किसी पे नहीँ मुझको भरोसा
                   जाने नहीँ दूंगा दिलदार को

कैसे तुम मेरे दिल में समाये
फिर धीरे से मेरे करीब आये
छेड़ो न मेरे जज़्बात को

                 तुम सदा ही मेरा साथ निभााना
                 जब मै पुकारूँ दौड़े दौड़े चले आना
                 वचन निभाना न छोड़ना साथ को 

मंगलवार, 15 दिसंबर 2015

दिल झूम जाता है




मेरे हमदम तुमको देखकर दिल झूम जाता है
ओ दूर जाने वाले तू मुझको याद अाता है

              बांकी अदाएं तेरी चैन चुराएं 
              तेरी प्यारी बातें मन को लुभाएं 
              तू हरदम ही मुझको याद आता है 

कैसा ये रिश्ता है ये हमारा तुम्हारा 
अपना समझ के जब भी पुकारा 
तेरा सुंदर चेहरा नैनो में घूम जाता है 
मेरा सभी पाठकों से निवेदन है कि वो मेरी रचनाओं को पढ़ने के लिए ब्लॉग का प्रयोग करते है इसके साथ
ही यह भी बताना ज़रूरी है की इसे आप अपने मोबाईल पर भी देख सकते है जो कि हर समय आपके
पास होता है  इसके लिए आपको गूगल प्लस पर जाकर टाइप करना होगा जैसे कि आप कम्प्यूटर पर
देखने के लिए मेरा नाम लिखकर ब्लॉग खोलते है  आपका इसी तरह से स्नेह मिलता रहे ऐसी मेरी
अभिलाषा है  नया साल सबको मुबारक हो धन्यवाद 

तू जिनके करीब होता है




मानते है हम कि दुनियादारी में हम थोड़े कच्चे है
पर यकीन मानो कि दोस्ती में हम  पूरे सच्चे है

                        हमारी सच्चाई का तुम यकीं करलो
                         हमारे दोस्त हमसे भी अच्छे है

वक्त तो बड़ा  बादशाह होता है
फिर भी इन्सां को गरूर होता है

                        दर्द तो सिर्फ अपने  हमे देते है
                         गैरों से कब ये नसीब होता है

प्रेम का पौधा तो दिलों में उगता है
पर  वहीँ  तू जिनके करीब होता है 

दिल धड़कता है




दिल तेरे आने से धड़कता है
वरना सूखे पत्ते सा खड़कता है

                 निर्जीव सी देह में जान आ गई
                 तेरे आने से फ़िज़ा में बहार आई

दिल की कली तेरे आने से चटकी है
मन की उमंगे भी आज चहकी है

               हवाओं ने मौसम खुशगवार किया है
               गुलशन तेरे आने से गुलज़ार हुआ है 

इतना प्यार करते है



तुमसे हम इतना प्यार करते है
जान तुम पर निसार करते है

                 कैसे तुमको मगर यक़ीं होगा
                 ऐसा तुमको मिला नहीँ होगा
                 जितना हम ऐतबार करते है

दिल की खुशियों का पारावार नहीँ
इसको आ जाए गर करार कहीं
इतना तो इंतज़ार करते है 

हालात बदल जायेंगे



दहलीज़ से पाँव जैसे जम गए है
तेरे आने से  आँसु भी थम गए है

                  दिल की हालत कैसी है मत पूछो
                  कैसी गुज़री शबे रात मत पूछो

न आँखों में नींद थी न दिल को सकूँ था
हज़ारो गम थे आँखों में फिर भी यक़ीं था

              गम  तेरे आने से मुस्कुराहट में बदल जायेंगे
              हम इस पे कायम है कि हालात बदल जायेंगे 

सोमवार, 14 दिसंबर 2015

दिल हुआ दीवाना



ये तेरे झुके नैना ये मस्त अदाएं
ये दिल हुआ मेरा दीवाना अब तेरा 

                  तेरे उलझे  से ये बाल मेरी तो उलझन  हो गए 
                  तेरे रेशम के ये रुमाल दिलों के दुश्मन हो गए 
                  तेरा निखरा ये  रूप जैसे सुनहरी हो  धूप 
                  क्यों न दिल ये मेरा निशाना हो तेरा 

तेरी मस्त अदा भी चैन का मेरे दुश्मन बन गई 
तेरी चंचल नैन कटार दिल में मेरे ऐसे उतर गई 
तेरे तीखे तीखे नैन तेरे मीठे मीठे बैन 
उसपे कातिल है जुल्मी शर्माना ये तेरा 

ऐतबार आ जाए




तुमको गर ऐतबार आ जाए
जिंदगी में बहार आ जाए

                  दिल पे मुझको तो ऐतबार नहीँ
                  इसको भी तो ज़रा करार नहीँ
                  दिल पे गर इख्तियार आ जाए

कुछ मै तुमसे कह नही सकता
बिन तुम्हारे मै रह नहीँ सकता
तुमको गर ऐतबार आ जाए

                क्या करूँ  तुमको गर यकीन न हो
                कैसे समझाऊँ मै  गमगीन न हो
                 काबू में जो बेकरार आ जाए 

रविवार, 13 दिसंबर 2015

गुनहगार हम नहीँ



माना कि तुम हमारे तलबगार अब नहीँ
कैसे कहोगे तुम कि मेरा प्यार अब नहीँ

               हम न  बनेंगे राह की दीवार कभी भी
               दिल को जलाके ख़ाक बनायेंगे हम यहीं

अपनी वफ़ा के  लहू से सींचा है गुलिस्तां
लेकिन  उसकी बहार के हकदार हम नहीँ

            खायें है धोखे हमने वफ़ा के नाम पर
           लेकिन कहेंगे फिर भी गुनहगार हम नहीँ 

शनिवार, 12 दिसंबर 2015

मुलाकात तो होगी



हम जाएँ कहीं उनसे मुलाक़ात तो होगी
ख्वाबों में मिले चाहे मगर बात तो होगी

                तुम हमको सदा अपनी पनाहों में ही रखना
                इन आँखों में खो जाए छुपाये हुए रखना
                मेरी आँखों में तेरे प्यार की बरसात तो होगी

बीते हुए लम्हों की सौगात है  अच्छी
जज़्बात की दौलत हे ख्यालात से अच्छी
हम जाएँ कहीं साथ ये सौगात तो होगी

              हमें ढूंढ न ले कोई जुल्फों में छुपा लो
              दिल डूब रहा मेरा तुम मुझको सम्भालो
              मेरी किश्ती की पतवार तेरे हाथ तो होगी 

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

वो जो पहलू में आ बैठे



वो जो पहलू में मेरे आ बैठे
गम हमारे से दूर जा बैठे

                  दो घड़ी का तो पास आना था
                  तुमसे मिलने का इक बहाना था
                   दिल को क्यों तुमसे हम लगा बैठे

मेरी नज़रों से पूछो कि मुद्दा क्या है
तुम्हीं कहदो कि ये दुआ क्या है
हम तो सजदे में तेरे आ बैठे

                   क्यों ये शर्मो ह्या बरसती है
                    बस  दो दिन की सारी  हस्ती है
                    हम तो अपना तुझे बना बैठे 

दिल ने पुकारा




दिल ने फिर तुमको पुकारा कैसी तन्हाई है
दिल को बहलाने तेरी याद चली आई है

                   क्या बताएं तुम्हें हम दर्दे मुहब्बत क्या है
                   सिर्फ जलने के सिवा शमा की किस्मत क्या है
                   आज तेरे  इश्क में इस जान पे बन आई है

याद करो गुज़रे वो पल हमको बुलाया था कभी
पेड़ो की छाँव में सीने से लगाया था कभी
ऐसा उजड़ा है वो गुलशन न बहार आई है

                   हम तो सीने पे तेरा नाम लिखा करते है
                   इश्क की याद में हम रोज़ मरा करते है
                   आह निकले न कभी इश्क की रुसवाई है 

तूने जादू किया



कैसा तूने जादू किया मोरे पिया
पिया पिया बोले मतवाला जिया

                  तूने तो बदल दी दुनिया ही मेरी
                  तुझसे लगन  लागी  ऐसी मोरी
                  सपने जगाके तूने ये क्या किया

दिल की ये धड़कन शोर मचाये
कैसे रहूँ  चुप रहा भी न जाए
दिल में समाके ये क्या  किया

                 जाऊँ जो पनघट लेने मै पानी
                 लहर उठे मन में हुई मै दीवानी
                 छलके गगरिया मचले जिया

बुधवार, 9 दिसंबर 2015

पिया गए परदेस



मेरे  पिया गए परदेस
लगाकर दिल पे मेरे ठेस
जिया अब तुझ बिन जाए ना
काटूँ दिन कैसे समझ आये ना

                      इन सूखे फूलों में बास नहीं
                      अब जीने की भी आस नहीं
                       जब मै साजन के पास नहीं
                        मुझे कोई रुत भाये ना

क्यों सोया तू चादर तान
सिर पर मौत खड़ी है आन
मै तो हूँ तेरे कुर्बान
कहीं ईमान बदल जाए ना


हर हाल में खुश है



गर तूने दिया गम तो उसी गम में रहे खुश 
जिस तरह रखा तूने उसी आलम में रहे खुश 
दुःख दर्द में आफत में जंजाल में खुश है 

                   गर तूने ओढ़ाया तो लिया ओढ़ दुशाला 
                    कंबल जो दिया तूने उसे कंधे पे संभाला 
                    दिन रात घड़ी पहर हर हांल में खुश है 

चेहरे पे शिकन हे न जिगर में असरे गम 
यकसा है हमे जिंदगी और मौत का आलम 
गर माल दिया तूने तो उस हाल में खुश है 

मुझे मालूम न था



मै जुदाई में तड़पता था ख़ता थी मेरी 
उसका हर राज़  हँसी था मुझे मालूम न था 

                मै समझता था वो मुझसे दूर है लेकिन 
                वो दिल के करीब था मुझे मालूम न था 

दिल से पर्दा उठा हो गईं रोशन आँखे 
दिल में वो पर्दानशीं था मुझे मालूम न था 

                 मै कहीं हूँ वो कहीं है ये गुमाँ था मुझको 
                 मै जहाँ था वो वहीँ था मुझे मालूम न था 

इश्क पे हम पे यूं भी कभी गुजरेगी 
दिल की होगी ये  हालत मुझे मालूम न था 


मंगलवार, 8 दिसंबर 2015

रूठे पिया



अब  हमे रूठे पिया को मनाना होगा
देर से ही सही ये फर्ज निभाना होगा

                  आपसे रूठके हम तो क्या ख़ाक जिए
                   कई  इल्जाम लिए और सौ इल्जाम दिए
                   आज के बाद हमे रिश्ता निभाना होगा

देर से आज ये जाना कि मुहब्बत क्या है
अब हमे सोने और चाँदी की जरूरत क्या है
प्यार से बढ़के भला कोई न गहना होगा

                दिल हमारा तेरे ही प्यार में मगरूर रहा
               जिंदगी भर तेरे ही प्यार में मशगूल रहा
               अब हमे प्यार का हर कर्ज चुकाना होगा 

तेरा ख्याल



मेरे दिल में तेरा ख्याल है
कहीं तू नज़र से गिरा न दे
इक तेरी नज़र का सवाल है
कहीं तू नज़र को फ़िर न दे

                  मेरे दिल के घाव हरे हुए
                  मेरे सीने  में वो अगन जली
                  मेरी आहों से उठता धुँआ
                  कहीं होश तेरे उड़ा न दे

किसे हाल दिल अपना कहूँ
दिल गैर का ही हो चुका
कहूँ दास्ताँ ये किससे मै
कहीं  कोई फ़साना बना न दे

                  मेरे इस दिए की रोशनी
                 मेरी हसरतों को जलाती है
                  मेरे दर्दे जिगर की खलिश कहीं
                    तेरे आशियाँ को जला न दे

सोमवार, 7 दिसंबर 2015

तारों की चुनरिया



चमकने लगी मेरी तारों  की चुनरिया 
हीरे मोती जड़ी मेरी रंगदे चुनरिया 

            पिया मोरे तू रंगा दे 
            रंग में अपने तू सजा दे 

पास आके तेरे ख़्वाब सजने लगे 
दिल में उल्फ़त भरे गीत जगने लगे 
बहक न  जाएं हम तू ओढ़ा दे चुनरिया 

            पिया मोरे तू रंगा दे 
            रंग में अपने तू सजा दे 

डाली से गिरा एक मै तो इक फूल हूँ 
दुनिया की आँखों में मै तो शूल हूँ 
अपनाओ मुझे बरसूँ बनके बदरिया 

            पिया मोरे तू रंगा दे 
           रंग में अपने तू सजा दे 

 

तेरी खुशबु आने लगी है



सांसो में तेरी खुशबु सी आने लगी है 
फ़िज़ाओं में मस्ती सी छाने लगी है 

                हवाओं ने भेजा हे पैगाम तेरा 
                सरगम जिसे गुनगुनाने लगी है 

फूलों से पत्ते पत्ते से पूछा 
हवाएं भी संदेश लाने लगी है 

               भीगा बदन है बिखरी लटें है 
               चुनरिया मेरी लहराने लगी है 

सारे अरमां खो गए



सारे अरमां मेरे  खो गए दूर हमसे जो तुम हो गए

                 तुमने वादा किया पर निभाया नही
                 साथ मेरा भी क्या तुमको भाया नहीं
                  जाने क्यों तुम खफा हो गए
                 क्यों ये शिकवे गिले हो गए

दिल तो नाजुक ही था टूटना ही तो था
यूं इसे तोडना भी तो लाज़िम न था
दिल के अरमां मेरे सो गए
सपने वीरान से हो गए

                दिल दुखाया मेरा न मनाया मुझे
                मेरे नाजुक से दिल ने बुलाया तुझे
                दिल के टुकड़े मेरे हो गए
                रास्ते जो जुदा  हो गए 

रविवार, 6 दिसंबर 2015

विश्वास



एक सा दिल जब सबके पास होता  है
हर किसी पे क्यों नहीं विश्वास होता है

                 डूबते हुए को तिनका क्या बचाएगा
                 एक सहारे का मगर एहसास होता है

आदमी कोई कितना आम हो लेकिन
वो किसी के वास्ते तो ख़ास होता है

               गालियाँ देता है दुआएँ कोई देता है
               वो वही देता है जो जिसके पास होता है 

दिल तेरे नाम



इश्क ने तेरे दीवाना किया है
सबने हमें बदनाम किया है

                   दिल की बातें तो वो ही जाने
                   जिस तन लागे वो दर्द पहचाने
                   हमने तो दिल को थाम लिया है

तेरे रूप का कोई न सानी
ऐसी भई मै तो प्रेम दीवानी
मैने तो दिल तेरे नाम किया है  

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

पिया की डगर





चली में तो पिया की डगर को चली
मन में साँवरिया हुई मै बावरिया

                    चंचल  मन मोरा इत  उत डोले
                     पानी की गगरी खाए हिचकोले
                     तन  ये सम्भले न मन ये माने ना
                     राह चलत उलझी उलझी

वैरी झोंका जब जब आये
सर से चुनरी उड़ उड़ जाये
दिल कुछ बोले ना
घूंघट खोलूँ ना
नैनन की भरूँ मै गगरी

                  नैना मोरे भये है दीवाने
                  दिल का भंवरा गाये गाने
                    चंचल मन मोरा
                   पुलकित तन मोरा
                   राह तकत हुई मै बावरी

ज़रा आहिस्ता चल



दर्द की बारिश अभी है कम
ज़रा आहिस्ता चल
तुझसे मिलने और बिछुड़ जाने का गम
ज़रा आहिस्ता चल

                  मेरी आँखों में ना सही
                   उस रेहबर की याद लेकिन
                  उसकी आँखें भी हुईं नम
                  ज़रा आहिस्ता चल

न हो तू इस कदर खुश ऐ दिल
उनसे  मिल जाने के बाद
अब न कर रुसवाई का गम
ज़रा आहिस्ता चल

बुधवार, 2 दिसंबर 2015

सब लोग जान लेंगे




छोड़ो ये बाहें मेरी सब लोग जान लेंगे
क्या है तुम्हारे दिल में सब लोग भांप लेंगे

                    हम हो गए तुम्हारे फिर क्यों हमे सताते
                    दिल तुमको दे चुके है अब क्यों पास मेरे आते
                    हम खूब जानते है सब लोग क्या कहेंगे

केवल तेरी ख़ता है साजिश है तेरे दिल की
वरना न ऐसी हालत होती कभी हमारे दिल की
लेकिन ज़माने वाले बोलो तो क्या कहेंगे

                 कुछ तुम भी तो समझो आती मुझे शर्म है
                 रहने दो अपने दिल में तुमको जो भरम है
                 हम तो जुबां से अपनी तुमको न हाँ कहेंगे 

पिया माने ना




पिया ऐसे रूठे कि माने ना
दिल का क्या हाल जाने ना

                    आँखे क्यों भीग गईं
                   अँसुअन की बरसात से
                     दिल की लग्न मन की छुअन
                     सांसो की तपन तू जाने ना

ये पपीहा पी पी गाये
क्यों हूक जिया में जगाये
मन भंवरा उड़ उड़ जाए
कुछ तुम बिन भाए ना

                  सपने सब टूट गए है
                 बलमा जो रूठ गए है
                  दिल सम्भले बोलो कैसे
                  ये तो कुछ माने ना 

तेरा साथ




तेरा साथ हम तो न छोड़ेंगे सनम
उठाने पड़ें चाहे कितने सितम

                      तेरे लिए हमको है मरना  गवारा
                      जीना है क्या जब न हो तेरा सहारा
                       है पल वही प्यारा जहाँ संग तू सनम

तेरी वफ़ा का हमें  मिले जो सहारा
वो पल है सुहाना जीवन संवरे हमारा
खुशियो से भरदो तुम मेरा दामन 

मेरी तारों की चुनरिया



चमकने लगी मेरी तारों की चुनरिया
हीरे मोती जड़ी मेरी रंगदे चुनरिया

                पिया मोरे तू रंगा दे
                रंग में अपने तू सजा दे

पास आके तेरे ख्वाब सजने लगे
दिल में उल्फ़त भरे गीत जगने लगे
जाएं बहक  न हम तू उढ़ा दे चुनरिया

                 पिया मोरे तू रंगा दे
                 रंग में अपने तू सजा दे

डाली से गिरा मै तो इक फूल हूँ
दुनिया की आँखों में मै तो शूल हूँ
अपनाओ मुझे बरसूँ बनके बदरिया

               पिया मोरे तू रंगा दे
                रंग में अपने तू सजा दे


तेरी खुशबु आने लगी है



सांसो में तेरी खुशबु सी आने लगी है
फिजाओं में मस्ती सी छाने लगी है

हवाओं ने भेजा है पैगाम तेरा
सरगम जिसे गुनगुनाने लगी है

फूलों से पूछा पत्ते पत्ते से पूछा
हवाएँ भी संदेश लाने लगी है

भीगा बदन है बिखरी लटें है
चुनरिया मेरी लहराने लगी है

                 

सारे अरमां खो गए




सारे अरमां मेरे  खो गए ,  दूर हमसे जो तुम हो गए

                   तुमने वादा किया पर निभाया नहीं
                   साथ मेरा भी क्या तुमको भाया नहीं
                   ऐसे जाने क्यों खफा हो गए
                   होश मेरे भी तो खो गए

दिल तो नाजुक ही था टूटना ही तो था
यूं इसे तोड़ना भी लाज़िम न था
दिल के अरमां मेरे सो गए
सपने वीरान से हो  गए

                 दिल दुखाया मेरा न मनाया मुझे
                 मेरे नाजुक से दिल ने बुलाया तुझे
                 दिल के टुकड़े मेरे हो गए
                 रास्ते जो जुदा हो गए

शनिवार, 21 नवंबर 2015

तेरी याद में




 तेरी याद में  दुनिया को भी भुलाये हुए
ज़माना गुज़रा है अपना  ख्याल आये हुए

                     किसी की ज़फ़ाओं का ज़िक्र क्या कीजे
                      किसी को  परवाह  न हो तो क्या कीजे
                      हम  तो है अपनी खताओं से मात खाए हुए

दिल मेरा तेरे ख्यालों में ही है खोया हुआ
इस कदर खोया रहा गेसुओं में सोया हुआ
लेके होंठों पे हँसी दिल पे चोट खाए हुए 

तेरी याद भुलाने चला हूँ




तेरी याद दिल से भुलाने चला हूँ
मै खुद अपनी हस्ती मिटाने चला हूँ

                    जला है इस तरफ आशियाना हमारा
                    भला इस कदर भी क्या हमने बिगाड़ा
                     मै खुद अपनी किश्ती डुबाने चला हूँ

न तुमसे है शिकवा न कोई शिकायत
पता क्या  था तुम हो बेमुरव्वत
भंवर में खुद को मिटाने चला  हूँ 

शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

पास बैठो ज़रा



पास बैठो ज़रा चैन मिल जायेगा
वक्त कैसा भी हो वो गुज़र जायेगा

                   दूर हमसे न होना गर भूल हो
                   माफ़ करना मेरी भूल चूक को
                   दिन थमेगा नही वक्त टल जायेगा

तुम तो यूँ ही सदा मुस्कुराया करो
पलकें आंसुओ में न डुबाया करो
जुल्फें संवरे तो चंदा निकल आएगा

                 गेसुओं में छुपा लो हर इक राज़ को
                 वक्त नाज़ुक कहीं न पर्दा फ़ाश हो
                 शमा रहते ही परवाना जल जाएगा 

धीर बंधा जाओ



इस दिल पे ज़रा तरस खाओ , तुम अब तो धीर बंधा जाओ
अब आन मिलो न तरसाओ , इस मन को आस बंधा जाओ

                    रोती है आँखे पल पल  छम छम
                    होठों पर मुस्कान दिए जाओ

जाने कबसे दिल रोया है
तेरे सपनों में खोया है

                         दिल पगला है दीवाना है
                        ये सच है या अफ़साना है

कब तलक रहूँगी मै प्यासी
अमृत रस को टपका जाओ

                      इक झलक ज़रा दिखला जाओ
                       इस मन की प्यास बुझा जाओ                

बुधवार, 18 नवंबर 2015

दुआएँ लिए जा



सदाएं दिए जा दुआएँ लिए जा
जफ़ाओं  के बदले वफ़ाएं लिए जा

                  दिल ने न छोड़ा वफाओं का दामन
                  ज़माने के हर गम उठाये तो क्या गम

वफ़ा हमने की है दुआ तुझको दी है
सितम चाहे हमपे तू लाखों किये जा

                 न हो कभी रूसवा हमारी कहानी
                 इतनी अगर तुम करो मेहरबानी

सिए होंठ हमने लबों पे है ताले
दे हमें तू ख़ुशी चाहे आंसू दिए जा 

दिल को कहने दो



दिल पगला है ये तो इक दीवाना है कहता है जो कहने दो
इसी हाल में इसको रहने दो मस्ती में ही खुश रहने दो

                      क्या इसे जीने का हक नहीं
                      क्या बोलने पर  भी ताले है
                      हम तो फिर दिल वाले है
                      कुछ हमको भी तो कहने दो

ज़िंदा है अब कुछ बोलेंगे
दिल को तराजू में तोलेंगे
अधिकार हमें भी जीने का
तुम हमको भी खुश रहने दो 

कोयलिया गाने लगी



आज जाने कोयलिया क्यों गाने लगी
मेरे मन की कली भी मुस्कुराने लगी

             दिल में उमंगो की  क्यारी खिल उठी
             मन की बगिया भी आज महक उठी

हर कली खिलके गीत गाने लगी
चंपा चमेली भी खुशबु लुटाने लगी

            तेरे पाँव की आहट  भी आई तो है
            लगता है उस पार से कोई आने को है

हर आहट पे तेरी खुशबु सी आने लगी
मन ही मन मै तो सपने सजाने लगी

मंगलवार, 17 नवंबर 2015

गुज़रा पल



तड़प तड़प के गुज़ारी है जिंदगी हमने
सुनी ज़रूर है देखी न कभी ख़ुशी हमने

दिल में एहसास है बीते हुए लम्हों का
इक दर्द सा उठता है दिल से  जख्मों का

गुज़रा पल कैसे भुलाऊँ तुम बताओ मुझको
भूले से ही सही एक आवाज़ तो दे दो मुझको

लौटकर पास मेरे तुम यूँ ही चले आओगे
 क्यों ऐसा लगे सपनो में मुस्कुराओगे


अब क्या करूँ मै




मुझे जाना बहुत ही दूर है
पाँव चलने से अब मजबूर है
पिया कैसे चलूँ मै हाय अब क्या करूँ मै

