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बुधवार, 25 अक्तूबर 2017

दिल पे घाव करते हैं

जब तेरी आँखों से दो आँसू छलकते हैं
मुझपे लम्हे वो नागवार से गुज़रते हैं

खुदारा इस लौ को अब तो बुझ ही जाने दो
मज़ारों पे रौशन चिराग अच्छे न लगते हैं

कितनी मासूमियत से वो पूछ बैठे हमसे
क्या ज़िन्दादिल इन्सा तन्हाई से डरते हैं

चलो जिन राहों पे तुम काँटे मुँह फेर लेते हैं
हम जैसे ख़ाकसारों के दिल पे घाव करते हैं
@मीना गुलियानी 

1 टिप्पणी:

  1. कितनी मासूमियत से वो पूछ बैठे हमसे
    क्या ज़िन्दादिल इन्सा तन्हाई से डरते हैं

    चलो जिन राहों पे तुम काँटे मुँह फेर लेते हैं
    हम जैसे ख़ाकसारों के दिल पे घाव करते हैं...

    सुंदर अभिव्यक्ति लाजवाब लेखन। बधाई।।।।

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