कभी कभी भीड़ में भी मन
नितान्त अकेला ही होता है
मन के कोने में छिपा दर्द
अचानक जाग सा उठता है
रिस रिस कर नस नस में
धड़कन बन बहता रहता है
कभी तुम मुझे भी पहचानो
हर पल तुम्हारी आवाज़ को
मैं हमेशा तरसता रहता हूँ
तुम्हारी परछाईं मुझे छूती है
अंधेरों में ग़ुम हो जाती है
मैं तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ
नींद मुझे आगोश में लेती है
तुम सपनों में गुनगुनाती हो
@मीना गुलियानी
नितान्त अकेला ही होता है
मन के कोने में छिपा दर्द
अचानक जाग सा उठता है
रिस रिस कर नस नस में
धड़कन बन बहता रहता है
कभी तुम मुझे भी पहचानो
हर पल तुम्हारी आवाज़ को
मैं हमेशा तरसता रहता हूँ
तुम्हारी परछाईं मुझे छूती है
अंधेरों में ग़ुम हो जाती है
मैं तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ
नींद मुझे आगोश में लेती है
तुम सपनों में गुनगुनाती हो
@मीना गुलियानी
कभी कभी भीड़ में भी मन
जवाब देंहटाएंनितान्त अकेला ही होता है
.........................सुन्दर!