तेरे संग में जीना ज़रूर है
साथ रहना मुझे मंज़ूर है
पिया कैसे रहूँ मै बोलो अब क्या करूँ मै

गाँव तेरा बहुत ही दूर है
 दिल मिलने पे मजबूर है
पिया कैसे मिलूँ मै  बोलो अब क्या करूँ मै

मेरे दिल का बोलो  क्या कसूर है
तेरा दिल क्यों बना मगरूर है
हाय अब क्या करूँ मै जीते जी ही मरूँ मै  

दिल तेरा हो गया



सपनों का जहाँ  अब सो गया
मेरी दुनिया में अँधेरा हो गया

                    अब शाम की तन्हाईयाँ भी चुभने लगी
                    इक अगन अनबुझी सी सुलगने लगी
                     देखा तुझे तो लगता है  सवेरा हो गया

सिमटने लगे तारागण टिमटिमाते हुए
मन में नगमों को  गुनगुनाते हुए
मेरा दिल काबू में तेरे हो गया 

मंगलवार, 10 नवंबर 2015

दिल तेरे नाम



कोई कहदे जहाँ वालों से इस जग वालों से
कि तुझपे मिट गए दिल तुझे लिख गए

अब चाहे जले ये ज़माना बनाये फ़साना
नहीं घबराएंगे  हम
दिल हमने तुम्हीं को दिया है
ये तय कर लिया है
तो क्या परवाह है  जो दिल तुझे लिख गए

दिल की चोरी हुई है जबसे
फ़िदा दिल है तबसे
तो अब क्यों कतराएं हम
न धोखा दिया है किसी को
न रुसवा किसी को जो दिल तुझे लिख गए

दिल को था इक दिन जाना
बना क्यों फ़साना
क्यों इससे घबराये हम
अब रूठे या रिश्ता टूटे
डरे क्यों किसी से जो दिल तुझे लिख गए 

समझ को समझो



समझ  समझ के समझ को समझो
समझ समझना भी इक समझ है
समझ के भी जो अभी न समझा
मेरी समझ में वो नासमझ है

                 वफ़ा निभाना तुम्हे न आया
                 सीखो पहले वादा निभाना
                  दिल शीशे का टूटेगा तो
                  होगा मुश्किल इसको बचाना

पत्थर दिल को मोम बनाना
हमें न आता तुम्हीं बताना
दिल है पगला कैसे सम्भले
आके होश में इसको लाना

              वादा किया तो आके निभाना
               पड़े जो मुश्किल आके बचाना
               दिल तो एक आवारा बादल
               इसको बस  इक तूने जाना 

शुक्रवार, 6 नवंबर 2015

क्यों दूर है




कभी दूर रहके भी पास थे अब पास रहके भी दूर है
जाने क्यों हुए ये फासले यही सोचके मजबूर है


                     क्या ग़िला करें किस बात पर
                      क्यों निगाह तुमने फेर ली

किस बात पर नाराज़ हो
क्यों हमसे बाज़ी खेल ली

                     क्यों निगाह तेरी बदल गई
                      हुआ ऐसा कैसा कसूर है


दिल मेरा तड़प रहा यहाँ
वहाँ तुम भी तो हो परेशां

                  दिल ज़ख्म खाए पड़ा हुआ
                किसको दिखाएँ हम निशां

अब मान  जाओ कहा मेरा
माफ़ करदो हुआ जो कसूर है 

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2015

चैन से जीने न दिया



दो पल भी हमको चैन से जीने न दिया
पीना जो चाहा ज़हर तुमने पीने न दिया


                 रुसवाई का डर था हमको पर अब क्या शिकवा
                 तुमने जो पर्दा है गिराया लोगों से क्या पर्दा
                  तुमने जो गम दिया वो तो किसी ने न दिया


काश हमारा दिल न होता हमसे ही बेगाना
अच्छा हुआ जो टूटा दिल ये तब हमने जाना
 इक पल हँसना भी दिल की लगी ने न दिया


                 पास अगर तुम होते हमारे मुश्किल होती दूर
                 आज दूर है इतने कि तुमसे मिलने को मजबूर
                  मिलना भी चाहा अगर दिल ने ही शिकवा किया 

साथी साथ निभाना



साथी साथ निभाना, वादा किया तो तोड़ न जाना
मुझको कभी न भुलाना , साथी साथ निभाना


                         तू जो चलेगा साथ जो मेरे चलेंगी सारी राहें
                          राहों के शूल भी सारे अपना पंथ संवारें
                          चाहे पग में शूल चुभे तू उनसे न घबराना


तुझे साथ में देखूँ जब मै हर  टल जाये
 पल जब थम जाए डगर उसे मिल जाए
जीवन पथ पर  साथी पाँव अपना बढ़ाना


                        जीवन की मुस्कान तुम्ही से किस्मत की तू रेखा
                        तबसे भाग्य की रेखा चमकी जबसे तुमको देखा
                        राहों  की मुश्किल हो आसां मुझको न ठुकराना 

सुन दिल की सदा



वक्त ने किया जो तुमसे जुदा
आना पड़ेगा तुमको सुनके सदा
सुनले ओ साथी मेरे , मेरा फैसला
दिल मेरा तुझको हरदम देगा दुआ


              या तो लोटा दो दिल ये हमारा
              जो था हमारा बन गया तुम्हारा
              इतना भी मुझसे दूर न होना
              सुन भी न पाओ तुम मेरी सदा


ओ मेरे हमराही वादा ये करना
वादे से अपने अब न मुकरना
जिंदगी तो मैने  करदी तेरे नाम
करो तुम ये वादा कभी होंगे न जुदा

सदाओं का असर





आज हम अपनी सदाओं का असर देखेंगे 
तेरी नज़र देखेंगे ज़ख्मी जिगर देखेंगे 


दिल पे लगी चोट  तो वो पहले ही नाकाम हुआ 
कुछ तो बदनाम ही था और बदनाम हुआ 
तेरे एहसानो  का इस दिल पे असर देखेंगे 


अपनी नाकामियों का ज़िक्र भी अब क्या कीजे 
कुछ तो तड़प दी तुमने और तड़पने दीजे 
अपनी बर्बादी का अब जश्ने - अलम देखेंगे 


तेरी रेहमत का गर एक इशारा होता 
जो हुआ हाल हमारा ऐसा न हुआ होता 
आज तो चाके गिरेबां पे जुल्म देखेंगे 

बिखरे पन्ने -कविताओ का संग्रह




मेरी इन कविताओ को पढ़कर कोई मुझे कवयित्री समझ बैठे तो मै समझती हूँ यह उसकी भूल होगी।
अपनी पहली टूटी -फूटी कविता जब मै दसवी कक्षा में पढ़ती थी, तब लिखी थी।  तबसे यह क्रम
कैसे चलता रहा, मुझे कुछ याद नहीं आ रहा।   जीवन मेँ  अभावों का चोली -दामन  का साथ रहा।
कल्पना मेरी चिरसंगिनी रही है।   मेरी कविताओ में जहाँ एक ओर उमंगती हुई भावनाए तरंगित
मिलेगी वहाँ दूसरी ओर दामन से बाँधी हुई टीसों की परिध्वनि भी।

मन में जो आया लिख दिया, दोबारा उसके बारे में सोचा तक नहीं, लिख लिखकर कागज़ की पर्चियां
इकट्ठी करती थी।   मुझे पता भी न था कभी इन कागज़ की पर्चियों की कभी आवश्यकता भी पड़ेगी।
एक दिन मेरे बेटे ने वो सारी पर्चिया देखकर कहा  कि इनकी एक पुस्तक मै छपवाने जा रहा हूँ
आप तो दो शब्द लिख दो।   इस संग्रह में कुछ साल नई / पुरानी कविताओ का समावेश  है।   इनमे से
कोई भी कविता आपको भाव -विभोर कर सके तो मुझे अपार हर्ष होगा।

इसका श्रेय मै अपने बेटे को देना चाहती हूँ जिसकी बदौलत यह पुस्तक आपके समक्ष लाने का
उत्साह जुटा पाई।   मैने अपने बेटे से ही कम्प्यूटर पर ब्लॉग बनाकर लिखना सीखा।   यह सब उसके
प्रयास का ही परिणाम है जो आज आपके सामने है।

यह पुस्तक अपने सभी पाठकों को सप्रेम समर्पित करती हूँ।  आशा है आपको पसंद आयेगी।

Meri Kitaab 'Bikhare Panne' se kuch kavita ke ansh

ये चाँद सितारे कहते है

फुरकत का कुछ आलम ऐसा है , खुद को भी बेगाने लगते है
तन्हाई से घबरा जाते है , परछाई से खुद की डरते है

मंजिल की तमन्ना में भटके , काँटों से गुज़रते आये है
अब पाँव के छाले भी रिसते , हर गाम पे उठते गिरते है

रुसवाइयों से डरकर तो हमने , चेहरे पे नकाब भी पहने मगर
ये शहरे वफ़ा के लोग हमें , हर मोड़ पे घूरा करते है

ऐ काश कोई हमदम होता , जख्मों को ज़रा सहला देता
बेदर्द ये दुनिया वाले तो , हर जख्म कुरेदा करते है

बाहों का तुम्हारी ग़र मुझको , दम भर जो सहारा मिल जाये
वो मौत हंसी होगी कितनी , ये चाँद सितारे कहते है



जी चाहता है


निगाहें मिलाने को जी चाहता है , ज़रा मुस्कुराने को जी चाहता है

अभी तक तो रोकर ये उम्र गुजारी ,
अब हँसने हँसाने को जी चाहता है

तेरे चेहरे से निगाहें ये हटती नहीं ,
तुझपे मिट जाने को जी चाहता है

बस एक तुम हो और तन्हाई हो
 आलम भूल जाने को जी चाहता है

आ तुझको ज़रा और प्यार करलूं
तेरी चाहत पाने को जी चाहता है

न कभी भूल जाएँ एक दूजे को हम
कसम आज खाने को जी चाहता है

तुम्हीं हमसफ़र हो जिंदगी हो मेरी
जां निसार करने को जी चाहता है




सजन तुम बिन



कितनी सुहानी हे ये साँझ की बेला ,
किन्तु है सूनी सूनी सजन तुम बिन

                  मीठे मीठे कोयल के सुर भी
                   पड़ गए फीके सजन तुम बिन

सांसों की गति मंद पड़ गई
तीव्र न हुई सजन बिन

                    वर्षा में झींगुर के बोल
                    लगे न मीठे सजन तुम बिन

पायल और वीणा की झंकार
पड़ गई धीमी सजन तुम बिन

                    मन मयूर हुआ बेचैन
                    आये न चैन सजन तुम बिन

तुम ही तो मेरे खिवैया हो
कैसे लगू पार सजन तुम बिन

                     तुमसे ही नाता जोड़ा है पर
                      टूटे दिल के तार सजन तुम बिन



क्या दिल लगाके पाया


कोई पूछे कि दिल लगाके हमने क्या पाया है
कितना कुछ पाया और कितना कुछ गंवाया है

                   मिलाके उनसे नज़र दिल का चैन गंवा बैठे
                    खुद अपने और उनके हम होश गंवा बैठे
                    बड़ी मुश्किल से अब हमें होश आया है

कोई पूछे अगर रातों की नींद कैसे उडी
ये बात महफ़िल से कहने में उलझन बड़ी
अपनी और उनकी रुसवाई का ख़्याल आया है

                      दिल के दर्द की न जो दवा मिले तो क्या कीजे
                      खुद ही मर्ज जी  को लगा लिया क्या कीजे
                      अब तो अपनी हालत पे हमको तरस आया है




जिंदगी गुज़ारे चले गए



तेरे प्यार की कसम खाकर , जिंदगी गुज़ारे चले गए

तेरी तमन्नाओ का सहारा लेकर,
तेरी यादों का  किनारा   लेकर
भंवर में नैया उतारे चले गए

                        न जाने क्या खोया हमने क्या है पाया
                         दर्दे  दिल जगा दिल में तो ख्याल आया
                          हम बेखुदी में तुमको पुकारे चले गए

तेरी महकी हुई जुल्फों की छाँव तले
तेरे मदभरे नयनों के जाम तले
हमअपनी  जिंदगी संवारे चले गए

                         दिल में अनब्याही कलियाँ चटकी है
                          तेरे दामन  से लिपटने को तरसी है
                           तेरे इंतज़ार में साँझ सकारे चले गए




