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बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

सुध दीनी बिसराए

सखी कैसे मैं खेलूँ फाग
मोरे पिया घर नहीं आए

हेरत हेरत थक  गईं अखियाँ
जियरा मोरा अकुलाय

लिख लिख पाती भेजूँ कैसे
कोई संदेशा पहुँचाए

होती गर मैं बन की कोयलिया
उड़ जाती उत धाय

सबके बलम घर आवन लागे
नैना मोरे भर आए

सब सखियाँ मोसे करत ठिठोली
काहे सुध दीनी बिसराए
@मीना गुलियानी 

मेरे जीने की तू आस भी है

चाहे दूर है तू चाहे पास भी है
हर पल तेरा एहसास भी है

इस जग में कितने लोग मिले
पर तुझसे रिश्ता ख़ास भी है

तुझसे खुशियाँ इतनी हैं मिली
मुझे तुम पर इतना नाज़ भी है

तुम दूर न मुझसे कभी होना
तू ही धड़कन और श्वास भी है

तू ही है समाया इस दिल में
मेरे जीने की तू आस भी है
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

संग बिताए त्यौहार

बताओ भला कैसे हम भुलाएँ वो बचपन
 नानी का दुलार और प्यारा सा आँगन

वो गुड़िया का घर वो गर्मियों की दोपहर
वो कड़ाके की सर्दी और हवाओं का कहर

वो दादा दादी की कहानी हवा की रवानी
मम्मी से शिकायत डाँट पड़ती थी खानी

वो गेंद के टप्पे और वो  टॉफियों के रैपर
वो साईकिल पे कितने लगाते थे  चक्कर

वो खेतों में जाना और गन्ने भुट्टों को खाना
बारिश के दिनों में कागज़ की नाव चलाना

वो हलवा और चाट क्या हमारे थे ठाठ
वो हँसना हँसाना और दोहराते थे पाठ

कभी स्कूल की छुट्टी और दोस्तों से कुट्टी
कभी बचपन के झगड़े करते थे अट्टा बट्टी

याद आता है पापा और  दादा का प्यार
भला कैसे भूलेंगे  संग बिताए त्यौहार
@मीना गुलियानी


सोमवार, 26 फ़रवरी 2018

मधु प्याले क्यों रीत गए

वो सब टेसू के रंग में भीग रहे हैं
होली आई  गुलाल से सराबोर हैं

बच्चे हरसिंगार के फूल झाड़ रहे हैं
 पानी में कागज़ की नाव चला रहे हैं

सपने मेरी आँखों में लहलहाने लगते हैं
होंठ अनकहे रहकर थरथराने लगते हैं

तुम्हें कुछ याद है हमने क्या खोया है
तुम्हारी याद में अपना दिल गंवाया है

वो मधुर सुहाने दिन जल्दी ही बीत गए
आँखों से छलके मधु प्याले क्यों रीत गए
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

बाजे ढोल मृदंग और चंग

आया है फागुन
पुलकित हुआ मन
हुलसा है तन
महका हर उपवन
पुराने पत्तों का क्षरण
नवपल्ल्वों का अवगुंठन
कोमल पत्तों पर
ओस कणों की छुअन
धरा का पुष्पों से
महका है आंगन
पहनी है धानी चूनर
लटकी मोती की झूमर
पहनी मोतियन माला
इठलाई बनके बाला
सूरज उतरा नीचे
छूने पाँव धरा के
चंदा ने दी बाहें पसार
चाँदनी गाए मल्हार
नाचे बन में मोर
प्रमुदित हुआ चकोर
ब्रज में छाया  उल्लास
कान्हा संग गोपियन का रास
आई ग्वालों की टोली
खेलें सब हिलमिल होली
उड़े अबीर गुलाल का रंग
बाजे ढोल मृदंग और चंग
@मीना गुलियानी




शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

खामोशी से सीपियाँ चुनते हैं

समुद्र के किनारे लहरों को गिनते हुए
बैठे हुए चुपचाप खामोश से हम तुम
तुमने जब आँखे खोली बजी एक धुन
जो एक लय में धड़कने लगती है

तुम्हारे होंठों पे हँसी आते आते
क्यों ठिठक जाती सिहर जाती है
एक तूफ़ान सी खामोशी फिर से
तुम्हारे हाथों में ही सिमट जाती है

तुम्हारी आँखों से परछाईयाँ उभरती हैं
अनगिनत रंगों के सपने निकलते हैं
एक  गुबार सा बरसने लगता है
हम तुम खामोशी से सीपियाँ चुनते हैं
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

खुशियों को लुटाने चले आओ

इक बार झलक दिखला जाओ
चाहे बोलो या चुपचाप रहो
नज़रों से नज़र तो मिला जाओ
जब तार दिलों के मिल ही गए
सरगम को सजाने आ जाओ
दिल का रिश्ता जुड़ा नसीबों से
घुट रहा हूँ मैं तन्हा चले आओ
मेरी जिंदगी भी मुस्कुराएगी
खुशियों को लुटाने चले आओ
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 21 फ़रवरी 2018

मृत्यु की चाह

कैसे करूँ तेरा अभिनन्दन
मेरे हृदय से निकली सांसे
बन जाती हैं काले बादल
कैसे तुझे बिठाऊँ मन में
नयनों से बहता अश्रुजल
कैसे करूँ मिलन की चाह
विरह टीस समाई मन में
 दिखाऊँ कैसे जीवन की राह
मुझको है मृत्यु की चाह
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018

साहिल बना दिया

आसान नहीं था आकाश अपना तलाशना
आसान नहीं था मन का रास्ता नापना
क्योकि हर नज़र प्रश्न पूछ रही थी
उस पर मेरी खामोशी जुबान बन गई
मेरी हसरतों ने मुझे बेज़ार कर दिया
मंझधार को ही अपना साहिल बना दिया
@मीना गुलियानी



अपने घर जा रही है

लगता है कोई आवाज़ आ रही है
कुछ इशारे से मुझे समझा रही है

दिन ढल गया रात आई सोना है
मगर तेरी तस्वीर क्यों गा रही है

मैंने जीने की नई राह चुनी थी
वो मेरे करीब क्यों आ रही है

रात के दामन पे लिखे थे ख़्वाब
तेरी याद आके क्यों तड़पा रही है

सितारे छिपने लगे सूरज उगने लगा
लगता है चाँदनी अपने घर जा रही है
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 19 फ़रवरी 2018

अपनी आगोश में समेटती है

मैं तुम्हें देखकर अनगिनत बातें सोचता हूँ
जिन्हें यह जिंदगी सुनिश्चित करती है
जिसकी उदास हवा में गीत दम तोड़ते हैं
एक खामोशी गुमनामी में सफर करती है

केवल रह गईं हैं यादें गुज़रे पलों की
गर्मियों की तन्हा रातें और चाँदनी
बेवजह हम दोनों एक दूसरे को ताकते
खो जाते बिखरे हुए पलों को समेटते

तुम्हारे कानों में हौले से कुछ कहना
जो लहरा के नज़्म बन जाते हैं
दूर से आती आवाज़ें सपनों में ढलती हैं
चाँदनी अपनी आगोश में समेटती है 
@मीना गुलियानी



शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

अपनी तस्वीर उकेरता हूँ

अपनी किताब का पन्ना पलटता हूँ
एक और बसंत सा खिलता है
झरना सा झरने लगता है मुझमें
और मेरे मन के इस उपवन में
अनगिनत रंगों के फूल खिलते हैं
बारिश की बूँदें पत्तों पर गाती हैं
फूलों की खुशबु मन को लुभाती है
सुख दुःख की व्यथा भी सुनाती है
तन्हाई की यादें आँसुओं में ढलती हैं
मेरी अँगुलियाँ रेत पर थिरकती हैं
जिस पर अपनी तस्वीर उकेरता हूँ
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018

सपनों में गुनगुनाती हो

कभी कभी भीड़ में भी मन
नितान्त अकेला ही होता है
मन के कोने में छिपा दर्द
अचानक जाग सा उठता है
रिस रिस कर नस नस में
धड़कन बन बहता रहता है
कभी तुम मुझे भी पहचानो
हर पल तुम्हारी आवाज़ को
मैं हमेशा तरसता रहता हूँ
तुम्हारी परछाईं मुझे छूती है
 अंधेरों में ग़ुम हो जाती है
मैं तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ
नींद मुझे आगोश में लेती है
तुम सपनों में गुनगुनाती हो
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 14 फ़रवरी 2018

उसे भी जीने दो

मेरी बेटी अक्सर मुझसे सवाल करती है
हमें दूसरे घर में विदा क्यों करते हो
क्यों नहीं अपने ही आँगन में रहने देते
क्यों नहीं इसी आँगन के फूल को
इसी बगिया में ही खिलने देते
क्या दूँ मैं उत्तर इस प्रश्न का
कितने ही यत्न से सभी माँ बाप
बेटी को पाल पोसकर बड़ा करते हैं
कितना ममत्व देते हैं फिर भी
अपने कलेजे के उसी टुकड़े को
दिल पर पत्थर रख परायों को सौंप देते हैं
बेटियों को यही शिक्षा दी जाती है
दोनों घरों की लाज उसे ही रखनी है
घर में बेटा बेटी दोनों होते हैं
बेटे से माँ बाप को कोई अपेक्षा नहीं होती
बेटी सदैव उनके सुख दुःख में साथ निभाती है
बेटा तो अपनी शादी के बाद पराया हो जाता है
बेटी पराये घर जाकर भी इस घर की
चिंता में विलीन रहती है
माँ बाप की रग रग से वाकिफ होती है
दुःख की खबर पाते ही दौड़ी चली  आती है
बेटा पास होकर भी बेख़बर होता है
उसका ध्यान कहीं और बँटा होता है
बेटी को पराया धन मत समझो
उसे भी खूब प्यार दुलार दो शिक्षा दो ,संबल दो
ताकि समय आने पर वो
 अपने परिवार का ध्यान रख सके
उसे बोझ न समझो स्वावलम्बी बनाओ
खुली हवा में सांस लेने दो उसे भी जीने दो
@मीना गुलियानी


मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

चिंताएँ कभी खत्म होंगीं

क्या जीवन की चिंताएँ कभी खत्म होंगीं
हर व्यक्ति के साथ क्या उम्र भर रहेंगीं

सुबह सुबह से ही खाने पीने की चिन्ता
फिर नहा धोकर दफ्तर जाने की चिंता

बच्चों को स्कूल छोड़ आने की चिन्ता
ऐसे कब तक ये चिंता दिमाग में पलेगी

दफ्तर से आते ही घर में मचा रोना धोना
बच्चों के झगड़े बीबी के कमेंट पास होना

बनिये का बिल कभी दूध वाले का बिल
कभी राशन धोबी और डाक्टर का बिल

हालत हो जाए खस्ता आमदनी से ज़्यादा खर्चा
भरूँ मैं कहाँ से बिजली और पानी का खर्चा

जितनी कमाई करो पड़  जाए वो खटाई में
कुछ जाए उधार कुछ दर्ज़ी की सिलाई में

पड़ौसी भी मांगे उधार काम वाली को बुखार
घर पर टी वी मोबाइल का नेटवर्क भी बेकार
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 12 फ़रवरी 2018

विदा के क्षण

विदा के क्षण अजीब होते हैं
पलकों में अश्रु लरज़ आते हैं
बरबस आके बरस जाते हैं
आँखे दलहीज पर टिकी होती हैं
स्तब्ध वातावरण बोझिल करता है
एक सन्नाटा सा छा  जाता है
फिर किसी की चीख पुकार
मर्म तक बेधकर चली जाती है
हृदय को लहु लुहान कर देती है
कोई स्नेहिल स्पर्श कंधे पर पाकर
मन के सब्र का बाँध टूट पड़ना
सिसकियों का घुटा घुटा स्वर आना
फिर किसी के कंधे पर सिर रखना
सारी पीड़ा उस कंधे पर उड़ेलना
और मन का  बोझ  हल्का करना
मन की हताशा को सांत्वना देना
फिर से आशा के सेतु बाँधना
जीवन यात्रा को पुनः आरम्भ करना
गया वक्त फिर हाथ में नहीं आता
विदा के क्षण भुलाने पड़ते हैं
कैसा भी हो जीवन जीना पड़ता है
@मीना गुलियानी

रविवार, 11 फ़रवरी 2018

ताउम्र याद रह जाते हैं

कुछ रिश्ते ताउम्र याद रह जाते हैं
बिन बाँधे ही हमसे जुड़ जाते हैं

कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं
जो ज़िगर में अटके रह जाते हैं

कुछ रिश्ते हकीकत नहीं बन पाते हैं
मगर सपनों में वो साथ निभाते हैं

कुछ रिश्ते अपने अरमान साथ लेकर
दिल में ही दफन हो जाते हैं

कुछ रिश्ते जिन्हें हम निभाते तो हैं
पर उनके हम हो नहीं पाते हैं
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

अनंत सागर में लीन हो जाती है

मेरे अंतर में भी एक झरना  बहता है
जो रोशनी की किरण की आस रखता है
सागर से मिलने की चाह रखता है
सागर में खो जाने को आकुल रहता है
मगर हवा मेरा रास्ता रोक लेती है
मन दौड़कर हवा से आगे निकलता है
जीवन नदिया की धारा के समान है
जो इठलाती  बलखाती चलती रहती है
जीवन के सपने और हकीकत दो किनारे हैं
 टूट कर इस धारा में मिलने को आतुर हैं
जीवन और नदिया बल खाते हुए मुड़ते हैं
अपनी राह बनाकर जीवन को आयाम देते हैं
अंत में नदिया अनंत सागर में लीन हो जाती है
@मीना गुलियांनी 

शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2018

अपना वजूद ही खो दिया

जब हमें अपने मिलते हैं
फिर वो क्यों खो जाते हैं

जाने क्या खो जाता है
जिसे पागल मन ढूंढता है

इन पवन के झोंकों से
खुशबु तुम्हारी आती है

दिल में लगी है आग
खुद को ख़ाक बनाने की

अपना समझ अपनाया तुझे
अपना वजूद ही खो दिया
@मीना गुलियानी

गुरुवार, 8 फ़रवरी 2018

गीत नए बुनने लगी

तिनके का मिला सहारा मुझे
ख़्वाब आशियाने के बुनने लगी
हरी पत्तियों की कोमलता लेकर
फिर से मैं जीवन नया जीने लगी
फूलों की शबनम तितली के रंग
चुराकर आशियाना सजाने लगी
चिड़िया सा उड़ता है मेरा मन
भंवरों की रोज़ सुनती हूँ गुँजन
मिट्टी की सौंधी खुशबु मुझको
स्वर्ण कण जैसे लगने लगी
जिसे मैं धरा से चुनने लगी
ख्वाबों में गीत नए बुनने लगी
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 7 फ़रवरी 2018

जीवन की किताब

जीवन में सुख दुःख के होते हैं पड़ाव
इनके दम से सबकी चलती है नाव

जिस तन लागे वही दर्द भी जाने
और कोई क्या जाने कहाँ है घाव

धूप में चलने पर अच्छी लगे छाँव
वरना कोई कैसे जाने इसका अभाव

कभी मिलती ख़ुशी कभी मिलते गम
इन पलों से भरी जीवन की किताब
@मीना गुलियानी


मंगलवार, 6 फ़रवरी 2018

जीवन में बसंत आ जाता

गर तुम आते फिर जीवन में
मन की कलियाँ खिल जातीं

धुल जाता इस मन से विषाद
सूनी अखियाँ फिर भर जातीं

अश्रुजल तुम्हें समर्पित करती
सुगंधित पवन मन में भरती

उन्माद गगन में छा जाता
जीवन में बसंत आ जाता
@मीना गुलियानी 

रविवार, 4 फ़रवरी 2018

कभी भी सच्चा प्यार किया

जाने क्यों तेरे वादे पे ऐतबार किया
हर पल कयामत का इंतज़ार किया

कहके गए थे आएंगे पर तुम न आए
वादों में दिन ये कटे पर तुम न आए
दिल को तुम पर ही क्यों निसार किया

दिल में इक दर्द छिपा हुए खुद से पराए
चुपचाप ज़हर पीते रहे और मुस्कुराए
 मिलने का झूठा ही क्यों करार किया

प्रीत का दर्द भी कितना मीठा होता है
प्रीत जो सच्ची हो तो एहसास होता है
क्या तुमने कभी भी सच्चा प्यार  किया
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 3 फ़रवरी 2018

जिंदगी बिन तेरे मुझे भाती नहीं है

तेरी याद इस दिल से जाती नहीं है
कोई चीज़ भी मन को भाति नहीं है

तन्हा हुआ है सफर अब तो अपना
कोई हमसफ़र कोई साथी नहीं है

जहाँ पर भी देखूँ अँधेरा वहीँ है
रोशनी अब कहीं से आती नहीं है

क्या मर्ज़ है कोई दवा तो बताए
जिंदगी बिन तेरे मुझे भाती नहीं है
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018

कटेगा कैसे बिना हमसफ़र

कैसा है यादों का सफर
बिखरे हुए हैं यादों पल
मन की चंचलता के पल
किसी सोच में डूबा मन
कहता मेरी अँगुली पकड़
क्या करूँ कहाँ मैं जाऊँ
चहुँ ओर  अँधेरा है अब
आगे जाते मन डूबता अब
कोई मनमीत साथी नहीं
 साथ जो विचरण करें अब
क्या करें कोई तो समझाए
क्या सब भूल जाऊँ अब
वो पल न जाने कैसे थे
बिखर गए सुनहरे स्वप्न
हो गईं अकेली शामें सुबहें
वो प्रेमालाप की धड़कन
सिर्फ यादें हैं चन्द लम्हों की
तन्हा है जिंदगी का सफर
कटेगा कैसे बिना  हमसफ़र
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

विलीन होने की चाहत है

सब कुछ छोड़कर चलने की आदत है
मौत को हँसकर गले लगाने की चाहत है

जिंदगी की मुश्किलें भी क्या टकरायेंगी
मुसीबतें सारी कतरा के निकल जायेंगी

हर पल मुस्कुराने की मुझे आदत है
परायों को भी अपना बनाने की चाहत है

दुनिया के दुःख समेटने की आदत है
अनन्त में विलीन होने की चाहत है
@मीना गुलियानी