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रविवार, 27 अगस्त 2017

संतप्त मन को शांत कर जाओ

आज तुम मेरे हृदय में बस जाओ
 अतृप्त मन पे  करुणाजल बरसाओ

थम जाए भावों का क्रन्दन
विचलित न हो फिर ये मन
तुम फुहार बनके बरस जाओ

नवांकुर फूटने लगा धरा पर
थामो हाथ मेरा बनो हमसफ़र
मन मेरा तुम आज हर्षाओ

कैसी विहंगम दृष्टि तूने डाली
कूकी है देखो कोयल ये काली
मन मयूरा नाचे  साज़ बजाओ

संध्या भी देखो तारों को लाई
धानी चुनरिया मोरी लहराई
संतप्त मन को शांत कर जाओ
@मीना गुलियानी 

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