सितमगर


आज तेरी बेरुखी ने फिर मुझे रुला दिया
दिल इतना रोया कि सारा जहाँ हिला दिया

इतने सितमगर तो न थे  तुम कभी
किसने तुम्हे मोम से पत्थर बना दिया

मै तो वो दिया हूँ जिसकी लौ बुझने को  है
क्यों आज तूने इस राह तक पहुंचा दिया

बेखबर थी अनजान थी इस  अंजाम से
बेखुदी ने किस मोड़  पर पहुंचा दिया

तन्हाई क्या है न जाना था कभी
क्यों ये तेरी याद ने बतला दिया




गाँव छोड़कर जाने वाले

 एक अपरिचित अनजाने से, कितना मुझको मोह हो गया
गाँव छोड़कर जाने वाले , उसको क्या तुम जान सकोगे ,

पल दो पल ही साथ हुआ था , किन्तु बन गया जीवन नाता
साथी बोलो उस नाते की , गहराई पहचान सकोगे

जिस तरुवर के नीचे हमने , अरमानो के फूल खिलाये
उस उजड़े तरुवर की पीड़ा , थोड़ी भी अनुमान सकोगे

थके पंथ के पंछी जैसा,  गिर ही जाऊँ गोद तुम्हारी
इसका क्या विश्वास कि , मेरी मजबूरी पहचान सकोगे




विरह का दर्द


पिया मोरे तुम बिन रह्यो न जाए
कासे कहूँ भेद मै अपना, जिया  मोरा उडा  जाए

दिन नही चैन रात नही निंदिया
तुम बिन मोहे न सुहावे बिंदिया
बिरह कलेजा खाए

जैसे चकोरी व्याकुल चंदा बिन
वैसी हूँ मै  सजना तुम बिन
तड़प सही न जाए

कब आओगे मोरे अंगना
कबसे खनक रहे है कंगना
तपन ये कौन बुझाए




पिया का आगमन


आज सखी जाने क्यों मन मोरा गाये
पिया घर आये मोरे पिया घर आये

खुशियों से भर गया मोरा अंगनवा
छुन छुन मोरा बाजे कंगनवा
प्रीत के गीत दिल झूम झूम गाये

सुध बुध बिसरी भई मै बावरिया
बरसो के बाद घर आये सजनवा

सेज सजाऊँगी मै दुल्हन  बनूँगी
कोई कसर भी न बाकी रखूंगी
आज पिया जो मुझे अंग से लगाये


फूल न मारो


शूल चुभा दो फूल न मारो
चाह नही जीने की यारो

किसी के दिल में प्यार नही
कोई किसी का यार नही
प्यार से अच्छी नफरत है
शूल चुभा दो फूल न मारो

घुट घुट कर हम जीते है
गम के आँसू पीते है
जीने से कुछ लाभ नही
शूल चुभा दो फूल न मारो

 रीत बुरी है दुनिया की
प्रीत बुरी है दुनिया की
देखी वफ़ा इस दुनिया की
शूल चुभा दो फूल न मारो



दिन गुज़र न जाए कहीं

 आज देखा है तुझे देर के बाद
आज का दिन गुज़र न जाए कहीं

तमन्ना इस दिल की तू आये यहाँ
और फिर लौटके न जाए कहीं

आरजू दिल की सारी पूरी हो
मेरी हस्ती बिखर न जाए कहीं

आज जी भर के मुझे रोने दे
कहीं दरिया उतर न जाए कहीं

तुम यूँ ही बैठे रो मेरे आस पास
डर है तू दिल से उतर न जाए कहीं




बेबसी का दर्द


बेबसी का हद से जब  गुज़र जाना
फिर बताये कोई कैसे जिया जाना

जिंदगी का दुल्हन बनके संवर जाना
वक्त से कहदो दो घड़ी ज़रा ठहर जाना

दो घड़ी तो  रुको फिर चले जाना
दिल की धड़कन ज़रा रुक जाना

हम बने  खुद ही अपने दुश्मन जब जाना
तुमपे न आने देंगे इल्ज़ाम बनायेगे बहाना




वादा निभाना


वादा करना और न आना, कैसे बनेगा फिर ये फ़साना
तूने बनाया झूठा बहाना , सोचो कैसे मैने ये जाना

सच तो सच ही होता है यारो
कुछ तो सीखो वादा निभाना

झूठ कहूँ तो कैसे कहूँ मै
तेरी वफ़ा पे मेरा मिट जाना

तेरी ज़फ़ाएं देखेंगे हम भी
मेरी वफ़ाएं देखे ये ज़माना



चले आइये



दिल की महफ़िल सजी है चले आइये
आपकी बस कमी है चले आइये

हमने सोचा न था होगा ऐसा कभी
जो मिले भी तो बिछुड़ेगे न हम कभी
तोहमते लग चुकी है चले आइये

दिल्ल्गी से  जान  तो जाने लगी
आपको पर ये झूठी कहानी लगी
अब तो हद हो चुकी है चले आइये

बेजुबानी पे किसी को सताना नही
रूठ जाए अगर तुम मनाना नही
ये सितम हम पे अब क्यों चले आइये

तेरे आने से रुत ये निखर जायेगी
जिंदगी मेरी कुछ तो संवर जायेगी
बेकसी बढ़ चुकी है चले आइये




तराना प्यार का

छेड़ मेरे साथी तराना कोई प्यार का
नगमा जवां हो गया सुनके नशा हो गया

रात ढलने लगी, शमा पिघलने लगी
जिंदगी की सहर , फिर यूं मचलने लगी
जाने क्या है जादू सा ,मौसमे बहार का

आंसू लगे मुस्कुराने , होठ लगे गुनगुनाने
महकने लगी है फ़िज़ाएं ,
फूल लगे मुस्काने
तेरा जलवा ऐसा है ,नशा जो खुमार का


दूर चले


चलो आज हम दूर चलें
मुक्त गगन में उड़ चले
पंछी बन विचरण करें
चलो आज हम दूर चलें

पथ में सुमन खिलाये
शूलों को दूर भगाएं
जग के इन स्वार्थ भरे
नातों को ठुकराये
सपनो की दुनिया बसाये
चलो आज हम दूर चलें

न हो कही  पर दुःख का निशां
हो सुख से भरपूर ये जहाँ
वादियों में फूल खिलाएं
जीवन को स्वर्ग बनाएं
मंजिल पे कदम बढ़ाएं
चलो आज हम दूर चलें




प्रीत की मनुहार

माना ये जीत तुम्हारी है , पर मेरी भी तो हार नहीं

              मै तो  अपनी आकुलता से
              प्रीत निभाया करता हूँ
              अपनी आशा के दीपो को
               मै रोज़ जलाया करता हूँ

अब चाहे मृत्यु आ जाए , ये जीवन मुझको भार नही

              लहरें सागर तट  पर तो  
              अस्तित्व मिटाया करती है
     
               शलभों की टोली दीपक पर
               प्राणो को लुटाया करती है

हो अधरों  मुस्कान तेरे, मुझको ये आंसू भार नही

               ये बंधन हे स्वीकार मुझे
                इसमें धरती आकाश बंधे
                मुझको सुख मिलता इसमें
                इसमें प्राणो के पाश बंधे

पथ की विपदायें प्यारी है ,मंजिल से मुझको प्यार नही




तेरा निखरा रूप


तेरा निखरा रूप जैसे , खिलता हुआ चमन
जग हँस रहा जैसे , हँस रहा जैसे गगन

कलियों  में सुरभि लिए, तुम यूं ही खिलो
होठो पर मुस्कान लिए, तुम मुझसे मिलो
लगता हे आज जगे , मेरे सोये हुए सपन
जग हँस रहा जैसे , हँस रहा जैसे गगन

सागर अठखेलिया है  करता , लहरो को संग लेकर
तुम भोली चितवन से देखो , आँखों में प्यार भरकर
जीवन का सुख यही है , बोले मेरा अन्तर्मन
जग हँस रहा जैसे, हँस रहा जैसे गगन




दोराहा


बात इतनी बढ़ी कि उलझन में पड़  गए
न पता था ऐसा भी कभी दोराहा आएगा

हम तो बेखुदी में जहाँ को भूल बैठे थे
क्या पता था जमाना ये कहर ढायेगा

जिस आशियाने को फूंक दिया
इस जमाने की चिलमन ने

कबसे हम बैठे इसी फ़िराक  में है
कभी अपना मुक़ददर जगमगाएगा

हम अपनी बर्बादी का सितम देख चुके है
देखते है ज़माना और क्या गुल खिलायेगा




प्यासी अखियाँ



अखियाँ  तुम बिन प्यासी
रहती निशदिन उदासी
दो पल कल भी न पाती

सारा दिन मग जोह के
हारकर ये थक जाती
तब मन ही मन में
हो अधीर वो अकुलाती

कभी जब कागा टेर सुनाता
वो हर्षित हो जाती
पिया मिलन की आस लिए
वो अश्रुपूरित हो जाती

कभी सुख में कभी दुःख में
कभी छाँव में कभी धूप  में
जब भी वो तुम्हे न पाती
 बड़ी व्याकुल हो जाती

तुमसे मिलते ही हर्षातिरेक से
फिर जल से वो भर जाती
मन के सारे भेद चुपके से
वो अखियाँ ही कह  जाती




एक मुकाम हुए हम तुम


प्यार के सफर में, एक मुकाम हुए हम तुम
याद जो रहेगा वो, पैगाम हुए हम तुम

सपनो की भीड़ में जिंदगी वीरान है
प्रीत में ढली वो मुस्कान हुए हम तुम

धड़कनो के पास तेरी यादो का बसेरा है
फासले  सब टूटे एक पहचान हुए हम तुम

जिंदगी और मौत पल दो पल का सवेरा है
जो कभी न ढ़ले ऐसी शाम हुए हम तुम

दर्द का सफर एक ख्याल बनकर रह गया
खुशियो का गाँव मेहमान हुए हम तुम



तुम पिघले भी तो क्या पिघले


तुम  पिघले  भी  तो क्या पिघले , मैने तो पाषाण पिघलते देखे है
अपनी आहो पर नाज़ मुझे , मैने तो भगवान सिसकते  है

 जो कहकर मुझसे चला गया , हूँ पत्थरदिल मत याद करो
उस पत्थरदिल में अनायास , मैने तो अरमान उमड़ते देखे है

जिन आँखों की अमराई में , खो गया विहग मेरे मन का
उन नील नयन की कोरो में , मैने सैलाब उफनते देखे है

उलझन , कसकन झंझा  से ,जो  विरहिणी अवतरित हो
उसकी विरह व्यथा में , मैने तो तूफ़ान मचलते देखे है

जो  लिए उदासी के क्षण हो , पायल की झम झम में अपनी
  उसकी वीरानी संध्या में, मैने तो उद्गार पनपते देखे है



सपने खो गए


सारे सपने कहीं खो गए , जाने हम क्या से क्या हो गए

प्यार हमने किया , प्यार तुमने किया
जाने फिर दूर क्यों हो गए

वादा हमने  किया , वादा तुमने किया
क्यों फासले दरम्यां हो गए

चलते तुम भी  गए ,चलते हम भी गए
रास्ते क्यों जुदा हो गए

दूरियां तब न थी , दूरियां अब जो है
दिल ये क्यों बदगुमां  हो गए



प्रेम नगरिया


है ये प्रेम की ऊँची नगरिया , साथी धीरे धीरे चलना
बड़ी बांकी है इसकी डगरिया ,  साथी संभलकर पग धरना

सामने है नदी का किनारा , कल कल बहती नदी की  धारा
साथी हाथोँ को थाम ,और   थाम पतवार
साथी बाहो का दे दे सहारा
कहीं छूट न जाए डगरिया--------साथी-----------------------

लोच खाए न तेरी  कमरिया , देख सरके न तेरी गगरिया
 पड़ जाये न बल ,ज़रा धीरे से चल
कर निश्चय तू  अटल
कोई लागे न पग में कंकरिया -----साथी ---------------------



तेरी बेरुखी


दिल लगाके हमने  जाना , दिल्ल्गी क्या चीज़ है
इश्क कहते है किसे और आशिकी क्या चीज़ है


पहले दिल  को आप ही अपना समझ बैठे थे क्यों
फिर न जाने किस वजह से बिसराया था क्यों
टूटा दिल जब  जाना हमने बेखुदी क्या चीज़ है

