मेरे दिल में तेरा ख्याल है
कहीं तू नज़र से गिरा न दे
इक तेरी नज़र का सवाल है
कहीं तू नज़र को फ़िर न दे
मेरे दिल के घाव हरे हुए
मेरे सीने में वो अगन जली
मेरी आहों से उठता धुँआ
कहीं होश तेरे उड़ा न दे
किसे हाल दिल अपना कहूँ
दिल गैर का ही हो चुका
कहूँ दास्ताँ ये किससे मै
कहीं कोई फ़साना बना न दे
मेरे इस दिए की रोशनी
मेरी हसरतों को जलाती है
मेरे दर्दे जिगर की खलिश कहीं
तेरे आशियाँ को जला न दे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें