चन्द्रकिरण की ज्योत्स्ना से प्रकाशित है तन
प्रफुल्लित हुआ है देखो मेरे मन का भी उपवन
नभ के तारे चमक चमक कर मन को लुभाएं
अपनी रश्मि कणों से चहुँ ओर प्रकाश फैलाएँ
बाल सुलभ हुआ आज मेरा प्रमुदित मन
वीणा सी झंकृत हुई तरंगित ये धड़कन
कोई जैसे बुला रहा हो सोया भाग्य जगा रहा हो
त्वरित गति से कांपी धरती करने लगे पग नर्तन
नीला अंबर लगा झूमने बादल भी हर्षाने लगे
मन मयूरा नाच उठा गीत ख़ुशी के गाने लगे
भरा रोम रोम में अनुराग प्राणों का संचार हुआ
बरसों से प्यासी धरा में मधुमय मनुहार हुआ
अंतर्मन में गूँजे निनाद सुर अनहद बजे निरंतर
बरसी अमृत की धारा भी सहस्रार निर्झर अन्तर
@मीना गुलियानी
प्रफुल्लित हुआ है देखो मेरे मन का भी उपवन
नभ के तारे चमक चमक कर मन को लुभाएं
अपनी रश्मि कणों से चहुँ ओर प्रकाश फैलाएँ
बाल सुलभ हुआ आज मेरा प्रमुदित मन
वीणा सी झंकृत हुई तरंगित ये धड़कन
कोई जैसे बुला रहा हो सोया भाग्य जगा रहा हो
त्वरित गति से कांपी धरती करने लगे पग नर्तन
नीला अंबर लगा झूमने बादल भी हर्षाने लगे
मन मयूरा नाच उठा गीत ख़ुशी के गाने लगे
भरा रोम रोम में अनुराग प्राणों का संचार हुआ
बरसों से प्यासी धरा में मधुमय मनुहार हुआ
अंतर्मन में गूँजे निनाद सुर अनहद बजे निरंतर
बरसी अमृत की धारा भी सहस्रार निर्झर अन्तर
@मीना गुलियानी
bahut sunder likhti hai aap
जवाब देंहटाएंek adbhut pratibha hai aap me...
अनुपम माधुर्य का रसानंद कराती सुन्दर रचना. बधाई एवं शुभकामनायें .
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना ... प्राकृति और प्रेम का संयोजन ...
जवाब देंहटाएंhey arjun,sury mein jo prkash hai,jisse vh duniya ko prkashit krta hai,usey mera prkash hi smjh.isitrh chndrma aur agni mein bhi mera hi tej prkaash hai-gita-shri krishn
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