हुई नादानी कुछ थी हमसे ,तुमसे भी तो कुछ हुई
हुए जुदा जो खाके ठोकर बेईमानी कुछ हुई
अब हुआ  मालूम हमको बेरुखी  क्या चीज़ है



प्रीत की पुकार

प्रीत मन की करे पुकार

सपनो के मीत  मेरे
गाऊं कैसे गीत तेरे
टूटे है वीणा के तार
प्रीत मन की करे पुकार

विरह व्यथा में प्राण जरे
तू भी न ध्यान धरे
नैया डोले है मंझधार
कैसे उतरूँगी उस पार

अंबर पे हँसते है तारे
आजा सजना हमारे
बरसते है नैन  हमारे
काहे दीनी बिरह की मार



अब क्या आओगे साजन


जीवन आशा की लताये
जब हिलोर ले उठती थी
मदमस्त लहर की तरंगे
जब विभोर  उठती थी

                 तब क्यों रूठे तुम साजन
                 अब क्या आओगे  साजन

तब सब सुमन  विकसित थे
उनमे मकरंद था उड़ता
मन की वीणा में निशदिन
था  मधुर राग इक बजता

                 टूटे तारों से अब क्या
                 मै  गीत सुनाऊँ साजन

थक गए है व्याकुल  नैना
अब तक भी तुम  न आये
जाने कब जीवन का दीपक
कब जले और बुझ जाए

                   हुआ क्षीण आज तो  यौवन
                   अब क्या आओगे साजन






मनवा है बेचैन

चैन मुझे मिलता नही , मनवा है बेचैन
दिलबर दीद को , हरदम तरसे नैन

प्रीतम  कब तुम आओगे  और न सताओगे
हर पल पंथ निहारूँ मै , होकर मै बेचैन

पल छिन राह निहारूँ मै इक पल न बिसारू मै
पलक न झपके मेरी , निरखत हूँ दिन  रैन

कैसे तोड़ू प्रीत को , झूठी जग  की रीत को
बंधन तोड़ न  पाऊँ मै, तड़पत हूँ दिन रैन




क्या ढूढ़ रहे है


कोई पूछे हमसे कि हम क्या ढूढ़ रहे है
दिल के जख्मो की दवा ढूंढ रहे है

किसको सुनाएंगे हम दिल की दास्ता
इक हम है इक  वो है तो क्या ढूॅढ़ रहे है


 तेरे जाने का सबब पूछेंगे सब कैसे बतायेगे
इतनी आसां नही है मर्ज जिसकी दवा ढूढ़ रहे है

तुझपे हर्फ़ न आने देंगे , जान अपनी गंवा देंगे
मिटने की हसरत में, जीने की सज़ा ढूढ़ रहे है



मुस्कुराते रहो


मुस्कुराते रहो  गुनगुनाते रहो
जिंदगी गीत है इसको गाते रहो

सोचो साथ तेरे और क्या  जाएगा
ख़ुशी का हर लम्हा न भुला पायेगा
मुस्कुराके गमो को भुलाते रहो

कारवां वक्त का यूँ गुज़र जाएगा
मुस्काओगे  बचपन फिर लौट आएगा
मुस्कुराहटों में हर पल बिताते रहो



 ओ मेरे  हमनवाज़



जब अँधियारा छा जाये , राह में मुश्किल पेश आये
तुम छोड़ न जाना साथ, ओ मेरे हमनवाज़

होती चांदनी मगरूर , अंधेरो से रहती है दूर
पर मै तेरा साया बन ,चलूंगी तेरे साथ ज़रूर

दो घड़ी साथ जो चल पाएं ,ज़माने की खुशियाँ पायें
तेरी सांसो की खुशबु से, सारे ग़म पिघल जाएं

प्यार का बंधन न टूटे , सांसो का रिश्ता न टूटे
थाम ले डोरी हाथों में, साथ धड़कन का न छूटे

प्यार का जादू छ जाए, खुमारी अब ये मन भाये
नशा न उतरे जीवन भर, उम्र मेरी तुझे लग जाए




दो घड़ी पास बैठो


दो घड़ी तुम पास बैठो
बस ज़रा मै प्यार करलूँ
तेरे इन नाजुक लबों के
रस ज़रा स्वीकार करलूं

हाय खिलता रूप तेरा
हो रहा जैसे सवेरा
फूल सी मुस्कान दे दो
जिसपे मै अधिकार करलूं

इस तरह आना तुम्हारा
रूठकर जाना तुम्हारा
भूल मेरी है यदि तो
मै तेरी मनुहार करलूं

जब ठिकाना है न पल का
फिर भरोसा केसा कल का
आओ जी भर कर तुम्हारा
आज मै सत्कार करलूं




तुझको देकर दुआएं


तुझको देकर दिल की दुआएं हम तो हुए परेशान
प्यार लुटाके तुम पर अपना,मुफ्त हुए बदनाम

              सदियों पहले ये न हुआ था
              नींद थी अपनी दिल अपना था
ले गए जबसे तुम दिल मेरा जीना हुआ नाकाम

               प्यार के वादे निकले झूठे
               सपने जो देखे पल में टूटे
अरमा बिखर के रह गए मेरे रास्ते में हो गई शाम

              पहला पहला प्यार था अपना
              मालूम क्या था है इक सपना
टूटा जो दिल आँखों में आंसू आएं  सुबो - शाम

             काश न तुमसे प्यार न होता
             गम न मिलता दिल न खोता
झूठी तसल्ली देकर तुमने जीना किया है हराम





मंजिल की ओर


मंजिल की ओर बढ़े कदम , पर मंजिल पाना मुश्किल है
कुछ जाल रकीबों ने ऐसे बुने , जिन्हे तोड़ पाना मुश्किल है

तूफां के थपेड़ो में पड़कर , साहिल तक आना मुश्किल है
 मौजो की ऊंचाई के आगे , पतवार चलाना मुश्किल है

दीदार तो उनका क्या होगा , कुछ सोच भी पाना मुश्किल है
जख्मो को तो हमने झेल लिया, पर होश में आना मुश्किल है

हाले  बयां करते तो  क्या करते , कुछ लिख पाना मुश्किल है
अपने हरफों को  ही अब तो , समझ पाना मुश्किल है




जुदाई का दर्द

तुमसे दूर हुए तो जाना जुदाई क्या होती है
यह मौत से भी बड़ी सज़ा होती है

 दिल को रोना पड़ता  है
 हर सुख खोना पड़ता है
सुकून जो दिल का खो जाए अजब हालत होती है

धड़कने थम जाती है
नब्ज़ रुक सी जाती है
आँखे हर पल रहती है नम रुसवाई होती है

लोग तड़पने का मज़ा लेते है
दुखी का दिल और दुख देते है
कसक दिल की फिर भी न ये कम होती है

आँखों में गुज़रे पल तैरते है
कानो में मीठे बोल गूंजते है
हर पल सताने लगता ये  गम  दुनिया सोती है



दिल की बाते


दिल की बाते दिल ही जाने
क्या है तमन्ना इस दिल की
या तुम खुद ही आकर पूछो
ख्वाहिश क्या मेरे मन की

क्या है बताओ दिल में तुम्हारे
हम है या कोई और वहाँ है
कोण है आखिर मेहमां तेरा
जो तेरे इस दिल में बसा है
थोड़ा सा मुझको भी बतादो
जिससे तसल्ली हो मन की

मेरे दिल  में तुम रहते हो
सच कहती हूँ झांक के देखो
नज़रे भी देंगी ये गवाही
जो बातो पर यकीं न हो तो
दिल में है तस्वीर तुम्हारी
जो बाते करती है मन की




उनका ख्याल

उनके ख्याल आये तो आते चले गए
कुछ राज़ थे जो दिल में छुपाते चले गए

तेरे दीद की हसरत लिए बैठे  कभी से
तुम आये तो हम सबको भुलाते चले गए

तेरे आने से  रोशन हुआ मेरा सारा जहाँ
किश्ती  को हम किनारे पे लाते चले गए

दिल डूब रहा था कितने गम के भंवर में
मिला सुकून जो तुम साथ हमारे चले गए



परदेसी प्रियतम


तुम चले गए परदेस , लगाके दिल को मेरे  ठेस
ओ प्रीतम प्यारे , अब जिऊँ मै किसके सहारे

जो यूं ही मुझे भुलाना था
तो यूं नजदीक न आना था
दिल मेरा गमो से चूर
हुआ मजबूर है झूठे सहारे

तूने क्यों मुझको बिसराया
तू ही तो था मेरा साया
अपनों से हुई मै दूर
क्या मेरा कसूर क्यों टूटे तारे

जो मुझको यूं ही गिराना था
तो पलकों पर न बिठाना था
अब गया तू जबसे रूठ
हर सपना झूठ क्या दोष हमारे




मिलने की हसरत


तुमसे मिलने की हसरत लिए जा रहे है हम
ये गुनाह है माना पर किये जा रहे है हम

तूने पर्दे में  अपने को छुपाया भी मगर
 झलक पाने की ख्वाहिश किये जा रहे है हम

तेरे रुखसार को देखने  की ख्वाहिश तो बहुत है
कबसे तेरी दीद की तमन्ना किये जा रहे है हम

तुम मरहम दोगे  ये तो मुझे एहसास था
अब चाक गिरेबां को सीए जा रहे है हम



तेरा तसव्वुर


कल चौहदवीं की रात को , देखा तेरा निखरा तसव्वुर
दिल तो था नादा बहुत, देखा तुझे तो चमका मुक़ददर

समझाया था मैने बहुत, लेकिन वो था कितना  नासमझ
दुनिया की रस्मो से बिल्कुल, अंजान वो था बेखबर

तेरी जुल्फों से खेलती ये अंगुलियाँ भी थी बेनूर बेअसर
तेरे रुखसार पे दिल फ़िदा था ,मगरूर  होगा क्या थी खबर

आसां तो बहुत था मंजिल पा लेना, बनते जो मेरे  हमसफ़र
मगर तुम्हे भुलाना नामुमकिन है, करूँ क्या ऐ मेरे  रेहबर



चुनरिया



पिया तेरे रंग में रंगी चुनरिया
तेरे ही कारण भी मै बावरिया

                  तन मन खोया नही होश मुझे कोई
                  नींद तूने लूटी सारी रैन नही सोई
                   सूनी सूनी डसती रही रे  सेजरिया

तेरी बाहो में ही सुकून मै पाऊँ
तेरे संग बिन पंख ही उड़ जाऊँ
तेरे बिन भाये न कोई डगरिया

                तू  मेरा मोहन है मै हूँ  तेरी  राधा
                जन्म भर न साथ छूटे करो ये वादा
                प्रेम में तेरे भूली अपनी खबरिया

गया जबसे दूर तूने मुझको भुलाया
एक खत से भी संदेश न भिजवाया
बता तूने काहे न लीनी मोरी  खबरिया



पदचाप



ये तुम्हारी पदचाप मुझे सुनाई दे रही है
लगता है जैसे कोई आवाज मुझे दे रही है

दूर की अमराइयों में घने जंगलो से
लगता है बांसुरी बजती सुनाई दे रही है

खामोशी के दामन से घटाओ  के आँचल से
इक खुशबु सी उड़ती दिखाई दे रही है

बहता  कोई झरना जैसे टकराये लहर साहिल से
ऐसी इक मौज मन में उमड़ती दिखाई दे रही है

तुमसे मै दूर नही जैसे कलियों के  पीछे झुरमुट से
तेरे दिल की धड़कन की आवाज़ सुनाई दे रही है

जुल्फों की घनी छाँव जैसे ,मेहँदी लगे पाँव जैसे
पायल की छमछम सी बजती सुनाई दे रही है

हर  आहट पे खटका हो जैसे बदन में सिहरन  जैसे
तेरी हर अदा मुझे बंद आँखों से भी दिखाई दे रही है



तुम ही तुम हो

जबसेतुम्हे देखा है आँखों में तुम्ही तुम हो
साँसों में रम गए हो , दिल में छिपे तुम हो

           दिल को मिला साथ जो  तुम्हारा
            चमका मेरी किस्मत का सितारा
प्यार तेरा पाया है राहों  तुम्ही तुम हो

             किश्ती ने पाया है किनारा
              मिला तेरी बाहो का सहारा
नगमे दिल गाने लगा साजों में तुम्ही  तुम हो

              छू ले गर आँचल तू हमारा
              थरथरा सा जाए ये शरारा
पलकें जो बंद करूँ सपनों में तुम ही तुम हो




