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गुरुवार, 31 अगस्त 2017

तुम न होते तो क्या होता

कभी कभी मैं सोचती हूँ
तुम न होते तो क्या होता
न दिल का सुकूँ खोता
न यूँ उदास ये होता

            न नज़रों के बोल हम सुनते
            न सपने नए रोज़ बुनते
             न कभी फूल मुस्काते
             न भँवरे ये गुनगुनाते

न चिड़िया ये चहकती
न हवाएँ यूँ बहकती
न घटाएँ आँसू बहाती
न कलियाँ यूँ मुस्काती

           न आता मदमस्त वो सावन
           न फूलों से महकता गुलशन
          न दिल गुलज़ार ये होता
          न तुमसे प्यार यूँ होता

न दिल में अरमां होते
न आँख में आँसू होते
न होती हमें बेकरारी
न दिल को होती लाचारी

          न कल कल झरने बहते
          न हम तुम ऐसे मिलते
         न चमन में फूल यूँ खिलते
         न खुशियों के पल मिलते
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 30 अगस्त 2017

जाने कब परदेसी आये

ये साँसों की डोर न पड़े कमज़ोर
इक बार तो मुख दिखला जाना
बात जोहती हैं आँखे सूने हैं कोर
दिल मेरा ज़रा सा बहला जाना

                 कोयल कूकना है भूली मैना रास्ता भूली
                 भूली चिड़िया रानी अब तो चहकना
                 भूले भँवरे अपनी गुंजन भूले बहकना
                 कलियाँ सुध बुध में भूली हैं खिलना

तुम बिन बिरहन कल न पाती
भेजी लिख लिख तुझको पाती
कब आओगे इस देस लिखना
परदेसी न तड़पाओ अब इतना

                आवे बिरहन को फिर चैन
                पोंछे भर भर अपने नैन
                बैठी पथ पे आँख बिछाए
                 जाने कब परदेसी आये
@मीना गुलियानी


सोमवार, 28 अगस्त 2017

सब्र की इन्तहा कहाँ तक है

न पूछ मुझसे सब्र की इन्तहा कहाँ तक है
तू ज़ुल्म कर ले तेरी हसरत जहाँ तक है

न पूछो मुझसे ये नज़रें क्या ढूँढती रहती हैं
पूछो इनसे ये खुद से भी ख़फ़ा कहाँ तक हैं

आये ख्याल उनके तो आँखों में सिमट गए
मालूम न था इनको मुरव्वत कहाँ तक है

हुए मशहूर तुम तो हम भी मसरूफ हो गए
अब पता चला हमें तेरी शौहरत कहाँ तक है

काँधे पे ज़नाज़ा खुद का तलाशते राहबर को हम
किससे पूछे पता उसका जहाँ फैला कहाँ तक है
@मीना गुलियानी 

रविवार, 27 अगस्त 2017

संतप्त मन को शांत कर जाओ

आज तुम मेरे हृदय में बस जाओ
 अतृप्त मन पे  करुणाजल बरसाओ

थम जाए भावों का क्रन्दन
विचलित न हो फिर ये मन
तुम फुहार बनके बरस जाओ

नवांकुर फूटने लगा धरा पर
थामो हाथ मेरा बनो हमसफ़र
मन मेरा तुम आज हर्षाओ

कैसी विहंगम दृष्टि तूने डाली
कूकी है देखो कोयल ये काली
मन मयूरा नाचे  साज़ बजाओ

संध्या भी देखो तारों को लाई
धानी चुनरिया मोरी लहराई
संतप्त मन को शांत कर जाओ
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

धड़कन कैसे सुन पाओगे

बोलो तो ज़रा मेरे अन्तर्मन कितना मुझको तड़पाओगे
कब तक मैं जिऊँ चुप रहके कब तक मन को बहलाओगे

हर पीड़ा मुझसे पूछती है ये कलियाँ क्यों मुझसे रूठी हैं
तुम जानते हो इनकी भाषा मेरी तो हिम्मत टूटी है
अब तक तो जिए हम घुट घुट के कितना और सताओगे

मैं भूल गई प्यारे सपने गुम हो गए सब जो थे अपने
मोती की माला बिखर गई जिनमें गूँथे थे हर सपने
अब कैसे गाऊँ गीत नए सुर कैसे तुम सुन पाओगे

