मंमता की डोर तोड़कर तुम क्यों चले गए
मंझधार नाव छोड़कर तुम क्यों चले गए
सपनो के मीत मेरे
भावोँ के गीत मेरे
कम्पन बने ,बने रहे
उलझन भी बन गए
यौवन के नयन खोले
अन्तर में प्यार डोले
जगते ही जगते कैसे
वरदान सो गए
मिलने की आस लिए
युग युग से दीप लिए
झंझा झकोर आई
अंचल में बुझ गए
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