तेरी याद


आज फिर दिल में इक उमंग सी उठ आई है
न जाने  क्यों फिर से तेरी याद चली आई है

कभी कभी तो  ये बहुत ही सताती है
कभी कभी तो ये बहुत ही रुलाती है
कभी तेरी बात पे हंसी मुझे आई है
न जाने क्यों तेरी हर अदा मुझे भाई है

तेरे शानो पे सर रखके मेरा सोना
तेरा मुझपे झुकना ख्यालो में खोना
 हाथों का उठना गेसू का बिखर जाना
तेरा यूं तकना मेरा शर्मा  जाना
प्रीत  ने कली दिल की महकाई है



पैगामे मुहब्बत

मैने तो तेरा हाथ आज थाम लिया है
सारी दुनिया ने मुझे इल्जाम दिया है
इस दिल को मैने अब तेरे नाम किया है
तूने मुहब्बत का ही पैगाम दिया है

रुसवाई  का डर है मुझे ऐ मेरे हमसफ़र
तेरी आाँखो से मैने जाम पिया है

तेरा ही  तसव्वुर देखती हूँ हर सू
दिल ने तो मुफ्त में बदनाम  किया है

हर दिल को तेरी आरजू तेरी तमन्ना है
हर इक ने तेरा नाम सुबो शाम लिया है

तू मेरा राहते जा मेरा लखते जिगर है
तुझसे ही इब्तदा और अंजाम किया है


दीवाना  दिल


छेड़ो न मुझे ऐसे दिल हो गया दीवाना
समझे मुझे ये दुनिया तेरे प्यार में बेगाना

सबने मुझे  नफरत दी , इक तूने मुहब्बत दी
देखो कभी दिल मेरा अब तू न कभी दुखाना

मैने तुझे पाया है तू मेरा  ही तो   साया है
वादा किया है तूने देखो न भूल जाना

तेरा मुझपे ये ऐहसा है तू कोई फ़रिश्ता है
सबसे मुझे प्यारा है अपना तुझी को माना

मै तेरे सहारे हूँ दुनिया का  भरोसा क्या
देखो तुम  दुनिया की बातो में नही आना




ऐ मेरे हमसफ़र


 ऐ मेरे हमसफ़र लम्बा है बहुत जिंदगी का सफर
थोड़ा  कट जाए इसलिए थोड़ी दूर मेरे साथ चलो

ये माना जिंदगी का  सफर भी कठिन है
ये माना तुम्हारा साथ चलना भी कठिन है
कुछ  लम्हे तो हँसते हुए गुज़र जायें
इसलिए कुछ दूर मेरे साथ चलो

ये माना तेरे मेरे जज़्बात अलग है
ये माना तेरे मेरे हालात अलग है
अब दुनिया ये हम पर न हँसे
इसलिए थोड़ी दूर  साथ चलो

आएंगे मोड़ कई जब चाहे रुक जाना
आएंगे मुकाम कई जब चाहे रुक जाना
जाने - पहचाने लोग निकल जायें
इसलिए थोड़ी दूर मेरे साथ चलो



पिया के आने का  संदेश

नाचे मोरा मन जी में उठत हिलोर
आज घर आएंगे पिया चितचोर

आया संदेशा तो मन मोरा झूमे
 पुरवाई लहरा के तन मोरा चूमे
उडी जाऊं जैसे पतंग संग डोर

 कितने बरस बाद आयेगे सजना
मेहँदी रचाके मै पहनूंगी कंगना
लाज आये पकड़े वो चुनरी का कोर

मै हूँ पिया की वो मेरे रहेंगे
तन मन इक रंग में हम रंगेंगे
छोड़ू न साथ चाहे रैन हो या भोर





मन की हालत


मन तो है इक पागल इसकी बाते कोई क्या जाने
हर पल कैद में रहना चाहे और कुछ भी न जाने

कितना तड़पाता है ये मुझको क्या तुमने कभी जाना है
तेरे साथ गुज़ारा हर पल कितना लगे सुहाना है
लेकिन लम्बी जुदाई की राते गुज़री कैसे ये क्या जाने

तू तो मेरे साथ है फिर भी जाने क्यों ये मन उदास है
शायद कल बिछुड़ने का भी इसको थोड़ा सा आभास है
तेरे  बिना अब जीना कैसे और मरना ये क्या जाने

मिल जाओ जो तुम मुझको आँखों में छुपा लूँ
इक पल भी मै करूँ न ओझल सीने  में बसा लूँ
लेकिन कब आएगा वो पल ये हम तुम क्या जाने



पिया का संदेश


सुन आलि  झूमे डाली कोयल गीत सुनाने लगी
छाये बदरा फैला कजरा चुनरी मोरी लहराने लगी

मिली आने की उनकी पतिया
सुनके धड़क गई मोरी छतिया
पुरवाई बन शहनाई कोई मधुर गीत गाने लगी

मेरी जुल्फे जो शानो पे छाई
लट उलझे लूँ जब अंगड़ाई
प्यासा भंवरा मोरा सजना देख उसे मै शर्माने लगी

ऐसा बलमा अनाड़ी  मेरा आलि
जिसने मोरी कलाई मोड़ डाली
भीगी अंगिया भीगी साड़ी कली फूल बन मुस्काने लगी




जिंदगी गुज़ारे चले गए

तेरे प्यार की कसम खाकर
जिंदगी गुज़ारे चले गए

                     तेरी तमन्नाओ का सहारा लेकर
                      तेरी यादो का किनारा लेकर
                      भंवर में नैया उतारे चले गए

न जाने क्या खोया हमने क्या पाया
दर्दे दिल जगा दिल में तो ख़्याल आया
कि हम बेखुदी में तुमको पुकारे चले गए

                     तेरी महकी हुई जुल्फों की छाँव तले
                     तेरे मदभरे नयनो के जाम तले
                     हम अपनी जिंदगी को संवारे चले गए

दिल में अनब्याही कलिया चटकी है
तेरे दामन से लिपटने को तरसी है
तेरे इंतज़ार में साँझ सकारे चले गए



क्या दिल लगाके पाया

कोई पूछे कि क्या दिल लगाके हमने पाया है
कितना कुछ पाया और कितना कुछ गवाया है

 उनसे नज़र हम दिल का चैन गंवा बैठे
खुद अपने और उनके हम होश गंवा बैठे
बड़ी मुश्किल से अब हमे होश आया है

कोई पूछे अगर रातो की नींद कैसे उडी
ये बात महफ़िल में कहने से उलझन बड़ी
अपनी और उनकी रुसवाई का ख्याल अाया है

दिल के दर्द की न जो दवा मिले तो क्या कीजे
खुद ही मर्ज जी को लगा लिया शिकवा क्या कीजे
अब तो अपनी हालत पे हमको तरस आया है




कैसे करूँ बयां

कैसे करूँ बयां गमे जिंदगी को आज

फट गए है पाँव मंजिल की लाश में चलते चलते
कोई तो आता मरहम लगाने को हमदम आज

तुम पास होते तो बात कुछ और ही होती
न आँखे रोटी न दिल मेरा टूटता आज

लेकर चिराग भटकता हूँ मज़ारों के आस पास
कोई तो करे रौशनी मेरी जिंदगी में आज

कब तक शर गुजरेगी यूं ही तड़प  तड़पकर
कोई हमदर्द तो गुज़रे मेरी गली से आज




सजन तुम  बिन


कितनी सुहानी है ये साँझ की बेला
किन्तु है सूनी सूनी सजन तुम बिन

मीठे मीठे कोयल के सुर
 हो  गए फीके सजन तुम बिन

सासो की गति मंद पड़ गई
तीव्र न हुई सजन तुम बिन

वर्षा में झींगुर के बोल
 लगे न मीठे सजन तुम बिन

पायल और वीणा की झंकार
पद गई धीमी सजन तुम बिन

मन मयूर हुआ बेचैन
न आये चैन सजन तुम बिन

तुम ही तो मेरे खिवैया हो
कैसे लगू पार सजन तुम बिन

तुमसे ही नाता जोड़ा है
टूटे दिल के तार सजन तुम बिन





अपरिचित


एक अपरिचित से किसी रोज़ मुलाकात हुई
जो थक गया था जीवन के सफर से

चलते चलते ऊब चुका था
जीवन की पतझड़ से

दिया सहारा  मैने थम उसने मेरा आँचल
एक रह के हमराही बने दोनों उसी क्षण

वीणा के तार झंकृत हो उठे
दिल में बजी शहनाई
जब दूर कही  कोयल ने कूक सुनाई

दोनों का मन झूमउठा
पर हाय री विडंबना
कर दिया जुदा  उसी क्षण

ला  पटका रेतीले तट पर
 जहाँ नं था कोई ठिकाना
वही  अपरिचित जो बना परिचित
फिर बन गया बेगाना





नारी की व्यथा

 नारी एक अबला है , असहाय है
नारी के उत्थान का दम्भ भरने वालो देखो
आज भी उसकी सांसे एक चीत्कार , सिसकी बनकर
रह गई है , वह समाज की सड़ी - गली
रस्मो रिवाज़ों की बेड़ियों में कैद है
उसके मुँह पर चुप के ताले है
इस पुरुष समाज से उसे क्या मिला
उत्पीड़न ,मानसिक यंत्रणा
जिसे वो आज तक झेल रही है
उसे आज  युगपुरुष की प्रतीक्षा है
जो उसे दासत्व से मुक्त करेगा
तब उसकी  हँसी शबनम की तरह
फूलो की तरह चाँदनी में बिखरेगी
नीले आकाश के खुले आँगन में
वो अपने मनु से कहेगी
ले चलो मुझे तुम अपने जहाँ में
एक नई दुनिया का निर्माण करने
जहाँ स्वतंत्रता होगी, शान्ति होगी
मुक्त वातावरण की सुरभि में
पंछी जैसे विहार करेंगे
मृग शावक जैसे कुलांचे भरते हुए
धरती पर नाचेंगे , गायेगे
दुःख का नामोनिशान मिटा देंगे




मेघ और सरिता

मेघ बरसता रहा फिर भी सरिता रीती रही
नयनो का सागर छलकता रहा पलकें सूनी रहीं

दिल झंझावत बन बिखरता रहा
वेदना के सुर निकलने लगे

उन अन्जानी कलियों के मुख से
जिन पर  कभी पराग आया था

मोह हुआ इक भंवरे को पर  वो भी खो गया
देखकर परागविहीन कलियों को निर्मोही हो गया

लेकिन कलियाँ ये देख अकुलाती रही
मन ही मन मुरझाती,  कुम्हलाती रही

क्या उसे कभी  भुलाना सम्भव   होगा
 सोचकर मन में विरह के गीत गाती रही





विरहिणी


जाने क्यों यह सोचकर  मेरा  मन
टूट टूट जाता है बिलखकर

की तुमसे अब  न मिल सकेंगे
न फिर वो बहारे आएगी

न बागो में कोयल कूकेगी
न चम्पा चमेली महकेगी

न बरखा गीत सुनाएगी
न रिमझिम मस्ती लाएगी

न फूलो पे पराग आएगा
न भंवरा ही गुनगुनाएगा

अपनी  प्रियतमा को न पाकर
केवल चकवा ही अश्रु बहायेगा


पिया मिलन की आस


सुनो मोरे  सजना कहे क्या ये कंगना
जी चाहे मेरा तेरे  ही  संग में रहना

मुझे बाहो में छुपा लो सीने से लगा लो
इस बेदर्द दुनिया से तुम मुझको बचा लो

अपना बना लो मुझे सबसे छुपा लो
बहक न जाऊं मै कही मुझको सम्भालो

तेरी आँखों में पिया इतना नशा है
पिए बिन ही दिल तो बेखुद हुआ है

कैसे होश आये जो न तुम इसको सम्भालो
डूबी जाऊं मै  तो  भंवर से तुम निकालो

प्रियतम तुम मुझको अपने अंग से लगालो
अपना बना लो मुझे दिल में बसा लो




मिलने की चाहत


उनसे मिलने की चाहत थी बहुत
दिल की मजबूरियों ने मिलने न दिया
सोचा था सुनाएंगे  दास्ता अपनी उनको
मगर दिल ने मुझे ऐसा करने न दिया

दिल की तमन्नाये दिल में दबी रह गई
ख्याले रुसवाई ने मुझे कुछ कहने न दिया
बात  होठो तक आते आते रुक गई
खुद को ही तन्हाइयो में भटकने दिया

सोचा था तेरे कदमो में सज़दा करेंगे आज
पूनम के चाँद ने भी धोखा हमे दिया
अपनी मजबूरियों में सिमटकर रह गए
दिल को  बेबसी का शिकवा करने न  दिया



मन एक आवारा बादल


मन तो है आवारा बादल पता नही कहाँ बरस जाए
कितनो को तड़पा दे और कितने प्यासे रह जाए

कितने हर भरे हो जाए कोई  तड़पे कोई मुस्काये
 किसी को बेचैन करदे ये राज़ समझ न आये

क्या पता मंजिल की तलाश में खुद अपना ही
सब कुछ गवा बैठे कोई तो इसे समझाये

एक घरोंदा बनाये जिसमे वो सिमट  जाए
जीवन के हर दुःख भुलाकर  लौटके न जाए




जूही


जब तुम यहाँ थी खिली थी
अब झर  गई  जूही
तुम्हारे प्यार के पांवों पड़ी
और तर गई जूही
तुम्हारा लाँघकेँ चौखट चले आना
रौशनी का झपकना
फूटकर बहना
अब अँधेरे में पड़ा रहना
बिला जाना
बताता है किन मजबूरियों से
तंग आकर ,मर गई जूही
खिली थी ,झर  गई जूही






गम


लो चली  हवाएँ गम
जल गया आशियाँ

और धुँआ उठने लगा
चिंगारी शोला बनी

दिल में दर्द का सैलाब उमड़ा
जो अश्रु बन बह निकला

फिर किसी ने आसुओ को
रोकने की कोशिश की तो

तब  तक देर हो चुकी थी
वो तब  पराई हो चुकी थी






आखिरी तमन्ना


न जाने कैसा बोझ है सीने पर
फिर भी जिए जा रहा हूँ मै

दम घुट रहा है मेरा लेकिन
अपनी आहें सिये जा रहा हूँ मै

डर है मोजों का तूफ़ान में
किश्ती है मेरी मंझधार में

एक अभिशिप्त जिंदगी लेकर
वीराने सफर को चल पड़ा हूँ मै

न अब है चाह मंजिल की
न हमदम की जरूरत है

तमन्ना है तो बस इतनी
मौत की आखिरी हिचकी पर

तेरा ही नाम लब पर हो
तेरे कदमो में दम निकले





कौन हो तुम

कौन हो तुम जिसने मेरी मोहनिद्रा भंग करदी
सोई हुई पिपासा फिर से जागृत कर दी

फिर से वीणा के तारों को  छेड़ दिया
जो न जाने कबसे चुपचाप  रहे थे
अन्धकार में  जाने कबसे खो रहे थे

फिर से  समा बंध  गया सावन के गीतों का
वर्षा की फुहारें फिर से आंदोलित करने लगी
मन झूमने  लगा आँचल   लहराने लगा

शिवजी का जैसे आसन  डोल गया था
कामदेव के वाणों से मेरा मन डोला
तुम्हारे मृदु बेनो से सरल  चित्त से

तुम्हारे स्पर्श को पाकर जीवन में प्राण आये
जीवन का सूखा निर्झर फिर से बहने लगा
मन ये कहने लगा काश तुम पहले मिले होते

 तब मेरी भी  जिंदगी यूं गुलज़ार होती
जैसे बाग़ों में बहार खुशगवार होती
जैसे फूलों  पे शबनम की फुहार होती

 हम दोनों विचरते प्रकृति के प्रागण में
धरा भी हमे लखकर मुदित हो रही होती




 चरमसीमा


सभी बातों  होती है चरमसीमा , उससे आगे न  बढ़ो
ऐसा कहा किसी ने मुझको , जब मै हँसती ही रही

अपनी बीती व्यथा भूलकर करुण कथा सुनकर
 न जब कोई पसीजा , जब किसी का दिल  दुखा

 अपने ही गम पर हँसी आ गई वीराने में बहार आ गई
मैने सोचा सुख दुःख  मिलन जीवन से क्या घबराना

जब तक न खुदा अपनी नज़र से दुनिया  को देखेगा
तब तक इस धरती पर कोई भी न कभी सुखी होगा

आखिर हर बात की होती है चरमसीमा जिसे
लांघकर कब तक कोई किसी को दुःख देगा

यही सोचकर जब मै हँसी तो किसी ने टोका
हर बात की होती  है चरमसीमा आगे न बढ़ो



मन की उलझन


न जाने मन की उलझन क्यों
सिमट आती है चेहरे की रेखाओ पर
भाग्य की विडंबना बन जिसके धुंधलके से
आच्छादित हो किसी का दिल रो उठा

हृदय चीत्कार कर  उठा
बर्फ की ठंडी हवाओ की तरह
लू में तपती रेट सी  बन गई सरिता की तरह
तब अनजाने डगमगाते कदम बढ़े उस  ओर
लेकिन मन व्याकुल हो उठा

देखकर मृग तृष्णा रूपी सरिता को
जो फिर से अपने आँचल में सिमट आई थी
और बाँध  उमड़ते सावन को
अपनी आँखों के दीपक प्रज्वलित करके
भुला  दिया था बीते क्षणों की मधुरता को

सोचती हूँ ये मकड़ी का जाला
क्या कभी मिट सकेगा
 कभी वह विहान भी आ सकेगा
जिसके खुले गवाक्षों से पंछी
स्वच्छ्न्द  उड़ सकेगा सीमा की ओर



मुस्कुराते रहो


मुस्कुराते रहो  गुनगुनाते रहो
जिंदगी गीत है इसको गाते रहो

             सोचो साथ तेरे और क्या जाएगा
              ख़ुशी का हर लम्हा न भुला पायेगा
              मुस्कुरा  के गमों को भुलाते रहो

कारवां वक्त का यूं गुजर जाएगा
मुस्कुराओगे बचपन लौट आएगा
मुस्कुराहटों में हर पल बिताते रहो




तेरी पलकें

मुस्कान से भरी तेरी उनींदी पलकें
जी चाहता है यूं ही रहें खुली पलकें

                 कभी हँसके मुझे बुलाती है
                  कभी हँसके जी जलाती है
                   न जाने कितना ये सताती है

फिर भी दुआ मांगता हूँ सलामत रहे तेरी पलके
मेरी राहो में सदा मुस्कुराती रहे तेरी पलके

                        तेरे अधरों पर मुस्कान रहे
                        दिल  तुझपे मेरा कुर्बान रहे
                         न हो अश्को से भरी पलके

मुस्कान से भरी तेरी उनींदी पलके
जी चाहता है यूं ही रहे खुली पलकें



प्रेम का वरदान


ईश्वर हमको दो वरदान
नित्य करें हम अच्छे काम

दुखी न हो कोई इंसान
जब तक तन में हो प्राण

औरो के लिए जीना सीखें
पढ़लिखकर हम बने महान

प्रेम प्यार का दीप जलाएं
नफरत को हम दूर भगाए



न हँसो ऐ ज़माने वालो

न मुझपे आज  हँसना ऐ ज़माने वालो
प्यार में रोना भी पड़ता है हंसने वालो

कभी तुमने लगता है प्यार किया नही
तभी तो कभी दर्दे जुदाई सहा  नही
रुसवा होना पड़ता है  ज़माने  वालो

 कई लोग इस राह में शहीद हुए है
कई लोग एक दूजे के मुरीद हुए है
मरके भी अमर नाम है ज़माने वालो



तेरा रूठना

आज तुमसे दूर होकर मेरा दिल टूट गया
तू बिना बात ही मुझसे क्यों रूठ गया

तुमने जीवन भर साथ निभाने की कसम खाई थी
हर पल साथ जीने मरने की कसम खाई थी
तेरा हर वो किया  हुआ  वादा क्यों टूट गया

मैने भी न ये सोचा था दिल लगाने से पहले
कि रोना भी पड़ता है मुस्कुराने से पहले
अब  हँसने का ज़माना पीछे छूट गया

कभी ये न सोचा था तुम मुझे भूल जाओगे
न ये कभी विचारा तुम मुझपे सितम ढाओगे
 रूठे तुम तो सारा ज़माना मुझसे रूठ गया



जुदाई का दर्द



तुमसे दूर हुए तो जाना जुदाई क्या होती है
यह तो मौत से भी बड़ी सज़ा होती है

हर दिल को रोना पड़ता है
हर सुख को खोना पड़ता है
सुकून जो दिल का खो जाए अजब हालत होती है

धड़कने थम जाती है
नब्ज रुक जाती है
आँखे हर पल रहती है नम रुसवाई होती है

लोग तड़पने का मज़ा लेते  है
दुखी दिल को और दुखाते है
कसक दिल की फिर भी न कम होती है

आँखों में गुज़रे पल तैरते है
कानो में मीठे बोल गूंजते है
हर पल सताता है गम दुनिया सोती है




दिल है परेशां


 जमाने वालो न सताओ हमको , कि हम है खुद से परेशां
दिल टूटेगा फिर न जुड़ेगा , कि हो न जाए कहीं बदगुमाँ

हर शाख से पत्ता पूछेगा , गिरने का सबब जानेगा
हर हाल में फिर भी जीना है , लेना न और  इम्तहाँ

न की थी कोई  बेवफाई ,    जिसकी हमे सज़ा मिली
जाने न हम फिर भी , रहते है क्यों  यूं तन्हा  परेशां

 मंजिल की तलाश में , भटकते रहे मिली  न रहगुजर
न पाये अभी तक कहीं , हमने उम्मीदों के कोई  निशां




भूले भटके तुम आ  जाना


ये बुझे  दीप आशाओ के
प्रिय आकर तुम्ही जला जाना
कबसे है घोर प्रतीक्षा
साकार कभी हो जाना

                         भूले भटके तुम आना

मै चटक बन हूँ भटक रहा
युग युग से तुमको खोज रहा
तुम स्वाति बूँद बनकर प्रियवर
दो बूँद टपकाकर तृषा बुझाना

                         भूले भटके तुम आना

जीवन की घोर निराशा में
उज्ज्वल प्रकाश बन छा जाना
अपलक चितवन से अपनी
मेरे उर में अमृत भर जाना

                          भूले भटके तुम अाना




मांझी और किश्ती


खामोश निगाहो से मांझी
है देख रहा उस किश्ती को

               जो तट पर है आती जाती
               टकराकर कितनी मौजो से

तूफ़ान उमड़ता है जाता
आवाज़ न हमदम की आती

               हमदम मेरे आवाज़ तो दो
               तूफानों से मै टकरा जाऊँ

मिटते मिटते ही मै तेरी
किश्ती को पार लगा जाऊँ




ऐ जाने वाले


ऐ जाने वाले मुझको तुम
बस अपना प्यार दिए जाओ
कभी लौटकेआओगे फिर तुम
बस ये विश्वास दिए जाओ

                       मन बहलेगा मेरा  तो  कैसे
                       जब तुम आँखों से ओझल हो
                       भावों के व्याकुल निर्झर में
                       अपनी रसधार दिए  जाओ

तुम संबल और सहारा हो
इस दुर्गम पथ के हमराही
इस पथ को कैसे काटूँगा
आशा संसार दिए जाओ



अटल विश्वास


सागर से रूठी कभी लहर नही
खगवृंद न भूले नभ की डगर
मानव ने बांटी कटुता और गरल
सारल्य विश्वास बना अविचल

                सब कुछ ले छीन ये जग
                पर विशवास न खोने देना
                मेरा संबल अवलम्ब वही
                तुम और किसी को न देना

चाहे कूल हो परे  दोनों
पर समरसता  भरी हुई
कोकिल अपने पचम सुर में
आनन्द कथा कहती होगी





अंजाम



जाने वाले कुछ देर रुको
अंजाम जिंदगी बाकी है
जी भरके तुझको देख लूँ
इक रात क़ज़ा की बाकी है

                    इस बुझते जीवन को क्षण भर
                    तुम रुको क्षणिक संबल तो दो
                    देकर तुम अपनी निज पद रज
                    कुछ बात हृदय की बाकी है

उखड़ी उखड़ी सी सांसे है
दिल के अरमान तड़पते है
अंजाम ऐ हसरत सामने है
अंजाम ऐ चाहत बाकी है



प्राणों के  गीत सुना दो


कल्पना भी थक चुकी पर  गीत अधूरे
अब तुम्ही मेरे प्राणों के गीत सुना दो

                 प्राणों में है कम्पन
                 कम्पन में निराशा
                 नैनो में सजग सपने
                 सपनो में पिपासा