न साज बजाया जा सकता न गीत कोई दोहरा सकता
अब तुम ही बताओ कैसे अपना दिल मैं बहला सकता
साँसे भी अब थमने को है धड़कन कैसे सुन पाओगे
@मीना गुलियानी

सोमवार, 21 अगस्त 2017

घड़ी हुई जग जाने की

समय परिवर्तनशील बना  है घड़ी हुई जग जाने की
अपनी क्षमता को पहचानो बात यही समझाने की

सब स्वार्थ के पुतले यहाँ हैं मन में कितनी कटुता है
अपनापन भुलाया सबने मानव मूल्य न दिखता है
हिम्मत अपनी आज जगाओ उन्हें मार्ग पर लाने की

आज की पीढ़ी को तुम देखो कितनी दलदल में है धँसी
हर तरफ है अनाचार दुष्प्रवृति के जाल में है ये फँसी
तुमसे ही  आशाएँ हैं इनको सन्मार्ग दिखलाने की

तुम भारत माँ के सपूत हो कर  सकते हो काम बड़ा
उस जननी का मान बढ़ाओ जिसको तुमपे नाज़ बड़ा
है ज़रूरत आज हमें है  गुमराह को राह पे लाने की
@मीना गुलियानी

शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

पथ की ऐसी करें तैयारी

आज की नारी में ऊर्जा का भारी संचार हुआ
नई चुनौती की तैयारी हेतु इसको है चुना
युगों से सुप्त जन सत्ता भी आज है जागी
धर्म कर्म की सत्ता में है इसकी भागीदारी

काम नहीं आसान बहुत लहरों से टकराना
है चुनौतीपूर्ण पर तनिक न तुम घबराना
सतत साधना बुद्धिबल से साहस बढ़ाएँ
युग निर्माण में जुड़ें हम ऐसा कदम बढ़ाएँ

वैर भाव मिटा दें सारे हर कटुता बिसरा दें
जन जन के मानस  में आशादीप जलादें
रोक न पाए कोई भी अक्षमता या लाचारी
हर अवरोध मिटादें पथ की ऐसी करें तैयारी
@मीना गुलियानी 

रविवार, 13 अगस्त 2017

गम रहेगा क्यों फासले मिले

जिंदगी की तलाश में जब हम निकले
जिंदगी तो मिली नहीं तजुर्बे बड़े मिले

दोस्तों से जब हम  मिले तो  पता चला
जिंदगी में रौनक के उनसे थे सिलसिले

जिंदगी मेरी एक रंगमंच बनकर रह गई
टूटते पुर्जे जुड़ने का नाटक करते हुए मिले

जलने वालों की इस जहाँ में कोई कमी नहीं
बिना तीली सुलगाये दिल जलाते हुए मिले

शीशा और पत्थर बनकर संग रहे दोनों
अब बात कुछ और है टकराते हुए मिले

जिंदगी के कई  ख़्वाब अधूरे पड़े रहे
हर लम्हा गम रहेगा क्यों फासले मिले
@मीना गुलियानी


बुधवार, 9 अगस्त 2017

सन्देश ये तुमको देती है

तेरी आँखों से बहता जल
बूँद बूँद इक मोती है

नदिया की धारा भी देखी
सागर  से वो मिलती है
पर किसी की याद में तेरी
आँख रात भर रोती है

नीम खेजड़ी की शाखाएँ
कितनी ही गदराई हैं
चकवी चकवे की याद में
आँसू से मुख धोती है

नया सवेरा फिर आएगा
डूबा सूरज उग जाएगा
हर पत्ते पर ओस की बूँदे
सन्देश ये तुमको देती है
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 5 अगस्त 2017

सर अपना झुकाने लगे हैं

बिना पिए ही कदम लड़खड़ाने लगे हैं
राहों में फिर से डगमगाने लगे हैं

बहारें तो आई थीं कुछ दिल पहले
ख़ुशी दिल में आई हम भी बहले
गुलिस्तां के फूल मुरझाने लगे हैं

सोचा था क्या हमने क्या हो गया है
यकीं जिसपे था बेवफा हो गया है
दिल तसल्लियों से बहलाने लगे हैं

जिए हम अधूरे रहे हम अकेले
जाने कहाँ छूटे खुशियों के मेले
सपनों के फूल बिखराने लगे हैं

करूँ मैं दुआ गर उसको कबूल हो
गुनाह माफ़ करदे जो उसे मंजूर हो
सज़दे में सर अपना झुकाने लगे हैं
@मीना गुलियानि