आज फिर स्मृति तुम्हारी
क्यों सताती विकल होकर
उधर प्राची से उठे है
श्याम घन संदेश लेकर
गा उठा पागल पपीहा
प्रणय के भूले फ़साने
बज उठे सुन मधुर रिमझिम
हृदय के कम्पित तराने
कोकिला की कुहुक उठती
मिलन का संदेश देकर
दूर है दो छोर अपने
चल रहे विवश होकर
कौन जाने मिल सकेंगे
फिर कभी जीवन डगर पर
आज फिर स्मृति तुम्हारी
क्यों सताती सजग होकर
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