बुझ जाए न दीपक , आँचल में छुपा दो
अब तुम्ही मेरे प्राणो के गीत सुना दो

                आतप से गए मुरझा
                अर्चना  के ये फूल
                सूखे पड़े है कबसे
                आशा  के ये फूल

दो बूँद स्वाति बरसो ,कुछ प्यास बुझा दो
अब तुम्ही मेरे प्राणो के गीत सुना दो




जागृत सपने

मेरी  भी आँखे देख रही
कितने जागृत से सपने
जो आज विलग दूर हुए
कल पास बहुत होगे अपने

                    सुख दुःख के हम होगे साथी
                     हम संग संग साथ रहेंगे
                     जीवन के दुर्गम पथ पर
                     आशा औ  निराशा झेलेंगे


तुम उन्नत शिखरों पर
स्वत; ही चढ़ती जाओगी
मेरे गीतों को स्वर देकर
तुम मुझको अमर बनाओगी





विधवा


पता नही बाहर क्यों शोर हुआ
मै चौककर उठ खड़ा हुआ

बाहर किसी की अर्थी जा रही थी
जैसे किसी की दुनिया लूटी जा रही थी

उसका विधवा का  वेश न देखा गया मुझसे
कुछ समय पूर्व ही तो वो सुहागन बनी थी

आज उसकी बिंदिया पोंछकर चूड़ियाँ तोड़ी
उसका क्रंदन मुझसे न  देखा जा रहा था

परिवार के सब लोग उसे ही कोस रहे थे
हत्यारी ,पापिन , जाने क्या कह रहे  थे

तब इस  समाज से  मुझे घृणा होने लगी
जिसे सांत्वना चाहिए वो तिरस्कृत हो रही थी

क्या इसे कहते है अच्छा व्यवहार स्वतन्त्रता
उसे संबल दो,आश्रय दो जीने का अधिकार दो

इसे तभी कहेंगे समाजवाद की परिभाषा
तभी इस राष्ट्र का भी स्वरूप निखरेगा


सूर्योदय


जब सूरज ने आँखे खोली, उषा भी लज्जाई
मंद मंद कदमो से चलकर नदी किनारे आई
खोले अपने बंद केश बिखेरने लगी सुगन्धि
 साथ ही लाली बिखरी जब वो सद्य स्नाता;

                       नदी से बाहर निकली
                       रूप लावण्य था अप्रतिम
                      मानो स्वर्णसुन्दरी हो वो
                       तारागण भी लगे सिमटने
                        देखके उसके यौवन  को

फिर वो इठलाती बलखाने लगी
आई धरती के आँगन में
फूली सरसों ,  खिले  फूल
लगी वो सबको जगाने

                         चूमा उसने मुख शिशु का मंद मुस्कान से
                         जो चकित हो देख रहा था उसकी ओर
                         बीती विभावरी आई जागने की वेला
                         यही संदेशा  दिया उषा ने मुस्कान से







 दहेज -  युवकों के प्रति


ज़रा  सामने तो आओ युवको
तेरे  हाथो में अबला की लाज है
 आँख खोलके ज़रा तुम देखलो
समाज बर्बाद हुआ आज है


                             पहले तो लड़की बिकती थी पर
                            आज पुरुष भी बिकते है
                            गरीब की लड़की पढ़ी लिखी हो
                             किन्तु धनिक पर मरते है
                             धिक्कार जवानो तुम्हे आज है
                             क्या मुर्दा तुम्हारी आवाज है

देश को तो बर्बाद किया
इन दहेज के ठेकेदारो ने
 अबलाओं को बर्बाद किया
कितनो को जलाके ख़ाक किया
क्यों सोई तुम्हारी  है आत्मा
क्यों देखता नही परमात्मा




बाल  पर्व



कैसा है ये राष्ट्रीय बाल पर्व
जबकि देश में हज़ारो बच्चे
भिखमंगे ,भूखे, नंगे  है
 न  खाने को रोटी , कपड़ा
रहने को घर नसीब है
कुछ तो यतीम भी है
कोई कहे कैसे बाल पर्व मनाएं

असली महत्व तो तब है  इस पर्व का
 उन्हें जब पूर्ण अपनत्व प्यार  मिले
उन्हें अपनाकर यतीम होने से बचाएं
तभी भारत का वो कर्णधार बनेगा
उसे  अच्छी शिक्षा पेट भर रोटी
 उपलब्ध  होगी भूख महंगाई खत्म होगी
तभी भारत का हर बच्चा बाल पर्व मनाएगा




नूतन वर्ष


आया है नूतन वर्ष उसका अभिषेक करें

सूरज की लाली छाई हर उपवन हरियाली
मधुबन के फूलो से स्नेहसिक्त लेप करे

चन्द्रमा का टीका  बनाये तारो से उसे सजाएं
शूल चुनकर मग से काम कोई नेक करे

न हो कोई बेसहारा न कोई दुविधा का मारा
ज्ञान के दीपक जलाके दूर अविवेक करे

लाये भारत में खुशहाली हर घर में हो दिवाली
उर्वरता दिखे हर सू,  दूर हर क्लेश करे



नवीन राष्ट्र  का   निर्माण


आओ नवीन राष्ट्र का निर्माण हम करें

अरुणोदय की है बेला
मधुर मस्त नज़ारे
नवजागरण का गान गाये
नभ के ये तारे
बीती विभावरी दुखी मन शान्त हम करें

दुःख दूर  करे सबके
उजियारा फैलाये
घर घर जलाके दीप
अन्धकार हम मिटायें
हर उपवन फूलो से गुलज़ार हम करे

हो देश में खुशहाली
हर  भेद को मिटाएं
लेके उजाला ज्ञान का
अविवेक हम मिटाये
अब अमन के सुरों की झंकार हम करें




 युद्ध के समय -  भारतमाता के प्रति


माँ  तेरे  आँचल में जलती महानाश की ज्वाला
               महानाश की ज्वाला

माँ आहों से नही पिघलता
वज्र हृदय हिंसा का
तेरे दृग जल से न बुझेगी
ये ज्वाला विकराला


अस्ताचल से रक्तिम लपटे
लप लप लपक रही है
चिता धूम के बाल बिखेरे
उतर रहा तम काला

ये सड़ते शव जलते खंडहर
रक्तिम रोती  राहें
रणचंडी की तृषा अपरिमित
भर भर रीता प्याला





देश प्रेम


जागो भारत देश के वासी
तुमको भाग्य आजमाना होगा
सदियों से सो रही आत्मा
उसको आज जगाना होगा

थके हारे क्यों बैठे भाई
काहे चंता है घिर आई
जन जन की सुप्त चेतना से
राम मंत्र जपवाना होगा

मीठे मीठे बोल सुरों के
खोले कपाट सुप्त हृदय के
प्राण फूंक दे जो बाँसुरिया
उसको आज बजाना होगा

कौन बड़ा है कौन है छोटा
इसमें क्यों वक्त है खोता
एक राम से जुड़े सभी जन
ऐसा पाठ पढ़ाना होगा


एकता का नारा


इस देश को हिन्दू न मुसलमान चाहिए
हर मजहब जिसको प्यारा वो इंसान चाहिए

ये जाट पात के गहने
हम ऐसे भी न पहने
इक दूजे से टकराके
लगे खून की धारा बहने
हर आदमी को एकता का ज्ञान चाहिए

ये खान पान पहनावा
ये तो है सिर्फ दिखावा
हर मन है प्यार का प्यासा
ये सच्चाई का दावा
हर मन को सच्चे प्यार की पहचान चाहिए





बढ़े चलो


  बढ़े चलो बहादुरो बढ़े चलो

तुम भारत की संतान हो
तुम एकता का गान हो
पुकारती स्वतंत्रता
तम्ही तो उसकी आन हो
तुम सिंह से दहाड़ते बढ़े चलो

अमन  के दुश्मनो से न तुम डरो
हो विपत्तियाँ तो सामना करो
तोड़ो हर श्रृंखला
मिटा दो परतंत्रता
हर जुल्म को पछाड़ते बढ़े चलो




भारतभूमि तुझे नमन

हे भारतभूमि तुझको नमन
सर्वस्व मेरा तुझको अर्पण

रवि चन्द्र ज्योत्स्ना फैलाए
तारे खुद दीपक बन जाएं
तेरे वन्दन में झुके नयन

विस्तृत सागर भी लहराए
तह मोतियों से जगमगाये
ऋतुओं का सदा बदले क्रम

दिन रात पुष्प सुरभि लुटाए
योगीश्वर भी ध्यान लगाएं
संकोची मन छूना चाहे गगन

तेरी धरा से हुआ  उत्पन्न
विलीन हो तुझमे ही तन
तेरी सुवास से पुलकित मन




प्रकृति की छटा


 आया है मौसम बड़ा सुहाना
हरियाली है हर किसी खेत  में

वर्षा की फुहार   तन को भिगोकर चली गई
एक कम्पन सा वो मेरे मन में भर गई

हल्की हल्की धुप छितरी है आँगन में
वो देखो इन्द्रधनुष भी सलोना दमक रहा

भोला भाला शिशु बन आकाश से चिमट रहा
डरकर गिर न जाए आया धरती के पास वो

रंग बिरंगी चितवन से सबको निहार रहा
कभी बादलो में छिपकर अठखेलियाँ रहा

अब सूर्य चमका तो भय से दुबका इन्द्रधनुष
नन्ही नन्ही कोपलों पर ओस की बूंदे सूखने लगी

सरसो के फूलो से सूर्य का रंग दुगुना हो गया
कुमुद मुरझाने लगे कुमुदिनी सिमट गई

फिर संध्यारानी ने सितारों की ओढ़नी ओढ़ ली
चाँद को अपने माथे का टीका बना दिया था

 कुमुद  कुमुदिनी मुदित हुए रातरानी लगी मुस्काने
लगी अपनी सुगंध से पवन को वो  सराबोर करने




वसंत ऋतु


आई ऋतु वसंत बहार
छाई है मस्ती देखो जहाँ

शिखरों से देखो सूर्य झांक  रहा
अट्टालिकाओं से मन भांप रहा

मेघ उसे देखकर छितरा गए
तारागण भी घबरा गए

चलने लगी शीतल पुरवाई
जो लेके सुगन्धि है आई

कोयल डाली डाली चहकने लगी
आम्रमंज़री भी महकने लगी

देखो ज़रा प्रकृति की सुंदर छटा
सारा उपवन है फूलो से भरा

 युगलों का हास प्रमुदित करने लगा
 मधुर स्पंदन सा मन में भरने लगा



धुँआ


फिर धुँआ उठने लगा दिल की गहराइयो से
वेदना के विकल स्वरों ने संजोया था जिसे
 प्रकट हो गया अनायास धू धू करके
अश्रुधारा भी जिसे रोक न सकी
दिल की चिंगारियां भी शोले लगी
मेघ यूं बरसने लगा ज्वालामुखी सा फूटने लगा
पपीहा पी पी करने लगा
चातक  भी चातकी  को न पाकर
दिल में दुःख समोने लगा विरहाग्नि बढ़ी
दिल की  आह आंसू बन बह निकली
कोई वियोगी यह कहने लगा
गम को दिल पर मत झेलो
आयशा, तृष्णा मिटाकर दुनिया के सुख ले लो





तेरी  मुस्कान

तेरी मुस्कान में है जादूगरी
ढूँढा इसे मैने नगरी नगरी

तूने इसे कहाँ से पाया है बता
कहाँ से मिलती है पता तो बता
नही ढूंढ पाया गया सारी नगरी

दिल तो तेरी मुस्कान पर मिट गया
कैसे मै सम्भालूँ गया मोरा जिया
कहाँ इसे ढूढूँ फिरूँ नगरी नगरी



तेरी याद


फिर तुम्हारी याद आई ओ सनम
हम न भूलेंगे कभी तुम्हे मेरी कसम

रहते हो  तुम दिल में हमारे
तुम हो मुझे सारे जहाँ से प्यारे
जान भी निकलेगी तो चूमेगी कदम

दिल को रहता है हर  पल  तेरा इंतज़ार
जाने  वक्त आये लेके आओ तुम बहार
थाम लो बाहो में रुसवा हो जाये न हम

मुझे सुकूँ मिलता  है तेरी बांहो में
थामके बैठे है दिल तेरी राहो में
आना जल्दी आँखे हो  जाए न नम

तेरी आरजू तेरी तमन्ना और इंतज़ार
हर पल रहता है मेरा दिल बेकरार
देखना यूं ही तड़पके निकल जाए न दम