यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 19 फ़रवरी 2018

अपनी आगोश में समेटती है

मैं तुम्हें देखकर अनगिनत बातें सोचता हूँ
जिन्हें यह जिंदगी सुनिश्चित करती है
जिसकी उदास हवा में गीत दम तोड़ते हैं
एक खामोशी गुमनामी में सफर करती है

केवल रह गईं हैं यादें गुज़रे पलों की
गर्मियों की तन्हा रातें और चाँदनी
बेवजह हम दोनों एक दूसरे को ताकते
खो जाते बिखरे हुए पलों को समेटते

तुम्हारे कानों में हौले से कुछ कहना
जो लहरा के नज़्म बन जाते हैं
दूर से आती आवाज़ें सपनों में ढलती हैं
चाँदनी अपनी आगोश में समेटती है 
@मीना गुलियानी



3 टिप्‍पणियां: