सौरभ बिखेरता है खिलता हुआ चमन
जग हँस रहा है और हँस रहा गगन
सुरभित समीर कहता कलियों से तुम खिलो
लहरो चली चलो सागर से तुम मिलो
जीवन का सुख यही अन्तर का मृदु मिलन
चितवन किसी की भोली मन में समा गई
आकाश गंगा सी एक रेखा बन गई
सुधियों के साथ जागे आँखों के ये सपन
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