एक बार नयन मिलकर
फिर से मिले नहीं
उठती हुई घटा
बरसी चली गई
चातक के विकल मन में
इक पीर भर गई
कम्पित अधर हिले
हिलकर खुले नहीं
लहरों ने तट को छुआ
परिचय ही क्या हुआ
अंतर में वेदना का
संचय ही बस किया
तट से बिछुड़ चली
वे तट मिले नहीं
जीवन के मोड़ पर
दो पथिक मिल गए
भावो की तूलिका में
कुछ चित्र टंग गए
जग के कुटिल नियम
टाले टले नहीं
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