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सोमवार, 12 फ़रवरी 2018

विदा के क्षण

विदा के क्षण अजीब होते हैं
पलकों में अश्रु लरज़ आते हैं
बरबस आके बरस जाते हैं
आँखे दलहीज पर टिकी होती हैं
स्तब्ध वातावरण बोझिल करता है
एक सन्नाटा सा छा  जाता है
फिर किसी की चीख पुकार
मर्म तक बेधकर चली जाती है
हृदय को लहु लुहान कर देती है
कोई स्नेहिल स्पर्श कंधे पर पाकर
मन के सब्र का बाँध टूट पड़ना
सिसकियों का घुटा घुटा स्वर आना
फिर किसी के कंधे पर सिर रखना
सारी पीड़ा उस कंधे पर उड़ेलना
और मन का  बोझ  हल्का करना
मन की हताशा को सांत्वना देना
फिर से आशा के सेतु बाँधना
जीवन यात्रा को पुनः आरम्भ करना
गया वक्त फिर हाथ में नहीं आता
विदा के क्षण भुलाने पड़ते हैं
कैसा भी हो जीवन जीना पड़ता है
@मीना गुलियानी

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