यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 20 दिसंबर 2015

हँस रहा गगन




सौरभ बिखेरता है खिलता हुआ चमन
जग हँस रहा है और हँस रहा गगन

                    सुरभित समीर कहता कलियों से तुम खिलो
                     लहरो चली चलो सागर से तुम मिलो
                    जीवन का सुख यही अन्तर का मृदु मिलन

चितवन किसी की भोली मन में समा  गई
आकाश गंगा सी एक रेखा बन गई
सुधियों के साथ जागे आँखों के ये सपन 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें