उमड़ पड़ते मौन आँसू
बन विरह का गान मेरे
पीर अंतर की छिपाए
वेदना का नीर भरकर
खो गए इस विश्व पथ पर
प्रणय के उपधान मेरे
इन्द्रधनुष से सप्तरंगी
थे कभी जीवन हमारे
अरुण ऊषा थी हमारी
थे मिलन के गीत प्यारे
रात आती थी लुटाने
उस जगत के सुमन तारे
कोकिला का कलित कुंजन
नूपुरों में राग जीवन
मौन तुम तंद्रिल क्षणों में
प्राण चेतन पर अचेतन
रुक गया वह मलय मारुत
जल उठे अनगिनत अँगारे
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