जब तेरी आँखों से दो आँसू छलकते हैं
मुझपे लम्हे वो नागवार से गुज़रते हैं
खुदारा इस लौ को अब तो बुझ ही जाने दो
मज़ारों पे रौशन चिराग अच्छे न लगते हैं
कितनी मासूमियत से वो पूछ बैठे हमसे
क्या ज़िन्दादिल इन्सा तन्हाई से डरते हैं
चलो जिन राहों पे तुम काँटे मुँह फेर लेते हैं
हम जैसे ख़ाकसारों के दिल पे घाव करते हैं
@मीना गुलियानी
मुझपे लम्हे वो नागवार से गुज़रते हैं
खुदारा इस लौ को अब तो बुझ ही जाने दो
मज़ारों पे रौशन चिराग अच्छे न लगते हैं
कितनी मासूमियत से वो पूछ बैठे हमसे
क्या ज़िन्दादिल इन्सा तन्हाई से डरते हैं
चलो जिन राहों पे तुम काँटे मुँह फेर लेते हैं
हम जैसे ख़ाकसारों के दिल पे घाव करते हैं
@मीना गुलियानी
कितनी मासूमियत से वो पूछ बैठे हमसे
जवाब देंहटाएंक्या ज़िन्दादिल इन्सा तन्हाई से डरते हैं
चलो जिन राहों पे तुम काँटे मुँह फेर लेते हैं
हम जैसे ख़ाकसारों के दिल पे घाव करते हैं...
सुंदर अभिव्यक्ति लाजवाब लेखन। बधाई।।।।